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Saturday, January 28, 2012

Uttarakhand Himalaya: KOTDWAR IS GOING TO CREATE HISTORY

Uttarakhand Himalaya: KOTDWAR IS GOING TO CREATE HISTORY: इतिहास रचने वाला है चक्रवर्ती भरत का कोटद्वार जयसिंह रावत , देहरादून। भारतवर्ष को अपना नाम देने वाले दुष्यंत और शकुन्तला...

KOTDWAR IS GOING TO CREATE HISTORY

इतिहास रचने वाला है चक्रवर्ती भरत का कोटद्वार

जयसिंह रावत, देहरादून।

भारतवर्ष को अपना नाम देने वाले दुष्यंत और शकुन्तला के पुत्र तथा कुरूवंश के आदि पुरूष चक्रवर्ती महाराजा भरत की क्रीडा और शिक्षा स्थली कण्वाश्रम की कोटद्वार सीट इस विधनसभा चुनाव में एक बार फिर इतिहास रचने जा रही है। इस सीट पर अगर मुख्यमंत्री भुवन चन्द्र खंडूड़ी चुनाव जीतते है तो वह 45 सालों के बाद इस क्षेत्र से चुनाव जीतने वाले पहले ब्राह्मण प्रत्याशी होंगे और अगर चुनाव हार जाते हैं तो पहले मुख्यमंत्री होंगे। शनिवार रात्रि एक भाजपा नेता की गाड़ी से वोटरों को बांटी जाने वाली शराब और नोट पकड़े जाने के बाद तो स्थिति और भी रोमंाचक हो गयी है।

उत्तराखंड की तीसरी निर्वाचित विधानसभा के चुनाव के लिए सारे मुद्दे खण्डूड़ी है जरूरी या मजबूरी के नारे पर टिक जाने के साथ ही उत्तराखंड ही नहीं बल्कि सारे देश की निगाह गढ़वाल के प्रवेश द्वार और कण्व ऋषि की तपोस्थली (कण्वाश्रम) कोटद्वार पर टिक गई है। लगभग 82 हजार मतदाताओं वाली इस विधानसभा सीट पर कुल 8 प्रत्याशी चुनाव मैदान में है जिनमें प्रदेश के मुख्यमंत्री भुवन चन्द्र खंडूड़ी भी एक है जिन्हें भाजपा केवल पहले ही अपना अगला मुख्यमंत्री घोषित कर चुकी है बल्कि उनके नाम से ही अन्य सीटों पर वोट भी मांग रही है। दूसरी ओर कांग्रेस ने अपने परखे हुए प्रत्याशी सुरेन्द्र सिंह नेगी को चुनाव मैदान में उतारा हुआ है। हालांकि सुरेन्द्र सिंह नेगी 2007 में हुए ध्ुमाकोट विधनसभा उपचुनाव में खंडूड़ी से हार गए थे लेकिन इस समय परिस्थितियां बिल्कुल अलग है क्योंकि कोटद्वार सुरेन्द्र सिंह नेगी का गढ़ होने के साथ ही एक ठाकुर बहुल निर्वाचन क्षेत्र है जहां से पिछले 44 सालों में आज तक कोई भी ब्राह्मण प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत पाया अगर इस समय भुवन चन्द्र खंडूड़ी यहां से चुनाव जीतते है तो यह अपने आप में एक इतिहास तो होगा ही लेकिन अगर उन्हें कांग्रेस के सुरेन्द्र सिंह नेगी पटकनी देकर चुनाव जीत जाते है तो उत्तराखंड के राजनीतिक इतिहास में एक और रोचक पन्ना जुड़ जाएगा।

हालांकि इस निर्वाचन क्षेत्र में 8 प्रत्याशी मैदान में है लेकिन मुख्य मुकाबला मुख्यमंत्री खंडूड़ी और कांग्रेस के सुरेन्द्र सिंह नेगी के बीच ही सिमट कर रह गया है। इस चुनाव में बसपा,उक्रांद और रक्षा मोर्चा के प्रत्याशी भी मैदान में है लेकिन उनकी भूमिका केवल इन दोनों दलों के चुनावी समीकरण को गड़बड़ाने के अलावा नजर नहीं रही है। प्रदेश के अन्य हिस्सों की तरह कोटद्वार में भी परिवर्तन की चर्चाएं काफी गर्म है लेकिन जब मतदाताओं के सामने केवल प्रदेश का मुख्यमंत्री हो और वह भी एक पार्टी का खेवनहार हो तो परिवर्तन की हवाएं स्वयं ही दम तोड देती है लेकिन राजनीतिक विश्लेषक कहते है कि उत्तराखंड की सर्वाधिक जातिवादग्रस्त सीट होने के कारण कोटद्वार खंडूड़ी के लिए आसान नहीं रह गया है। पिछले इतिहास का हवाला देते हुए चुनावी विश्लेषक मानते है कि सन् 1967 में आखिरी ब्राह्मण प्रत्याशी भैरवदत्त धूलिया इस क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीते थे। उस समय उन्होंने कांग्रेस के जगमोहन सिंह नेगी को हराया था। जगमोहन सिंह नेगी उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री भी थे। उस समय से लेकर उत्तराखंड राज्य के गठन तक कोटद्वार, लैन्सडौन विधानसभा क्षेत्र का ही अंग रहा। उस चुनाव के बाद गढ़वाल की राजनीति में जातिवाद का असर इतना फैला कि उसके बाद आज तक कोई ब्राहमण चुनाव नहीं जीत पाया।

