महिलाओं की पसंद की होगी उत्तराखण्ड की अगली सरकार
-जयंसिंह रावत
देहरादून। उत्तराखण्ड राज्य के गठन में अग्रणी भूमिका निभाने वाली प्रदेश की महिलाओं को भले ही राजनीतिक दलों ने भुला दिया हो और आधी आबादी होने के बावजूद शासन में उनका प्रतिनिधित्व नगण्य हो मगर प्रदेश की अगली सरकार महिलाओं के पंसद की ही बनने जा रही है। सरकार के चयन में महिलाओं की इस असाधारण भूमिका ने प्रदेश के पहाड़ी इलाकों से हो रहे पलायन की असली तस्बीर के उजागर होने के साथ ही ग्रामीण बेराजगारी और आवश्यक सुविधाओं के अभाव की पोल भी खोल दी है।
मतदान सम्पन्न होने के बाद कौन बनेगा मुख्यमंत्री और किसकी बनगी सरकार की गली कूचों में चल रही चर्चाओं को अगर दरकिनार किया जाय तो भी एक सच्चाई यह सामने आ गयी है कि अगली सरकार और किसी की नहीं बल्कि प्रदेश की महिलाओं की पसन्द की बनने जा रही है। देश की आधा आबादी की सत्ता में समुचित भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये विधानसभाओं और संसद में महिलाओं के लिये एक तिहाई आरक्षण की बात करने वाले राजनीतिक दलों द्वारा आरक्षण दिया जाना तो रहा दूर मगर अपने दलों के टिकट देने से भी कतराने के बावजूद उत्तराखण्ड की महिलाओं ने पुरुषों से कहीं अधिक मतदान कर प्रदेश की नवीं सरकार का भविष्य तय कर दिया है।
संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिये 33 प्रतिशत आरक्षण की कोरी घोषणाएं करने वाले राजनीतिक दलों की करनी और कथनी में अगर आप को अंतर देखना हो तो उत्तराखण्ड विधानसभा के चुनाव में विभिन्न दलों की प्रत्याशियों की सूची पर नजर डज्ञलनी होगी। कुल 70 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस ने इन चुनावों में महिलाओं को 8 और भाजपा ने 5 टिकट दिये हैं। इनमें से कितनी महिलाएं जीत कर आयेंगी, यह 11 मार्च को ही पता चलेगा मगर राजनीतिक दलों की मंशा का तो पहले ही पता चल गया है। इस चुनाव में कुल 62 महिलाएं चुनाव लड़ रही हैं, जिनमें भाजपा की बागी महिला प्रत्याशी भी शामिल हैं
विधानसभा के इन चुनावों मे ंप्रदेश की 70 में से 69 सीटो ंपर हुए मतदान में कुल 74,20,710 मतदाताओं में से 48,70,879 लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। कुल मतदाताओं में से 38,87,296 पुरुष और 35,33,229 महिला मतदाता थे। लेकिन 15 फरबरी को मतदान के दिन पुरुषों मे ंसे केवल 24,21,019 पुरुष ही मतदान केन्द्रों तक अपने मताधिकार का प्रयोग करने पहुंचे। जबकि महिला मतदाताओं की संख्या कम होने के बावजूद उस दिन कुल 24,49,844 महिला मतदाताओं ने मतदान केन्द्रों तक पहुंच कर प्रदेश की भावी सरकार के बारे में अपनी राय दी। इस तरह इस बार अपने मताधिकार का प्रयोग करने वाले पुरुष मतदाता संख्या में अधिक होने के बावजूद मतदान करने कम पहुंचे। कुल मिला कर इस बार 62.28 प्रतिशत पुरुष और 69.34 प्रतिशत महिला मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। इस बार कुल मतदान में 1.58 प्रतिशत की कमी आयी है, फिर भी 2012 के चुनाव की तुलना में इस बार मतदान करने वाले पुरुषों में 3.46 प्रतिशत की कमी और महिला मतदाताओं की संख्या में 0.65 प्रतिशत की वृद्धि हुयी है। सन् 2007 के चुनाव में भी 58.95 प्रतिशत पुरुषों और 59.45 प्रतिशत महिलाओं ने मतदान किया था। सन् 2007 से लेकर 2017 के चुनाव में पुरुषों कीर संख्या में 3.33 प्रतिशत की तथा मतदान करने वाली महिलाओं की संख्या में 9.89 प्रतिशत की वृद्धि हुयी है। इस चुनाव में 14,66,277 पुरुष मतदाता तथा 10,83,385 महिला मतदाता मतदान केन्द्रों तक नहीं पहुंचे।
निर्वाचन आयोग द्वारा जारी मतदान के इन आंकड़ों ने 1000 पुरुषों पर 963 महिलाओं के लिंगानुपात की सच्चाई को उलट कर रख दिया है। मतदान के इन आंकड़ों ने साबित कर दिया कि पहाड़ों में भले ही पुरुषों की जनसंख्या महिलाओं से अधिक है मगर वहां महिलाओं की मौजूदगी पुरुषों से कहीं अधिक है। जाहिर है कि पुरुष बहुत बड़ी संख्या में अपने गांव छोड़ कर मैदानों में रोजगार के लिये चले गये। इन आंकड़ों ने नीति नियुताओं के लिये भी साफ संदेश दे दिया कि अगली सरकार को अगर पलायन रोकना है तो उसे पलायन और महिलाओं को ध्यान में रख कर ही विकास की रणनीति तय करनी होगी।
