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Sunday, March 25, 2018

त्रिवेन्द्र सरकार के बजट के पांव खाट से बाहर


 
त्रिवेन्द्र सरकार के बजट के पांव खाट से बाहर 
जय सिंह रावत


March 25, 2018
जब आप पिछले साल विभिन्न श्रोतों से कर्ज लेने के बाद भी 38हजार करोड़ की ही रकम जुटा पाये और उसके बाद भी ठेकेदारों का भुगतान और वेतन नहीं दे पाये तो इस साल की 45202.94 करोड़ रु0 की रकम कैसे जुटा पायेंगे ? यह भारी भरकम सवाल  जिन लोगों को बजट में सुनहरे सपने दिखाये गये हैं उनको विचलित करने वाला अवश्य ही है।
उत्तराखण्ड की त्रिवेन्द्र सरकार ने समाज के विभिन्न वर्गों की आकांक्षाओं और अपने चुनावी दृष्टिपत्र के वायदों को ध्यान में रखते हुये नये वित्तीय वर्ष के लिये अपने संकल्पों के पिटारे के रूप में भारी भरकम बजट तो पेश कर दिया मगर उससे भी भारी सवाल यह खड़ा हो गया कि आखिर वित्तीय संसाधनों के अभाव में सरकार उन संकल्पों और वायदों को निभायेगी तो कैसे?
उत्तराखण्ड सरकार के बजट में इस साल कुछ अच्छी पहले अवश्य हुयी हैं जिन्हें नकारा नहीं जा सकता। पहली पहल तो भराड़ीसैण में बजट सत्र आयोजित करने की रही। दूसरी पहल बजट से पहले आर्थिक सर्वे पेश करने की थी और तीसरी सबसे महत्वपूर्ण पहल मुख्यमंत्री द्वारा जनता के बीच जा कर बजट के बारे में लोगों की अपेक्षाएं जानने की रही। बजट में जन अपेक्षाएं झलक भी रही हैं। लेकिन राज्य की माली हालत आज इतनी पतली है कि उन अपेक्षाओं पर सरकार का खरा उतरना नामुमकिन तो नहीं मगर बेहद मुश्किल अवश्य लग रहा है। यही नहीं इस बजट का जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना त्रिवेन्द्र सरकार के सबसे काबिल मंत्री प्रकाश पन्त के लिये भी एक अग्नि परीक्षा ही है। राज्य के वित्त मंत्री प्रकाश पन्त ने बजट में अपना वित्तीय कौशल तो दिखा दिया मगर उससे बड़ी चुनौती बजट के रूप में इस संकल्प पत्र को धरातल पर उतारने की है।
इसी सरकार ने गत वर्ष 39957.77 करोड़ का बजट पेश किया था। लेकिन उसमें से केवल लगभग 38046 करोड़ ही खर्च हो पाये। बजट के साथ पेश किये गये वार्षिक वित्तीय विवरण के आंकडों को जोड़ा जाय तो खर्च की गयी राशि 37992.86 करोड़ निकल रही है। पूरा बजट तभी खर्च होता जबकि सरकार के पास उतनी बड़ी रकम होती। जब आप पिछले साल विभिन्न श्रोतों से कर्ज लेने के बाद भी 38हजार करोड़ की ही रकम जुटा पाये और उसके बाद भी ठेकेदारों का भुगतान और सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं आदि के कार्मिकों को वेतन नहीं दे पाये तो इस साल की 45202.94 करोड़ रु0 की रकम कैसे जुटा पायेंगे ? यह भारी भरकम सवाल सरकार को परेशान करे या न करे मगर जिन लोगों को बजट में सुनहरे सपने दिखाये गये हैं उनको विचलित करने वाला अवश्य ही है।
सरकारी खर्चों में वृद्धि के साथ ही सातवें वेतन आयोग के भारी बोझ के कारण वित्त मंत्री ने पिछले साल के 39957.77 करोड़़  के मुकाबले इस साल के बजट में 5627.3 की वृद्धि कर उसे 45585.09 करोड़ तक तो पहुंचा दिया। मगर इतनी बड़ी रकम आयेगी कहां से, यह सवाल भी खड़ा कर दिया है। नये बजट की अनुमानित 45202.94 करोड़ की प्राप्तियों में राज्य के करों से 14963.62 करोड़, राज्य के ही करेत्तर राजस्व से 3470.51 करोड़ और केन्द्रीय करों में राज्य के हिस्से के अनुमानित 8291.23 करोड़ को मिला कर कुल 26725.36 करोड़ की रकम बनती है। इस अनुमानित रकम को ही सरकार अपनी जेब में मान सकती है। जबकि बजट में राज्य सरकार के प्रतिबद्ध खर्चे (कमिटेड एक्सपेसेज) 27206.00 करोड़ रुपये तक जा रहे हैं। इनमें कर्ज की किश्त अदायगी के रूप में 3182 करोड़, ब्याज के 4906 करोड़, राज्य कर्मियों के वेतन के 12602.37 करोड़  और मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं के शिक्षकों और गैर शिक्षणेत्तर कर्मचारियों के वेतन आदि के 1163.01 करोड़ शामिल हैं। इस आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपया वाले वजट में खर्चे पूरे करने के लिये 9510.10 करोड़ की उधारी को शामिल करने