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Sunday, November 25, 2018

Uttarakhand stained with sex scandals of Politicians

रंगीन मिजाज भाजपाई कर रहे देवभूमि को कलंकित
-जयसिंह रावत
हिन्दू संस्कृति के स्वयंभू ध्वजवाहक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आएसएस) के प्रचारकों और इसी गुरुकुल से दीक्षित भाजपा नेताओं की काम वासनाओं से संघ और भाजपा को कोई फर्क पड़े या न पड़े मगर देवभूमि के नाम से जानी जाने वाली उत्तराखण्ड की पवित्र भूमि जरूर कलंकित हो रही है। ये स्कैण्डल तब-तब सामने आये हैं जब-जब भाजपा प्रदेश में सत्ता में रही है। इससे जाहिर है कि इस पार्टी के नेताओं ने सत्ता और अपनी पोजिशन का दुरुपयोग अपनी काम वासनाओं की पूर्ति के लिये भी किया है।
Article of Jay Singh Rawat
published in Navjivan Sunday
epaper of National Herald
on November 25, 2018
पश्चिम बंगाल के कोलकाता के बहेला थाने में भाजपा के राष्ट्रीय सह महामंत्री (संगठन) शिवप्रकाश के खिलाफ दर्ज बलात्कार के मामले का शोर पूरी तरह थमा भी नहीं था कि उत्तराखण्ड में तैनात भाजपा के प्रदेश संगठन महामंत्री संजय कुमार के मीटू मामले ने हिन्दू संस्कृति के झण्डाबरदार भाजपा और आरएसएस को मुंह छिपाने के लिये मजबूर कर दिया। शिवप्रकाश उत्तराखण्ड में आरएसएस के प्रान्त प्रचारक रहे हैं। अब संजय कुमार पर आरोप है कि उसने पार्टी में अपनी पोजिशन का इस्तेमाल करते हुये संघ से गहरी आस्था रखने वाले एक परिवार की लड़की, जो कि स्वयं भी भाजपा से जुड़ी है, को भाजपा प्रदेश कार्यालय में कम्प्यूटर डाटा एण्ट्री के लिये नियुक्त किया और फिर उस पर शारीरिक सम्बन्ध बनाने के लिये मजबूर करने लगा। इसकी शिकायत जब भाजपा के बड़े नेताओं से की गयी तो उन्होंने मुंह बंद रखने की हिदायद दे दी। यही नहीं पीड़िता के मोबाइल पर  संजय के खिलाफ सबूत के तौर पर उसके जो अश्लील मैसेज और कामुक वार्तालाप थी उसे मोबाइल छीन कर डीलिट कर दिया। हद तो तब हो गयी जब शिकायत करने पर भाजपा महानगर अध्यक्ष ने सेक्स को पुरुष की स्वाभाविक शारीरिक जरूरत बता कर लड़की को दोटूक कह दिया कि उसे भी इन परिस्थितियों के लिये मानसिंक रूप से तैयार रहने था। लड़की ने ईमेल से संजय के खिलाफ जो तहरीर दी है उस पर पुलिस सत्ताधारी भाजपा के डर से एफआइआर दर्ज करने से कतरा रही है। भाजपा में संगठन महामंत्री सीधे आरएसएस का प्रतिनिधि होने के नाते प्रदेश अध्यक्ष से अधिक पावरफुल होता है। उसकी नियुक्ति संघ करता है और संघ ही हटा भी सकता है। यही नहीं सरकार भी संगठन महामंत्री के इशारों पर काम करती है, क्योंकि इस पदाधिकारी के इशारे का मतलब संघ का इशारा माना जाता है। अब कल्पना की जा सकती है कि संजय कुमार अपनी हैसियत का कितना दुरुपयोग कर रहा होगा।
उत्तराखण्ड में भाजपा नेताओं के सेक्स स्कैण्डल नये नहीं हैं। त्रिवेन्द्र सरकार में कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत पर बलात्कार की एफआइआर तीन बार दर्ज हो चुकी है। एक बार उन पर असम की कंुवारी लड़की ने उससे बलात्कार कर गर्भधारण कराने का आरोप लगाया था जिस कारण उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। बाद में डीएनए जांच में नवजात के साथ हरकसिंह का डीएनए मैच न होने के कारण वह आरोप मुक्त हो गये। उन पर 2014 में भी दिल्ली में एक लड़की ने नौकरी का झांसा देकर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया मगर लड़की बाद में पुलिस के पास बयान देने नहीं आयी। सन् 2003 में हरक सिंह पर आरोप लगाने वाली लड़की ने दुबारा दिल्ली के सफदरजंग थाने में 29 जुलाइ 2016 को दुष्कर्म का मामला दर्ज किया। लेकिन बाद में लड़की ने अपनी रिपोर्ट वापस ले ली। अप्रैल 2007 में दिल्ली में नीलम शर्मा नाम की एक तलाकशुदा महिला द्वारा आत्महत्या किये जाने पर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की ओर से हरिद्वार में एक मंत्री के खिलाफ कई दिनों तक धरने प्रदर्शन किये गये। अप्रैल 2008 में खण्डूड़ी सरकार के दौरान एक बारहवीं कक्षा की गरीब छात्रा से नौकरी का झासा देकर सामूहिक बलात्कार के मामले में भाजपा सहकारी प्रकोष्ट के पूर्व जिला अध्यक्ष प्रमोद गुप्ता को आजीवन कारवास की तथा एनजीओ प्रकोष्ठ के अशोक कुमार को 10 साल की सजा हुयी थी।
इस मामले में पीड़िता की पैरवी कर रही समाधान एनजीओ की संचालिका रेनू सिंह का कहना है कि लड़की ने उनसे इस गैंग रेप में शामिल एक बड़े भाजपा नेता और एक आइएएस का नाम भी बताया था मगर भाजपा सरकार के दबाव में पुलिस ने इन बलात्कारियों को बचा लिया। वर्ष 2009 में अल्मोड़ा जिले की एक लड़की ने पीलीभीत में आत्महत्या की थी और उसकी मां ने इस आत्महत्या के लिये खण्डूड़ी सरकार के एक मंत्री को जिम्मेदार बताया था। एक युवती ने 11 अगस्त 2010 को नैनीताल हाइकोर्ट में याचिका दायर कर तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक पर यौन शोषण का आरोप लगाते हुये कोर्ट से सुरक्षा की मांग की थी। वह लड़की हत्या के मामले में जेल में थी और उन दिनों जमानत पर थी। बाद में लड़की ने मामला वापस ले लिया था।