इतिहास के पन्नों को अगर पलटा जाए तो 1967 में लैन्सडौन क्षेत्र से जगमोहन सिंह नेगी की हार के मात्र 2 साल बाद उनके बेटे चन्द्र मोहन सिंह नेगी ने 1969 में यह सीट दुबारा जीत कर अपने पिता की हार का बदला ले लिया। उसके बाद वह 1974,1977 और 1980 में इस क्षेत्रा से चुनाव जीत कर उत्तर प्रदेश में मंत्री रहे और अस्सी के दशक के बहुचर्चित गढ़वाल चुनाव में उन्होंने हेमवती नंदन बहुगुणा से जबरदस्त टक्कर ली और मात्रा 25 हजार वोट से हार गए। इस सीट पर उसके बाद उनकी विरासत सुरेन्द्र सिंह नेगी ने ही सम्भाली और वह 1985 में इस सीट से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए। सुरेन्द्र सिंह नेगी एक बार निर्दलीय और 2 बार कांग्रेस पत्याशी के रूप् में विधानसभा चुनाव जीते हैं।

कोटद्वार विधानसभा क्षेत्र की कुल जनसंख्या करीब 1 लाख 80 हजार है जिसमें 82 हजार से अध्कि मतदाता हैं। करीब 40 हजार महिला और 42 हजार पुरुष मतदाता हैं। जातिवादी समीकरणों से देखा जाए तो इस सीट पर 40 प्रतिशत ठाकुर, 20-22 प्रतिशत ब्राह्मण और शेष मुस्लिम, अनुसूचितजाति अनु सूचितजनजाति मतदाताओं की संख्या है। इस सीट पर मैदानी मूल के मतदाताओं की भी अच्छी खासी संख्या है। कोटद्वार विधनसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी भुवन चन्द्र खंडूड़ी और कांग्रेस प्रत्याशी सुरेन्द्र सिंह नेगी के बीच ही मुख्य मुकाबला माना जा रहा है, जबकि बसपा के राजेन्द्रसिंह आर्य और टीपीएस रावत के उत्तराखंड रक्षा मोर्चा,गीताराम सुन्द्रियाल तथा निर्दलीय प्रत्याशी राजेन्द्र आर्य के स्थान पर रहने की संभावना है। इस सीट पर आजतक कोई भी राष्ट्रीय नेता प्रचार के लिए नहीं आया है। भाजपा से राजनाथ, राशिद अली प्रदेश स्तरीय नेता ही यहां खंडूड़ी के प्रचार में आए, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में केन्द्रीय भूतल परिवहन मंत्री सीपी जोशी, दिल्ली की मुख्य मंत्री शीला दीक्षित, गढवाल सांसद सतपाल महाराज और टिहरी सांसद विजय बहुगुणा ही पहुंचे।

कोटद्वार-तराई भाबर से लेकर कालागढ़ और कुंभीखाल तक करीब 32 किमी में फैली यह सीट अविभाजित उत्तरप्रदेश के दौरान लैंसडौन विधनसभा में थी, लेकिन पृथक उत्तराखंड के गठन के बाद कोटद्वार विधानसभा सीट अस्तित्व में आई। नये परिसीमन के बाद विकासखंड दुगड्डा का घाड़ क्षेत्र यमकेश्वर विधानसभा में चला गया है। जिससे घाड़ क्षेत्र के करीब 10 हजार मतदाता इस सीट पर कम हो गये हैं। इसका कुछ नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ सकता है,किन्तु उत्तराखंड रक्षा मोर्चा के प्रत्याशी गीताराम सुन्दिरयाल भाजपा को नुकसान पहुंचा सकते है क्योंकि मोर्चा के पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल टीपीएस रावत का होने का के कारण कुछ फौजी वोटों पर जरूर असर डालेगा जिसका नुकसान सीधे - सीधे भाजपा प्रत्याशी को होगा। शनिवार की रात कोटद्वार भाबर में एक भाजपा नेता की गाड़ी से शराब पकड़े जाने के बाद स्थिति और भी रोमांचक हो गयी है। कांग्रेस प्रत्याशी का आरोप है कि भाजपा प्रत्याशी के लोग केवल सत्ता का दुरुपयोग कर रहे हैं बल्कि शराब और रुपये भी वोटरों को बांट रहे हैं।

