Search This Blog

Wednesday, June 28, 2017

नरेन्द्र सिंह नेगी की हालत में सुधार की सूचना


श्री नरेन्द्रसिंह नेगी जी के स्वास्थ्य की गहन जाँच मैक्स अस्पताल के विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा की जा रही है लेकिन सोशल मीडिया पर कुछ लोग अपने घर से ही मनगढ़ंत खबर बनाकर प्रसारित कर रहे हैं ।मित्राें नेगी जी से लाखों लोगों की भावनाएं जुडी़ हुई हैं सच तो ये है कि वे लाखों दिलों में धड़कते हैं उन लाखों लोगों से ऐसा भद्दा मजाक मत कीजिए।इन्ही लाखों लोगों की दुआएं नेगी जी को सकुशल घर ले आएंगी । नेगीजीकी कुशलता की थोड़ा प्रतीक्षा कर लीजिए।
आपका सहयोग हम सबकी ताकत होगी।
--गणेश खुगशाल गणी 

करोड़ों दिलों पर राज करने वाले लोक गायक नरेन्द्र सिंह नेगी की हालत में सुधार की सूचना मिली है। उनके परिजनों से मिली जानकारी के अनुसार उनकी हालत में सुधार है और दुनियाभर में उनके करोड़ों चाहने वालों की दुआवों से वह जल्दी ही स्वस्थ हो कर एक बार फिर हम सबके दिलों को अपने सुरीले,रसीले और  चुटीले गीतों से गुदगुदायेंगे।
कुछ लोग सोशल मीडिया पर अनाप शनाप समाचार दे रहे हैं।  उनके सबसे करीबी गणेश खुगशाल गणी ने भी अभी यही सूचना दी है। नेगी जी की पुत्रवधू से मिली जानकारी के अनुसार भी उनके स्वास्थ में सुधार हो रहा है।
-जय सिंह रावत