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भाजपाइयों का यौन रोग नौकरशाही को भी लगा
जब सरकार में बैठे लोग ही रंगरलियों में डूबे हुये हो तो फिर उनके मातहत काम करने वाली नौकरशाही से भी मर्यादापरुषोत्तम बनने की अपेक्षा कैसे की जा सकती है। अगस्त 2013 में जब सारा प्रदेश आपदाग्रस्त था हजारों लोग केदारनाथ आपदा में मारे गये थे और हजारों अन्य बेघर हो गये थे। इस विनाशलीला से लोगों के बचाव एवं राहत के लिये सचिवालय में देर रात तक काम चल रहा था तो एक अधिकारी ने रात और एकान्त का दुरुपयोग करते हुये अपनी मातहत कर्मचारी के साथ दुराचार का प्रयास किया। उस दुराचारी के चंगुल से बची कर्मचारी ने इसकी शिकायत मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा और मुख्य सचिव सुभाष कुमार से भी की मगर दोषी अधिकारी का बाल बांका तक नहीं हुआ। इसके बाद नवम्बर में दिल्ली में राज्य के अपर सचिव जे. पी. जोशी के खिलाफ नौकरी का झांसा देकर दुराचार करने की श्किायत दर्ज हुयी जिस पर जोशी को 3 दिसम्बर 2013 को गिरफ्तार किया गया। इस काण्ड में जोशी पूरे एक साल बाद फरबरी 2015 में जमानत पर रिहा हुये। कुछ वर्ष पहले सचिवालय का एक संयुक्त सचिव रात को होमगार्ड की महिला कर्मचारी के साथ एक कार में पकड़ा गया।
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जयसिंह रावत
ई-11, फ्रेंड्स एन्कलेव, शाहनगर
डिफेंस कालोनी रोड
देहरादून।

