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Friday, March 30, 2018

विधायकों के आगे कानून के लाचार और बौने हाथ






विधायकों के आगे कानून के लाचार और बौने हाथ
-जयसिंह रावत
जिसकी लाठी उसकी भैंस, वाली कहावत अब हमारे नये राजनीतिक शासकों ने अप्रासंगिक करते हुये ‘‘जिसकी सत्ता, उसका कानून’’ वाली नयी कहावत प्रचलित कर दी है। मतलब यह कि जिस भी पार्टी की सरकार आती है उस पार्टी के नेता और जन प्रतिनिधि कानून से ऊपर हो जाते हैं और अगर उनके खिलाफ पुलिस कानूनी कार्यवाही करती भी है तो कानून के लम्बे हाथ उनके गिरेबान तक पहुंचने में केवल बौने अपितु लाचार भी हो जाते हैं। इसका नमून भी देखिये कि उत्तराखण्ड में भाजपा और कांग्रेस की सरकारो ंने उत्तराखण्ड गठन से लेकर फरवरी 2018 तक  अकेले उधमसिंहनगर जिले के न्यायालयों में चल रहे ऐसे 103 अपराधिक मुकदमें वापस लिये हैं जिनमें विभिन्न पार्टियों के नेताओं के विरूद्ध दर्ज मुकदमें भी शामिल हैं। सरकार ने जिन लोगों के खिलाफ अपराधिक मुकदमें वापस लिये हैं उनमें उत्तराखण्ड के शिक्षा मंत्री अरविन्द पाण्डे के खिलाफ दर्ज आधा दर्जन मुकदमें भी शामिल है। त्रिवेन्द्र सिंह रावत के नेतृत्व वाली सरकार ने चर्चित विधायक राजकुमार ठुकराल के खिलाफ दर्ज हत्या और हत्या का प्रयास जैसे मामले भी वापस ले लिये हैं। पिछली सरकार के कार्यकाल में राजकुमार ठुकराल गिरफ्तारी से बचने के लिये कई दिनों तक भूमिगत भी रहे। जबकि वर्तमान शिक्षा मंत्री अरविन्द पाण्डे ने जब पहली बार विधानसभा का चुनाव 2002 में लड़ा था तो उन पर 2 दर्जन से अधिक मुकदमें दर्ज थे और 2017 के चुनाव तक आते आते उन पर केवल 11 अपराधिक मुकदमें शेष रह गये थे।
अभियोजन निदेशालय से सूचना के अधिकार के तहत मांगी गयी एक सूचना के अनुसार सन् 2005 से लेकर अब तक जो 103 मुकदमें सरकार द्वारा वापस लिये गये हैं उनमें केवल भारतीय जनता पार्टी के विधायक और मंत्री अपितु कांग्रेस के पूर्व विधायक भी शामिल है। राज्य में जब भी जिस पार्टी की सरकार आयी उसने अपने नेताओं के खिलाफ दर्ज अपराधिक मामले वापस ले लिये। इन मामलों में हत्या, हत्या का प्रयास और डकैती के जैसे मामले भी शामिल हैं। सूचना के अनुसार शिक्षामंत्री अरविन्द पाण्डे के खिलाफ 2007 में भाजपा के सत्ता में आने पर 4 मामले वापस लिये गये। उनके खिलाफ दर्ज एक मामला 25 फरबरी 2008 को तथा दूसरा 23 अगस्त 2011 को वापस लिया गया। सन् 2017 में जब फिर विधानसभा चुनाव हुये तो उस समय भी उनके खिलाफ 11 मामले अदालतों में विचाराधीन थे।
