मुजफ्फरनगर काण्ड: गांधी जयन्ती पर खून के धब्बे
-जयसिंह रावत
दशकों के जनसंघर्षों
के बाद भारतीय
गणतंत्र के 27वें
राज्य के रूप
में अस्तित्व में
आने वाला उत्तराखण्ड
राज्य शीघ्र ही
अपने जीवनकाल के
20वें वर्ष में
प्रवेश करने जा
रहा है। इन
19 वर्षों में राजनीतिक
नेताओं के लिये
विधायकी की 70 सीटें और
मुख्यमंत्री सहित मंत्रिमण्डल
के 12 पदों तथा
मंत्रियों के जैसे
ठाटबाट वाले सकेड़ों
पद श्रृजित हो
गये। मगर जिन
लोगों ने इस
राज्य की मांग
के लिये अपनी
जानें कुर्बान कर
दीं और जिन
आन्दोलनकारी महिलाओं की आबरू
तक लुट गयी
उन्हें 25 साल बाद
भी न्याय नहीं
मिला। उत्तराखण्ड आन्दोलन
के दौरान हुये
सरकारी दमन को
इलाहाबाद हाइकोर्ट ने राज्य
प्रायोजित आतंकवाद बताया था।
सीबीआइ ने मुजफ्फरनगर
के जैसे काण्डों
की जांच कर
मामले अदालत में
तो डाल दिये
मगर एक भी
बलात्कारी या हत्यारे
को सजा नहीं
हुयी। इस काण्ड
ने सारे देश
को दहला दिया
था और उसी
के बाद न
केवल उत्तराखण्ड बल्कि
झारखण्ड और छत्तीसगढ़
राज्यों के गठन
का रास्ता खुला।
गांधी जयन्ती पर
हुये
बलात्कार
और
खूनखराबा
विश्व को सत्य
अहिंसा और प्रेम
का पाठ पढ़ाने
वाले महात्मा गांधी
की जयन्ती पर
जब 2अक्टूबर 1994 को
सारा देश गांधी
जयन्ती मना रहा
था तो उत्तर
प्रदेश के मुजफ्फरनगर
जिले के रामपुर
तिराहे पर उत्तराखण्ड
राज्य की मांग
को लेकर दिल्ली
जा रहे कई
आन्दोलनकारियों की लाशें
बिछी हुयीं थी
तो पुलिस की
लाठी-गोलियों के
शिकार कई लोग
सड़क और खेतों
में तड़प रहे
थे, जबकि बलात्कार
की शिकार महिलाएं
सदमें में बदहवास
भटक रहीं थीं।
छेड़छाड़ की भी
ऐसी दरिन्दगी कि
पीड़ित आन्दोलनकारी महिलाएं
न तो अपने
घावों को दिखा
पा रहीं थीं
और ना ही
दर्द को चाहते
हुये भी छिपा
पा रहीं थीं।
एक राष्ट्रीय राजमार्ग
पर हजारों लोगों
की उपस्थिति में
उत्तर प्रदेश पुलिस
का ऐसा बहसीपन
पहले न तो
देखा गया था
और ना ही
सुना गया था।
इस काण्ड के
बाद सम्पूर्ण उत्तराखण्ड
में 20 हजार से
अधिक लोग गिरफ्तार
हुये और कई
पुलिस गोलीबारी में
मारे गये। इस
आन्दोलन के बाद
चार नये राज्य
अस्तित्व में आ
गये मगर 25 साल
गुजरने के बाद
भी आज तक
बलात्कारियों, हत्यारों, साजिशकर्ताओं को
सजा नहीं मिल
सकी।
पुलिसकर्मियों ने
इज्जत
भी
लूटी,
गहने
भी
लूटे
इलाहाबाद हाइकोर्ट के आदेश
पर सीबीआइ ने
अपनी जांच रिपोर्ट
में कहा था
कि 2 अक्टूबर 1994 की
प्रातः लगभग 5.30 बजे देहरादून
और आसपास के
इलाकों से आई
53 से अधिक बसें
रामपुर तिराहे पर पहुंची
और उनमें सवार
आन्दोलनकारी पिछली रात्रि से
वहां पर रोके
गये लगभग 2000 रैली
वालों से आकर
मिल गये। पहाड़
से आयी बसों
से यात्रा कर
रहीं 17 आन्दोलनकारी महिलाओं ने
आरोप लगाया कि
उस रात पुलिसकर्मियों
ने लाठी चार्ज
करने के बाद
उनसे छेड़छाड़ की
और बड़ी संख्या
में आन्दोलनकारियों को
गिरफ्तार कर लिया।
कुछ महिलाओं ने
सीबीआइ को बताया
कि कुछ पुलिसकर्मियों
ने बसों में
