पुस्तक समीक्षा
”पर्वत-पर्वत बस्ती-बस्ती“और पर्यावरण का इकतारा
-जयसिंह रावत
मशहूर गीतकार साहिर लुधियानवी ने1955 में रिलीज हुयी फिल्म रेलवे प्लेट फार्म के लिये जब ”बस्ती-बस्ती पर्वत-पर्वत गाता जाये बंजारा “ वाला गीत लिखा था तो उन्हें क्या पता था कि यह कालजयी गीत एक दिन बंजारों की बस्ती से कहीं दूर सात समन्दर पार हिमालय से लेकर फ्रांस के आल्पस पर्वत के जर्रे-जर्रे तक को छान मारने के लिये विशवविख्यात चिपको आन्दोलन के प्रणेता चण्डी प्रसाद भट्ट को उर्जा और प्रेरणा देगा। हो सकता है कि तब इस गीत में ”दिल का इकतारा“ की जगह ”पर्यावरण का इकतारा“ होता। वास्तव में चण्डी प्रसाद भट्ट सन् 1957 से लेकर अब तक दुनियांभर में यही इकतारा तो बजा रहे हैं।
जी हां! आखिरकार प्रख्यात पर्यावरणवादी विचारक और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में असाधारण योगदान के लिये रमन मेगासेसे और पद्मभूषण सम्मानों से अलंकृत चण्डी प्रसाद भट्ट की यात्राओं से सम्बन्धित पुस्तक बाजार में आ ही गयी। पुस्तक का नाम भी ”पर्वत-पर्वत बस्ती-बस्ती“ ही दिया गया है। चमोली के सीमान्त गांव रेणी में गौरा देवी और उनकी सहेलियों को पेड़ों पर चिपक कर उनकी रक्षा करने की प्रेरणा देने के साथ ही दुनिया के कोने-कोने तक चिपको आन्दोलन का सन्देश पहुंचाने वाले चण्डी प्रसाद भट्ट ने हालांकि सन् 1957 से लेकर अब तक कई दर्जन यात्रायें कीं मगर 234 पृष्ठों की इस पुस्तक में केवल 25 अविस्मरणीय यात्राओं का ही वृतान्त समाहित हैं। नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक में भूटान से लेकर आल्पस तक की यात्राओं का सजीव वर्णन कर उन्होने अपनी लेखन क्षमता का भी उदाहरण पेश किया है। पर्यावरण का यह बंजारा केवल पेड़ बचाने के लिये पर्वत-पर्वत नहीं भटका बल्कि जब भी और जहां भी कुदरत के क्रोध से त्रासदी आई तब -तब वह प्रकृति की बौखलाहट के कारण जानने प्रभावित क्षेत्र में पहुंच गये। चाहे उत्तरकाशी और गुजरात के भूकम्पों की त्रा्सदी रही हो या फिर मालपा और केदारघाटी के भूस्खलन से लेकर आन्ध्र प्रदेश की नक्सली समस्या रही हो, उन्होंने हर यात्रा में विकास और प्रकृति के विनाश के रिश्तों को जानने का प्रयास किया। प्रकृति और जीवधारियों के अन्तर्सम्बन्धों पर बारीक नजर रखने वाले चण्डी प्रसाद भट्ट ने आन्ध्र पदेश, छत्तीसगढ़ और झारखण्ड में नक्सल खतरे की ओर काफी पहले इशारा कर दिया था। ”पर्वत-पर्वत बस्ती-बस्ती“ के यात्रा वृतान्त सीधे तौर पर प्रकृति और मानव के अन्र्तसम्बधों पर रो”ानी डालते हैं।
एक जिज्ञासु के रूप में उन्होने प्रकृति के रहस्यों को जानने के लिये रूस, अमेरिका, जर्मनी, जापान, नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश, फ्रांस, मैक्सिको, थाईलैंड, स्पेन, चीन आदि देशों की यात्राऐं की हैं। मगर ‘पर्वत पर्वत बस्ती बस्ती’ चंडी प्रसाद भट्ट की बेहतरीन यात्राओं का संग्रह है, जिनसे बहुत कुछ सीखा जा सकता है। अद्भुत जीवट को समर्पित चंडी प्रसाद भट्ट गांधी के विचार को व्यवहारिक रूप से आगे बढ़ाने में एक सफल जन नायक के रूप में उभरे हैं। चण्डी प्रसाद भट्ट एक जाने माने पत्रकार भीे हैं जिसकी सीधी छाप इस पुस्तक पर साफ झलक जाती है।
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