आरटीआइ से प्राप्त विवरण के अनुसार वर्ष 2017 मेें 8 मुकदमें थाना जसपुर, काशीपुर, किच्छा, खटीमा, रूद्रपुर नानकमत्ता वापस लिये गये जिनमें मौ0 एहतेशाम, ओमप्रकाश, शशिबाला श्रीवास्तव, इरफानउलहक कादरी, हरपाल, राजकुमार ठुकराल राजू उर्फ राजेश सिंह के विरूद्ध दर्ज मुकदमें शामिल है।इनमें भाजपा विधायक राजकुमार ठुकराल के खिलाफ रुद्रपुर थाने में भा.दं.वि.सं. की धारा 147, 148, 307, 336, 436, 395, 397, 153 तथा सी.एल.एक्ट की धारा 7 के तहत मामले भी दर्ज थे जो कि 2012 में दर्ज हुये थे और जिला एवं सत्र न्यायाधीश उधमसिंहनगर की अदालत में 2014 से लंबित थे। इन मामलों में गिरफ्तारी से बचने के लिये ठुकराल काफी दिनों तक भूमिगत भी रहे। इससे पहले रुद्रपुर विधानसभा क्षेत्र से पूर्व मंत्री तिलक राज बेहड़ के खिलाफ दर्ज मुकदमें कांग्रेस शासनकाल आते ही 2012 में वापस ले लिये गये थे।
राजनीतिक नेताओं और कार्यकर्ताओं पर दर्ज अपराधिक मुकदमें वापस लेने का सिलसिला 2006 से चल रहा है।  आरटीआइ के तहत उपलब्ध सूचना के अनुसार वर्ष 2000 से 2005 तक कोई मुकदमा वापस लेना नहीं दर्शाया गया है। इसके अतिरिक्त 2018 में फरवरी तक भी कोई मुकदमा वापस लेना नहीं दर्शाया है।   वर्ष 2006 में एक मुकदमा थाना नानकमत्ता अन्तर्गत वापस लिया गया जिसमें नारायण पाल के विरूद्ध दर्ज मुकदमा शामिल  है जबकि वर्ष 2007 में 12 मुकदमे थाना बाजपुर, काशीपुर गदरपुर के अन्तर्गत वापस लिये गये जिसमें नरेन्द्र कुमार, अरविन्द पाण्डे, जगदीश पाण्डेय, महिपाल सिंह, राजेश गुम्बर, बन्टी, रविन्द्र बजाज, के विरूद्ध दर्ज मुकदमें शामिल है। वर्ष 2008 में 12 मुकदमे थाना  गदरपुर, खटीमा, बाजपुर रूद्रपुर, नानकमत्ता बाजपुर के अन्तर्गत वापस लिये गये जिनमें भाजपा कार्यकर्ता, कौशल कृशवाह, अरशद राही, अरविन्द पाण्डे, गोपाल सिंह राणा, संजय जुनेजा, प्रेम सिंह, दलजीत सिंह, युगल किशोर, भाजपा कार्यकर्ता, बलराज पासी के विरूद्ध दर्ज मुकदमें शामिल हैं। वर्ष 2009 में 5 मुकदमे थाना बाजपुर, खटीमा, पतंनगर, सितारगंज रूद्रपुर के वापस लिये गये जिनमें अरशद राही, गोपाल सिंह, कमला पंत, हरीश चन्द्र श्रमिक होण्डा पावर प्रा0लि0 के विरूद्ध दर्ज मुकदमें शामिल है।
वर्ष 2010 में 15 मुकदमें थाना खटीमा, काशीपुर, रूद्रपुर, सितारगंज, बाजपुर पंतनगर वापस लिये गये जिनमें दीनदयाल भुल्लर, सर्वेश शर्मा, राज दीपिका माथुर, अरविन्द कुमार पाण्डे, अरूण कुमार, बलराज पासी, हरीश चन्द्र मुन्ना सिंह चौहान के विरूद्ध दर्ज मुकदमें शामिल है। वर्ष 2011 मेें 3 मुकदमें थाना सितारगंज पंतनगर वापस लिये गये जिनमें अरूण शुक्ला, डा0पी0एन0 सिंह बलराज पासी के विरूद्ध दर्ज मुकदमें शामिल है। वर्ष 2012 मेें 7 मुकदमें थाना पंतनगर रूद्रपुर वापस लिये गये जिनमें डा0 पी0एन0सिंह, रामलीला मंच, तिलकराज बेहड़, हरीश पनेरू, नसरीन कुरैशी, हिमांशु गाबा, श्रीमति मीना शर्मा, ललित मिगलानी सभासद के विरूद्ध दर्ज मुकदमें शामिल है। वर्ष 2013 