KOTDWAR IS GOING TO CREATE HISTORY

इतिहास रचने वाला है चक्रवर्ती भरत का कोटद्वार
जयसिंह रावत, देहरादून।
भारतवर्ष को अपना नाम देने वाले दुष्यंत और शकुन्तला के पुत्र तथा कुरूवंश के आदि पुरूष चक्रवर्ती महाराजा भरत की क्रीडा और शिक्षा स्थली कण्वाश्रम की कोटद्वार सीट इस विधनसभा चुनाव में एक बार फिर इतिहास रचने जा रही है। इस सीट पर अगर मुख्यमंत्री भुवन चन्द्र खंडूड़ी चुनाव जीतते है तो वह 45 सालों के बाद इस क्षेत्र से चुनाव जीतने वाले पहले ब्राह्मण प्रत्याशी होंगे और अगर चुनाव हार जाते हैं तो पहले मुख्यमंत्री होंगे। शनिवार रात्रि एक भाजपा नेता की गाड़ी से वोटरों को बांटी जाने वाली शराब और नोट पकड़े जाने के बाद तो स्थिति और भी रोमंाचक हो गयी है।

उत्तराखंड की तीसरी निर्वाचित विधानसभा के चुनाव के लिए सारे मुद्दे खण्डूड़ी है जरूरी या मजबूरी के नारे पर टिक जाने के साथ ही उत्तराखंड ही नहीं बल्कि सारे देश की निगाह गढ़वाल के प्रवेश द्वार और कण्व ऋषि की तपोस्थली (कण्वाश्रम) कोटद्वार पर टिक गई है। लगभग 82 हजार मतदाताओं वाली इस विधानसभा सीट पर कुल 8 प्रत्याशी चुनाव मैदान में है जिनमें प्रदेश के मुख्यमंत्री भुवन चन्द्र खंडूड़ी भी एक है जिन्हें भाजपा न केवल पहले ही अपना अगला मुख्यमंत्री घोषित कर चुकी है बल्कि उनके नाम से ही अन्य सीटों पर वोट भी मांग रही है। दूसरी ओर कांग्रेस ने अपने परखे हुए प्रत्याशी सुरेन्द्र सिंह नेगी को चुनाव मैदान में उतारा हुआ है। हालांकि सुरेन्द्र सिंह नेगी 2007 में हुए ध्ुमाकोट विधनसभा उपचुनाव में खंडूड़ी से हार गए थे लेकिन इस समय परिस्थितियां बिल्कुल अलग है क्योंकि कोटद्वार सुरेन्द्र सिंह नेगी का गढ़ होने के साथ ही एक ठाकुर बहुल निर्वाचन क्षेत्र है जहां से पिछले 44 सालों में आज तक कोई भी ब्राह्मण प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत पाया । अगर इस समय भुवन चन्द्र खंडूड़ी यहां से चुनाव जीतते है तो यह अपने आप में एक इतिहास तो होगा ही लेकिन अगर उन्हें कांग्रेस के सुरेन्द्र सिंह नेगी पटकनी देकर चुनाव जीत जाते है तो उत्तराखंड के राजनीतिक इतिहास में एक और रोचक पन्ना जुड़ जाएगा।
हालांकि इस निर्वाचन क्षेत्र में 8 प्रत्याशी मैदान में है लेकिन मुख्य मुकाबला मुख्यमंत्री खंडूड़ी और कांग्रेस के सुरेन्द्र सिंह नेगी के बीच ही सिमट कर रह गया है। इस चुनाव में बसपा,उक्रांद और रक्षा मोर्चा के प्रत्याशी भी मैदान में है लेकिन उनकी भूमिका केवल इन दोनों दलों के चुनावी समीकरण को गड़बड़ाने के अलावा नजर नहीं आ रही है। प्रदेश के अन्य हिस्सों की तरह कोटद्वार में भी परिवर्तन की चर्चाएं काफी गर्म है लेकिन जब मतदाताओं के सामने न केवल प्रदेश का मुख्यमंत्री हो और वह भी एक पार्टी का खेवनहार हो तो परिवर्तन की हवाएं स्वयं ही दम तोड देती है लेकिन राजनीतिक विश्लेषक कहते है कि उत्तराखंड की सर्वाधिक जातिवादग्रस्त सीट होने के कारण कोटद्वार खंडूड़ी के लिए आसान नहीं रह गया है। पिछले इतिहास का हवाला देते हुए चुनावी विश्लेषक मानते है कि सन् 1967 में आखिरी ब्राह्मण प्रत्याशी भैरवदत्त धूलिया इस क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीते थे। उस समय उन्होंने कांग्रेस के जगमोहन सिंह नेगी को हराया था। जगमोहन सिंह नेगी उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री भी थे। उस समय से लेकर उत्तराखंड राज्य के गठन तक कोटद्वार, लैन्सडौन विधानसभा क्षेत्र का ही अंग रहा। उस चुनाव के बाद गढ़वाल की राजनीति में जातिवाद का असर इतना फैला कि उसके बाद आज तक कोई ब्राहमण चुनाव नहीं जीत पाया।