Negi ji ki halat mein nirantar Sudhar ho raha hai
Jai badri vishal

करोड़ों दिलों के राजा को दिल का दौरा ..दवा भी और दुआ भी


करोड़ों दिलों  के राजा को दिल का दौरा ..दवा भी और दुआ भी 

  उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी को बुधवार को हृदयाघात पड़ा। उनकी हालत नाजुक बनी हुई है। पहले उन्हें सीएमआइ अस्पताल ले जाया गया और फिर मैक्स अस्पताल रेफर कर दिया गया। उन्हें जीवन रक्षा प्रणाली पर रखा गया है। इससे पहले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और केदारनाथ विधायक मनोज रावत ने सीएमआइ पहुंच उनका हाल जाना। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र उनके परिवार को अपने वाहन से मैक्स अस्पताल लेकर पहुंचे। चिकित्सकों ने बताया कि नेगी को आर्टिलरी ब्लॉकेज (100 फीसद ब्लॉकेज) है। समूचा उत्तराखंड उनके शीघ्र स्वस्थ होने की दुआ कर रहा है। नेगी के करीबी कवि एवं साहित्यकार मदन मोहन डुकलान और लोक गायक प्रीतम भरतवाण समेत बड़ी संख्या में कला-संस्कृति जगत से जुड़ी हस्तियों व प्रशंसकों का जमावड़ा मैक्स अस्पताल में लगा हुआ है।168 वर्षीय लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी पिछले कुछ दिन से स्वयं को असहज महसूस कर रहे थे। उन्हें पेट के साथ ही सीने में हल्का दर्द था, लेकिन बुधवार को हालत बिगड़ने पर उन्हें सीएमआइ अस्पताल भर्ती कराया गया। परिजनों ने बताया कि सोमवार को उनका पौड़ी के बीरोंखाल में कार्यक्रम था। जहां से लौटने के बाद बुधवार दोपहर उनकी तबीयत बिगड़ गई। सीएमआइ के निदेशक डॉ. आरके जैन ने बताया कि नेगी की तबीयत नाजुक है और उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. जगजीत सिंह की देखरेख में तीन सदस्यीय टीम की देखरेख में उनकी एंजियोग्राफी की गई। उसके बाद देर रात उन्हें मैक्स अस्पताल रेफर कर दिया गया।1मैक्स अस्पताल प्रशासन के अनुसार आर्टिलरी ब्लॉकेज के कारण उनके फेफड़ों में पानी भर गया है। जिससे सांस लेने में दिक्कत हो रही है। फिलहाल उन्हें 24 घंटे के लिए चिकित्सकों की देखरेख में जीवन रक्षा प्रणाली में रखा गया है। देर रात तक उनकी हालत स्थिर बनी हुई थी। लोक गायक के साथ अस्पताल में उनकी पत्नी उषा नेगी, बेटा कविलाश नेगी और बहू मौजूद हैं। उनकी पत्नी को कुछ अस्वस्थता महसूस होने के कारण सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत अपने साथ मैक्स अस्पताल लेकर गए और देर रात तक वहां रहे। परिजनों के मुताबिक दो दिन पहले कार्यक्रम के दौरान उन्हें सीने में दर्द हुआ था, लेकिन उन्होंने इसे एसीडिटी मानकर हल्के में ले लिया। चिकित्सकों की मानें तो संभवत: यह सूक्ष्म हृदयघात रहा होगा, जो बुधवार को बड़े हृदयघात में बदल गया।जागरण संवाददाता, देहरादून: उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी को बुधवार को हृदयाघात पड़ा। उनकी हालत नाजुक बनी हुई है। पहले उन्हें सीएमआइ अस्पताल ले जाया गया और फिर मैक्स अस्पताल रेफर कर दिया गया। उन्हें जीवन रक्षा प्रणाली पर रखा गया है। इससे पहले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और केदारनाथ विधायक मनोज रावत ने सीएमआइ पहुंच उनका हाल जाना। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र उनके परिवार को अपने वाहन से मैक्स अस्पताल लेकर पहुंचे। चिकित्सकों ने बताया कि नेगी को आर्टिलरी ब्लॉकेज (100 फीसद ब्लॉकेज) है। समूचा उत्तराखंड उनके शीघ्र स्वस्थ होने की दुआ कर रहा है। नेगी के करीबी कवि एवं साहित्यकार मदन मोहन डुकलान और लोक गायक प्रीतम भरतवाण समेत बड़ी संख्या में कला-संस्कृति जगत से जुड़ी हस्तियों व प्रशंसकों का जमावड़ा मैक्स अस्पताल में लगा हुआ है।168 वर्षीय लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी पिछले कुछ दिन से स्वयं को असहज महसूस कर रहे थे। उन्हें पेट के साथ ही सीने में हल्का दर्द था, लेकिन बुधवार को हालत बिगड़ने पर उन्हें सीएमआइ अस्पताल भर्ती कराया गया। परिजनों ने बताया कि सोमवार को उनका पौड़ी के बीरोंखाल में कार्यक्रम था। जहां से लौटने के बाद बुधवार दोपहर उनकी तबीयत बिगड़ गई। सीएमआइ के निदेशक डॉ. आरके जैन ने बताया कि नेगी की तबीयत नाजुक है और उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. जगजीत सिंह की देखरेख में तीन सदस्यीय टीम की देखरेख में उनकी एंजियोग्राफी की गई। उसके बाद देर रात उन्हें मैक्स अस्पताल रेफर कर दिया गया।1मैक्स अस्पताल प्रशासन के अनुसार आर्टिलरी ब्लॉकेज के
कारण उनके फेफड़ों में पानी भर गया है। जिससे सांस लेने में दिक्कत हो रही है। फिलहाल उन्हें 24 घंटे के लिए चिकित्सकों की देखरेख में जीवन रक्षा प्रणाली में रखा गया है। देर रात तक उनकी हालत स्थिर बनी हुई थी। लोक गायक के साथ अस्पताल में उनकी पत्नी उषा नेगी, बेटा कविलाश नेगी और बहू मौजूद हैं। उनकी पत्नी को कुछ अस्वस्थता महसूस होने के कारण सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत अपने साथ मैक्स अस्पताल लेकर गए और देर रात तक वहां रहे। परिजनों के मुताबिक दो दिन पहले कार्यक्रम के दौरान उन्हें सीने में दर्द हुआ था, लेकिन उन्होंने इसे एसीडिटी मानकर हल्के में ले लिया। चिकित्सकों की मानें तो संभवत: यह सूक्ष्म हृदयघात रहा होगा, जो बुधवार को बड़े हृदयघात में बदल गया।

