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Thursday, June 21, 2018

DIGITAL INDIA IS STILL A DISTANT DREAM







78 per
cent of adults in India did not own
Despite talk of Digital India, only one-in-four in the
country reported using the Internet in 2017, which is among the lowest in the
world, according to a new survey by the Pew Research Center. South Korea stands
out as the most heavily connected society, with 96 per cent of adults reporting
Internet use, showed the the survey conducted in 37 countries. While majorities
use the Internet in much of the world, sub-Saharan Africa and India has much to
catch up with, according to the results released on Tuesday.


  • Smartphone ownership among adults in India went up from 12 per cent in
    2013 to 22 per cent in 2017, while social media use went up from eight to
    20 per cent during the same period.
That means 78 per cent of adults in India do not own a
smartphone and a whopping 80 per cent of the population in the country have no
clues about Facebook or Twitter.
While the gap in Internet use between emerging and advanced
economies has narrowed in recent years, there are still large swaths of the
world where significant numbers of citizens do not use the Internet, the study
said.



Internet penetration rates -- as measured by Internet use or smartphone ownership
-- remain high in North America and much of Europe, as well as in parts of the
Asia-Pacific.



Yet, others are not far behind. In Australia, the Netherlands, Sweden, Canada,
the US, Israel, the UK, Germany, France and Spain, roughly nine-in-ten report Internet
use.



Prime Time Debate : ऐप से बनेगा रोडमैप

Thursday, June 14, 2018

उत्तराखंड की राजधानी के नाम पर कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा जनता को भरमाती रही है।



भराड़ीसैण में दो दिन के तमाशे से कोई फायदा नहीं
हर साल गैरसैण के निकट भराड़ीसैण में संक्षिप्त विधानसभा सत्र के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं। नेता और नौकरशाह सैरसपाटा कर वापस देहरादून लौट जाते हैं। राजधानी के नाम पर कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा जनता को भरमा रही है। कांग्रेस ने भराड़ीसैण में विधानसभा तो बनवा दी मगर उस जगह को स्थाई या अस्थाई राजधानी का नाम देने से ठिठक गयी। भाजपा ने गत चुनाव में वहां ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का वायदा किया था। लेकिन वहां दो सत्र आयोजित हो गये मगर वह अपने वायदे से ही कतरा रही है। भाजपा के नेता भराड़ीसैण में विधानसभा के बाहर कुछ कहते हैं और विधानसभा के अंदर जा कर कुछ और ही सुर में बात करते हैं। विधानसभा के बाहर गाल बजाने का कोई महत्व नहीं है। अगर सचमुच कुछ करना चाहते हो तो विधानसभा के अंदर बोलो। भाराड़ीसैण में हर साल दो दिनी सत्र के आयोजन पर करोड़ों रुपये बरबाद करने से कोई लाभ नहीं है। अगर सरकार इस मामले में सचमुच ईमानदार है तो उसे तत्काल कुछ विभागों के मुख्यालय भराड़ीसैण स्थानांतरित करने चाहिये। देहरादून में आइएएस, आइपीएस और आइएफएस के शीर्ष पदों पर इतने नौकरशाह बिठा रखे हैं कि उनका बोझ विभागों पर भारी पड़ रहा है। फिलहाल वन विभाग का मुख्यालय वहां शिफ्ट किया जा सकता है। जितने भी प्रमुख वन संरक्षक हैं उनके कार्यालय भराड़ीसैण सहित पहाड़ी जिलों में तैनात किये जाने की जरूरत है। भराड़ीसैण में मिनी सचिवालय स्थापित कर वहां एक अपर मुख्य सचिव तैनात किया जा सकता है ताकि कुमाऊं और गढ़वाल के लोगों की समस्याएं वहीं हल हो जांय। अपर पुलिस महानिदेशक का एक पद भी भराड़ीसैण में फिलहाल होना चाहिये ताकि वह कुमाऊं की कानून व्यवस्था पर सीधे नजर रख सके। कृषि, बागवानी, ग्रामीण विकास आदि विभागों के मुखिया भी भराड़ीसैण भेजे जाने चाहिये। अगर सरकार वहां सरकारी कामकाज शुरू नहीं करती है तो वहां हर साल विधानसभा सत्र का ढकोसला करने से कोई लाभ नहीं है।
----जयसिंह रावत
09412324999