इतिहास के पन्नों को अगर पलटा जाए तो 1967 में लैन्सडौन क्षेत्र से जगमोहन सिंह नेगी की हार के मात्र 2 साल बाद उनके बेटे चन्द्र मोहन सिंह नेगी ने 1969 में यह सीट दुबारा जीत कर अपने पिता की हार का बदला ले लिया। उसके बाद वह 1974,1977 और 1980 में इस क्षेत्रा से चुनाव जीत कर उत्तर प्रदेश में मंत्री रहे और अस्सी के दशक के बहुचर्चित गढ़वाल चुनाव में उन्होंने हेमवती नंदन बहुगुणा से जबरदस्त टक्कर ली और मात्रा 25 हजार वोट से हार गए। इस सीट पर उसके बाद उनकी विरासत सुरेन्द्र सिंह नेगी ने ही सम्भाली और वह 1985 में इस सीट से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए। सुरेन्द्र सिंह नेगी एक बार निर्दलीय और 2 बार कांग्रेस पत्याशी के रूप् में विधानसभा चुनाव जीते हैं।

कोटद्वार विधानसभा क्षेत्र की कुल जनसंख्या करीब 1 लाख 80 हजार है जिसमें 82 हजार से अध्कि मतदाता हैं। करीब 40 हजार महिला और 42 हजार पुरुष मतदाता हैं। जातिवादी समीकरणों से देखा जाए तो इस सीट पर 40 प्रतिशत ठाकुर, 20-22 प्रतिशत ब्राह्मण और शेष मुस्लिम, अनुसूचितजाति व अनु सूचितजनजाति मतदाताओं की संख्या है। इस सीट पर मैदानी मूल के मतदाताओं की भी अच्छी खासी संख्या है। कोटद्वार विधनसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी भुवन चन्द्र खंडूड़ी और कांग्रेस प्रत्याशी सुरेन्द्र सिंह नेगी के बीच ही मुख्य मुकाबला माना जा रहा है, जबकि बसपा के राजेन्द्रसिंह आर्य और टीपीएस रावत के उत्तराखंड रक्षा मोर्चा,गीताराम सुन्द्रियाल तथा निर्दलीय प्रत्याशी राजेन्द्र आर्य के स्थान पर रहने की संभावना है। इस सीट पर आजतक कोई भी राष्ट्रीय नेता प्रचार के लिए नहीं आया है। भाजपा से राजनाथ, राशिद अली व प्रदेश स्तरीय नेता ही यहां खंडूड़ी के प्रचार में आए, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में केन्द्रीय भूतल परिवहन मंत्री सीपी जोशी, दिल्ली की मुख्य मंत्री शीला दीक्षित, गढवाल सांसद सतपाल महाराज और टिहरी सांसद विजय बहुगुणा ही पहुंचे।

कोटद्वार-तराई भाबर से लेकर कालागढ़ और कुंभीखाल तक करीब 32 किमी में फैली यह सीट अविभाजित उत्तरप्रदेश के दौरान लैंसडौन विधनसभा में थी, लेकिन पृथक उत्तराखंड के गठन के बाद कोटद्वार विधानसभा सीट अस्तित्व में आई। नये परिसीमन के बाद विकासखंड दुगड्डा का घाड़ क्षेत्र यमकेश्वर विधानसभा में चला गया है। जिससे घाड़ क्षेत्र के करीब 10 हजार मतदाता इस सीट पर कम हो गये हैं। इसका कुछ नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ सकता है,किन्तु उत्तराखंड रक्षा मोर्चा के प्रत्याशी गीताराम सुन्दिरयाल भाजपा को नुकसान पहुंचा सकते है क्योंकि मोर्चा के पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल टीपीएस रावत का होने का के कारण कुछ फौजी वोटों पर जरूर असर डालेगा जिसका नुकसान सीधे - सीधे भाजपा प्रत्याशी को होगा। शनिवार की रात कोटद्वार भाबर में एक भाजपा नेता की गाड़ी से शराब पकड़े जाने के बाद स्थिति और भी रोमांचक हो गयी है। कांग्रेस प्रत्याशी का आरोप है कि भाजपा प्रत्याशी के लोग न केवल सत्ता का दुरुपयोग कर रहे हैं बल्कि शराब और रुपये भी वोटरों को बांट रहे हैं।

Sunday, January 22, 2012

cleaning of politics from Badrinath

राजनीतिक सुचिता की गंगा निकलनी चाहिये बद्रीनाथ से

-जयसिंह रावत-

सतोपन्थ, याने कि स्वर्ग का मार्ग! जहां से पाण्डवों ने स्वर्गाराहण किया और जहां से करोड़ों हिन्दुओं की आस्था की प्रतीक गंगा की मुख्य धारा अलकनन्दा निकलती है! वहीं से हिन्दुओं के सर्वोच्च धाम बद्रीनाथ से धर्म और आध्यात्म की गंगा भी प्रवाहित होती है जो कि भारत ही नहीं सम्पूर्ण मानवता और जीवधारियों के कल्याण की प्रेरणा देती है। उस बद्रीनाथ से इस बार के विधानसभा चुनाव में ऐसी राजनीति की धारा बहनी चाहिये जिससे भ्रष्टाचार, अनाचार लूट खसोट के दलदल में फंसी राजनीति का उद्धार हो सके। इस देवभूमि से राजनीति के पाखण्डियों और गिरगिटों से मुक्ति मिलनी चाहिये, ताकि चमोली गढ़वाल में एक स्वस्थ राजनीति स्थापित हो सके और यह सीमान्त जिला पिछड़ेपन से मुक्ति पाकर प्रगति की सीढ़िया चढ़ सके। मतदाताओं को समझना होगा कि इस सीमान्त जिले की समस्याओं को और विकास की जरूरतों को वही नेता समझ सकते हैं जो कि राजनीति में लूटखसोट के लिये नहीं बल्कि समाज सेवा के लिये आते हैं।