SWADHEENTA ANDOLAN MEN UTTARAKHAND KI PATRKARITA 2nd editon

Monday, June 19, 2017

एक चिट्ठी बद्रीनाथ के विधायक के मार्फ़त सरकार के नाम

एक चिट्ठी बद्रीनाथ के विधायक के मार्फ़त सरकार के नाम 
Twin villages Sankari left and sem right in pokhari block of Chamoli Garhwal.
-----------------------------------------------------------------------------
विधायक जी आप समारोहों में मस्त हैं और हमारे गांव  के लोग रोपाई न हो पाने से संकट में हैं।  आपको पता भी नहीं होगा कि  सांकरी  की नहर के क्षतिग्रस्त होने के कारण सेम सांकरी  में इस साल रोपाई होना मुश्किल लग रहा है। सिंचाई विभाग वाले होश में ही नहीं होते. मेरे गांव में ७५ प्रतिशत जमीन रोपाई वाली है। रोपाई न होने के कारण  अब वहां जमीन का  दूसरा उपयोग भी नहीं हो सकता।  फसल बोने  का समय निकल गया. आप बड़े आदमी हो गए इसलिए   आप फ़ोन उठाना तक जरुरी नहीं समझते. आपके कृषिमंत्री के पास भी मैं  गांव  जाने से पहले मिला था मगर मंत्री जी तबादलों  के पत्ते फेंट रहे थे. उन्होंने बात सुनना तक जरुरी नहीं समझा। मैं   कल सिंचाई मंत्री जो की पर्यटन मंत्री भी हैं  के घर गया था तो पता चला वह सपत्नीक पर्यटन पर पहाड़ों की रानी मसूरी में बरसात की फुहारों का आनंद ले रहे हैं. मुख्यमंत्री मेरे पडोशी हैं लेकिन अब उनसे मिलना आसमान को छूने जैसा हो गया. भाई त्रिवेंद्र के दरबारी और बगलगीर भी पहले वालों की तरह खुद को खुदा समझ बैठे हैं.  आप लोग गाय बचाने  की  बात तो करते हैं मगर गांव और गांव वालों को बचाने  की नहीं सोचते. मेरे गांव वाले कह रहे थे की आखिर हमें गांव के नेता राजू भंडारी को ठुकरा कर  क्या मिला?  बिना पानी के राजू के खेत भी  सूख  गए।  अपने गांव  का लड़का जैसा भी था इस वक्त जरूर काम आता।  उनके समर्थक अब गांव वालों का तमाशा देख रहे हैं।  इस हाल में गांव का काश्तकार आत्महत्या या पहाड़ से पलायन  नहीं करेगा तो क्या करेगा ?  पलायन के नाम पर भी सरकार गंभीर नहीं है।  आप अपने कृषि  बागवानी मंत्री से पूछो की मैंने उनसे पहाड़ की जमीन की उत्पादकता पर क्या कहा था. इतना असंवेदनशील नेता मैंने आज तक नहीं देखा।  मैं विधानसभा में उनके अंतःपुर के चैम्बर में बात कर ही रहा था की मंत्री खिसक गए।  मेरे सामने कुछ उत्साही प्रवासी एक मंत्री को सुझाव दे रहे थे और मंत्री जी किसी अन्य कागज में खये हुए थे और उन  लोगों आप लिख कर मझे दे दो. वे पलायन रोकने पर प्रेजेंटेशन देना कहते थे. उनमे कुछ रिटायर्ड टेक्नोक्रेट और bureaucrat भी थे. मंत्री कहने लगे की आप कहते रहो मैं सुन रहा हूँ। उनमे से एक बुजुर्ग अपनी बात कहने की जिद करने लगे तो मंत्री जी ने कहा की आप अपना बायोडाटा  दे दो।  भाई महेंद्र ! अगर आपकी सरकार इसी तरह चली तो आपका भी वही हश्र होगा जो कांग्रेस का हुवा।  अहंकार आदमी को दुश्मन होता है और आप लोग उस दुश्मन के निशाने पर आते जा रहे हैं। 
आपका शुभ चिंतक 
जय सिंह रावत 
९४१२३२४९९९
-----------------------

