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Tuesday, December 5, 2017

केवल हरीश रावत तक ही पहुंच सकेंगे उत्तराखण्ड के लोकायुक्त के बंधे हाथ


पुराने घोटालों की जांच नहीं करेगा उत्तराखण्ड का लोकायुक्त  

-जयसिंह रावत
उत्तराखण्ड सरकार अब जो लोकायुक्त कानून बनाने जा रही है उसमें मुख्यमंत्री बिना शर्त लोकायुक्त के दायरे में जायेंगे। मगर लोकायुक्त 4 साल से पुराने मामलों की जांच नहीं कर सकेगा। मतलब यह कि इस लोकायुक्त का हाथ केवल पिछली हरीश रावत सरकार तक ही पहुंच सकेंगे और उससे पहले जो भी चर्चित घोटाले कांग्रेस और भाजपा उठाती रही उनके दोषियों के गिरेबान तक लोकायुक्त के हाथ नहीं पहुंच सकेंगे।
एक आरटीआइ कार्यकर्ता द्वारा मांगी गयी सूचना के उत्तर में विधानसभा के लोक सूचना अधिकारी/वरिष्ठ शोध एवं सदर्भ अधिकारी मुकेश सिंघल ने उत्तराखंड लोकायुक्त अधिनियम 2017 पर प्रवर समिति की रिपोर्ट की सत्यापित फोटो प्रति श्री नदीम को उपलब्ध करायी है। उपलब्ध करायी गयी प्रवर समिति की रिपोर्ट के अनुसार लोकायुक्त अधिनियम की कुल 63 धाराओं में से 42 धाराआंे मेें संशोधन की प्रवर समिति ने सिफारिश की है। इसमें से 7 धाराओं को हटाने की सिफारिश की है। विधायी एवं संसदीय कार्य मंत्री प्रकाश पंत की सभापतित्व वाली समिति ने रिपोर्ट 15 जून 2017 को विधानसभा मेें प्रस्तुत की गयी है। इस प्रवर समिति के सदस्यों में सभापति सहित कुल 7 सदस्य शामिल है। इसमें मुन्ना सिंह चौहान, महेन्द्र भट्ट, केदार सिंह रावत, संजीव आर्य, प्रीतम सिंह तथा काजी मौनिजामुद्दीन शामिल हैं।
प्रवर समिति की रिपोर्ट में लोकायुक्त अधिनियम 2017 को जिन सात धाराओं को हटाने की सिफारिश कर है उसमें धारा 11,12,17,18,28,30 56 शामिल है। इसके अतिरिक्त 35 धाराओं में संशोधन की सिफारिश की है उसमें धारा 2 से 10, 13, 14, 16, 19,20, 22, 23, 25, 26, 27, 29, 31, 32, 34, 36 से 39, 43, 45, 47, 51 से 54, 56, 59, 60 तथा 63 शामिल है। प्रवर समिति में जिन सात धाराओं को हटाने की सिफारिश की है उसमें धारा 11 में जांच के लिये जांच प्रकोष्ठ की स्थापना, धारा 12 में अभियोजन प्रकोष्ठ के गठन, धारा 17 में न्यायपीठों के बीच कार्य का वितरण,धारा 28 में राज्य सरकार के अधिकारियों की सेवाओं का उपयोग करने की शक्ति, धारा 29 में सम्पत्तियों की अनन्तिम कुर्की की शक्ति तथा धारा 56 में अवमानना के लिये दण्डित करने की लोकायुक्त की शक्तियों सम्बन्धी प्रावधान शामिल है। उल्लेखनीय है कि धारा 56 के प्रावधानों के अनुसार लोकायुक्त के कार्य में हस्तक्षेप करने के उद्देश्य से किसी लेख का प्रकाशन या प्रसारण करने पर लोकायुक्त की अवमानना का दोषाी माना जायेगा और लोकायुक्त उसे छःमाह तक की सजा दे सकेगा। प्रवर समिति में इस प्रावधान को हटाने की सिफारिश की है।


प्रवर समिति ने जिन प्रावधानों में संशोधनों की सिफारिश की है उसमें लोकायुक्त की अधिकारिता सम्बन्धी धारा 14 के प्रावधान शामिल है। सिफारिश के अनुसार जहां लोकायुक्त की जांच के दायरे में मुख्यमंत्री सहित सभी लोक सेवक बिना शर्त आयेंगे वहीं लोकायुक्त स्व प्रेरणा से किसी मामले की जांच नहीं कर सकेगा। मूल अधिनियम में मुख्यमंत्री के विरूद्ध शिकायत की जांच के लिये यह शर्त लगायी गयी है कि मुख्यमंत्री या मुख्यमंत्री रहे व्यक्ति के विरूद्ध जांच तभी की जा सकती है जब अध्यक्ष सभी सदस्यों की पूर्बा पीठ जांच प्रारंभ करने के लिये विचार करें तथा उसके चार सदस्य अनुभोदन करें। ऐसी जांच बंद कमरे में होगी और शिकायत खारिज करने पर जांच के अभिलेख तो प्रकाशित किये जायेंगे और ही किसी अन्य को उपलब्ध कराये जायेंगे। प्रवर समिति की सिफारिश के अनुसार लोकायुक्त में सभी मामलों की जांच सभी सदस्यों की पीठ करेगी। न्यायपीठ बनाने का प्रावधान नहीं होेगा। धारा 16 के संशोधन के अनुसार लोकायुक्त की बैठक देहरादून में ही होगी। धारा 6 में संशोधन की सिफारिश के अनुसार लोकायुक्त के अध्यक्ष सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष के स्थान पर तीन वर्ष या 70 वर्ष की आयु जो भी पहले हो तक होगा। धारा 51 के संशोधन की सिफारिश के अनुसार लोकायुक्त को सात वर्ष पुराने के स्थान पर केवल चार वर्ष पुराने मामलों की शिकायत पर ही कार्यवाही का अधिकार होगा। रिपोर्ट के अनुसार लोकायुक्त का अध्यक्ष सदस्य नियुक्त होने के लिये धारा 3 के अनुसार न्यनूतम आयु 45 वर्ष के स्थान पर पचपन वर्ष होगी। इसके अतिरिक्त उसके लिये 25 वर्ष के स्थान पर तीस वर्ष का अनुभव आवश्यक होगा।

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