Thursday, June 7, 2018



भाजपा के लिये थराली की जीत में भी खतरे का संदेश
-जयसिंह रावत
हाल ही में 11 राज्यों में हुये 4 लोकसभा और 10 विधानसभा सीटों के उप चुनावों में भाजपा को जो तगड़ा झटका लगा है उसकी पीड़ा शायद ही महाराष्ट्र की पालधर संसदीय सीट और उत्तराखण्ड विधानसभा की थराली सीट पर हुयी जीत के मरहम ने कम की होगी। चमोली गढ़वाल की थराली विधानसभा सीट वह एकमात्र सीट रही जिस पर इन उप चुनावों में भाजपा को काफी मशक्कत करने के बाद जीत हासिल हो सकी। यह जीत भी इतने कम अंतर से कि इस पहाड़ी राज्य में भी मोदी का जादू कायम रहने पर संदेह उत्पन्न हो गया। इस चुनाव में भाजपा ने केन्द्र सरकार के पिछले 4 साल के तथा राज्य की त्रिवेन्द्र सरकार के एक साल के कामकाज पर वोट मांगे थे। लेकिन चुनाव नतीजों से तो लगता है कि थराली की जनता मजबूरी में ही सत्ताधारी दल के साथ गयी है।
Munni Devi the winner
Professor Jeet Ram the looser
उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पंजाब, बिहार, झारखण्ड, पं0 बंगाल, तमिलनाडू, केरल और मेघालय विधानसभाओं के लिये हुये उप चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के हाथ केवल उत्तराखण्ड की थराली सीट लगी है। चमोली गढ़वाल के इस विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के विधायक मगन लाल के निधन के बाद यहां उप चुनाव हुआ और भाजपा ने क्षेत्र की जनता की सहानुभूति बटोरने के लिये स्वर्गीय मगन लाल की विधवा श्रीमती मुन्नी देवी को अपनी प्रत्याशी बनाया था। जबकि कांग्रेस ने अपने पूर्व विधायक प्रोफेसर जीतराम को एक बार फिर इस सीट पर आजमाया था। सत्ताधारी दल की प्रत्याशी मुन्नी देवी अपने प्रतिद्वन्दी प्रो0 जीतराम को एक रोमांचक मुकाबले में केवल 1981 वोटों से पराजित कर पायी जबकि पिछले ही साल 2017 में हुये विधानसभा चुनाव में उनके पति मगन लाल ने प्रो0 जीतराम को 4858 मतों से पराजित किया था। सत्ताधारी दल और प्रदेश की त्रिवेन्द्र सिंह रावत सरकार द्वारा अपनी पूरी ताकत इस उप चुनाव में झोंके जाने के बाद भी सत्ताधारी दल का इस तरह हारते-हारते चुनाव जीत जाना और राज्य में अब तक हुये उप चुनावों में सबसे कम मार्जिन से चुनाव जीतने का रिकार्ड बनाना सत्ताधारी दल के लिये खतरे की घंटी ही माना जा सकता है। खास कर आने वाले नगर निकाय चुनाव और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव के लिये मतदाताओं की यह उत्साहविहीनता भाजपा के लिये काफी कष्टकर हो सकती है।