आज मैंने देहरादून में इस सम्बन्ध में विभाग के अफसरों और मंत्री जी के दफ्तर के चक्कर लगाए तो मुझे जवाब मिला की  लघु सिंचाई विभाग केवल लघु नहरें या गूलें ही बनाता है।  मरम्मत की जिम्मेदारी उसकी नहीं है। लघु सिंचाई वालों का कहना है की उनके पास मरम्मत का बजट ही नहीं होता।  पहाड़ों में ज्यादातर गूलों की हालत यही है।  कागजों में ही सिंचाई हो रही है।  हम एशिया के वाटर टावर की गोद में बसे हैं।  ये गंगा यमुना जैसी नदियों का मायका है और हमारे खेत फिर भी प्यासे हैं।  नदी पास और पानी दूर।   कैसी विडंबना है ? अभी अभी भाई महेंद्र भट्ट का फ़ोन आ गया है. पर मुझे नहीं लगता की समाधान निकलेगा।  जब मंत्री के बस में कुछ नहीं है तो विधायक जी भी क्या करेंगे ?

Friday, June 9, 2017

Uttarakhand Himalaya: TALKS BETWEEN RAWAT AND RAWAT : Uttarakhand Chief ...

Uttarakhand Himalaya: TALKS BETWEEN RAWAT AND RAWAT : Uttarakhand Chief ...: उत्तराखण्ड सरकार और भारतीय सेना के मध्य श्रीनगर गढ़वाल स्थित वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली मेडिकल काॅलेज को सेना द्वारा संचालित करने के विषय पर ...

TALKS BETWEEN RAWAT AND RAWAT : Uttarakhand Chief Minister Trivendra Rawat meets Army Chief Vipin Rawat in IMA Dehradun

उत्तराखण्ड सरकार और भारतीय सेना के मध्य श्रीनगर गढ़वाल स्थित वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली मेडिकल काॅलेज को सेना द्वारा संचालित करने के विषय पर सैद्धांतिक सहमति बन गई है। यह निर्णय शुक्रवार को मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और भारत के थलसेना अध्यक्ष जनरल बिपिन रावत के मध्य हुई मुलाकात में लिया गया। इसके साथ ही उत्तराखण्ड में डाॅक्टरों की कमी को देखते हुए सेना से रिटायर होने वाले स्पेशलिस्ट और सुपर स्पेशलिस्ट डाॅक्टरों को राजकीय चिकित्सा सेवा में लिये जाने पर भी सहमति बनी। इस विषय में शीघ्र ही राज्य सरकार द्वारा एक औपचारिक प्रस्ताव सेना को भेजा जायेगा। उल्लेखनीय है कि सेना में कार्यरत स्पेशलिस्ट और सुपर स्पेशलिस्ट डाॅक्टर 60 वर्ष की आयु में रिटायर हो जाते है, जिनके शारीरिक रूप से फिट होने की स्थिति में राज्य सरकार द्वारा उनकी सेवाएं ली जा सकती है। सेना अध्यक्ष और मुख्यमंत्री के मध्य सीमान्त क्षेत्रों में बार्डर एरिया विकास कार्यक्रमों पर भी विस्तृत विचार विमर्श हुआ। 
श्रीनगर मेडिकल काॅलेज पर विस्तृत विचार-विमर्श के दौरान मुख्यमंत्री ने कहा कि मेडिकल काॅलेज में उत्तराखण्ड के छात्रों के हितों का पूरा ध्यान रखने के साथ ही लोगों को उत्कृष्ट स्वास्थ्य सुविधाएं प्राप्त हो इसको सुनिश्चित किया जायेगा। जनरल रावत ने बताया कि सेना द्वारा प्रयोग के तौर पर उत्तराखण्ड के उच्च पर्वतीय भू-भाग में उन्नत किस्म के अखरोट के पौधे लगाये जायेंगे और इनके परिणाम को देखते हुए भविष्य में स्थानीय ग्रामीणों को भी यह पौधे दिये जायेंगे। मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र ने कहा कि यदि सेना को अखरोट उत्पादन के लिए जमीन की आवश्यकता होगी तो राज्य सरकार वन पंचायत या उद्यान विभाग के बगीचों को दे सकती है। मुख्यमंत्री ने बताया कि राज्य सरकार ने आपदा प्रबंधन एवं पर्यटन की दृष्टि से 60 हेलीपैड बनाये है, जिन्हें सेना की आवश्यकता के अनुसार मजबूत एवं विस्तारित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार सीमान्त गांवों में रोजगार सृजन और मूलभूत सुविधाओं को बढ़ाकर पलायन रोकने के लिये काम कर रही है। लोगों को कृषि, औद्यानिकी और पर्यटन के क्षेत्र में स्वरोजगार के लिये प्रेरित किया जा रहा है। सरकार ने छोटे सीमान्त किसानों को मदद देने के लिये बेहद कम ब्याज पर एक लाख रूपये तक का ऋण देने का निर्णय लिया गया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखण्ड के युवाओं की पहली पसंद सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करना रहा है। उन्होंने थल सेना अध्यक्ष को उनके द्वारा जम्मू-कश्मीर सहित देश की सीमाओं पर सेना द्वारा प्रदर्शित किये जा रहे अदम्य शौर्य एवं साहस के लिए बधाई दी और देश की सीमा पर तैनात जवानों को शुभकामनाएं भी दी।