मेें 8 मुकदमें थाना बाजपुर, सितारगंज, किच्छा, पन्तनगर, खटीमा, रूद्रपुर जसपुर वापस लिये गये जिनमें ललित मिगलानी सभासद, तौफिक संजीव अरोरा के विरूद्ध दर्ज मुकदमें शामिल है। वर्ष 2014 मेें 10 मुकदमें थाना सितारगंज, किच्छा, रूद्रपुर, गदरपुर जसपुर वापस लिये गये जिनमें नारायण पाल, सुशीला गाबा, राजेश शुक्ला, अब्दुल सतार, ठुकराल दास सुखीजा रामबाबू मिश्रा के विरूद्ध दर्ज मुकदमें शामिल है।
वर्ष 2015 मेें 6 मुकदमें थाना काशीपुर, पन्तनगर, सितारगंज, जसपुर, रूद्रपुर कुण्डा वापस लिये गये जिनमें अब्दुल कादिर, विनोद राम, प्रकाश हल्दार, इसरार हुसैन, नूर अहमद देबू आदि के विरूद्ध दर्ज मुकदमें शामिल है। वर्ष 2016 मेें 18 मुकदमें थाना काशीपुर, दिनेशपुर, रूद्रपुर, नानकमत्ता, खटीमा, सितारगंज, किच्छा जसपुर वापस लिये गये जिनमें कालू, तारक छाबड़ा, ज्ञानी स्वर्ण सिंह, सतनाम सिंह, मन्नू चौधरी, दीपक चन्द्र, सलीम अहमद, अश्वनी अरोडा, संजय जुनेजा, कुवर सिंह खनका, गोपाल सिंह, तुलाराम उर्फ ताराचन्द्र नेताजी, अखलाख अहमद, हिमांशु शुक्ला, हरीश अरोड़ा, यशपाल घई नत्थू लाल गुप्ता के विरूद्ध दर्ज मुकदमंे शामिल हैं।
एक आर टी आइ कार्यकर्ता नदीम को उपलब्ध करायी गयी सूचना के अनुसार इन वापस लिये गये मुकदमों में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 (हत्या.), 307 (हत्या के प्रयास.), 306 (आत्महत्या को उकसाना.), 309 (आत्महत्या का प्रयास.), 311 (ठग होना.), 395, 397 (डकैती.), 323, 332, 333 (चोट.), 336 (जीवन को खतरनाक कार्य.), 341, 342, 343 (रास्ता रोकना बन्दी बनाना.), 352, 353 (हमला.), 354 (स्त्री की लज्जा भंग को हमला.), 383 (रंगदारी.), 406, 409 (गबन.), 420, 421 (धोखाधड़ी.), 427, 435, 436 (सम्पत्ति को नुकसान, आग लगाना.), 467, 468, 471 (फर्जी दस्तावेज बनाना.),  447, 452 (जर्बदस्ती घर में घुसना.), 500 (मानहानि.), 504 (अपमान.), 506 (धमकी.),  511 (अपराध का प्रयास.), 153 (वर्गों के बीच श़त्रुता फैलाना.), 295, 295 (धर्म का अपमान.), 201(अपराध के सबूत छिपाना.) के अतिरिक्त बलवा लोक शांति को नुकसान संबंधी धारा 142, 143, 145, 147, 148 149 तथा सरकारी कार्य में बाधा डालने लाक सेवकों के विरूद्ध धारा 183, 186, 188, 198, 224, 225 के अपराध भी शामिल है। इसके अतिरिक्त चुनाव में भ्रष्ट साधन प्रसोग करने रिश्वत आदि के भारतीय दण्ड संहिता की धारा 171 तथा लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 123, 135 136 के अन्तर्गत दण्डनीय अपराधों के मुकदमें भी इन वापस लिये गये मुकदमों में शामिल हैं। 
