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Thursday, October 31, 2019

भारत के एकीकरण का ढोल पीटने वालों ने  मेनन  का नाम नहीं सुना 



भारत के राजनीतिक एकीकरण में मेनन की भी थी अहं भूमिका
-जयसिंह रावत
V P Menon
नेहरू का कद छोटा दिखाने के लिये मौजूदा सरकार सरदार पटेल की गगनचुम्बी प्रतिमा स्थापित करने के साथ ही आधुनिक भारत के निर्माण और राष्ट्रीय एकीकरण में उनकी एकमात्र भूमिका साबित करने के लिये कोई कसर नहीं छोड़ रही है मगर अखण्ड भारत के निर्माण में नेहरू ना सही मगर उसे वप्पला पंगुन्नी मेनन (पी.वी. मेनन) की भूमिका भी कहीं नजर नहीं रही है। जबकि सच्चाई यह है कि अगर सरदार पटेल का 5 सौ से अधिक रियासतों को जोड़ कर एक अखण्ड भारत बनाने का सपना था तो उस सपने का व्यवहारिक धरातल पर उतारने में महत्वपूर्ण भूमिका मेनन ने ही निभाई थी। वैसे भारत के एकीकरण में नेहरू और माउंटबेटन के विजन की अनदेखी हीं की जा सकती है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत का राजनीतिक भूगोल गढ़ने के लिये भारतवासी सदैव सरदार बल्लभ भाई पटेल के कृतज्ञ तो जरूर रहेंगे ही लेकिन सरदार पटेल के सपने को साकार करने वाले पी.वी. मेनन को अगर हम भूल जांय तो इससे बड़ी कृतघ्नता और कुछ नहीं होगी।
अगर भारत में 500 से ज्यादा देश होते तो ?
15 अगस्त 1947 को जब ब्रिटिश पार्लियामेंट द्वारा पारित भारत स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के तहत देश आजाद हुआ तो उसके साथ ही लगभग 565 देशी राज्य, जिनकी पैंरामौंटसी या सार्वभौम सत्ता ब्रिटिश ताज में निहित थी, ब्रिटिश नियंत्रण से मुक्त हो गये थे। विदित है कि 1857 की गदर के बाद जब ब्रिटिश सरकार ने भारत का शासन ईस्ट इंडिया कम्पनी से लेकर अपने अधीन किया तो अंग्रेजों ने देशी शासकों का राज्यहरण कर अपने में मिलाने के बजाय संधि के जरिये उनके साथ सुरक्षा और सहयोग की गारण्टी के बदले उनकी पैरामौंटसी ब्रिटिश ताज में निहित करना शुरू कर दिया था। इस संधि के तहत सुरक्षा, विदेशी मामले और संचार जैसे कुछ विषयों को अपने हाथ में लेकर ब्रिटिश शासन ने बाकी सारे अधिकारों समेत अपने राज्य में शासन करने का अधिकार देशी शासकों को दे दिया था। लेकिन भारत स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के तहत भारत को स्वतंत्रता मिलने के साथ ही देशी शासकों के साथ अंग्रेजी शासन की वह संधि भी समाप्त हो गयी थी। इसलिये सार्वभौम सत्ता को पुनः वापस पा चुके राज्यों को भारत संघ में मिलाना अत्यंत कठिन कार्य था जिसे सरदार बल्लभ भाई पटेल, उनके अधीन देशी राज्यों के मामलों के सचिव पी.वी. मेनन और स्वयं गर्वनर जनरल माउंटबेटन ने बेहद चुतराई, हिम्मत और दृढ़ इच्छा शक्ति से संभव बनाया। जम्मू-कश्मीर का घटनाक्रम हमारे सामने है। सिक्कम को बड़ी मुश्किल से चीन ने भारत का अंग माना, मगर उसी अरुणाचल का भारत के साथ होना अभी भी नहीं पचता है। अगर सरदार पटेल और पी.वी. मेनन की जोड़ी माउंटबेटन के सहयोग और जवाहर लाल नेहरू के वरदहस्त से उस समय भारत के एकीकरण में कामयाब नहीं होती तो कल्पना की जा सकती है कि आज भारत की स्थिति क्या होती!