अन्ना के आन्दोलन के बाद आज सारा देश भ्रष्टाचार को लेकर उद्वेलित है। देखा जाय तो आम आदमी भ्रष्टाचार से त्रस्त है।उत्तराखण्ड सरकार ने भी अपनी कमीज ज्यादा सफेद दर्शाने के लिये एक तथाकथित लोकायुक्त बिल पास करा दिया जोकि न तो व्यवहारिक है और ना ही संविधान की कसौटी पर खरा उतरता है। जिस दिन इस बिल का मसौदा कैबिनेट ने पास किया उसी दिन मैंने तमाम टेलिविजन चैनलों और अपने लेखों के माध्यम से राज्य सरकार के लोकायुकत की असलियत पाठकों और दर्शकों को बता दी थी। अन्ततः हुआ भी यही और खण्डूड़ी सरकार का चुनावी लोकायुक्त इतिहास के गर्त में चला गया। इसका हस्र यही होना था, क्योकि कानून का लक्ष्य भ्रष्टाचार दूर करना नहीं बल्कि चुनाव में स्वयं का ईमान्दार दिखाना था।

मेरा अभिप्राय यह है कि भ्रष्टाचार या समाज की कोई बुराई अकेले कानून के बल पर दूर नहीं हो सकती है। अगर ऐसा होता तो हर अपराध के लिये कानून ने फंासी से लेकर जेल और जुर्माने की सजा रखी हुयी है और उसके बाद भी अपराध रुक नहीं रहे हैं। जब तक समाज अपराध के खिलाफ खड़ा नहीं होता तब तक कानून अपराधों को समाप्त नहीं कर सकता है। इसी तरह भ्रष्टाचार भी कानून से नहीं मिटाया जा सकता है। भ्रष्टाचार तब तक दूर नहीं हो सकता है जब तक कि समाज भ्रष्टाचारियों और उनकी काली कमाई को सामाजिक मान्यता देना बन्द नहीं करता है। आप देख ही रहे हैं कि प्रदेश के नेता पिछले 11 सालों में आर्थिक उन्नति की छलांगें मारते मारते कहां से कहां पहुंच गये हैं। जो खपति था वह करोड़पति हो गया है। यही नहीं उसकी असली कमाई देखी जाय तो वह कई गुना अधिक हो गयी है। नेता खुले आम भ्रष्टाचार कर रहे हैं और उस कमाई से मतदाताओं को लुभाने के लिये कई तरह के हथकण्डे अपना रहे हैं। अगर इस तरह के हथकण्डों से ही समाज चलना है और इसी तरह राज्य के आर्थिक संसाधनों पर डाका डालने वालों को चुनाव जीतना है तो आप न तो भ्रष्टाचार से मुक्ति और ना ही क्षेत्र तथा प्रदेश की प्रगति की अपेक्षा कर सकते हैं। समाज में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलने का मुख्य कारण भ्रष्ट तरीकों और भ्रष्टाचार से अर्जित वैभव और के साथ ही उनके ठाठबाट को सामाजिक मान्यता मिलना है। समाज में उसी को ज्यादा इज्जत मिल रही है जो कि ऊपरी कमाई से रातों रात मालोमाल हो रहा हो। अगर भ्रष्टाचारियों को वोट देकर या उन्हें विधानसभा या फिर सरकार में पहुंचा कर उन्हें सम्मानित किया जाता है तो इससे भ्रष्टाचार कैसे दूर होगा और सदाचार की स्थापना कैसे हो सकेगी।

भ्रष्टाचार की गंगोत्री अगर आपको ढंूढनी है तो कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं है। वह हम सब के आसपास है और उसका नाम राजनीति ही है। जब सरकार चलाने वाले नेता भ्रष्ट होंगे तो आप सरकारी मशीनरी से कैसे ईमान्दारी की उम्मीद कर सकते हैं। जब सारा ही तंत्र भ्रष्ट हो तो फिर कैसे आप अच्छे कार्यों की उम्मीद कर सकते हैं। इसलिये अगर आपको सामाजिक जीवन की गंगा साफ करनी हो तो उसके लिये गंगोत्री से ही अभियान चलाना पड़ेगा और इसके लिये चुनाव से अच्छा मुहूर्त और कुछ नहीं हो सकता है। चुनावों में स्वच्छ छवि के साथ ही प्रत्याशियों का विजन और उनकी नीयत भी देखी जानी चाहिये। जो रानीतिक नेता कुर्सी के लिये कभी किसी को तो कभी किसी और को धोखा दे सकते हैं उनको तो जनता को ठगने के लिये लाइसेंस ही मिल जाता है। जिन नेताओं का दीन ईमान हर वक्त विकाऊ हो और जो कभी भी किसी भी दल में जाने के आदी हों, उनके लिये जनता का विश्वास नीलाम करना शगल बन जाता है। इसलिये मतदाताओं को सोचना चाहिये कि वे अपना विश्वास और मत राजनीतिक दलालों को दलाली के लिये क्यों दे रहे हैं?