Monday, June 5, 2017

GAIRSAIN IN POLITICAL AGENDA

DOOMS DAYS NEARING TO THE MOST BEAUTIFUL VALLEY OF THE WORLD, THE VALLEY OF FLOWERS

विश्व धरोहर फूलों की घाटी के दुर्दिन
-जयसिंह रावत
पारिस्थितिकी तंत्र की जानकारी के नितांत अभाव, वन एवं वन्यजीव संरक्षण के अव्यवहारिक सरकारी उपाय और विवेकहीन पर्यटन तथा विकास की नीतियों के चलते धरती पर स्वर्ग का जैसा नजारा देने वालीविश्व विख्यात फूलों की घाटी’’ का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। जानकार तो यहां तक कह रहे हैं कि कुदरत के इस हसीन तोहफे पर पर्यावरण  कानूनों के ताले डाले जाने से इसके अंदर की विलक्षण जैव विविधता का दम घुटने लगा है। वनस्पति विज्ञानियों को डर है कि अगर पोलीगोनम पॉलिस्टैच्यूम जैसी झाड़-पतवार प्रजातियां इसी तरह फैलती गयी तो वह दिन दूर नहीं जबकि मनुष्य को सौदर्य का बोध कराने वाली दुर्लभ फूलों की यह घाटी झाड़ियों की घाटी में तब्दील हो जायेगी।


