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Friday, December 29, 2017

पहाड़ के नेताओं की रुचि भी गैरसैण में नहीं रह गयी



पहाड़ के नेताओं की रुचि भी गैरसैण में नहीं रह गयी

Statement of Jay Singh Rawat published by
 Amar Ujala in 22, 2018 February issue.
गैरसैंण (भराड़ीसैण ) में सत्र को सप्ताहांत में आहूत करने पर भी सवाल उठ रहे हैं। अगर सत्र वृहस्पतिवारदिसंबर 2017  की जगह की जगह 4 दिसंबर सोमवार को आहूत किया जाता तो उसे कम से कम शुक्रवार तक तो चलाया जा सकता था। विदित ही है कि विधानसभा में सोमवार को मुख्यमंत्री का दिन होता है और मुख्यमंत्री के पास तीन चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, पीडब्लुडी, ऊर्जा और गृह जैसे महत्वपूर्ण विभाग हैं। जाहिर है कि विधानसभा सत्र का शेड्यूल इस तरह तय किया गया ताकि मुख्यमंत्री तक सवालों की बौछार सके। लेकिन ऐसा करके इस सत्र का महत्व ही गायब कर दिया गया। मंगल और बुधवार को भी पर्यटन, सिंचाई, परिवहन जैसे महत्वपूर्ण विभागों से संबंधित सवाल जवाब होने थे, वे सवाल और जवाब भी गायब हो गये। इस तरह देखा जाय तो भराड़ीसैण का यह सत्र केवल दिखावे के लिये ही आहूत किया गया लग रहा था। जिस पर सरकार ने करोड़ों रुपये फूंक डाले। भराड़ीसैण के प्रति सरकार की अनदेखी अधूरे निर्माण कार्य से अनुभव की जा सकती है। पिछले एक साल से विधानभवन पर दरवाजे तक नहीं लगाये जा सके। दीवारों पर प्लस्तर के दौरा नीचे गिरे सीमेंट को तक नहीं हटाया गया था। विधायकों और मंत्रियों को टेबल का माइक हाथ पर उठा कर बातकरनी पड़ रही थी। सत्ता पक्ष के मुन्ना सिंह चौहान और प्रणव सिंह चैंपियन जैसे सदस्यों को विपक्षी सदस्यों के पीछे बैठना पड़ा। ऐसा लग रहा था जैसे सरकार को अचानक गैरसैण की याद गयी, इसलिये हड़बड़ी में ही सत्र आहूत कर डाला। विधानभवन से बाहर प्रेस को संबोधित कर रहे मुख्यमंत्री से जब पूछा गया कि आप जब कमिश्नर को मंडल मुख्यालय पौड़ी में नहीं बिठा पा रहे हैं और पिछले सत्रह सालों से कृषि विभाग को पौड़ी नहीं भेज पाये तो कथित ग्रीष्मकालीन राजधानी  में अधिकारियों को कैसे भेज पायेंगे। यह सवाल मुख्यमंत्री के कानों तक पहुंचना ही था  िकवह बिना जवाब दिये उठ कर चले गये।
 जयसिंह रावत
-11, फ्रेंड्स एन्कलेव, शाहनगर
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून
मोबाइल- 9412324999
jaysinghrawat@gmail.com