वैसे तो सारे पहाड़ की पहाड़ जैसी समस्याऐं हैं। राज्य बनने के 11 साल बाद भी स्कूलों में मास्टर और अस्पतालों में डाक्टर नहीं हैं। भले शीर्ष स्तर पर तीन-तीन मुख्य सचिव, 5-5 पुलिस महानिदेशक और तीन-तीन प्रमुख वन संरक्षक हा,ें मगर गांव स्तर पर काम करने वाले विकास कर्मी वीएलडब्लु और ब्लाक स्तर पर बीडीओ नहीं हैं। लोग आज भी अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ रहे हैं। 5 हजार से अधिक गांवों में विकास की गाड़ी पैदल ही चल रही है। डेढ हजार गांवों ने बिजली नहीं देखी और हजारों बस्तियां पानी के लिये तरस रही हैं। पहाड़ में चमोली जैसे सीमान्त जिलों की हालत तो ज्यादा ही खराब है। मूलभूत सुविधाओं के अभाव के कारण लोग बड़े पैमाने पर पलायन कर रहे हैं। अब तो नेता भी पलायन करने लगे हैं। सीमान्त क्षेत्रों में पलायन के कारण राष्ट्रीय सुरक्षा भी खतरे में हैं। इसलिये जातिवाद, क्षेत्रवाद और सम्प्रदायवाद के संकीर्ण दायरों से ऊपर उठ कर ऐसे लोगों को चुनाव जिताने की जरूरत है जिनमें दूरदृष्टि और अनुभव हो।

चमोली जिले में कभी बद्री-केदार विधानसभा क्षेत्र होता था, जिसका प्रतिनिधित्व गंगाधर मैठाणी और नरेन्द्र सिंह भण्डारी जैसे नेताओं ने किया। उनके बाद उस विरासत को प्रताप सिंह पुष्पवाण,कुंवर सिंह नेगी और केदारसिंह फोनिया जैसे ईमान्दार और विद्वानों ने सम्भाला। नरेन्द्र सिंह भण्डारी लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे तो कुवर सिंह नेगी जानेमाने वकील रहे। पुष्पवाण एक विद्वान शिक्षक और प्रखर वक्ता थे। केदारसिंह फोनिया न केवल कई उच्च पदांे पर रहे बल्कि पर्यटन विशेषज्ञ भी रहे और उत्तर प्रदेश में भी कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। जिनकी पुस्तकों ने उत्तराखण्ड के पर्यटन विकास को दिशा दी। यह बात दीगर है कि एक निर्दलीय के ईमान की कीमत चुकाने के लिये भाजपा ने इतने अनुभवी नेता की बलि चढ़ा दी। बहरहाल बाद में रुद्रप्रयाग जिला बना तो बद्रीनाथ और केदारनाथ अलग हो गये और राज्य बनने पर तो कई विधानसभा क्षेत्र हो गये। फिर भी बद्रीनाथ विधानसभा क्षेत्र का महत्व कम नहीं हुआ। अब उम्मीद की जानी चाहिये कि मतदाता ऐसेे लोगों को चुनेंगे जो कि क्षेत्र का विकास करने के साथ ही उसकी गरिमा भी बढ़ायेंगें। कुछ नेताओं को गलतफहमी होती है कि खूब सारी काली कमाई जमा करो और फिर उस कमाई को चुनावों में झोंक कर जीत हासिल कर लो। इस तरह जिनका अपना ईमान बिकाऊ होता है वे आम आदमी के ईमान को भी बिकाऊ समझ बैठते हैं। इसलिये मतदाताओं को न केवल जातिवादियों, क्षेत्रवादियों और सम्प्रदायवादियों से सतर्क रहने की जरूरत है बल्कि धन पशुओं से भी बचने की जरूरत है।

जयसिंह रावत

9412324999

Saturday, January 21, 2012

Uttarakhand Himalaya: THERE IS A WOMAN BEHIND EVERY SUCCESSFUL MAN

Uttarakhand Himalaya: THERE IS A WOMAN BEHIND EVERY SUCCESSFUL MAN: पतियों के लिये पत्नियां भी जूझी हुयी हैं मोर्चे पर जयसिंह रावत,देहरादून। कहते हैं कि हर सफल पुरुष के पीछे एक महिला होती है। इस सच्चाई को...