एडीआर की ताजा चुनाव विश्लेषण रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के 70 विधायकों में से 22 पर अपराधिक मुकदमें चल रहे हैं। इनमें से 14 विधायकों पर हत्या, हत्या का प्रयास, डकैती एवं लूट जैसे जघन्य आरोपों में मुकदमें चल रहे हैं। इनमें से भी 2 विधायकों पर हत्या और हत्या का प्रयास के मामले चल रहे हैं। इनमें एक विधायक शिक्षा मंत्री भी हैं। अपराधिक पृष्ठभूमि वाले इन विधायकों में से सर्वाधिक 17 वि

Sunday, March 25, 2018

त्रिवेन्द्र सरकार के बजट के पांव खाट से बाहर


 
त्रिवेन्द्र सरकार के बजट के पांव खाट से बाहर 
जय सिंह रावत


March 25, 2018
जब आप पिछले साल विभिन्न श्रोतों से कर्ज लेने के बाद भी 38हजार करोड़ की ही रकम जुटा पाये और उसके बाद भी ठेकेदारों का भुगतान और वेतन नहीं दे पाये तो इस साल की 45202.94 करोड़ रु0 की रकम कैसे जुटा पायेंगे ? यह भारी भरकम सवाल  जिन लोगों को बजट में सुनहरे सपने दिखाये गये हैं उनको विचलित करने वाला अवश्य ही है।
उत्तराखण्ड की त्रिवेन्द्र सरकार ने समाज के विभिन्न वर्गों की आकांक्षाओं और अपने चुनावी दृष्टिपत्र के वायदों को ध्यान में रखते हुये नये वित्तीय वर्ष के लिये अपने संकल्पों के पिटारे के रूप में भारी भरकम बजट तो पेश कर दिया मगर उससे भी भारी सवाल यह खड़ा हो गया कि आखिर वित्तीय संसाधनों के अभाव में सरकार उन संकल्पों और वायदों को निभायेगी तो कैसे?
उत्तराखण्ड सरकार के बजट में इस साल कुछ अच्छी पहले अवश्य हुयी हैं जिन्हें नकारा नहीं जा सकता। पहली पहल तो भराड़ीसैण में बजट सत्र आयोजित करने की रही। दूसरी पहल बजट से पहले आर्थिक सर्वे पेश करने की थी और तीसरी सबसे महत्वपूर्ण पहल मुख्यमंत्री द्वारा जनता के बीच जा कर बजट के बारे में लोगों की अपेक्षाएं जानने की रही। बजट में जन अपेक्षाएं झलक भी रही हैं। लेकिन राज्य की माली हालत आज इतनी पतली है कि उन अपेक्षाओं पर सरकार का खरा उतरना नामुमकिन तो नहीं मगर बेहद मुश्किल अवश्य लग रहा है। यही नहीं इस बजट का जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना त्रिवेन्द्र सरकार के सबसे काबिल मंत्री प्रकाश पन्त के लिये भी एक अग्नि परीक्षा ही है। राज्य के वित्त मंत्री प्रकाश पन्त ने बजट में अपना वित्तीय कौशल तो दिखा दिया मगर उससे बड़ी चुनौती बजट के रूप में इस संकल्प पत्र को धरातल पर उतारने की है।
इसी सरकार ने गत वर्ष 39957.77 करोड़ का बजट पेश किया था। लेकिन उसमें से केवल लगभग 38046 करोड़ ही खर्च हो पाये। बजट के साथ पेश किये गये वार्षिक वित्तीय विवरण के आंकडों को जोड़ा जाय तो खर्च की गयी राशि 37992.86 करोड़ निकल रही है। पूरा बजट तभी खर्च होता जबकि सरकार के पास उतनी बड़ी रकम होती। जब आप पिछले साल विभिन्न श्रोतों से कर्ज लेने के बाद भी 38हजार करोड़ की ही रकम जुटा पाये और उसके बाद भी ठेकेदारों का भुगतान और सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं आदि के कार्मिकों को वेतन नहीं दे पाये तो इस साल की 45202.94 करोड़ रु0 की रकम कैसे जुटा पायेंगे ? यह भारी भरकम सवाल सरकार को परेशान करे या न करे मगर जिन लोगों को बजट में सुनहरे सपने दिखाये गये हैं उनको विचलित करने वाला अवश्य ही है।