Tuesday, December 26, 2017

बिना काम के डैशबोर्ड पर देखेंगे त्रिवेंद्र रावत उत्तराखंड की खुशहाली


सीएम डैशबोर्ड का लोकार्पण करने में अग्रणी राज्यों में शामिल हुआ उत्तराखण्ड

मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म दिन है। उनके जन्मदिन को सुशासन दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। सुशासन दिवस के इस अवसर पर उन्होंने सचिवालय में सीएम डैशबोर्ड का लोकार्पण किया। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि सीएम डैशबोर्ड से सरकार के कार्यों में पारदर्शिता व गतिशीलता आयेगी। इसके माध्यम से आम जनता तक सरकार की योजनाओं व कार्यों की भी जानकारी उपलब्ध हो सकेगी तथा जनसेवाओें को पारदर्शिता के साथ लागू करने, व्यवस्थित व सकारात्मक ढ़ंग से लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद मिलेगी
उन्होंने कहा कि सीएम डैशबोर्ड का नाम ‘‘उत्कर्ष’’(UttaraKhand Achieving Results in Systematic and Holistic Way) रखा गया है, नाम के अनुरूप यह अच्छी शुरूआत है, इससे सुशासन की दिशा में उत्तराखण्ड उत्कृष्टता की ओर आगे बढ़ेगा। मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि राज्य में विभिन्न क्षेत्रों में विकास की असीम संभावनायें है। इन संभावनाओं को धरातल पर उतारने में भी डैशबोर्ड मददगार होगा। उन्होंने कहा कि बागवानी के क्षेत्र में भी राज्य में व्यापक संभावनायें है। यह साफ्टवेयर यह जानकारी उपलब्ध कराने में मददगार होगा कि जितने फलदार वृक्षों का रोपण हुआ। उनमें कितने जिन्दा रहे तथा उनसे कितना फलोत्पादन हुआ। इससे आंकड़ों की वास्तविक धरातलीय स्थिति ज्ञात हो सकेगी तथा व्यवस्थाओं के सुधार के लिये प्रयास तथा भविष्य की कार्ययोजना बनाने में मदद मिलेगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि इस व्यवस्था से विभागों के कार्यकलापों की वास्तविक स्थिति की भी जानकारी मिल सकेगी तथा विभागों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा तथा सकारात्मक सोच को बढ़ावा मिलेगा, इससे हमारी सोच भी परिणामकारी बनेगी तथा उत्तराखण्ड उत्कर्ष की ओर अग्रसर होगा।
मुख्य सचिव श्री उत्पल कुमार सिंह ने कहा कि सीएम डैशबोर्ड उत्तराखण्ड को सुशासन की दिशा में उत्कर्ष की ओर ले जायेगा। विभागों को दिये जाने वाले बजट व भौतिक लक्ष्यों की प्राप्ति, इससे लाभान्वित होने वाली जनता तथा योजनाओं के धरातलीय आंकड़ों की मोनिटरिंग डैशबोर्ड के माध्यम से हो सकेगी। सड़क, परिवहन, पुलिस व जिला प्रशासन को समेकित प्रयासोें से 2020 तक सड़क दुर्घाटनाओं को आधा करना है। इसी प्रकार स्वास्थ्य सेवाओं के विकास, लिगांनुपात के अन्तर को कम करने, नगरीय व ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युत आपूर्ति की उपलब्धता आदि के पर्यवेक्षण की दिशा में कार्य करने तथा सोच में परिवर्तन लाने की प्रक्रिया में यह डैशबोर्ड मददगार होगा। विभिन्न विभागों के साथ ही जिलों में भी आगे रहने की प्रतिस्पर्धा इसमें रहगी। 
सचिव मुख्यमंत्री श्रीमती राधिका झा ने कहा कि सीएम डैशबोर्ड में सभी प्रमुख विभागों ने अपनी प्राथमिकतायें बतायी है। इसमें विभागों की रैंकिंग बनायी गई है जिसमें डाटा माहवार रहेगा। विभागीय मिनट्स भी इसमें रखे जायेंगे। विभाग स्वयं अपने कार्यों का मूल्यांकन तथा चुनौतियों को भी चिन्हित कर कार्य करेंगे। सुधार एक सतत प्रक्रिया है। निश्चित ही उत्कर्ष के माध्यम से देवभूमि उत्तरखण्ड की सरकार अपने राज्य वासियों को एक बेहतर भविष्य दिला पायेगा। इस लेकर सभी आशान्वित एवं उत्साहित है।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री के विशेष कार्याधिकारी श्री अभय रावत ने भी सीएम डैशबोर्ड से सम्बन्धित जानकारी उपलब्ध करायी। केएनओवीओएस के सीईओ श्री हरिवदन पाण्ड्या ने सीएम डैशबोर्ड को क्रियान्वयन हेतु टोकन स्वरूप मुख्यमंत्री को समर्पित किया। उन्होंने कहा कि इस डैशबोर्ड का रखरखाव भी 03 साल तक कम्पनी द्वारा किया जायेगा। निदेशक आईटीडीए श्री अमित सिन्हा ने आभार व्यक्त किया। 
इस अवसर पर अपर मुख्य सचिव डाॅ.रणवीर सिंह, श्री ओम प्रकाश, प्रमुख सचिव श्रीमती राधा रतूड़ी, श्री आनन्द बर्द्धन, डीजीपी श्री अनिल कुमार रतूड़ी सहित शासन के वरिष्ठ अधिकारी एवं विभागाध्यक्ष उपस्थित थे।
 