THERE IS A WOMAN BEHIND EVERY SUCCESSFUL MAN

पतियों के लिये पत्नियां भी जूझी हुयी हैं मोर्चे पर

जयसिंह रावत,देहरादून।

कहते हैं कि हर सफल पुरुष के पीछे एक महिला होती है। इस सच्चाई को टिकट बांटते समय राजनीतिक दलों के आला कमानों ने तो महत्व नहीं दिया मगर फिर भी शक्तिस्वरूपा अर्धांगनियों की की ताकत का अहसास दिलाने के लिये उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव में खड़े जानेमाने प्रत्याशियों की पत्नियों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। मुख्यमंत्री से लेकर विधानसभा अध्यक्ष तक की जीवन संगनियां इन दिनों मौसम की बेरुखी को भी दरकिनार कर प्रचार के मोर्चे पर जूझी हुयी हैं।

गढ़वाल के प्रवेश द्वार कोटद्वार में अपने पति भुवन चन्द्र खण्डूड़ी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी देख कर उनकी जीवन संगिनी श्रीमती अरुणा खण्डूड़ी ने कोटद्वार का मोर्चा सम्भाल लिया है। विरोधियों द्वारा सुपर मुख्यमंत्री बताई जाने वाली अरुणा खण्डूड़ी गर्व से कहती हैं कि उनके पति फौज में रहे इसलिये उनकी जिम्मेदारी पहले सारे देश की थी लेकिन अब वह उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री हैं तो उनकी पत्नी होने के नाते उनकी जिम्मेदारी भी पूरे प्रदेश की हो गयी है। जातिवाद से ग्रस्त होती जा रही कोटद्वार सीट पर पति के लिये उत्पन्न गम्भीर खतरे को भांपते हुये अरुणा इन दिनों कोटद्वार में घर-धर जा कर पति के लिये वोट मांग रही है।

पत्नियों के हिसाब से सबसे रोचक मुकाबले वाली रुद्रप्रयाग सीट पर दोनों ही साडू भाई हरक सिंह रावत और मातबर सिंह कण्डारी एक दूसरे के दांव का इन्तजार कर रहें हैं। प्रतिपक्ष के नेता हरक सिंह रावत और राज्य के काबिना मंत्री मातबर सिंह कण्डारी की पत्नी सगी बहनें हैं। अगर एक बहन प्रचार में कूदती है तो दूसरी का कूदना भी तय है। वहां रोचक पहलू यह भी है कि तीसरी बहिन के पति प्रोफेसर राकेश कुवर उसी जिले में जनरल टीपीएस रावत के रक्षा मोर्चे का चुनाव अभियान के प्रभारी हैं।

देहरादून की कैंट सीट से भाजपा प्रत्याशी और विधानसभाध्यक्ष हरबंश कपूर की पत्नी सविता कपूर अपनी 35 सदस्यीय महिलाओं की टोली के साथ क्षेत्र में सक्रिय हैं। पति की जीत के लिये इन दिनों उनकी पूरी दिनचर्या ही बदल गई। मसूरी सीट से भाजपा प्रत्याशी गणेश जोशी की पत्नी निर्मला जोशी भी पड़ोसनों और रिश्तेदार महिलाओं के साथ प्रचार अभियान में कूदी हुयी हैं। धर्मपुर सीट से कांग्रेस प्रत्याशी दिनेश अग्रवाल की पत्नी भावना अग्रवाल चुनाव क्षेत्र में तो फिलहाल दिखाई नहीं दीं मगर उनके घर पर कार्यकताओं के खानपान से लेकर उनकी ड्यूटियों का पूरा ध्यान रख रही हैं। पिथौरागढ़ सीट से भाजपा प्रत्याशी प्रकाश पंत की पत्नी चंद्रा पंत का कहना है कि वह आवास में रहकर ही पति के चुनावी शेड्यूल देखती है।

प्रदेश की लगभग सभी हाट सीटों पर उलझे हुये प्रमुख प्रत्याशियों की जीवनसंगनियां इन दिनों अपने पतियों की सफलता के लिये सक्रिय हैं। कोटद्वार में अरुणा खण्डूड़ी ही नहीं बल्कि उधमसिंहनगर जिले के बाजुपर की सीट पर कांग्रेस अध्यक्ष यशपाल आर्य की पत्नी पुष्पा आर्य और डीडीहाट में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विशन सिंह चुफाल की पत्नी जानकी चुफाल भी कैसे चैन से घर में बैठी रह सकती है। श्रीमती जानकी भी इन दिनों जनसम्पर्क में जुटी हुयी हैं। इसी तरह प्रदीप बत्रा की पत्नी मनीषा बत्रा भी पति की जीत के लिये मैदान में डटी हुयी हैं।

