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Tuesday, October 31, 2017

Chhat Holiday in Uttarakhand Will Open Pandor's Box

Chhath holiday triggers demand for public holidays on Uttarakhand hill festivals
DEHRADUN Updated: Oct 27, 2017 20:49 IST

Neha Pant
Hindustan Times
Uttarakhand natives have demanded that public holidays be declared on festivals indigenous to the hill state after the BJP government announced one for Chhath, celebrated mainly by natives of Bihar and eastern Uttar Pradesh.
Earlier this week, the Trivendra Singh Rawat government had declared a public holiday on October 26 on account of Chhath Pooja, dedicated to the worship of the Sun God and his wife Usha.
Last year, the erstwhile Congress government of chief minister Harish Rawat, too, had announced a public holiday on Chhath, evoking a similar backlash from the hill community for allegedly giving preference to festivals celebrated by non-native communities over those belonging to Uttarakhand.
Underlining how the pahadi (hill) community felt “neglected” in their own land, Suyash Kukrety of Yuva Garhwal Sabha, a socio-cultural organization, said, “We welcome holiday on Chhath, but what about (declaring holidays on) the native festivals of Uttarakhand?”
In a letter to the CM, Kukrety wrote, “I’m hopeful that you’ll declare holidays for our own festivals like the upcoming Igas (a post-Diwali festival to be celebrated on October 30) also, lest the public of Uttarakhand should view it (Chhath holiday) as your stunt for political gains.”
Alleging how neither the previous Congress nor the current BJP government were “serious about the pahadi culture”, activist Amit Gusain ‘Pahadi’ said, “We should not even expect him (CM Rawat) to declare holidays on our local festivals which are being pushed into oblivion by the successive governments. Our state was formed after such a long struggle, so much for the respect of hill sentiments!”
Darshan Singh Rawat, media coordinator for CM Rawat, said that the government would consider declaring holidays on major hill festivals. He, however, rejected the allegation that there was any political motivation behind declaring a holiday on Chhath.
Even current CM’s official social media account was flooded with similar comments, with many asking if the hill state’s native festivals, too, would qualify for holidays.
“Sir, aapne Uttarakhand ke kitne local tyoharon par avkash ghoshit kiya (Sir, how many holidays were declared on local festivals)?” asked one Twitter user Mohit.
User Rajesh Juglan urged CM Rawat to ‘shut the critics up by declaring a public holiday on Uttarakhand’s native festival Igas’. Some even called for development instead of holidays.
“Sir ji humko avkash nahin, sthayi rozgar chahye (Sir, we want employment, not holidays),” wrote another user Vikram Singh Rawat.
Political observers, meanwhile, said such decisions by governments were often taken “on political grounds” and inevitably led to the opening of a Pandora’s Box.

“Neither the Congress nor the BJP could have afforded to ignore the sizable vote bank of poorvanchalis settled or living in Uttarakhand,” said Jay Singh Rawat, a Dehradun-based political commentator.