-जयंसिंह रावत
देहरादून। उत्तराखण्ड राज्य के गठन में अग्रणी भूमिका निभाने वाली प्रदेश की महिलाओं को भले ही राजनीतिक दलों ने भुला दिया हो और आधी आबादी होने के बावजूद शासन में उनका प्रतिनिधित्व नगण्य हो मगर प्रदेश की अगली सरकार महिलाओं के पंसद की ही बनने जा रही है। सरकार के चयन में महिलाओं की इस असाधारण भूमिका ने प्रदेश के पहाड़ी इलाकों से हो रहे पलायन की असली तस्बीर के उजागर होने के साथ ही ग्रामीण बेराजगारी और आवश्यक सुविधाओं के अभाव की पोल भी खोल दी है।
मतदान सम्पन्न होने के बाद कौन बनेगा मुख्यमंत्री और किसकी बनगी सरकार की गली कूचों में चल रही चर्चाओं को अगर दरकिनार किया जाय तो भी एक सच्चाई यह सामने आ गयी है कि अगली सरकार और किसी की नहीं बल्कि प्रदेश की महिलाओं की पसन्द की बनने जा रही है। देश की आधा आबादी की सत्ता में समुचित भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये विधानसभाओं और संसद में महिलाओं के लिये एक तिहाई आरक्षण की बात करने वाले राजनीतिक दलों द्वारा आरक्षण दिया जाना तो रहा दूर मगर अपने दलों के टिकट देने से भी कतराने के बावजूद उत्तराखण्ड की महिलाओं ने पुरुषों से कहीं अधिक मतदान कर प्रदेश की नवीं सरकार का भविष्य तय कर दिया है।
संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिये 33 प्रतिशत आरक्षण की कोरी घोषणाएं करने वाले राजनीतिक दलों की करनी और कथनी में अगर आप को अंतर देखना हो तो उत्तराखण्ड विधानसभा के चुनाव में विभिन्न दलों की प्रत्याशियों की सूची पर नजर डज्ञलनी होगी। कुल 70 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस ने इन चुनावों में महिलाओं को 8 और भाजपा ने 5 टिकट दिये हैं। इनमें से कितनी महिलाएं जीत कर आयेंगी, यह 11 मार्च को ही पता चलेगा मगर राजनीतिक दलों की मंशा का तो पहले ही पता चल गया है। इस चुनाव में कुल 62 महिलाएं चुनाव लड़ रही हैं, जिनमें भाजपा की बागी महिला प्रत्याशी भी शामिल हैं
विधानसभा के इन चुनावों मे ंप्रदेश की 70 में से 69 सीटो ंपर हुए मतदान में कुल 74,20,710 मतदाताओं में से 48,70,879 लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। कुल मतदाताओं में से 38,87,296 पुरुष और 35,33,229 महिला मतदाता थे। लेकिन 15 फरबरी को मतदान के दिन पुरुषों मे ंसे केवल 24,21,019 पुरुष ही मतदान केन्द्रों तक अपने मताधिकार का प्रयोग करने पहुंचे। जबकि महिला मतदाताओं की संख्या कम होने के बावजूद उस दिन कुल 24,49,844 महिला मतदाताओं ने मतदान केन्द्रों तक पहुंच कर प्रदेश की भावी सरकार के बारे में अपनी राय दी। इस तरह इस बार अपने मताधिकार का प्रयोग करने वाले पुरुष मतदाता संख्या में अधिक होने के बावजूद मतदान करने कम पहुंचे। कुल मिला कर इस बार 62.28 प्रतिशत पुरुष और 69.34 प्रतिशत महिला मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। इस बार कुल मतदान में 1.58 प्रतिशत की कमी आयी है, फिर भी 2012 के चुनाव की तुलना में इस बार मतदान करने वाले पुरुषों में 3.46 प्रतिशत की कमी और महिला मतदाताओं की संख्या में 0.65 प्रतिशत की वृद्धि हुयी है। सन् 2007 के चुनाव में भी 58.95 प्रतिशत पुरुषों और 59.45 प्रतिशत महिलाओं ने मतदान किया था। सन् 2007 से लेकर 2017 के चुनाव में पुरुषों कीर संख्या में 3.33 प्रतिशत की तथा मतदान करने वाली महिलाओं की संख्या में 9.89 प्रतिशत की वृद्धि हुयी है। इस चुनाव में 14,66,277 पुरुष मतदाता तथा 10,83,385 महिला मतदाता मतदान केन्द्रों तक नहीं पहुंचे।
निर्वाचन आयोग द्वारा जारी मतदान के इन आंकड़ों ने 1000 पुरुषों पर 963 महिलाओं के लिंगानुपात की सच्चाई को उलट कर रख दिया है। मतदान के इन आंकड़ों ने साबित कर दिया कि पहाड़ों में भले ही पुरुषों की जनसंख्या महिलाओं से अधिक है मगर वहां महिलाओं की मौजूदगी पुरुषों से कहीं अधिक है। जाहिर है कि पुरुष बहुत बड़ी संख्या में अपने गांव छोड़ कर मैदानों में रोजगार के लिये चले गये। इन आंकड़ों ने नीति नियुताओं के लिये भी साफ संदेश दे दिया कि अगली सरकार को अगर पलायन रोकना है तो उसे पलायन और महिलाओं को ध्यान में रख कर ही विकास की रणनीति तय करनी होगी।
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