---- डैशबोर्ड क्या है----

डैशबोर्ड एक ऐसा प्लेटफॉर्म है, जहां से सभी कल्याणकारी योजनाओं की प्रगति पर एक साथ नजर रखी जा सकती है।
यानि किस किस योजना की क्या प्रगति है, लोगों को उस योजना का कितना फायदा मिल रहा है, विभाग किस गति से काम कर रहे हैं, किन क्षेत्रों में सुधार की जरूरत है...इन तमाम बातों पर मुख्यमंत्री एक ही जगह से नजर रख सकते हैं।
डैशबोर्ड से सरकार की कल्याणकारी योजनाओं की निगरानी और विभागों की समयबद्ध समीक्षा हो सकती है।
सीएम डैशबोर्ड पूरी तरह आईटी पर आधारित होता है... जहां सारे विभाग ऑनलाइन जुड़े होते हैं।
उत्तराखंड के सीएम डैशबोर्ड को उत्कर्ष नाम दिया गया है।
उत्कर्ष का पूरा नाम UttaraKhand Achieving Results in Systematic and Holistic Way है।
जैसा कि इसके नाम से साबित हो रहा है कि यह डैशबोर्ड सेल्फ असेसमेंट के जरिए परिणाम प्राप्त करने का एक माध्यम है।
अभी इसकी शुरुआत में 14 अलग अलग विभाग इस डैशबोर्ड के साथ जुड़े हैं। भविष्य में अन्य विभागों को भी इसमें शामिल किया जाना है।
डैशबोर्ड से मुख्यमंत्री पता कर सकते हैं कि, किस विभाग की कौन सी योजना की क्या प्रगति है।
विभागों और योजनाओं के लिए स्वीकृत बजट में कितना खर्च हुआ है, और कहां कहां खर्च हुआ है।
डैशबोर्ड से यह भी पता लग सकता है कि, राज्य में मानव विकास सूचकांक, इकोनॉमिक इंडेक्स आदि सूचनाओं की क्या स्थिति है।
मसलन पेयजल विभाग के तहत कितने घरों में पानी के कनेक्शन दिए गए हैं...कितने घरों में बिजली पहुंच चुकी है।
कितने स्कूलों में छात्र-शिक्षक अनुपात संतुलित है, कितने स्कूलों में छात्र संख्या कम है आदि।
इसी तरह डैशबोर्ड से यह भी पता चलेगा कि राज्य में कितने बच्चों और कितनी गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण हुआ, कितनी महिलाओं का सुरक्षित प्रसव हुआ...कितने लोगों तक जीवनरक्षक दवाएं पहुंच रही हैं..आदि।
यानि राज्य में योजनाओं का वास्तविक लाभ जनता को मिल रहा है या नहीं और अगर मिल रहा है तो कहां तक मिला है, यह सब डैशबोर्ड से पता किया जा सकेगा।
डैशबोर्ड का एक और फायदा ये होगा कि इससे रियल टाइम डेटा जुटाया जाएगा । यह गाउंड लेवल का डेटा जिलों, ब्लॉकों और गांवों से एकत्र डेटा रहेगा. जिसके जरिए अधिकारियों के कार्यों और योजनाओं की ऑनलाइन समीक्षा हो सकेगी।
आप जानते हैं, उत्तराखंड की भौगोलिक स्थितियों के कारण कई बार अधिकारियों के साथ एक जगह पर बैठक नहीं हो पाती, लेकिन डैशबोर्ड के जरिए उनके कामकाजों की समीक्षा आसानी से हो जाएगी।
सबसे अहम बात ये है कि भ्रष्टाचार मिटाने की दिशा में डैशबोर्ड फायदेमंद साबित होगा।
अगर किसी विभाग में भ्रष्टाचार कि शिकायत होती है, या उसके कामकाज को लेकर सवाल उठते हैं तो, मुख्यमंत्री को यह बात विभाग की परफॉरमेंस रिपोर्ट देखकर पता चल जाएगी।
यानी सचिवालय से लेकर जिलों तक किसी भी विभाग या अधिकारी ने लापरवाही बरती तो उस पर सीधी नजर रखी जा सकेगी।देहरादून 25 दिसम्बर, 2017(सू.ब्यूरो)