विलय के लिय देेशी राज्यों को शनैः शनैः साधा गया
भारत जब आजाद हुआ तो उस समय गृहमंत्री सरदार पटेल और मेनन ने बहुत ही चतुराई से ऐसा इंस्टूªमेंट ऑफ एक्सेशन का संधिपत्र तैयार किया किया जिस पर देशी राज्यों के शासक जल्दी सहमत हो गये और हैदारबाद, ट्रावनकोर और गोवा जैसे जो राज्य सहमत नहीं हुये उन्हें सहमत होने के लिये विवश कर दिया गया। इस संधि के तहत देशी शासकों को सुरक्षा, यातायात, संचार और वैदेशिक मामलों के अलावा पूर्ण स्वायत्तता दी गयी जिससे वे भारत गणराज्य के साथ बने रहने के लिये पाबंद हो गये। महाराजा हरिसिंह के साथ हुयी यही संधि आज जम्मू-कश्मीर के मामले में भारत के पास एक पुख्ता दस्तावेज है, जिस पर मेनन ने ही हस्ताक्षर कराये थे। उसके बाद धीरे-धीरे ऐसा वातावरण तैयार किया गया कि राजा-महाराजाओं वाला प्रोटोकाल तो रहने दिया मगर खर्च चलाने के लिये प्रिवीपर्स की व्यवस्था कर राज्यों का पूर्ण विलय कर दिया गया। माउंटबेटन द्वारा हस्ताक्षरित इंस्टूªमेंट ऑफ एक्सेशन की संधि से पहले राजाओं से ‘‘स्टैंड स्टिल’’ संधि पर हस्ताक्षर करवा लिये गये थे, जिस पर भारत सरकार की ओर से पी.वी.मेनन के ही हस्ताक्षर थे। उस समय पटेल ने देशी शासकों का ध्यान राष्ट्रभक्ति की ओर आकर्षित करते हुये कहा था कि, ‘‘हम इतिहास के एक अत्यन्त महत्वपूर्ण युग में हैं और आपस में मिल कर हम देश को पुनः उन्नति के शिखर तक पहुंचा सकते हैं। एकता के अभाव में हम नई विपत्तियों में फंस सकते हैं। एकता के सूत्र में बंधे तो घोर अव्यवस्था फैलेगी जो कि छोटे-बड़े सभी को नष्ट कर देगी।’’
माउंटबेटन ने भी पटेल की राह आसान की
इसके बाद 25 जुलाइ 1947 कोचैम्बर और प्रिंसेजकी बैठक में माउंटबेटन ने सरदार पटेल का यही अनुरोध दुहराते हुये साफ कहा कि अब ब्रिटिश सरकार देशी राज्यों की मदद के लिये नहीं आयेगी और इन राज्यों की जो व्यवस्था ब्रिटिश सरकार के साथ थी वही अगर नयी भारत सरकार के साथ नहीं बनायी गयी तो ऐसी अव्यवस्था फैलेगी जिसका सबसे बुरा प्रभाव देशी राज्यों पर पड़ेगा। माउंटबेटन ने साफ कहा था कि जिस प्रकार राजा अपनी प्रजा को छोड़ कर नहीं जा सकते उसी प्रकार आप अपने पड़ोसी भारत गणराज्य को छोड़ कर अन्यत्र जाने की नहीं सोच सकते। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी साफ कह दिया था कि भारत किसी भी देशी राज्य को स्वतंत्र रहने की मान्यता नहीं देगा और अगर किसी विदेशी सरकार ने ऐसा किया तो उसे भारत के साथ शत्रुतापूर्ण कार्यवाही माना जायेगा। इसका नतीजा यह हुआ कि 15 अगस्त 1947 तक जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर जैसे कुछ बड़े राज्यों को छोड़ कर लगभग 136 राज्यों ने इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन संधि पर हस्ताक्षर कर लिये थे।
देशी शासक संविधान सभा में आने को विवश किये गये
