राजनीतिक सुचिता की गंगा निकलनी चाहिये बद्रीनाथ से
-जयसिंह रावत-
सतोपन्थ, याने कि स्वर्ग का मार्ग! जहां से पाण्डवों ने स्वर्गाराहण किया और जहां से करोड़ों हिन्दुओं की आस्था की प्रतीक गंगा की मुख्य धारा अलकनन्दा निकलती है! वहीं से हिन्दुओं के सर्वोच्च धाम बद्रीनाथ से धर्म और आध्यात्म की गंगा भी प्रवाहित होती है जो कि भारत ही नहीं सम्पूर्ण मानवता और जीवधारियों के कल्याण की प्रेरणा देती है। उस बद्रीनाथ से इस बार के विधानसभा चुनाव में ऐसी राजनीति की धारा बहनी चाहिये जिससे भ्रष्टाचार, अनाचार लूट खसोट के दलदल में फंसी राजनीति का उद्धार हो सके। इस देवभूमि से राजनीति के पाखण्डियों और गिरगिटों से मुक्ति मिलनी चाहिये, ताकि चमोली गढ़वाल में एक स्वस्थ राजनीति स्थापित हो सके और यह सीमान्त जिला पिछड़ेपन से मुक्ति पाकर प्रगति की सीढ़िया चढ़ सके। मतदाताओं को समझना होगा कि इस सीमान्त जिले की समस्याओं को और विकास की जरूरतों को वही नेता समझ सकते हैं जो कि राजनीति में लूटखसोट के लिये नहीं बल्कि समाज सेवा के लिये आते हैं।
अन्ना के आन्दोलन के बाद आज सारा देश भ्रष्टाचार को लेकर उद्वेलित है। देखा जाय तो आम आदमी भ्रष्टाचार से त्रस्त है।उत्तराखण्ड सरकार ने भी अपनी कमीज ज्यादा सफेद दर्शाने के लिये एक तथाकथित लोकायुक्त बिल पास करा दिया जोकि न तो व्यवहारिक है और ना ही संविधान की कसौटी पर खरा उतरता है। जिस दिन इस बिल का मसौदा कैबिनेट ने पास किया उसी दिन मैंने तमाम टेलिविजन चैनलों और अपने लेखों के माध्यम से राज्य सरकार के लोकायुकत की असलियत पाठकों और दर्शकों को बता दी थी। अन्ततः हुआ भी यही और खण्डूड़ी सरकार का चुनावी लोकायुक्त इतिहास के गर्त में चला गया। इसका हस्र यही होना था, क्योकि कानून का लक्ष्य भ्रष्टाचार दूर करना नहीं बल्कि चुनाव में स्वयं का ईमान्दार दिखाना था।
मेरा अभिप्राय यह है कि भ्रष्टाचार या समाज की कोई बुराई अकेले कानून के बल पर दूर नहीं हो सकती है। अगर ऐसा होता तो हर अपराध के लिये कानून ने फंासी से लेकर जेल और जुर्माने की सजा रखी हुयी है और उसके बाद भी अपराध रुक नहीं रहे हैं। जब तक समाज अपराध के खिलाफ खड़ा नहीं होता तब तक कानून अपराधों को समाप्त नहीं कर सकता है। इसी तरह भ्रष्टाचार भी कानून से नहीं मिटाया जा सकता है। भ्रष्टाचार तब तक दूर नहीं हो सकता है जब तक कि समाज भ्रष्टाचारियों और उनकी काली कमाई को सामाजिक मान्यता देना बन्द नहीं करता है। आप देख ही रहे हैं कि प्रदेश के नेता पिछले 11 सालों में आर्थिक उन्नति की छलांगें मारते मारते कहां से कहां पहुंच गये हैं। जो खपति था वह करोड़पति हो गया है। यही नहीं उसकी असली कमाई देखी जाय तो वह कई गुना अधिक हो गयी है। नेता खुले आम भ्रष्टाचार कर रहे हैं और उस कमाई से मतदाताओं को लुभाने के लिये कई तरह के हथकण्डे अपना रहे हैं। अगर इस तरह के हथकण्डों से ही समाज चलना है और इसी तरह राज्य के आर्थिक संसाधनों पर डाका डालने वालों को चुनाव जीतना है तो आप न तो भ्रष्टाचार से मुक्ति और ना ही क्षेत्र तथा प्रदेश की प्रगति की अपेक्षा कर सकते हैं। समाज में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलने का मुख्य कारण भ्रष्ट तरीकों और भ्रष्टाचार से अर्जित वैभव और के साथ ही उनके ठाठबाट को सामाजिक मान्यता मिलना है। समाज में उसी को ज्यादा इज्जत मिल रही है जो कि ऊपरी कमाई से रातों रात मालोमाल हो रहा हो। अगर भ्रष्टाचारियों को वोट देकर या उन्हें विधानसभा या फिर सरकार में पहुंचा कर उन्हें सम्मानित किया जाता है तो इससे भ्रष्टाचार कैसे दूर होगा और सदाचार की स्थापना कैसे हो सकेगी।
भ्रष्टाचार की गंगोत्री अगर आपको ढंूढनी है तो कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं है। वह हम सब के आसपास है और उसका नाम राजनीति ही है। जब सरकार चलाने वाले नेता भ्रष्ट होंगे तो आप सरकारी मशीनरी से कैसे ईमान्दारी की उम्मीद कर सकते हैं। जब सारा ही तंत्र भ्रष्ट हो तो फिर कैसे आप अच्छे कार्यों की उम्मीद कर सकते हैं। इसलिये अगर आपको सामाजिक जीवन की गंगा साफ करनी हो तो उसके लिये गंगोत्री से ही अभियान चलाना पड़ेगा और इसके लिये चुनाव से अच्छा मुहूर्त और कुछ नहीं हो सकता है। चुनावों में स्वच्छ छवि के साथ ही प्रत्याशियों का विजन और उनकी नीयत भी देखी जानी चाहिये। जो रानीतिक नेता कुर्सी के लिये कभी किसी को तो कभी किसी और को धोखा दे सकते हैं उनको तो जनता को ठगने के लिये लाइसेंस ही मिल जाता है। जिन नेताओं का दीन ईमान हर वक्त विकाऊ हो और जो कभी भी किसी भी दल में जाने के आदी हों, उनके लिये जनता का विश्वास नीलाम करना शगल बन जाता है। इसलिये मतदाताओं को सोचना चाहिये कि वे अपना विश्वास और मत राजनीतिक दलालों को दलाली के लिये क्यों दे रहे हैं?