सूचना एवं लोक सम्पर्क विभाग। 

Saturday, December 16, 2017

CUT MORE HOLIDAYS IF YOU ARE REALLY INTERESTED TO WORK IN UTTARAKHAND


सतपाल महाराज की ऋषिकेश - कर्णप्रयाग रेल अब आल वेदर रोड पर




सतपाल महाराज की ऋषिकेश - कर्णप्रयाग  रेल अब आल वेदर रोड पर
सन् 2017 के उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव में भाजपा की झोली में कुल 70 में 57 सीटें जाने  पर भी उत्तराखण्ड में राजनीतिक स्थायित्व नजर नहीं रहा है। एक तरह से भाजपा का प्रचण्ड बहुमत ही उसके गले की फांस बनता जा रहा है। अभूतपूर्व बहुमत पाने के दंभ में चूर भाजपा नेतृत्व ने वरिष्ठ और दमदार नेताओं को दरकिनार कर त्रिवेन्द्र सिंह रावत को इस विश्वास के साथ मुख्यमंत्री बना दिया कि ऐसे बहुमत के बाद कोई कांग्रेस में 2016 में हुये विद्रोह की तरह हरकत करने की हिम्मत नहीं कर सकेगा। मुख्यमंत्री पद के दावेदार मार्च 2017 में सरकार के गठन के बाद ही उपेक्षित और घुटन महसूस करने लगे। इस घुटन और मानसिक त्रास को मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की स्वेच्छाचारिता और दंभ ने और हवा दे दी। आज उत्तराखण्ड में हालत यह है कि त्रिवेन्द्र रावत से वरिष्ठ और सक्षम नेता त्रिवेन्द्र को अनाड़ी और अपरिपक्व साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। जबकि मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र बड़े कद के महत्वाकांक्षी मंत्रियों की महत्वाकाक्षाओं पर लगाम देने के लिये उनके द्वारा प्रस्तावित योजनाओं या जनहित के कामों को ठण्डे बस्ते में डाल रहे हैं। नौकरशाही को यह संदेश चला गया है कि प्रदेश के वरिष्ठ मंत्रियों की कोई औकात नहीं है। नतीजतन नौकरशाही ऐसे मंत्रियों के निर्देशों को सीधे कूड़े की टोकरी में डाल रही है। रेल परियोजनाओं के शिलान्यास और उद्घाटन के साथ ही प्रधानमंत्री के दौरों से सतपाल महाराज को अलग रखना और महाराज का राज्य की योजनाओं के लिये सीधे केन्द्रीय नेताओं से मिलना सत्ताधारी भाजपा की अन्दरूनी उठापटक का नमूना है। पिछले साल हरीश रावत को गच्चा देकर भाजपा में शामिल हुये सभी मंत्रियों की स्थिति दोयम दर्जे की जैसी तो है ही लेकिन प्रकाश पन्त जैसे मुख्यमंत्री पद के दावेदारों की हालत भी नौकरशाही के समक्ष कोई अच्छी नहीं है। उत्तराखण्ड में इतिहास के 5 साल में ही दुहराने की परम्परा शुरू हो चुकी है। यहां जो दल सत्ता में आता है वह लोकसभा चुनाव हार जाता है और फिर मुख्यमंत्री पद पर बैठा व्यक्ति कुर्सी गंवा देता है। इस बार भी हालात कुछ ऐसे ही नजर रहे हैं।
जयसिंह रावत
पत्रकार
-11, फ्रेंड्स एन्क्लेव, शाहनगर,
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून।
Mobile- 9412324999
jaysinghrawat@gmail.com