कैबिनेट मिशन की संस्तुतियों के आधार पर भारतीय संविधान का निर्माण करने वाली संविधान सभा का गठन जुलाई, 1946 ई० में किया गया। संविधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या 389 निश्चित की गई थी, जिनमें 292 ब्रिटिश प्रांतों के प्रतिनिधि, 4 चीफ कमिश्नर क्षेत्रों के प्रतिनिधि एवं 93 देशी रियासतों के प्रतिनिधि थे। जवाहर लाल नेहरू ने उस समय देशी राज्यों के शासकों से संविधानसभा में अपने प्रतिनिधि भेजने का अनुरोध किया तो अपना स्वतंत्र और सार्वभौम अस्तित्व बनाये रखने के इरादे से कई शासकों ने नेहरू के अनुरोध पर रुचि नहीं दिखाई। देशी शासकों की संस्थाचैम्बर ऑफ प्रिंसेज,’ जिसेनरेन्द्र मण्डलभी कहा गया, के चान्सलर एवं भोपाल के नवाब ने केवल इसका विरोध किया अपितु चैम्बर से इस्तीफा तक दे दिया। फिर भी बीकानेर के महाराजा ने सबसे पहले अपने प्रतिनिधि भेजे। उसके बाद महाराजा पटियाला ने अपने प्रतिनिधि भेजे तो फिर  28 अपैल 1947 तक बड़ोदा, जयपुर, कोचीन तथा रीवा आदि के प्रतिनिधि में संविधान सभा में शामिल हो गये। इधर भेपाल के नवाब की जगह पर पटियाला के महाराजा को नरेन्द्र मण्डल का चांसलर चुन लिया गया, जिन्होंने भारत के हित में कई कार्य किये। इस प्रकृया में भी सरदार पटेल और मेनन का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
साधारण क्लर्क से टॉप सिविल सर्वेंट बने पी.वी. मेनन
30 सितम्बर 1893 को मद्रास प्रेसिडेंसी के ओट्टापलम में एक शिक्षक के घर जन्मे वप्पला पंगुन्नी मेनन ने रेल इंजन में कोयला झोंकने वाले कर्मचारी के रूप में कार्य करने तथा  एक तम्बाकू कम्पनी में क्लर्क के रूप में  कार्य करने के बाद इंडियन सिविल सर्विस में एक कनिष्ठ पद से अपने कैरियर की शुरूआत की। अपनी मेहनत, लगन और असाधारण प्रतिभा के बल पर वह भारतीय सिवल सेवा के शीर्ष तक पहुंचे। वह अंतिम तीन ब्रिटिश वायसरायों के संवैधानिक सलाहकार एवं राजनीतिक सुधार आयुक्त रहे। उन्होंने सरदार पटेल के साथ भारत के एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी असाधारण सेवाओं के लिये ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 1941 में राव बहादुर की पदवी देने के बाद 1946 में इंडियन सिविल सर्विस काडर  भी दे दिया। माउंटबेटन के राजनीति सलाहकार के रूप में मेनन की असाधारण क्षमता सरदार पटेल की नजरों में गयी और उन्होंने 1947 में गृहमंत्री बनने पर मेनन को देशी राज्यों से संबंधित बेहद चुनौतीपूर्ण विभाग में सचिव के तौर पर ले लिया।
पटेल के दाहिने हाथ माने जाते थे मेनन