सन्् 2000 में राज्य के रूप में अस्तित्व में आने के बाद उत्तराखण्ड विधानसभा के 11 उप चुनाव हो चुके हैं और हर एक चुनाव में राज्य में सत्ताधारी पार्टी की भारी मतों से जीत का सिलसिला चलता रहा है। उप चुनाव में क्षेत्रीय जनता का सत्ताधारी दल का दामन थामे रखना या विपक्ष को छोड़ कर सत्ताधारी दल का दामन पकड़ना स्वाभाविक ही है। भौगोलिक कठिनाइयों के कारण उत्तराखण्ड के लोग आर्थिक रूप से पिछड़े तो हैं मगर राजनीतिक रूप से उन्हें किसी भी दृष्टि से पिछड़ा नहीं कहा जा सकता है। इसका जीता जागता सबूत इस छोटे से भूभाग का उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य को पं0 गोविन्द बल्लभ पन्त, नारायण दत्त तिवारी और और हेमवती नन्दन बहुगुणा जैसे दिग्गजों के रूप में लगभग 27 सालों तक नेतृत्व प्रदान करना रहा है। इसी राजनीतिक जागरूकता के कारण जब भी उप चुनाव होते रहे हैं तब क्षेत्र विशेष की जनता ने अपनी विभिन्न समस्याओं से मुक्ति तथा विकास की जरूरतों की पूर्ति के लिये सत्ताधारी दल के साथ जाना ही श्रेयस्कर समझा है। थराली की जनता से भी इसी राजनीतिक समझदारी की अपेक्षा थी जिस पर वह खरी तो उतरी मगर उसने सत्ताधारी दल को खुल कर समर्थन देने और विपक्ष से दूरी बनाने में इतना संकोच कर भाजपा के लिये खतरे का सायरन तो बजा ही दिया है।
राज्य गठन के बाद उत्तराखण्ड में उप चुनाव का सिलसिला 2002 में नैनीताल जिले की रामनगर सीट से तब शुरू हुआ जबकि उस सीट से जीते विधायक योगम्बर सिंह रावत ने नारायण दत्त तिवारी के लिये वह सीट खाली कर दी। इस उप चुनाव में तिवारी केवल अपना नामांकनपत्र दाखिल करने के लिये रामनगर गये थे फिर भी उन्होंने भाजपा के अपने प्रतिद्वन्दी को 23,220 मतांे से पराजित किया। रामनगर के बाद 2005 में सत्ताधारी कांग्रेस के सुरेन्द्र सिंह नेगी ने अपने भाजपा के प्रतिद्वन्दी अनिल बलूनी को 7,900 मतों से पराजित कर सीट जीत ली। बलूनी की अपील पर सुप्रीमकोर्ट ने 2002 में हुये कोटद्वार सीट के चुनाव को रद्द कर दिया था, इसलिये 2005 में वहां पुनः चुनाव कराने पड़े तो सत्ताधारी कांग्रेस का प्रत्याशी पहले से अधिक मतों से चुनाव जीत गया। सन् 2007 में भाजपा सत्ता में आयी तो भुवनचन्द्र खण्डूड़ी के लिये कांग्रेस के ले0 जनरल (सेनि) तेजपाल सिंह रावत ने धूमाकोट सीट खाली की और खण्डूड़ी ने यह सीट 14,171 मतों के अन्तर से जीत कर कांग्रेस की एक और सीट विधानसभा में कम कर दी। उसके बाद भगत सिंह कोश्यारी राज्यसभा के लिये चुने गये तो उन्होंने कपकोट सीट खाली कर दी। उस चुनाव में भाजपा के शेरसिंह गढ़िया ने कांग्रेस की कुंती परिहार को 7,167 मतों से पराजित कर सीट पुनः भाजपा की झोली में डाल दी। वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में मुन्ना सिंह चौहान भाजपा के टिकट पर विकासनगर सीट जीते थे, लेकिन 2009 में भाजपा से मतभेद हो जाने पर उन्होंने पार्टी के साथ ही विकासनगर सीट भी छोड़ दी और वह बसपा टिकट पर टिहरी से लोकसभा चुनाव लड़ बैठे। इस सीट पर हुये उप