सरकारी खर्चों में वृद्धि के साथ ही सातवें वेतन आयोग के भारी बोझ के कारण वित्त मंत्री ने पिछले साल के 39957.77 करोड़़  के मुकाबले इस साल के बजट में 5627.3 की वृद्धि कर उसे 45585.09 करोड़ तक तो पहुंचा दिया। मगर इतनी बड़ी रकम आयेगी कहां से, यह सवाल भी खड़ा कर दिया है। नये बजट की अनुमानित 45202.94 करोड़ की प्राप्तियों में राज्य के करों से 14963.62 करोड़, राज्य के ही करेत्तर राजस्व से 3470.51 करोड़ और केन्द्रीय करों में राज्य के हिस्से के अनुमानित 8291.23 करोड़ को मिला कर कुल 26725.36 करोड़ की रकम बनती है। इस अनुमानित रकम को ही सरकार अपनी जेब में मान सकती है। जबकि बजट में राज्य सरकार के प्रतिबद्ध खर्चे (कमिटेड एक्सपेसेज) 27206.00 करोड़ रुपये तक जा रहे हैं। इनमें कर्ज की किश्त अदायगी के रूप में 3182 करोड़, ब्याज के 4906 करोड़, राज्य कर्मियों के वेतन के 12602.37 करोड़  और मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं के शिक्षकों और गैर शिक्षणेत्तर कर्मचारियों के वेतन आदि के 1163.01 करोड़ शामिल हैं। इस आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपया वाले वजट में खर्चे पूरे करने के लिये 9510.10 करोड़ की उधारी को शामिल करने के बाद कुल प्राप्तियां 36235.46 करोड़ की बनती हैं जो कि कुल बजट राशि से काफी पीछे नजर आ रही हैं। इसमें वित्तमंत्री ने केन्द्र सरकार से हर साल मिलने वाली सहायता/ अनुदान की अनुमानित राशि को मिला कर 45202.94 करोड़ की रकम का काल्पनिक जुगाड़ कर रखा है, जो कि फिर भी कम पड़ रहा है। यह केवल प्रकाश पन्त या त्रिवेन्द्र सरकार की कहानी नहीं है। पिछली कांग्रेेस की सरकारें भी ऐसा ही आंकड़ों का मायाजाल डाल कर जनता पर भारी कर्ज का जंजाल थोपती रही हैं। इसीलिये आज इस नवोदित राज्य को पांच हजार करोड़ से थोड़ा कम केवल ब्याज के रूप में चुकाने पड़ रहे हैं। इतनी बड़ी रकम अगर राज्य के विकास पर और जनता की तकलीफों को कम करने पर खर्च की जाती तो यह राज्य आज देश का सबसे खुशहाल राज्य होता। कहते हैं कि ‘‘ताते पांव पसारिये जा ती लम्बी खाट’’ उत्तराखण्ड की सभी सरकारों के पांव सदैव खाट से बाहर रहे हैं। वाहवाही लूटने के लिये बड़ी मेट्रो रेल जैसी 28हजार करोड़ लागत की घोषणाएं कर दी जाती हैं। लाखों लोगों को पटाने के लिये पंेशन दे दी जाती है और केन्द्र सरकार वेतन आयोग की सिफारिशों बाद में लागू करता है जबकि उत्तराखण्ड की सरकारें उसे पहले लागू