विपक्ष का ध्रुवीकरण रोक सकता है मोदी-शाह का विजय रथ
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भारत में राजनीतिक उथलपुथल का माद्दा रखने वाले सम्पूर्ण क्रांति के नायक जयप्रकाश नारायण भले ही नहीं रह गये हों। भले ही विपक्ष की एकता के चाणक्य कामरेड हरिकिशन सिंह सुरजीत भी स्वर्ग सिधार गये हों और लालू जैसे विपक्षी एकता के वास्तुकार जेल की चाहरदीवारी में बंद हों मगर जिस तरह देश में एक कोने से दूसरे कोने तक नरेन्द्र मोदी और अमित शाह का विजय रथ विपक्ष के किलों को रौंद रहा है उसे देख कर तो लगता है कि टुकड़े-टुकड़ों में बंटे विपक्ष के पास अपना अस्तित्व बचाने के लिये एक होने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचा हुआ है। हां इनके पास मुगल काल और ब्रिटिश काल की तरह अपनी संप्रभुता और सम्मान को मोदी-शाह की हुकूमत के पास गिरवी रख कर अपना अस्तित्व बचाने का एक विकल्प अवश्य बचा है मगर वह विकल्प भी स्थाई नहीं है। जिस दिन भाजपा का भगोया परचम सम्पूर्ण राष्ट्र पर फहराया जायेगा उस दिन भाजपा को इन मातहतों या राजनीतिक उपनिवेश दलों की जरूरत नहीं रहेगी। ऐसी स्थिति में भले ही नीतीश कुमार की जैसी पार्टियां अपना स्वाभिमान भाजपा को सौंप देंगी लेकिन कांग्रेस और वामपन्थी दलों के लिये यह जीवन और मरण के बीच चयन करने की जैसी स्थिति पैदा हो जायेगी। इसलिये लगता है कि वामपन्थी कांग्रेस को साथ लेकर सपा और बसपा जैसे क्षेत्रीय दलों को एकजुट कर मोदी राज के खिलाफ ऐसा ही अभियान चलायेंगे जैसा कि इमरजेंसी के बाद विपक्षी दलों ने कांग्रेस के खिलाफ और उसके बाद राजीगांधी राज के खिलाफ विश्वनाथ प्रतापसिहं के नेतृत्व में और फिर नब्बे के दशक में संयुक्त मोर्चा के समय चला था। देश के लिये एक मजबूत सरकार जरूरी है। भाजपा अगर देश को एक मजबूत सरकार दे रही है तो वह अच्छी बात है। साझा सरकारों से भी देशवासी तंग आ चुके हैं। ऐसी सरकारों के शासनकाल में सरकार बचाने के लिये कई बार गलत समझौते करने पड़ते हैं या सहयोगियों के काले कारनामों की ओर आंखें मूंदनी पड़ती हैं। इसलिये अकेली भाजपा अगर कांग्रेस का विकल्प या प्रतिद्वन्दी बन कर उभर रही है तो उसमें कोई बुराई नहीं है। लेकिन इतनी ही सफलता पर सत्ताधारी जिस तरह इतरा रहे हैं तथा सत्ता के मद में चूर हो कर कुछ भी करने के लिये स्वयं को स्वतंत्र मान रहे हैं तो उसे देख कर देश की भविष्य की राजनीति के प्रति आशंकाओं के बादल मंडराने स्वाभाविक ही है। सत्ताधारी दल के संरक्षण में देश प्रेम और सामाजिक जीवन की जो परिभाषाएं गढ़ी जा रही हैं उनसे भविष्य में कट्टरपंथियों की तानाशाही की बू अभी से आने लग गयी है। इसलिये भी सरकार जिसकी भी बने या रहे मगर उस पर विपक्ष की मजबूत नकैल जरूरी है। ताकि सत्ताधारियों को अहसास दिलाया जा सके िकवे जनता के राजा नहीं बल्कि सेवक हैं और इस लोकतंत्र में शासन व्यवस्था जनता के लिये जनता द्वारा और जनता की होती है। आपको केवल सरकार चलाने के लिये चुना गया है न कि जनता का सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक व्यवहार और रुचि तय करने के लिये।
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