के बाद कुल प्राप्तियां 36235.46 करोड़ की बनती हैं जो कि कुल बजट राशि से काफी पीछे नजर आ रही हैं। इसमें वित्तमंत्री ने केन्द्र सरकार से हर साल मिलने वाली सहायता/ अनुदान की अनुमानित राशि को मिला कर 45202.94 करोड़ की रकम का काल्पनिक जुगाड़ कर रखा है, जो कि फिर भी कम पड़ रहा है। यह केवल प्रकाश पन्त या त्रिवेन्द्र सरकार की कहानी नहीं है। पिछली कांग्रेेस की सरकारें भी ऐसा ही आंकड़ों का मायाजाल डाल कर जनता पर भारी कर्ज का जंजाल थोपती रही हैं। इसीलिये आज इस नवोदित राज्य को पांच हजार करोड़ से थोड़ा कम केवल ब्याज के रूप में चुकाने पड़ रहे हैं। इतनी बड़ी रकम अगर राज्य के विकास पर और जनता की तकलीफों को कम करने पर खर्च की जाती तो यह राज्य आज देश का सबसे खुशहाल राज्य होता। कहते हैं कि ‘‘ताते पांव पसारिये जा ती लम्बी खाट’’ उत्तराखण्ड की सभी सरकारों के पांव सदैव खाट से बाहर रहे हैं। वाहवाही लूटने के लिये बड़ी मेट्रो रेल जैसी 28हजार करोड़ लागत की घोषणाएं कर दी जाती हैं। लाखों लोगों को पटाने के लिये पंेशन दे दी जाती है और केन्द्र सरकार वेतन आयोग की सिफारिशों बाद में लागू करता है जबकि उत्तराखण्ड की सरकारें उसे पहले लागू कर देती हैं। छटे वेतन आयोग में भी भुवन चन्द्र खण्डूड़ी ने ऐसा ही किया और सातवें वेतन आयोग के मामले में भी हरीश रावत ने उतनी ही उतावली की मगर इस उतावली से कुछ हासिल तो हुआ नहीं उल्टे सरकार भी गयी और वे स्वयं भी चुनाव हार गये। जबकि त्रिपुरा में मजदूरों की वामपंथी सरकार ने अभी अपने कर्मचारियों का वेतन बढ़ाने के लिये पांचवें वेतन आयोग की सिफारिशें तक लागू नहीं कीं और बावजूद इसके वहां वामपंथियों की सत्ता 25 सालों तक टिकी रही।
हर एक सरकार को अपने संसाधानों से बेहतर वसूली की उम्मीद रहती है लेकिन अक्सर लक्ष्य के सापेक्ष राजस्व आ नहीं पाता है। पिछली कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में भी राष्ट्रपति शासन समेत कई कारणों से लक्ष्य से लगभग 4396 करोड़ कम राजस्व प्राप्त हुआ था। इस बार भी उत्तराखण्ड के विकास की गाड़ी पर डबल इंजन लगने की बात होती रहती है लेकिन इतने बड़े इंजन का लाभ चालू वर्ष के बजट में तो कहीं नजर नहीं आ रहा है। बजट के साथ दिये गये विवरण के अनुसार इस वित्तीय वर्ष में केन्द्र से केन्द्रीय करों में राज्यांश से 1206.26 करोड़ और केन्द्र सरकार से सहायता अनुदान के मद में 2164.03 करोड़ की राशि कम मिली। आशा  के अनुरूप सहायता न मिलने से राज्य का बजट गड़बड़ाना स्वाभाविक ही था। कुल मिला कर केन्द्र सरकार से राज्य को इस साल अपेक्षा से 3370.29 करोउ़ रुपये का सहयोग कम मिला है। राज्य के करों से भी मौजूदा सरकार को लगभग 330 करोड़ रुपये अनुमान से कम मिले हैं।
जब आय से अधिक खर्च हो तो उस आर्थिक तंगी का राज्य के विकास और जन कल्याण के कार्यों पर सीधा असर पड़ना स्वभाविक ही है। आर्थिक तंगी के चलते त्रिवेन्द्र सरकार को चालू वित्तीय वर्ष में कई सेवाओं में अपने संकल्पों में कटौती करनी पड़ी या अपने संकल्पों को पूरा नहीं कर पायी। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि सरकार को इस साल सामाजिक सेवाओं में इस साल 13798.80 करोड़ खर्च करने थे और उन संकल्पों और सेवाओं की घोषणा सरकार गत बजट में कर चुकी थी। लेकिन धनाभाव के कारण सरकार को 1412.05 करोड़ के सामाजिक कार्यों में कटौती करनी पड़ी। इसी प्रकार तंगी का असर सामान्य सेवाओं और आर्थिक सेवाओं पर भी पड़ा। सामान्य सेवाओं पर घोषित लक्ष्य से 124 करोउ़ और आर्थिक सेवाओं पर 33.89 करोड़ कम खर्च करने पड़े।सरकार को जरूरतमंदों को 1736.94 करोड़ के अनुदान देने थे लेकिन वह केवल 1538.23 करोड़ के अनुदान ही दे पायी। हो सकता है कि अगले साल लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुये केन्द्र सरकार सचमुच उत्तराखण्ड के लिये डबल इंजन साबित हो। यही कामना उत्तराखण्डवासियों की है अन्यथा अगले वर्ष के बजट में कर्ज का बोझ और अधिक बढ़ जायेगा।



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