mobile 9412324999
jaysinghrawat@gmail.com



Friday, November 16, 2018

Sex scandles are tarnishing image of Dev Bhumi Uttarakhand

सेक्स स्कैण्डलों से कलंकित हुआ उत्तराखण्ड 


-जयसिंह रावत
बेरोकटोक भ्रष्टाचार के कारण उत्तराखण्ड राज्य घोटाला प्रदेश के पर्याय से तो बदनाम हो ही रहा है लेकिन शासन-प्रशासन में बैठे कुछ दुराचारियों के आये दिन उछल रहे सेक्स स्कैण्डलों से यह देवभूमि कलंकित भी हो रही है। हैरानी का विषय तो यह है कि सेक्स स्कैण्डलों के मामलों में संस्कारी पार्टी भाजपा ने कांग्रेस को भी पीछे छोड़ दिया है। राजनेताओं और नौकरशाहों को हैसियत प्रदेश के विकास और जन कल्याण के लिये मिली हुयी है उसका प्रयोग कई लोग दौलत और औरत की हवश मिटाने के लिये कर रहे हैं। पहले तो भ्रष्ट लोग अपने सही या गलत काम निकालने के लिये रिश्वत के रूप में धन का प्रयोग करते थे लेकिन अब नारीदेह भी परोशी जाने लगी है। यही नहीं दुराचारी लोग नौकरी का झांसा देकर या नौकरी के बदले यौन शोषण में लगे हुये हैं।
कहना गलत न होगा कि उत्तराखण्ड की शुरुआत ही सेक्स स्कैण्डलों से हुयी और आज स्थिति यह है कि अगर किसी को किसी सरकारी विभाग से कोई काम निकलवाना हो या फिर राजनीतिक पद या टिकट लेना हो तो सुविधा शुल्क के तौर पर करेंसी नोटों या अन्य वस्तुओं की जगह नारी देह को भी परोसा जा सकता है। अगर किसी बड़ी पोजिशन वाले व्यक्ति से कोई बड़ा काम निकलवाना हो तो फिर सुविधा शुल्क की डोज बढाने के लिये दोनों विकल्पों का इस्तेमाल कर राज्य के संसाधनों और खुशहाली के अवसरों को हड़पा जा सकता है। देखा जाय तो उत्तराखण्ड में सेक्स सकैण्डलों की शुरुआत राज्य बनने के तत्काल बाद एक मंत्री के खासमखास कोच ने द्रोण होटल में एक खिलाड़ी के साथ दुराचार करने के साथ ही कर दी थी। चूंकि मामला मंत्री के करीबी का था इसलिये दब गया। उसके बाद तिवारी जी के शासन में राजनीति की रंगीन मिजाजी की छाप प्रख्यात लोक गायक नरेन्द्र सिंह नेगी के बहुचर्चित गीत ‘‘नौछमी नारैण’’ में देखने को मिल जाती है। तिवारी जी के ही शासनकाल में असम की एक अनब्याही लड़की के मां बन जाने से इतना बड़ा राजनीतिक तूफान उठा कि कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि उस बहुचर्चित सेक्स स्कैण्डल में सीबीआइ जांच में हरक सिंह रावत को क्लीन चिट तो मिल गयी मगर मुख्यमंत्री तिवारी ने उन्हें वापस कैबिनेट में नहीं लिया। उस समय भाजपा ने उस काण्ड के विरोध में सड़क से लेकर सदन तक काफी बवाल काटा था और विरोध करने वालों में भाजपा विधायक अजय भट्ट सबसे