चुनाव में तत्कालीन सत्ताधारी दल के बिल्कुल नोसिखिये कुलदीप कुमार मुना सिंह चौहान और नव प्रभात जैसे दिग्गजों को हरा कर विधानसभा पहुंच गये। सन् 2012 में कांग्रेस सत्ता में आयी तो एक बार फिर विधायक दल का नेता विधायकों में से चुने जाने के बजाय ऊपर से विजय बहुगुणा के रूप में थोपा गया। लिहाजा उनके लिये भी एक अदद विधानसभा सीट सीट सितारगंज में तलाशी गयी जो कि विपक्षी भाजपा के किरन मण्डल के पास थी। कांग्रेस ने भी भाजपा के पद ्चिन्हों पर चलते हुये अपना एक विधायक कम करने के बजाय विपक्ष में तोड़फोड़ कर भाजपा के किरन मण्डल से इस्तीफा दिलवा दिया। इस सीट पर हुये उप चुनाव में कांग्रेस के विजय बहुगुणा ने भाजपा के प्रकाश पन्त को 39,954 मतों के भारी भरकम अन्तर से हरा दिया।
सन् 2014 के लोकसभा चुनाव में डोइवाला विधानसभा क्षेत्र के विधायक रमेश पोखरियाल निशंक के हरिद्वार संसदीय सीट से और सोमेश्वर के विधायक अजय टमटा के अल्मोड़ा संसदीय सीट से भाजपा टिकट पर चुनाव जीत जाने से उनकी विधानसभा की सीटें रिक्त हो गयीं। इसी प्रकार विजय बहुगुणा की जगह हरीश रावत को उत्तराखण्ड का मुख्यमंत्री बनाये जाने पर रावत के लिये हरीश धामी ने अपनी धारचुला विधानसभा सीट खाली कर ली। इन तीन सीटों पर हुये विधानसभा उपचुनाव में हरीश रावत ने 20,604 मतों से धारचुला सीट जीतने के साथ ही सत्ताधारी कांग्रेस ने डोइवाला और सोमेश्वर सीटें भी भाजपा से छीन लीं। डोइवाला में कांग्रेस के हीरा सिंह बिष्ट ने भाजपा के त्रिवेन्द्र सिंह रावत (वर्तमान मुख्यमंत्री) को 6,518 मतों से तथा सोमेश्वर में कांग्रेस की रेखा आर्य ने भाजपा के मोहनराम आर्य को 21,911 मतों से पराजित कर सीटें जीत लीं। कांग्रेस सरकार में बसपा के कोटे से कैबिनेट मंत्री सुरेन्द्र राकेश के निधन से हरिद्वार की भगवानपुर सीट खाली हुयी तो सत्ताधारी कांग्रेस ने 2015 के उपचुनाव में दिवंगत विधायक की पत्नी ममता रोकश को अपनी प्रत्याशी बना दिया और ममता राकेश ने भाजपा प्रत्याशी को 36,909 मतों के भारी अंतर से हरा रवह सीट जीत ली। उत्तराखण्ड में अब तक हुये उप चुनाव नतीजों पर गौर करें तो मतदाता हमेशा सत्ताधारी दल के प्रत्याशी को भारी मतों से जिताते रहे हैं। इसलिये गत 28 मई को हुये उप चुनाव में थराली से भाजपा प्रत्याशी की जीत अप्रत्याशित नहीं थी। लेकिन अब तक के उपचुनावों में सत्ताधारी दल के प्रत्याशी का सबसे कम मतों के अन्तर से चुनाव जीतना और एक साल के अन्दर ही विपक्ष के प्रत्याशी का वोट शेयर बढ़ना सत्ताधारी दल के लिये खतरे का संकेत अवश्य ही है। कर्नाटक के बाद इस चुनाव में भी विपक्षी कांग्रेस हार कर भी सत्ता पक्ष को झकझोर गयी है।

जयसिंह रावत
पत्रकार
-11, फ्रेंड्स एन्क्लेव,
शाहनगर, डिफेंस कालोनी रोड,
देहरादून