जोधपुर के महाराजा हनवन्त सिंह और माउंटबेटन ने जब इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर हस्ताक्षर किये तो उस बैठक में मेनन भी मौजूद थे। वह संधि बहुत चतुराई से की गयी थी। मेनन ने अपनी पुस्तक ‘‘ पालिटिकल इंटीग्रेशन ऑफ इंडिया’’ में लिखा है कि हस्ताक्षर के बाद माउंटबेटन कमरे से बाहर निकले तो महाराजा और मेनन ही कमरे में रह गये थे। महाराज हनवन्त सिंह मेनन से इतने क्रोधित हो उठे कि उन्होंने यह कहते हुये कि मैं तम्हारे इशारे पर चलने वाला नहीं हूं, अपनी पिस्तौल मेनन पर तान दी। इस पर मेनन ने दो टूक शब्दों में कह दिया कि मुझे धमकाना आपको महंगा पड़ेगा और अब संधि हो चुकी है जिसे किसी भी हाल में निरस्त नहीं किया जायेगा। सरदार पटेल के साथ मेनन का जुड़ाव बहुत मजबूत था। पटेल मेनन पर बहुत विश्वास करते थे और उनकी प्रतिभा का आदर भी करते थे। इसी वजह कई बार मेनन अपने बॉस के निर्देशों से भी आगे जा कर कदम उठा देते थे, जिसे बाद में पटेल का भरपूर समर्थन मिल जाता था। जबकि नेहरू समेत तत्कालीन राजनीतिक शासक अंग्रेजों के जमाने की नौकरशाही पर ज्यादा विश्वास नहीं करते थे। मेनन देशी राजाओं के साथ पटेल के प्रतिनिधि के तौर पर विलय सम्बन्धी डील किया करते थे। उन्हें इन शासकों को शाम दाम दण्ड भेद से काबू करने की महारत हासिल थी।
असाधारण कूटनीतिज्ञ और साहसी प्रशासक थे मेनन
मेनन केवल कूटनीतिज्ञ ही नहीं बल्कि एक दृढ़ प्रशासक भी थे। उन्होंने जूनागढ़ और हैदराबाद के बेकाबू नबाबों को साधने में सैन्य विकल्प के लिये पटेल के लिये रणनीति बनायी। उन्होंने पाकिस्तान और कश्मीर के कबाइली हमले के बारे में भी नेहरू और पटेल के सलाहकार की भूमिका अदा की। कैबिनेट ने 26 एवं 27 अक्टूबर 1947 को कश्मीर के महाराजा हरिसिंह से इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर हस्ताक्षर कराने के लिये जम्मू भेजा था। हालांकि इस कार्य में उन्हें जम्मू के दो चक्कर लगाने पड़े मगर वह अन्ततः हरिसिंह से संधिपत्र पर हस्ताक्षर कराने में कामयाब रहे। इस संधि के बाद हरिसिंह चाहते हुये भी भारत संघ के साथ बने रहने के लिये पाबंद हो गये थे। उसी का नतीजा है कि जम्मू-कश्मीर आज भारत का अभिन्न अंग है।
पटेल के साथ अटूट सम्बन्ध थे मेनन के
ब्रिटिश इंडिया के इतर देशी राज्यों में कांग्रेस के बजाय उसी का आनुसंगिक संगठन अखिल भारतीय लोक परिषद सक्रिय था। परिषद के पहले अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू और दूसरे अध्यक्ष पट्टाभि सीतारमैया रहे। इसी परिषद की छत्रछाया में राज्यों के प्रजा मण्डल सक्रिय थे। मेनन ने इन प्रजामण्डलों के जरिये देशी शासकों को भारत संघ में विलय के लिये मजबूर किया। पटेल के साथ मेनन के इतने विश्वासपूर्ण और अटूट सम्बन्ध थे कि 1950 में पटेल की मृत्यु के बाद मेनन ने भी भारतीय प्रशासनिक सेवा से सेवाविृत्ति ले ली। वह कुछ समय के लिये 1951 में उड़ीसा के राज्यपाल भी रहे।
  जयसिंह रावत
-11, फ्रेंड्स एन्कलेव, शाहनगर
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून।
9412324999