वैसे तो सारे पहाड़ की पहाड़ जैसी समस्याऐं हैं। राज्य बनने के 11 साल बाद भी स्कूलों में मास्टर और अस्पतालों में डाक्टर नहीं हैं। भले शीर्ष स्तर पर तीन-तीन मुख्य सचिव, 5-5 पुलिस महानिदेशक और तीन-तीन प्रमुख वन संरक्षक हा,ें मगर गांव स्तर पर काम करने वाले विकास कर्मी वीएलडब्लु और ब्लाक स्तर पर बीडीओ नहीं हैं। लोग आज भी अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ रहे हैं। 5 हजार से अधिक गांवों में विकास की गाड़ी पैदल ही चल रही है। डेढ हजार गांवों ने बिजली नहीं देखी और हजारों बस्तियां पानी के लिये तरस रही हैं। पहाड़ में चमोली जैसे सीमान्त जिलों की हालत तो ज्यादा ही खराब है। मूलभूत सुविधाओं के अभाव के कारण लोग बड़े पैमाने पर पलायन कर रहे हैं। अब तो नेता भी पलायन करने लगे हैं। सीमान्त क्षेत्रों में पलायन के कारण राष्ट्रीय सुरक्षा भी खतरे में हैं। इसलिये जातिवाद, क्षेत्रवाद और सम्प्रदायवाद के संकीर्ण दायरों से ऊपर उठ कर ऐसे लोगों को चुनाव जिताने की जरूरत है जिनमें दूरदृष्टि और अनुभव हो।
चमोली जिले में कभी बद्री-केदार विधानसभा क्षेत्र होता था, जिसका प्रतिनिधित्व गंगाधर मैठाणी और नरेन्द्र सिंह भण्डारी जैसे नेताओं ने किया। उनके बाद उस विरासत को प्रताप सिंह पुष्पवाण,कुंवर सिंह नेगी और केदारसिंह फोनिया जैसे ईमान्दार और विद्वानों ने सम्भाला। नरेन्द्र सिंह भण्डारी लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे तो कुवर सिंह नेगी जानेमाने वकील रहे। पुष्पवाण एक विद्वान शिक्षक और प्रखर वक्ता थे। केदारसिंह फोनिया न केवल कई उच्च पदांे पर रहे बल्कि पर्यटन विशेषज्ञ भी रहे और उत्तर प्रदेश में भी कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। जिनकी पुस्तकों ने उत्तराखण्ड के पर्यटन विकास को दिशा दी। यह बात दीगर है कि एक निर्दलीय के ईमान की कीमत चुकाने के लिये भाजपा ने इतने अनुभवी नेता की बलि चढ़ा दी। बहरहाल बाद में रुद्रप्रयाग जिला बना तो बद्रीनाथ और केदारनाथ अलग हो गये और राज्य बनने पर तो कई विधानसभा क्षेत्र हो गये। फिर भी बद्रीनाथ विधानसभा क्षेत्र का महत्व कम नहीं हुआ। अब उम्मीद की जानी चाहिये कि मतदाता ऐसेे लोगों को चुनेंगे जो कि क्षेत्र का विकास करने के साथ ही उसकी गरिमा भी बढ़ायेंगें। कुछ नेताओं को गलतफहमी होती है कि खूब सारी काली कमाई जमा करो और फिर उस कमाई को चुनावों में झोंक कर जीत हासिल कर लो। इस तरह जिनका अपना ईमान बिकाऊ होता है वे आम आदमी के ईमान को भी बिकाऊ समझ बैठते हैं। इसलिये मतदाताओं को न केवल जातिवादियों, क्षेत्रवादियों और सम्प्रदायवादियों से सतर्क रहने की जरूरत है बल्कि धन पशुओं से भी बचने की जरूरत है।
जयसिंह रावत
9412324999
Very Good Sir
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