चढ़ कर महिलाओं
से छेड़छाड़ की।
इनमें से 3 महिलाओं
ने कहा कि
उनके साथ बसों
के अन्दर ही
वर्दीधारियों ने बलात्कार
किया, जबकि 4 अन्य
का आरोप था
कि उन्हें बसों
से खींच कर
नजदीक गन्ने के
खेतों में ले
जाया गया और
वहां बलात्कार किया
गया। ये सारी
वारदातें मध्य रात्रि
12 बजे से लेकर
2 अक्टूबर सुबह 3 बजे के
बीच हुयीं। महिलाओं
ने पुलिसकर्मियों पर
उनके हाथों की
घड़ियां, गले की
सोने की चेन
और नकदी लूटने
का आरोप भी
लगाया। सीबीआइ को एक
होटल के मालिक
ने बताया कि
पुरुष पुलिसकर्मी आन्दोलनकारी
तलाशी के नाम
पर महिलाओं के
शरीर टटोल रहे
थे। रामपुर तिराहे
के निकटवर्ती गावों
के 70 चश्मदीद गवाहों
ने बताया कि
महिला आन्दोलनकारियों ने
उन्हें छेड़छाड़ और अशोभनीय
पुलिस व्यवहार की
जानकारी दी थी।
महिला आयोग की
जांच
में
सामने
आई
निर्लजतम्
हकीकत
मुजफ्फरनगर
काण्ड कितना विभत्स
था इसकी एक
बानगी सुश्री जयन्ती
पटनायक के नेतृत्व
वाली राष्ट्रीय महिला
आयोग की जांच
रिपोर्ट की समरी
से मिल जाती
हैः- ‘‘कई महिलाओं
के साथ उनके
बच्चे और युवा
लड़कियां भी थीं।
उन्होंने बताया कि उस
रात पुलिसकर्मियों ने
गन्ने के खेतों
तथा पेड़ों पर
पोजिशन ले रखी
थी। हमने देहरादून
में कुछ महिलाओं
की टांगों पर
पुलिस के डण्डों
के प्रहार से
हुये नीले निशान
भी देखे। वास्तव
में उनमें से
एक महिला की
जांघ के ज्वाइंट
पर गंभीर चोट
लगी थी। एक
गवाह ने हमें
मुजफ्फरनगर में पुलिस
द्वारा हाथापाई के दौरान
फाड़े गये अपने
वस्त्र भी दिखाये।
देहरादून में एक
महिला ने हमें
असाधारण रूप से
सूजे हुये अपने
स्तन दिखाये जिन
पर पुलिसकर्मियों की
दरिन्दगी (मोलेस्टेशन) के नीले
निशान घटना के
एक सप्ताह बाद
भी साफ नजर
आ रहे थे।
गोपेश्वर में एक
महिला ने हमें
बताया कि उसने
2 अक्टूबर प्रातः लगभग 9.30 बजे
एक महिला को
मुजफ्फरनगर अस्पताल में निर्वस्त्र
ठिठुरते हुये देखा
जो कि अपने
हाथों से अपनी
लाज ढकने का
प्रयास कर रही
थी। पहले ही
उल्लेख किया जा
चुका है कि
कुछ महिलाएं उस
रात पेटीकोट में
ही बदहवास भाग
रहीं थीं। अधिकांश
महिलाओं ने बताया
कि पुलिसकर्मियों ने
उनके ब्लाउज के
अंदर हाथ डाले,
उनसे हाथापाई की,
उनके सोने के
आभूषण और नकदी
छीन ली। संक्षेप
में कहा जाय
तो उस रात
ने पुलिस का
सबसे गंदा आचरण
देखा। पुरुष पुलिसकर्मी
बेकाबू हो कर
महिलाओं की लज्जाभंग,
लूटपाट, उनसे मारपीट,
गाली गलौच और
दुष्कर्म पर उतर
आये। यह सब
उस दिन हुआ
जिस दिन अहिंसा
के प्रतीक महात्मा
गांधी का जन्मदिन
था।’’
गोलियां अफसरों ने
बरसाई
और
फंसाए
छोटे
कर्मचारी
लेकिन जांच के
दौरान सीबीआइ को
अपने बयान में
छोटे रैंक के
6 पुलिसकर्मियों ने बताया
कि उन्होंने रैली
वालों पर कोई
फायरिंग नहीं की
मगर उच्च अधिकारियों
ने उन पर
रैली वालों पर
गोलियां चलाने की बात
स्वीकार करने के
लिये दबाव डाला।
इन पुलिस कर्मियों
में हेड कांस्टेबल
नं0-158 सीपी सतीश
चन्द्र, नं0-715 सीपी चमन