Uttarakhand repeats its history within 5 years





उत्तराखण्ड में इतिहास 5 साल में ही दुहरा जाता है
सन् 2017 के उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव में भाजपा की झोली में कुल 70 में 57 सीटें जाने  पर भी उत्तराखण्ड में राजनीतिक स्थायित्व नजर नहीं रहा है। एक तरह से भाजपा का प्रचण्ड बहुमत ही उसके गले की फांस बनता जा रहा है। अभूतपूर्व बहुमत पाने के दंभ में चूर भाजपा नेतृत्व ने वरिष्ठ और दमदार नेताओं को दरकिनार कर त्रिवेन्द्र सिंह रावत को इस विश्वास के साथ मुख्यमंत्री बना दिया कि ऐसे बहुमत के बाद कोई कांग्रेस में 2016 में हुये विद्रोह की तरह हरकत करने की हिम्मत नहीं कर सकेगा। मुख्यमंत्री पद के दावेदार मार्च 2017 में सरकार के गठन के बाद ही उपेक्षित और घुटन महसूस करने लगे। इस घुटन और मानसिक त्रास को मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की स्वेच्छाचारिता और दंभ ने और हवा दे दी। आज उत्तराखण्ड में हालत यह है कि त्रिवेन्द्र रावत से वरिष्ठ और सक्षम नेता त्रिवेन्द्र को अनाड़ी और अपरिपक्व साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। जबकि मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र बड़े कद के महत्वाकांक्षी मंत्रियों की महत्वाकाक्षाओं पर लगाम देने के लिये उनके द्वारा प्रस्तावित योजनाओं या जनहित के कामों को ठण्डे बस्ते में डाल रहे हैं। नौकरशाही को यह संदेश चला गया है कि प्रदेश के वरिष्ठ मंत्रियों की कोई औकात नहीं है। नतीजतन नौकरशाही ऐसे मंत्रियों के निर्देशों को सीधे कूड़े की टोकरी में डाल रही है। रेल परियोजनाओं के शिलान्यास और उद्घाटन के साथ ही प्रधानमंत्री के दौरों से सतपाल महाराज को अलग रखना और महाराज का राज्य की योजनाओं के लिये सीधे केन्द्रीय नेताओं से मिलना सत्ताधारी भाजपा की अन्दरूनी उठापटक का नमूना है। पिछले साल हरीश रावत को गच्चा देकर भाजपा में शामिल हुये सभी मंत्रियों की स्थिति दोयम दर्जे की जैसी तो है ही लेकिन प्रकाश पन्त जैसे मुख्यमंत्री पद के दावेदारों की हालत भी नौकरशाही के समक्ष कोई अच्छी नहीं है। उत्तराखण्ड में इतिहास के 5 साल में ही दुहराने की परम्परा शुरू हो चुकी है। यहां जो दल सत्ता में आता है वह लोकसभा चुनाव हार जाता है और फिर मुख्यमंत्री पद पर बैठा व्यक्ति कुर्सी गंवा देता है। इस बार भी हालात कुछ ऐसे ही नजर रहे हैं।
जयसिंह रावत
पत्रकार
-11, फ्रेंड्स एन्क्लेव, शाहनगर,
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून।
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