Article published in Hindustan newspaper on 5 June 2017
विलक्षण पादप विविधता और अद्भुत नैसर्गिक छटा को परखने के बाद यूनेस्को द्वारा 2005 में विश्व धरोहर घोषित फूलों की घाटी और नन्दादेवी बायोस्फीयर रिजर्व पर जब से कानूनों का शिकंजा कसता गया तब से वहां जैव विविधता बढ़ने के बजाय फूलों की कई प्रजातियां दुर्लभ या संकटापन्न हो गयीं। यही नहीं वहां कस्तूरी मृग, भूरा भालू और हिम तेंदुआ जैसी प्रजातियां दुर्लभ हो गयी हैं। सन् 1982 में इसे राष्ट्रीय पार्क घोषित किये जाने के बाद इसके पादप वैविध्य का भारत सरकार के तीन विभागों ने अलग-अलग सर्वे किया है। इनमें से भारतीय सर्वेक्षण विभाग (बीएसआइ) द्वारा गोविन्द घाट से लेकर फूलों की घाटी के सिरे तक 19 किमी लम्बी भ्यूंडार घाटी के सर्वे में 613 पादप प्रजातियां दर्ज हुयी हैं। जबकि वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (डब्लुआइआइ) के पादप विज्ञानियों ने लगभग 87.50 वर्ग किमी में फैली इस घाटी के केवल 5 किमी लम्बे हिस्से का सर्वे किया जिसमें 521 प्रजातियां दर्ज हुयी हैं। दूसरी ओर भारतीय वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआइ) के वनस्पतिशास्त्रियों ने वनस्पति सर्वेक्षण विभाग की सूची में 50 अतिरिक्त प्रजातियों को जोड़ा है। इन प्रजातियों में लगभग 400 प्रजातियां फूलों की हैं जिनमें ब्लू पॉपी, सीरिंगा इमोडी, एबीज पिन्ड्रो, एसर कैसियम, बेटुला यूटिलिस, इम्पैटीन्स सुल्काटा, पौलीमोनियम कैरुलियम, पेडिकुलैरिस पेक्टिनाटा, प्रिमुला डेन्टीकुलेट, कैम्पानुला लैटिफोलिया, जेरेनियम, मोरिना, डेलफिनियम, रेनन्कुलस, कोरिडालिस, इन्डुला, सौसुरिया, कम्पानुला, पेडिक्युलरिस, मोरिना, इम्पेटिनस, बिस्टोरटा, लिगुलारिया, अनाफलिस, सैक्सिफागा, लोबिलिया, थर्माेपसिस, साइप्रिपेडियम आदि हैं। इन नाजुक प्रजातियों के अस्तित्व पर गंभीर खतरा मंडराने लगा है।
दुनियां की नजर में कुदरत के इस बेहद हसीन तोहफे को सबसे पहले ब्रिटिश पर्वतोराही फ्रेंक स्माइथलाया था। वह अपने साथी होर्ल्ड्वर्थ के साथ सन् 1931 में सीमान्त जिला चमोली में स्थित कामेट शिखर पर चढ़ाई के बाद लौटते समय भटक कर जब यहां पहुंचा तो वह जंगली फूलों के सागर में डूबी इस घाटी का दिव्य नजारा देख कर आवाक रह गया। दुनियां की कई घाटियों से गुजर कर गगनचुम्बी शिखरों पर चढ़ाई करने वाले स्माइथ ने प्रकृति का ऐसा नैसर्गिक रूप कहीं नहीं देखा था। फ्रेंक स्माइथ जब वापस इंग्लैंड लौटा तो वह स्वयं को नहीं रोक पाया और 6 साल बाद फिर इस घाटी में लौट आया जहां उसने अपने साथी बॉटनिस्ट आर.एल. होल्ड्सवर्थ के साथ मिल कर घाटी की पादप विविधता का विस्तृत अध्ययन किया और अपने अनुभवों तथा घाटी की विलक्षण विविधता पर सन् 1938 में अपनी विश्व विख्यात पुस्तक ‘‘ वैली ऑफ फ्लावर्स’’ प्रकाशित कर दी। इस पुस्तक में उसने इस घाटी का वर्णन दुनिया की सबसे हसीन फूलों की घाटी के रूप में किया। पुस्तक को पढ़ने के बाद 1939 में ईडनवर्ग बॉटनिकल गार्डन की वनस्पति विज्ञानी जौन मार्गरेट लेगी यहां पहुंची।
