सरकार दो दिन में ही भागी भराड़ीसैण से
-जयसिंह रावत
करोड़ों रुपये खर्च कर
विधानसभा के साथ
भराड़ीसैण पहुंची त्रिवेन्द्र सिंह
रावत सरकार एक
बार फिर प्रदेश
की राजधानी और
लोकायुक्त कानून पर निर्णय
लेने से ठिठक
गयी। यही नहीं
सप्ताहांत में और
खराब मौसम में
सत्र आहूत करा
कर सरकार न
केवल अपरिपक्वता का
परिचय दे गयी
अपितु अपनी नीयत
पर ही सवाल
उठाने का मौका
विपक्ष को दे
गयी। दो दिनी
इस तमाशे में
न तो ग्रीष्मकालीन
राजधानी की घोषणा
हुयी और ना
ही सरकार लाकायुक्त
बिल को पेश
कर पायी। ठंड
से आतंकित राज्य
का राजनीतिक नेतृत्व
दो दिन में
ही भराड़ीसैण से
गायब होकर स्पष्ट
संदेश दे गया
कि जब वे
दो दिन भी
वहां नहीं टिक
सकते तो वहां
ग्रीष्मकालीन राजधानी बनने पर
कैसे टिक जायेंगे।
लेकिन बावजूद तमाम
लांछनों के त्रिवेन्द्र
सरकार तबादला विधेयक
पास करा कर
कम से कम
एक उपलब्धि तो
अपने नाम जोड़
ही गयी।
भराड़ीसैण में ग्रीष्मकालीन
राजधानी का राग
अलापने वाली त्रिवेन्द्र
सिंह सरकार शीतकाल
में और वह
भी घोर प्रतिकूल
मौसम में पांच
दिवसीय शीतकालीन सत्र आहूत
करा कर दो
दिन में ही
वहा से भाग
खड़ी हो गयी।
मुख्यमंत्री तो इन
दो दिनों में
लगभग दो घंटे
ही भराड़ीसैण की
ठंड झेल सके
और वायु मार्ग
से वहां से
चंपत हो गये।
वह दूसरे दिन
अपराहन जरूर पहुंचे
मगर गंभी मुद्दों
पर चर्चा करने
के लिये नहीं
बल्कि सदन स्थगित
कराने के लिये।
भराड़ीसैण से खिसकने
के लिये जितना
व्याकुल सत्ता पक्ष था
उससे कहीं अधिक
बेचैनी विपक्ष में नजर
आ रही थी।
अन्ततः पक्ष और
विपक्ष, दोनों की सहमति
से पांच दिन
का सदन दो
दिन में ही
निपट गया। इसके
साथ ही यह
भी साबित हो
गया कि राजनीतिक
नेता जब दो
दिन भी भराड़ीसैण
में चैन से
नहीं बैठ सकते
तो वहां स्थाई
या ग्रीष्मकालीन राजधानी
बनने पर हफ्तों
तक कैसे बैठ
पायेंगे? चूंकि कार्यमंत्रणा समिति,
जिसमें पक्ष और
विपक्ष, दोनों के ही
सदस्य शामिल होते
हैं, द्वारा सोमवार
के लिये लोकायुक्त
विधेयक पेश करने
पर सहमति हुयी
थी और सदन
की कार्यवाही के
शेड्îूल में
भी विधेयक का
उल्ल्ेख हो गया
था, फिर भी
पक्ष और विपक्ष
के सदस्य शनिवार
और रविवार, दो
दिन भराड़ीसैण में
टिकने का साहस
नहीं जुटा सके।
जाहिर है कि
लोकायुक्त में किसी
की भी रुचि
नहीं थी।
भाजपा के नेता
और खास कर
मुख्यमंत्री तथा उनके
सहयोगी कई दिनों
से गैरसैण या
भराड़ीसैण में ग्रीष्मकालीन
राजधानी का राग
अलाप रहे थे।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत
और प्रदेश भाजपा
अध्यक्ष अजय भट्ट
ने सत्र के
पहले दिन विधानसभा
भवन के बाहर
खुले मैदान में
अलग-अलग आयोजित
प्रेस कान्फ्रेंसों में
भराड़ीसैण में ग्रीष्मकालीन
राजधानी बनाने की बात
तो कही लेकिन
मुख्यमंत्री वही बात
सदन के अन्दर
दुहराने की हिम्मत
नहीं जुटा पाये।
जबकि इस बार
पहाड़वासियों को पूरी
उम्मीद थी कि
सरकार इस सत्र
में राजधानी के
बारे में जरूर
एक संकल्प लायेगी।