Saturday, October 28, 2017

आधार ही कमजोर है आधार कार्ड का

आधार   ही कमजोर है आधार कार्ड का  
महत्मा गाँधी ने अपना पहला सत्याग्रह दक्षिण अफ्रीका में किया   २२  अगस्त  १९०६ को दक्षिण अफ्रीका की सरकार ने एशियाटिक ला अमेंडमेंट लागू किया इसके तहत ट्रांसवाल इलाके के सारे भारतीयों को रजिस्ट्रार ऑफिस जाकर अपने फिंगर प्रिंट्स देने थे, जिससे उनका परिचय पत्र बनना था जिसे हर समय अपने पास रखने की हिदायत दी गई थी   ना रखने पर सजा भी तय  कर दी थी गाँधी जी ने इसे काला कानून बताया जोहान्सबर्ग में तीन हज़ार भारतीओं को साथ लेकर उन्होंने मार्च किया  अगर आज गाँधी जी होते तो जरुर घोर का विरोध करते   आधार के चीफ नंदन निलकनी ने खुद ही नेल्सन कम्पनी के कन्जूमर ३६० के कार्यक्रम  के दौरान उन्होंने बताया की भारत के एक तिहाई कन्जूमर बैंकिंग और सामाजिक सेवा की पहुँच से बाहर हैं ये लोग गरीब हैं इस लिये खुद बाज़ार तक नहीं पहुँच सकते   पहचान नंबर मिलते ही मोबाइल फ़ोन के जरिये इन तक पहुंचा जा सकता है।   इसी कार्यक्रम में नेल्सन कम्पनी के चेयर मेन  का  कहना था कि  मजबूत सिस्टम से कंपनियों को फायदा पहुंचेगा  विशेषज्ञों का मानना है कि  एक ना एक दिन ये अभियान भी फ्लाप होगा और तब तक इस परियोजना पर देश का कई हज़ार करोड़ रूपए खर्च  हो चुके होंगे।
आधार कार्ड  के प्रचार की बाकी योजनाएं तो फेल हो चुकी हैं। जब उससे सीधे लाभ मिलेगा तो लोग उसे बनवाने के लिए भी लाइन लगाएंगे। यह मुद्दा हो सकता है, पर दो लाख करोड़ रुपए सालाना लुटाने की योजना इतने भर के लिए नहीं बन सकती। यह निश्चित रूप से सरकार द्वारा अपनी विफलता को छिपाने और वोट खरीदने के लिए उठाया गया कदम है। यह काम प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति बनने के बाद से आए आत्मविश्वास के बाद उठा दूसरा बड़ा कदम है। उदारीकरण के दूसरे चरण के फैसले वोट दिला ही देंगे, यह भरोसा नहीं है। लेकिन करोड़ों गरीबों को सीधे नगदी पाने का लाभ हो, यह कोई नहीं मानता। पर इस क्रम में सरकार गरीबों के प्रति अपनी जवाबदेही से हाथ झाड़ ले, यह गलत है।

Friday, October 27, 2017

Ex Servicemen Rally in Uttarkashi

 उत्तरकाशी  में भूतपूर्व सैनिक रैली 

भारतीय सेना की आईबीईएक्स ब्रिगेड के तत्वावधान में आगामी 29 अक्टूबर 2017 को उत्तराखंड के  उत्तरकाशी  के रामलीला मैदान पर ‘भूतपूर्व सैनिक रैली’ का आयोजन किया जायेगा।  इस रैली में  उत्तरकाशी  के विभिन्न क्षेत्रों से भूतपूर्व सैनिक एवं वीर नारियॉं भाग ले सकेगें।

इस रैली के आयोजन का उद्देष्य राज्य एवं केन्द्र सरकार द्वारा भूतपूर्व सैनिकों के लिए चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाओं के प्रति जागरूकता फैलाना   है।

भूतपूर्व सैनिक रैली के दौरान सूचना से जुड़े विविध स्टाल लगाये जायेगें जिनमें गढ़वाल राइफल्स अभिलेख पेंन प्रकोष्ठ , जॉब प्लेसमेन्ट सेल, बैंक काउन्टर्स, सेना के भूतपूर्व सैनिकों के कल्याण से जुड़े पोर्टल, ईसीएचएस पेंन अदालत, एलआईसी ऑफ इण्डिया, जिला सैनिक बोर्ड, कृशि सेल, फिरी सेल, एनिमल हस्बैन्ड्ी सेल तथा आधार एवं पैन कार्ड पंजिकरण से जुड़े सेल मिल हैं।  इसके अतिरिक्त भूतपूर्व सैनिकों एवं उनके आश्रितों के लिए एक चिकित्सा षिविर भी लगाया जायेगा।


इस रैली में उत्तरकाशी के विभिन्न क्षेत्रों से भाग लेने के लिए आनेवाले भूतपूर्व सैनिकों एवं वीर नारियों की सुविधा के लिए तीन बसें चलाई जायेगीं। ये बसे उत्तरकाशी बस स्टैन्ड एवं चिन्यालिसोर से उपलब्ध होंगी। इस दौरान डिफेंस इण्डियन आर्मी वेटेन्स  पोर्टल पंजीकरण के लिए भी उनकी सहायता की जायेगी।

Thursday, October 26, 2017

DEBATE ON THREAT TO GANGOTRI AND OTHER HIMALAYAN GLACIERS AND PARTICIPENTS ARE JAY SINGH RAWAT, PROF. VIRENDRA PAINULI AND MS. KUSUM GHILDIYAL.