कर देती हैं। छटे वेतन आयोग में भी भुवन चन्द्र खण्डूड़ी ने ऐसा ही किया और सातवें वेतन आयोग के मामले में भी हरीश रावत ने उतनी ही उतावली की मगर इस उतावली से कुछ हासिल तो हुआ नहीं उल्टे सरकार भी गयी और वे स्वयं भी चुनाव हार गये। जबकि त्रिपुरा में मजदूरों की वामपंथी सरकार ने अभी अपने कर्मचारियों का वेतन बढ़ाने के लिये पांचवें वेतन आयोग की सिफारिशें तक लागू नहीं कीं और बावजूद इसके वहां वामपंथियों की सत्ता 25 सालों तक टिकी रही।
हर एक सरकार को अपने संसाधानों से बेहतर वसूली की उम्मीद रहती है लेकिन अक्सर लक्ष्य के सापेक्ष राजस्व आ नहीं पाता है। पिछली कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में भी राष्ट्रपति शासन समेत कई कारणों से लक्ष्य से लगभग 4396 करोड़ कम राजस्व प्राप्त हुआ था। इस बार भी उत्तराखण्ड के विकास की गाड़ी पर डबल इंजन लगने की बात होती रहती है लेकिन इतने बड़े इंजन का लाभ चालू वर्ष के बजट में तो कहीं नजर नहीं आ रहा है। बजट के साथ दिये गये विवरण के अनुसार इस वित्तीय वर्ष में केन्द्र से केन्द्रीय करों में राज्यांश से 1206.26 करोड़ और केन्द्र सरकार से सहायता अनुदान के मद में 2164.03 करोड़ की राशि कम मिली। आशा  के अनुरूप सहायता न मिलने से राज्य का बजट गड़बड़ाना स्वाभाविक ही था। कुल मिला कर केन्द्र सरकार से राज्य को इस साल अपेक्षा से 3370.29 करोउ़ रुपये का सहयोग कम मिला है। राज्य के करों से भी मौजूदा सरकार को लगभग 330 करोड़ रुपये अनुमान से कम मिले हैं।
जब आय से अधिक खर्च हो तो उस आर्थिक तंगी का राज्य के विकास और जन कल्याण के कार्यों पर सीधा असर पड़ना स्वभाविक ही है। आर्थिक तंगी के चलते त्रिवेन्द्र सरकार को चालू वित्तीय वर्ष में कई सेवाओं में अपने संकल्पों में कटौती करनी पड़ी या अपने संकल्पों को पूरा नहीं कर पायी। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि सरकार को इस साल सामाजिक सेवाओं में इस साल 13798.80 करोड़ खर्च करने थे और उन संकल्पों और सेवाओं की घोषणा सरकार गत बजट में कर चुकी थी। लेकिन धनाभाव के कारण सरकार को 1412.05 करोड़ के सामाजिक कार्यों में कटौती करनी पड़ी। इसी प्रकार तंगी का असर सामान्य सेवाओं और आर्थिक सेवाओं पर भी पड़ा। सामान्य सेवाओं पर घोषित लक्ष्य से 124 करोउ़ और आर्थिक सेवाओं पर 33.89 करोड़ कम खर्च करने पड़े।सरकार को जरूरतमंदों को 1736.94 करोड़ के अनुदान देने थे लेकिन वह केवल 1538.23 करोड़ के अनुदान ही दे पायी। हो सकता है कि अगले साल लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुये केन्द्र सरकार सचमुच उत्तराखण्ड के लिये डबल इंजन साबित हो। यही कामना उत्तराखण्डवासियों की है अन्यथा अगले वर्ष के बजट में कर्ज का बोझ और अधिक बढ़ जायेगा।