मगर सरकार ने
लोगों की उम्मीदों
पर पानी फेर
दिया। चूंकि पहाड़
के नेता अब
मैदान में अप्रवासी
पहाड़ी हो गये
इसलिये लगता है
कि उनकी रुचि
भी गैरसैण में
नहीं रह गयी
है। इस सत्र
में भराड़ीसैण से
भागने की उतावली
से तो यही
लगता है।
इस सत्र में
त्रिवेन्द्र सिंह सरकार
ने अपनी सबसे
बड़ी छिछालेदर लोकायुक्त
को लेकर करा
डाली। जब हमें
शुक्रवार की सुबह
कालेश्वर स्थित पत्रकारों के
ठिकाने पर बताया
गया कि लोकायुक्त
बिल सोमवार के
लिये रखा गया
है तो हम
समझ गये थे
कि सत्र शुक्रवार
को ही स्थगित
होने जा रहा
है। यह बिल
जानबूझ कर विलंबित
किया गया ताकि
तब तक विपक्ष
किसी न किसी
मुद्दे को लेकर
हंगामा करे और
उस बहाने सदन
अनिश्चितकाल के लिये
स्थगित कर भराड़ीसैण
से अपना बोरिया
बिस्तर समेटा जा सके।
अगर सरकार सचमुच
लोकायुक्त पर गंभीर
होती तो तबादला
एक्ट के विधेयक
के साथ ही
सत्र के पहले
दिन ही उसे
सदन के पटल
पर रख देती।
प्रवर समिति विधेयक
में तीन दर्जन
संशोधनों सहित अपनी
रिपोर्ट पहले ही
सौंप चुकी है।
सरकार ने हद
तो तब कर
दी जब सदन
से बाहर पत्रकारों
से मुखातिब मुख्यमंत्री
ने कह दिया
कि उनकी जीरो
टॉलरेंस की सरकार
है, इसलिये लोकायुक्त
की क्या जरूरत
है? इस मुद्दे
को लेकर राज्य
सरकार लगातार अपनी
जगहंसाई करा रही
है। पहले जब
भाजपा सत्ता से
बाहर थी तो
खण्डूड़ी के लोकायुक्त
की तारीफें करते
हुये थकती नहीं
थी। विजय बहुगुणा
ने अपने मुख्यमंत्रित्व
काल में खण्डूड़ी
सरकार द्वारा तैयार
लोकायुक्त रिजेक्ट कर संसद
से पारित लोकायुक्त
की लाइन पर
अपना लोकायुक्त ऐक्ट
पास कराया तो
भाजपा ने उसका
घोर विरोध कर
विजय बहुगुणा सरकार
की नीयत पर
ही सवाल उठा
दिये थे। हालांकि
खण्डूड़ी के लोकायुक्त
को रद्दी की
टोकरी में डालने
वाले विजय बहुगुणा
अब भाजपा में
ही हैं। जब
पिछली हरीश रावत
सरकार ने लोकायुक्त
के गठन की
प्रकृया शुरू की
तो भाजपा ने
ही उसमें अड़ंगे
लगा दिये थे।
इसी कारण राजभवन
बार-बार चयन
समिति द्वारा तैयार
लोकायुक्त बोर्ड के पैनल
को वापस पुनर्विचार
के लिये लौटाता
रहा। चुनाव आचार
संहिता लागू हो
जाने से हरीश
रावत सरकार का
लोकायुक्त भी कालातीत
हो गया। जबकि
वह लोकायुक्त संसद
द्वारा सर्वसम्मति से पारित
ढांचे के सांचे
में ढला हुआ
था। आज हालात
ऐसे है कि
प्रदेश में लोकायुक्त
कार्यालय तो है
मगर लाकायुक्त 2013 से
नहीं है जबकि
लोकायुक्त कार्यालय पर बिना
काम के करोड़ों
रुपये खर्च हो
रहे हैं।
अब सवाल उठता
है कि जब
खण्डूड़ी के नेतृत्व
वाली भाजपा सरकार
द्वारा तैयार लोकायुक्त कानून
इतना अच्छा और
भ्रष्टाचार के खिलाफ
अचूक वार जैसा
था तो आपने
जब उसे विधानसभा
में रखा तो
स्वयं ही उसे
प्रवर समिति को
क्यों सौंप दिया
और क्यों उसकी
उपयोगिता और व्यवहारिकता
पर संदेह प्रकट
कर दिया। अब
जबकि प्रवर समिति,
जिसमें सभी दलों
के सदस्य हैं,
ने विधेयक में
काट छांट कर
सौंप दिया है
तो उस बिल
को पास कराने
से कतरा क्यों