हिमालयी झीलों के फटने का खतरा
-जयसिंह रावत
केदारनाथ के ऊपर चोराबारी ताल, जिसे अब गांधी सरोवर के नाम से भी जाना जाता है, के फटने से हुयी अकल्पनीय तबाही के बाद ग्लेशियरों और आपदा तंत्र के विशेषज्ञों के कान खड़े हो गये हैं। गांधी सरोवर के बाद अब उत्तराखण्ड की ग्लेशियरों पर आधारित नदियों के उद्गम क्षेत्र में स्थित डोडीताल और सहस्रताल जैसी विशालकाय झीलों से महाविनाश का खतरा नजर आने लगा है। इसी तरह की झीलों में सिखों के पवित्र तीर्थ हेमकुण्ड साहब की झील को भी शामिल किया जा रहा है जिस पर अत्यधिक भीड़ दबाव बढ़ता जा रहा है।
इतनी ऊंचाई वाले क्षेत्र में बादल फटने और मानसून के सीधे हिमाच्दादित क्षेत्रों में पहुंचने से हिमनद विज्ञानियों के साथ ही आपदा प्रबन्धन विशेषज्ञों के कान खड़े हो गये हैं। उन्हें भय है कि अगर इतना छोटा हिमालयी तालाब इतनी बड़ी तबाही कर सकता है तो डोडीताल और सहस्रताल जैसी हिमालयी झीलें इससे कहीं अधिक कहर बरपा सकती है। इस क्षेत्र के 917 ग्लेशियर 3,550 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हैं। जिनमें सेकड़ों की संख्या में ग्लेशियल लेक हैं। टिहरी गढ़वाल के हिमालयी क्षेत्र में सहस्रताल, यमताल, मासरताल, बासुकी ताल, मन्सूर ताल, अप्सरा ताल तथा भिलंगताल हैं। इनमें सहस्रताल गढ़वाल क्षेत्र की सबसे बड़ी हिमालयी झील है। इसी तरह खतलिंग ग्लेशियर से निकलने वाली भिलंगना नदी के उद्गम क्षेत्र में भिलंगताल है जो कि सीधे तौर पर भागीरथी की सहायिका भिलंगना में तबाही मचा सकती है। पोड़ी गढ़वाल के उच्च क्षेत्रों मे ंदुग्धताल और ताराकुण्ड स्थित हैं। चमोली के हिमालयी क्षेत्र में में विख्यात रूपकुण्ड और होमकुण्ड के अलावा लोकपाल हेमकुण्ड, सतोपन्थ ताल, सुरवदीताल, बिरही ताल, बेनी ताल, विष्णुताल, लिंगाताल, आछरीताल, गुडयिार, गोहराआदि मातृका, नरसिंह, मणिभद्र तथा सिद्धताल हैं। इन तालों में से त्रिकाणाकार सतोपन्थ ताल विशाल सतोपन्थ ग्लेशियर क्षेत्र में हैं और यह अलकनन्दा का श्रोत ताल भी है। इस क्षेत्र में कभी चोराबारी की पुनरावृत्ति हो गयी तो स्थित भयावह हो सकती है। उत्तरकाशी जिले में नचिकेता ताल, डोडीताल, कांचकण्डीताल, बयांताल, केदारताल, भरणसरताल, रोहीसाणाताल, काणाताल, खिड़ाताल, काकभुसण्डी ताल, लामाताल, देवसाड़ी ताल, मासरताल आदि हैं। षटकोणाकार डोडीताल उत्तरकाशी की असी गंगा का श्रोत है। असी गंगा ने गत वर्ष भारी ताबाही मचाई थी। रुद्रप्रयाग जिले के हिमालयी तालों में मुख्य रूप से देवरिया ताल और बधाणीताल हैं। इनके अलावा इस वर्ष फटने वाला चोराबारी ताल भी रुद्रप्रयाग जिले में ही है।