बीसवीं सदी के तीसवें दशक तक ऋषिकेश से ऊपर मोटर मार्ग नहीं था, इसलिये मार्गरेट लेगी 289 किमी की कठिनतम् पैदल यात्रा कर हिमालय की उस कल्पनालोक जैसी सुन्दर घाटी में जा पहुंची। वह एक माह तक वहां विलक्षण पादप प्रजातियों के संकलन के दौरान 4 जुलाइ 1939 के दिन पांव फिसलने से चट्टान से गिर गयी और अपनी जान गंवा बैठी। मार्गरेट जब समय से वापस नहीं लौटी तो लंदन से उसकी बहन भी घाटी में पहुंची जहां उसे मार्गरेट का शव मिल गया जिसे वहीं कब्र बना कर प्रकृति की गोद में सुला दिया गया। वहां आज भी मार्गरेट लेगी की कब्र उसकी याद दिलाती है। लेकिन आज जब प्रकृति की विलक्षण कारीगरी का नमूना देखने के लिये देशी-विदेशी पर्यटक पहुंचते हैं तो फ्रेंक स्माइथ, मार्गरेट लेग्गी और अस्सी के दशक से पूर्व वहां पहुंचे पुष्प प्रेमियों की तरह यह हसीन घाटी उनके मन को नहीं हर पाती है। कारण यह कि सनकी दिमागों से उपजे निर्णयों, आसपास की अत्यधिक अनियंत्रित भीड़ और पहाड़ों की अत्यंत जटिल और सहज भंगुर पारिस्थितिकी तंत्र की वास्तविकताओं से अनविज्ञ प्रबंधकों और नीति निर्माताओं के कारण वहां इको सिस्टम में काफी बदलाव गया है।
वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआइ) के पारिस्थितिकी विशेषज्ञों के अनुसार गलत नीतियों के कारण वहां नेचुरल सक्सेशन (प्राकृतिक उत्तराधिकार) की प्रकृया शुरू हो गयी है। इस प्राकृतिक प्रकृया के तहत जब एक प्रजाति विलुप्त होती है तो उसकी जगह दूसरी प्रजाति ले लेती है। इस घाटी में नाजुक फूलों की प्रजातियों की जगह पोलीगोनम पॉलिस्टैच्यूम जैसी झाड़ीनुमा प्रजातियां लेने लगी है। वन अनुसंधान संस्थान में वरिष्ठ वैज्ञानिक रह चुके डा0 जे.डी.एस नेगी एवं डा0 एच. बी. नैथाणी के अनुसार अगर घाटी में तेजी से फल रही पोलीगोनम पॉलिस्टैच्यूम को समूल नष्ट नहीं किया गया तो सौ सालों से पहले ही फूलों की घाटी केवल झाड़ियों की घाटी बन कर रह जायेगी और प्रकृति की यह अनूठी सुरम्यता वियावान बन जायेगी। डा0 .ेडी.एस. नेगी के अनुसार घाटी में पोलीगोनम पॉलिस्टैच्यूम और ओसमुण्डा जैसी विस्तारवादी प्रजातियों का विस्तार तेजी से हो रहा है और लगभग ढाइ मीटर तक ऊंची इन प्रजातियों के नीचे प्रिमुला और हिमालयी ब्लू पॉपी जैसी नाजुक प्रातियां पनप नहीं पा रही हैं। वैसे भी वनस्पति विज्ञानियों का मानना है कि हिमालय पर वनस्पति प्रजातियां जलवायु परिवर्तन के कारण ऊपर की ओर चढ़ रही हैं। वृक्ष रेखा के साथ ही झाड़ियां भी ऊंचाई की ओर बढ़ रही हैं। फूलों की घाटी में भी इस झाड़ीनुमा प्रजाति पोलीगोनम के अलावा बीच में बुरांस (रोडोन्डेण्ड्रन) और बेटुला यूटिलिस जैसी बड़े आकार की प्रजातियां पनपने लगी हैं, जबकि यह एल्पाइन या बुग्याल क्षेत्र है और बृक्ष रेखा इससे काफी नीचे होती है। अगर यहां की जैव विधिता पर पोलीगोनम पॉलिस्टैच्यूम का हमला नहीं रोका गया तो 100 सालों के अन्दर ही यह घाटी घनघोर जंगल या झाड़ियों में गुम हो जायेगी।
भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण विभाग, वन अनुसंधान संस्थान और वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के पादप विज्ञानियों के अनुसार फूलों की घाटी समेत खिरों घाटी जैसे बुग्यालों में चीनी या तिब्बत मूल की पादप प्रजातियां हैं। वनस्पति विज्ञानी डा0 जे.डी.एस.नेगी के अनुसार इस अद्भुत पादप विविधता की उम्र लगभग ढाइ से तीन हजार साल पुरानी है। शोधकर्ताओं के कौतूहल का विषय रही इस विविधता की जननी बकरियां रहीं हैं। हिमालयन एक्शन रिसर्च सेंटर (हार्क) के एक अध्ययन के अनुसार स्थानीय लोगों और उनकी बकरियों की गतिविधियों के कारण वहां जंगल की जगह सकेड़ों प्रकार की फूलों की प्रजातियां उगीं। उनकी ही गतिविधियों के चलते वहां प्राकृतिक बदलाव में ठहराव आया और जैव वैविध्य बरकरार रहा। महेन्द्र सिंह कुंवर के नेतृत्व में