त्यागी, एवं कांस्टेबल
महाराज सिंह शामिल
थे। एक कांस्टेबल
नं0-90 एपी सुभाष
चन्द्र ने सीबीआइ
को बताया कि
उसे तो आटोमेटिक
हथियार चलाना भी नहीं
आता है। वह
सीओ मण्डी जगदीश
सिंह के साथ
सिक्यौरिटी ड्यूटी पर था
और डीएसपी जगदीश
सिंह ने ही
उसकी स्टेनगन से
फायरिंग की थी।
फायरिंग में 5 लोग मारे
गये थे और
23 अन्य घायल हो
गये थे। कांस्टेबल
सुभाष चन्द्र ने
आगे बताया कि
मुजफ्फरनगर के एस.पी राजेन्द्र
पाल सिंह ने
एक कांस्टेबल से
रायफल छीन कर
फायरिंग की। उसने
डीएसपी गीता प्रसाद
नैनवाल एवं एडिशनल
एस.पी के
गनर को आटोमेटिक
हथियार से भीड़
पर फायरिंग करते
देखा।
कुकर्म छिपाने के
लिये
रिकार्ड
में
हेराफेरी
इस विभत्स काण्ड की
तह तक जाने
के लिये सीबीआइ
द्वारा मुजफ्फरनगर पुलिस के
रिकार्ड की जांच
की गयी तो
जिला पुलिस की
जनरल डायरी इश्यू
रजिस्टर में ओवर
राइटिंग पायी गयी
थी। पुलिस सटेशनों
को जारी जनरल
डायरी संख्या 7 को
बदल दिया गया
था। मुजफ्फरनगर पुलिस
लाइन की जनरल
डायरी का पेज
संख्या 479571 गायब मिला।
डुप्लीकेट जनरल डायरी
के 200 पृष्ठों में से
केवल 199 पृष्ठ ही डायरी
में पाये गये।
रामपुर तिराहे पर महिला
पुलिस की तैनाती
के सम्बन्ध में
नयी मण्डी थाने
की जनरल डायरी
में ओवर राइटिंग
मिली। 3 अक्टूवर 1994 को जिला
कण्ट्रोल रूम
में दर्ज संदेश
में कहा गया
था कि सभी
जनरल डायरियां एस.पी मुजफ्फरनगर
के गोपन कार्यालय
को तत्काल भेज
दी जांय। जांच
में पुलिस अधीक्षक
राजेन्द्र पाल सिंह
के रीडर सब
इंस्पेक्टर इन्दुभूषण नौटियाल द्वारा
आरोपियों को बचाने
के लिये रिकार्ड
में हेराफेरी किये
जाने की बात
भी सामने आयी।
पुलिस ने अपने
ही
अफसर
को
मरवाया
सीबीआइ की जांच
रिपोर्ट के अनुसार
2 सितम्बर की प्रातः
मसूरी के झूलाघर
में हुयी पुलिस
फायरिंग में 2 महिलाओं समेत
6 लोगों की मौत
हो गयी। मृतक
महिलाओं में श्रीमती
हंसा धनाई और
श्रीमती बेलमती चौहान शामिल
थीं। उपाधीक्षक उमाकांत
त्रिपाठी जो कि
घायलों के साथ
इलाज के लिये
सेंट मैरी अस्पताल
गये थे, की
मौत अस्पताल के
बाहर हो गयी।
पुलिस ने अपने
घायल अफसर उमाकांत
त्रिपाठी की जान
बचाने के बजाय
उसे जानबूझ कर
घायल आन्दोलनकारियों के
साथ जीप में
ठूंस कर बिना
सुरक्षा के अस्पताल
भेज दिया। इस
घटना में 48 आन्दोलनकारी
गिरफ्तार किये गये
जिन्हें बरेली जेल भेज
दिया गया। ये
आन्दोलनकारी 6-9- 1994 को रिहा
किये गये। सीबीआइ
के अनुसार 1 सितम्बर
1994 को हुये खटीमा
गोलीकाण्ड में 7 आन्दोलनकारी मारे
गये मगर पुलिस
ने केवल 3 के
मरने की पुष्टि
की और उन
तीनों के शव
भी परिजनों को
नहीं दिये जबकि
4 अन्य के शवों
को कहीं ठिकाने
लगा दिया गया।
उत्तराखण्ड में 20 हजार
से
अधिक
हुये
थे
गिरफ्तार
केन्द्रीय जांच ब्यूरो
(सीबीआइ) द्वारा इलाहाबाद हाइ
कोर्ट में दाखिल
की गयी दूसरी
रिपोर्ट के पृष्ठ
2 और 3 में दिये
गये विवरण एवं
उत्तर प्रदेश सरकार
के एडवोकेट द्वारा
हाइकोर्ट में जमा