ऐसा नहीं कि केवल पत्नियों को ही पतियों की चिन्ता हो। जितनी भी महिला प्रत्याशी मैदान में हैं उन सबके पति अपनी जीवनसंगनियों के लिये जी जान से जुटे हैं। यह बात दीगर है कि वे सतपाल महाराज की तरह भीड़ जुटाउ स्टार प्रचारक नहीं हैं। सतपाल महाराज इन दिनों अन्य कांग्रेस प्रत्याशियों की परवाह किये बगैर अमृता रावत के लिये दिन रात रामनगर की गलियों की खाक छान रहे है।। कुछ बेबस पति ऐसे भी हैं जो कि पत्नियों के लिये बहुत कुछ कर सकते हैं मगर सरकारी कर्मचारी होने और उपर से चुनाव आयोग का डण्डा होने के कारण लुकछिप कर ही पत्नियों की मदद कर पा रहे हैं। ऐसे ही एक प्रत्याशी पति को इन दिनों नौकरी के लाले पड़ गये हैं।

TEAM ANNA,s WELCOME WITH SHOE

उत्तराखण्ड में टीम अन्ना का स्वागत जूते और हंगामे के साथ

विधानसभा चुनावों वाले पांच राज्यों में भ्रष्ट प्रत्याशियों के विरोध और लोकपाल समर्थकों के समर्थन में अभियान पर निकली टीम अन्ना को शनिवार को पहले ही दिन विरोघ का सामना करना पड़ गया। अभियान की श्रीगणेेश करते समय उनके विरोधियों ने जहां हंगामा खड़ा कर दिया वहीं देहरादून में उनका स्वागत जूता फेंकने से हुआ।

कुम्भ नगरी हरिद्वार से राजनीति की सफाई के अभियान पर निकली टीम अन्ना के सदस्यों को शायद ही ऐसी आशंका होगी कि पांच चुनावी राज्यों के लिये चलाई जा रही इस मुहिम की शुरुआत में ही उन्हें इस तरह के स्वागत का सामना करना पड़ेगा। हरिद्वार के गीत गोविन्द बैंक्वेट हाल में आयोजित सभा में टीम के सदस्यों में से अरविन्द केजरीवाल, किरण बेदी, कुमार विश्वास और मनीष सिसोदिया एक-एक कर भाषण दे ही रहे थे कि तब तक उनके विरोध में कुछ लोगों द्वारा हंगामा खड़ा हो गया। उनके विरोधियों का साफ आरोप था कि यह टीम भाजपा की बी टीम है और भाजपा के प्रचार के लिये ही यहां नाटक करने आई है। इन हंगामा करने वालों को वहां तैनात पुलिस ने तत्काल काबू कर दिया।

देहरादून पहुंचने पर टीम के सदस्यों की सुभाष रोड स्थित लार्ड बैंकटेश्वर बैक्वेट हाल में सभा चल ही रही थी कि तभी आगे बैठे एक युवक ने मंच पर आसीन टीम सदस्यों पर जूता निकाल कर फेंक दिया। यह जूता मंच पर बैठे टीम के किसी सदस्य तो नहीं लगा मगर वहां तैनात पुलिस ने तत्काल युवक को काबू कर वहां से उठा लिया। युवक का भी यही कहना था कि अन्ना की टीम नहीं यह गैंग है और भाजपा के प्रचार के लिये ही आयी हुयी है। बाद में पूछताछ में उसने अपना नाम किशन लाल बताया और कहा कि वह देहरादून के ही प्रेमनगर का निवासी है तथा उसने जूता इसलिये फेंका क्योकि जब एक आदमी ने शरद पंवार पर थप्पड़ मारा था तो अन्ना हजारे ने उसका समर्थन कर कहा था कि बस केवल एक ही मारा। उसका यह भी कहना था कि टीम भाजपा के भ्रष्टाचार को सही मान रही है।

टीम अन्ना को देहरादून के बाद श्रीनगर अल्मोडा आदि 6 स्थानों पर जनसभाओं को समबोधित करना है। उसके बाद टीम अन्य राज्यों का दौरा करेगी। रुलक संस्था के अध्यक्ष और प्रख्यात समाजसेवी पद्मश्री अवधेश कौशल ने आज फिर टीम अन्ना का भाजपा का ऐजेण्ट बताया और कहा कि खण्डूड़ी के वाहियात लोकायुकत की फिर तारीफ कर अन्ना की टीम ने अपनी असलियत जाहिर कर दी है। उत्तराखंड के लोग देश के सामने खड़े मुद्दों पर स्पष्ट राय रखते हैं। ऐसे में देहरादून उत्तराखंड के तमाम शहरों के लोगों को बाहरी लोगों की राय जानने की जरूरत नहीं। उत्तराखंड के लोग समझबूझकर वोट देना जानते हैं। उनका कहना है कि एक ओर टीम अन्ना कह रही है कि वह किसी पार्टी के पक्ष में प्रचार नहीं करेंगे लेकिन दूसरी ओर यही अन्ना टीम बिना पढ़े उत्तराखंड सरकार के लोकायुक्त विधेयक को 100 प्रतिशत अपने जनलोकपाल विधेयक के समान बताती रही है। मानवाधिकार कार्यकर्ती डॉ. प्रिया जादू का कहना है कि टीम अन्ना को अपना दिल्ली में ही रहना चाहिए और पहले अपनी छवि ठीक करने की कोशिश करनी चाहिए।