समुद्र सतह से 10 हजार फुट की ऊंचाई पर असी गंगा के उद्गम वाली डोडीताल झील की गहराई का अब तक वैज्ञानिक पता नहीं लगा पाए। दयारा गिडारा के ऊपर डोडीताल की ही तरह 16 हजार फुट से अधिक ऊंचाई पर एक और विशाल झील है। इन दोनों झीलों में ही लाखों घन मीटर पानी है। आसपास ही कई छोटी झीलें भी हैं। यदि कभी इनके आसपास बादल फटा तो पानी के साथ आने वाले मलबे से कई गांव एवं उत्तरकाशी तबाह हो सकता है। वर्ष 1978 में भी इसी तरह बादल फटने से कनोडिया गाड में उमड़े मलबे ने गंगनानी में भागीरथी का प्रवाह आठ घंटे तक रोक दिया था। यहां बनी झील टूटने से उत्तरकाशी को जलप्रलय का सामना करना पड़ा था।
दस्तावेजों के अनुसार भारत के हिमालयी क्षेत्र में 1926 में पहली बार ग्लेशियर झील फटने से बाढ़ आई थी। जम्मू कश्मीर में शियोक ग्लेशियर से आई इस बाढ़ की चपेट में आकर अबुदान गांव सहित आसपास का 400 किलोमीटर का इलाका बर्बाद हो गया था। हैदराबाद स्थित नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर के वैज्ञानिकों ने पता लगाया था कि 1981 और 1988 में हिमाचल प्रदेश के शौन गैरांग ग्लेशियर से बनी कई झीलें अचानक खाली हो गयी थीं। नेपाल के इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटिग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट(इसीमोड) द्वारा समय-समय पर किये गये कई अध्ययनों से यह बात सामने आयी है कि हिमालय में बन रही ग्लेशियर झीलों की संख्या तेजी से बढ़ी है। ग्लोबल वॉर्मिंग से ग्लेशियर के पिघलने में वृद्धि हुयी है जिससे हिमालय के ऊंचे क्षेत्रों में नयी झीलों का निर्माण हो रहा है।
गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के भूगर्भशास्त्र विभाग के उपाचार्य डॉ. एम.पी.एस. बिष्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन तापमान में वृद्धि एवं वनावरण (जंगल) की कमी से ज्यादातर झीलों का अस्तित्व संकट में है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लेशियरों के नीचे अवस्थित झीलों के अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है जिससे व्यापक तबाही की आशंका पैदा हो गई है। राज्य की 42 झीलों के टोपोशीट के कंपाइलेशन अध्ययन एवं मौजूदा आंकड़ों का विश्लेषण करने पर इन झीलों का स्थिति नाजुक पाई गयी है।
उत्तराखण्ड में इस तरह हिमालयी क्षेत्रों में बादल फटने से झीलों के बनने और फिर उन झीलों के फटने से भारी तबाही होने की घटनाओं का पुराना इतिहास रहा है। सन् 1868 में बिरही नदी के अवरुद्ध होने के बाद इस झील के टूटने से 73 लोग मारे गये थे उसके बाद इसी तरह गौणाताल का निर्माण हुआ और जब वह टूटा तो फिर अलकनन्दा में बाड़ गयी। बिरही झील बनने के बाद बादल फटने से त्वरित बाढ़ और भूस्खलन की लगभग 30 घटनाओं में सेकड़ों लोग मारे जा चुके हैं। 19 सितम्बर 1880 को नैनीताल में शेर का डांडा से हुये भूस्खलन में 151 लोग मारे गये थे। अब भी नैनीताल झील को खतरा बताया जा रहा है।

-जयसिंह रावत
-11, फ्रेंड्स एन्क्लेव, शाहनगर,
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून, उत्तराखण्ड।
Mobile-09412324999
jaysinghrawat@hotmail.com