रिपोर्टों के अनुसार
18 अगस्त 1994 से लेकर
9 दिसम्बर 1994 तक चमोली,
टिहरी गढ़वाल, उत्तरकाशी,
अल्मोड़ा, देहरादून, नैनीताल, पिथौरागढ़
एवं पौड़ी गढ़वाल
जिलों में कुल
20,522 गिरफ्तारियां की गयीं
जिनमें से 19,143 लोगों को
उसी दिन रिहा
कर दिया गया
जबकि 1,379 को जेलों
में भेजा गया।
इनमें से भी
398 लोगों को पहाड़ों
से बहुत दूर
बरेली, गोरखपुर, आजमगढ़, फतेहगढ़,
मैनपुरी, जालौन, बांदा, गाजीपुर
बलिया और उन्नाव
की जेलों में
भेजा गया। हाइकोर्ट
ने पहाड़ के
इन आन्दोलनकारियों को
उनकी गिरफ्तारी के
स्थान से 300 से
लेकर 800 किमी दूर
तक की जेलों
में भेजे जाने
पर राज्य सरकार
की नीयत पर
भी सवाल उठाया।
25 साल
बाद
भी
बलात्कारी
व
हत्यारों
को
सजा
नहीं
इलाहाबाद उच्च न्यायालय
के 12 जनवरी 1995 के
आदेशानुसार सीबीआइ ने विभिन्न
वारदातों में 64 मामलों की
विवेचना की थी
जिसके पश्चात सीबीआइ
ने 43 मामलों में
आरोप पत्र दाखिल
किये इन 43 मामलों
में 3 मामलों में
निर्णय हो चुका
था उनमें किसी
को सजा नहीं
हुयी थी शेष
40 मामले सुनवाई के विभिन्न
चरणों में थे।
इन आरोपियों में
डीएसपी गीता प्रसाद
नैनवाल और सब
इंस्पेक्टर इन्दुभूषण नौटियाल भी
शामिल थे। नैनवाल
पर एसपी राजेन्द्र
पाल सिंह के
साथ ही एक
सिपाही की स्टेनगन
छीन कर आन्दोलनकारियों
पर गोलियां बरसाने
का आरोप था
और नौटियाल पर
अरोपियों को बचाने
के लिये पुलिस
रिकार्ड में हेराफेरी
का आरोप था।
हैरानी का विषय
यह है कि
राज्य गठन के
बाद गीता प्रसाद
नैनवाल के रिटायर
होने पर उन्हें
पुलिस ट्रेनिंग के
विशेषज्ञ के तौर
पर उत्तराखण्ड पुलिस
के मुख्यालय में
पुनर्नियुक्ति दी गयी।
साजिश से भी
पर्दा
नहीं
उठ
सका
खटीमा और मसूरी
गोलीकाण्डों के बाद
अगर दिल्ली पुलिस
को आन्दोलनकारियों के
हथियार ले कर
दिल्ली रैली में
भाग लेने की
गलत सूचना नहीं
दी जाती तो
मुजफ्फरनगर काण्ड नहीं होता।
दिल्ली पुलिस को ऐसी
खतरनाक सूचना देने वाले
का चेहरा आज
तक बेनकाब नहीं
हो सका। दिल्ली
पुलिस के तत्कालीन
उपायुक्त दीपचन्द द्वारा आन्दोलनकारी
नेता दिवाकर भट्ट
को 30 सितम्बर 1994 को
लिखी गई चिðी में
कहा गया था
कि गढ़वाल के
सांसद मेजर जनरल
(सेनि) भुवनचन्द्र खण्डूड़ी ने
पूर्व सैनिकों से
बावर्दी दिल्ली रैली में
भाग लेने की
अपील की थी।
चिðी में
हथियार लेकर आन्दोलनकारियों
के पहुंचने की
संभावना व्यक्त की गयी
थी। लेकिन बाद
मंे स्वयं तत्कालीन
गृहमंत्री एस बी
चह्वाण ने न
केवल खण्डूड़ी को
क्लीन चिट दे
दी बल्कि उन
पर गलत आरोप
के लिये खेद
भी प्रकट किया।
सवाल उठता है
कि जब कुमाऊं
मण्डल के आन्दोलनकारी
रामपुर, मुरादाबाद एवं गाजियाबाद
होते हुये बेरोकटोक
सकुशल दिल्ली पहुंच
गये थे तो
फिर गढ़वाल से
आने वाले आन्दोलनकारियों
को ही क्यों
बंदूक की नोकों
पर रोका गया?
जयसिंह रावत
ई-11, फ्रैंड्स एन्कलेव, शाहनगर
डिफेंस कालोनी रोड,
देहरादून।
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