रहे हैं? हालांकि
लोकायुक्त के मामले
पर पिछली कांग्रेस
सरकार भी ज्यादा
गंभीर नहीं थी,
लेकिन इस सरकार
ने तो हद
ही कर दी।
सरकार के बार-बार ठिठकने
से उसके जीरो
टालरेंस के जुमले
की भी हंसाई
हो रही है।
हालांकि प्रवर समिति ने
कानून में भारी
काटछांट कर उसका
वजन काफी हल्का
कर दिया है
और केवल पिछली
कांग्रेस सरकार को इसकी
मारक रेंज में
लाकर खण्डूड़ी और
निशंक सरकार के
दौरान हुये चर्चित
मामलों को इसकी
पहुंच से बाहर
कर दिया। प्रवर
समिति ने लोकायुक्त
अधिनियम की कुल
63 धाराओं में से
42 धाराआंे मेें संशोधन
की सिफारिश की
है। इसमें से
7 धाराओं को हटाने
की सिफारिश की
है। विधायी एवं
संसदीय कार्य मंत्री प्रकाश
पंत की सभापतित्व
वाली समिति ने
रिपोर्ट 15 जून 2017 को विधानसभा
मेें प्रस्तुत कर
दी थी और
समिति को यह
मामला 28 मार्च 2017 को सौपा
गया था।
सत्र को सप्ताहांत
में आहूत करने
पर भी सवाल
उठ रहे हैं।
अगर सत्र वृहस्पतिवार
की जगह सोमवार
को आहूत किया
जाता तो उसे
कम से कम
शुक्रवार तक तो
चलाया जा सकता
था। विदित ही
है कि विधानसभा
में सोमवार को
मुख्यमंत्री का दिन
होता है और
मुख्यमंत्री के पास
तीन चिकित्सा एवं
स्वास्थ्य, पीडब्लुडी, ऊर्जा और
गृह जैसे महत्वपूर्ण
विभाग हैं। जाहिर
है कि विधानसभा
सत्र का शेड्यूल
इस तरह तय
किया गया ताकि
मुख्यमंत्री तक सवालों
की बौछार न
आ सके। लेकिन
ऐसा करके इस
सत्र का महत्व
ही गायब कर
दिया गया। मंगल
और बुधवार को
भी पर्यटन, सिंचाई,
परिवहन जैसे महत्वपूर्ण
विभागों से संबंधित
सवाल जवाब होने
थे, वे सवाल
और जवाब भी
गायब हो गये।
इस तरह देखा
जाय तो भराड़ीसैण
का यह सत्र
केवल दिखावे के
लिये ही आहूत
किया गया लग
रहा था। जिस
पर सरकार ने
करोड़ों रुपये फूंक डाले।
भराड़ीसैण के प्रति
सरकार की अनदेखी
अधूरे निर्माण कार्य
से अनुभव की
जा सकती है।
पिछले एक साल
से विधानभवन पर
दरवाजे तक नहीं
लगाये जा सके।
दीवारों पर प्लस्तर
के दौरा नीचे
गिरे सीमेंट को
तक नहीं हटाया
गया था। विधायकों
और मंत्रियों को
टेबल का माइक
हाथ पर उठा
कर बातकरनी पड़
रही थी। सत्ता
पक्ष के मुन्ना
सिंह चौहान और
प्रणव सिंह चैंपियन
जैसे सदस्यों को
विपक्षी सदस्यों के पीछे
बैठना पड़ा। ऐसा
लग रहा था
जैसे सरकार को
अचानक गैरसैण की
याद आ गयी,
इसलिये हड़बड़ी में ही
सत्र आहूत कर
डाला। विधानभवन से
बाहर प्रेस को
संबोधित कर रहे
मुख्यमंत्री से जब
पूछा गया कि
आप जब कमिश्नर
को मंडल मुख्यालय
पौड़ी में नहीं
बिठा पा रहे
हैं और पिछले
सत्रह सालों से
कृषि विभाग को
पौड़ी नहीं भेज
पाये तो कथित
ग्रीष्मकालीन राजधानी में
अधिकारियों को कैसे
भेज पायेंगे। यह
सवाल मुख्यमंत्री के
कानों तक पहुंचना
ही था िकवह बिना
जवाब दिये उठ
कर चले गये।
जयसिंह रावत
ई-11, फ्रेंड्स एन्कलेव, शाहनगर
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून
मोबाइल-
9412324999
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