जयसिंह रावत और ओम प्रकाश भट्ट द्वारा किये गये एक अध्ययन के अनुसार घाटी को राष्ट्रीय पार्क का दर्जा तो 1982 में मिल गया था लेकिन सन् 1991 में जब वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 में संशोधन हुआ तो उसमें पादप प्रजातियां भी शामिल कर दी गयीं और उसी के साथ ही घाटी में स्थानीय लोगों और उनकी बकरियों के प्रवेश पर रोक लग गयी। इससे पहले वहां स्थानीय लोगों की बकरियां पहुंचती थीं तो वे अनावश्यक घास को चरती थी और बाहरी हस्तक्षेप के कारण वहां एक ही प्रजाति का साम्राज्य नहीं हो पाता था। यही नहीं बकरियों के बालों पर फूलों के बीज चिपक जाते थे इससे पुष्प प्रजातियों का फैलाव भी होता था। वन अनुसंधान संस्थान के सेवानिवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक डा0 एच. बी. नैथाणी (वैज्ञानिक एस.एफ) के अनुसार फूलों की घाटी में स्थानीय लोगों की बकरियों के प्रवेश पर भी प्रतिबन्ध लगने से वहां होमोजेनस कण्डीशन पैदा हो गयी है जबकि पादप वैविध्य के लिये हेट्रोजेनस कण्डीशन की जरूरत होती है। ऐसी स्थिति में कहीं भी झाड़ झंकाड़ या तेजी से फैलने वाली बड़े आकार की एक ही तरह की प्रजातियां फैल जाती है। नन्दा देवी राष्ट्रीय पार्क के डीएफओ चन्द्र शेखर जोशी भी स्वीकार करते हैं कि पोलीगोनम से फूलों की घाटी की जैव विविधता के लिये खतरा उत्पन्न हो गया है। इस खतरे से निपटने के लिये हर साल वहां जून से लेकर जुलाइ तक इस प्रजाति के पौधे उखाड़ने का अभियान चलाया जाता है। जोशी कहते हैं कि पोलीगोनम कोई बाहरी प्रजाति तो नहीं है मगर उसके बड़े आकार और तेजी से फैलने की प्रवृत्ति के कारण उसका फैलाव जल्दी हो जाता है और उसके नीचे सुन्दर और नाजुक पुष्प प्रजातियां उग नहीं पातीं।
शोधकर्ताओं के अनुसार प्रचीन काल से लेकर 1962 में भारत-चीन युद्ध तक इस सीमान्त क्षेत्र के निवासियों का तिब्बत के साथ वस्तु विनिमय के आधार पर व्यापार चलता रहा है। उस समय इस उच्च हिमालयी क्षेत्र में आवागमन और सामान को ढोने का साधन बकरियां, याक और घोड़े जैसे जानवर ही होते थे। ये जीव जब तिब्बत के एल्पाइन चारागाहों से चरते हुये लौटते थे तो इनके बालों पर वहां के फूलों के बीज (स्थानीय बोली में कूरे-कुंबर) चिपक जाते थे। उस जमाने में आज की फूलों की घाटी जैसे बुग्याल बकरियों के कैंपिंग ग्राउण्ड होते थे। उन कैंपिंग ग्राउण्ड में व्यापारी तथा उनकी भेड़ें कई दिनों तक विश्राम करती थीं। वह इसलिये कि वहां बकरियों के लिये चरने के लिये पर्याप्त घास मिल जाती थी। इसी दौरान तिब्बत से चिपक कर आये फूलों या वनस्पतियों के बीज वहां गिर जाते थे। इसीलिये एक छोटी सी घाटी में इतनी तरह की पादप प्रातियां उग जाती थीं और फिर वे प्रजातियां उन चारागाहों की स्थाई वास बन जाती थी। वनस्पति विज्ञानियों के अनुसार तिब्बत से बकरियों और याकों पर चिपक कर आये बीजों से जन्मीं ये पुष्प प्रजातियां इसीलिये चीनी या तिब्बती मूल की हैं। उत्तराखण्ड की सरकार और उसका पर्यटन विभाग फूलों की घाटी के अस्तित्व पर मंडराते खतरे के प्रति कितनी सजग है उसका नमूना पर्यटन विभाग के उन पोस्टरों को देख कर लगाया जा सकता है जिनमें इस अद्भुत प्राकृतिक पुष्प वाटिका की दुश्मन पोलीगोनम को फूलों की घाटी की शान के तौर पर प्रचारित किया जाता है।

जयसिंह रावत
-11 फ्रेंड्स एन्क्लेव, शाहनगर
डिफेंस कालोनी रोड,
देहरादून।
919412324999
jaysinghrawat@gmail.com
jaysinghrawat@hotmail.com