आगे थे। अजय भट्ट विधानसभा की उस जांच कमेटी में भी शामिल थे जिसे तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष यशपाल आर्य ने गठित किया था। बाद में जांच में हरक सिंह का डीयनए नवजात बच्चे से नहीं मिला। सीबीआइ से यह मामला निस्तारित होने पर भी काफी लम्बे अर्से तक नारी निकेतन में रहने के बाद राज्य सरकार के कर्मचारी असम की उस बिनव्याही मां को उसके घर तक छोड़ आये थे। यह बात दीगर है कि वह लड़की उसके बाद दिल्ली आ गयी और वहां से भी उत्तराखण्ड की राजनीति में भूचाल लाती रही। उस समय श्रीमती उज्वला  के पुत्र रोहित शेखर के पितृत्व का मामला सुगबुगाहट करने लगा था और मीडिया में बात आने लगी थी कि तिवारी जी के खिलाफ कभी भी मामला दर्ज हो सकता है। जानकार मानते हैं कि अगर नारायण दत्त तिवारी उसी समय रोहित को अपना पुत्र मान लेते तो न तो मामला सुप्रीम कोर्ट तक जाता और ना ही उनकी इतनी फजीहत होती और एक सन्तान को उसका असली पिता मिल जाता। उनको समय से अपना पुत्र एवं देखभाल करने वाली पत्नी मिल जाती तो उनकी सेहत भी कहीं बेहतर होती और देश को उनकी सेवाओं का लाभ मिलता।
तिवारी जी के बाद भुवन चन्द्र खण्डूड़ी की सरकार आयी तो खण्डूड़ी की कड़क मिजाजी का असर भ्रष्टाचारियों पर तो थोड़ा बहुत अवश्य हुआ मगर रंगीन मिजाजों के कारनामें अनवरत जारी रहे। सहकारी बैंक के पूर्व चेयरमैन रह चुके भाजपा नेता प्रमोद गुप्ता एवं एक अन्य एनजीओ संचालक अशोक कुमार सहित तीन अन्य को बारहवीं कक्षा की छात्रा से गैग रेप करने के आरोप में सजा हो चुकी है। एनजीओ संचालक अशोक कुमार भी भाजपा से ही संबंधित था। प्रमोद कुमार गुप्ता को स्थानीय अदालत ने गैंगरेप में आरोप साबित होने के बाद आजीवन कारावास की सजा सुनाई। जबकि दूसरे दोषी अशोक को 10 साल की सजा हुयी। इस बहुचर्चित प्रकरण में कुछ अन्य बड़े नेताओं और नौकरशाहों के नाम भी उछले मगर पुलिस उन पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं कर सकी। इस मामले में इंटर की एक छात्रा ने नौकरी का झांसा देकर गैंग रेप का आरोप लगाया था। पुलिस के अनुसार 19 अप्रैल वर्ष 2008 को प्रमोद सहारनपुर चैक से युवती को अपनी कार में बैठाकर राजपुर रोड स्थित रिजॉर्ट में ले गया। उसने युवती को बताया कि वह सचिवालय का अधिकारी है और इस रिजॉर्ट में उसका नौकरी के लिए इंटरव्यू होना है। रिजॉर्ट में गैंग रेप प्रकरण में पुलिस ने कांड के सूत्रधार भाजपा एनजीओ प्रकोष्ठ के महामंत्री अशोक कुमार, रिसॉर्ट प्रबंधक प्रवीन कुमार और तीन अन्य अज्ञात के खिलाफ मामला दर्ज किया था। अदालत ने भाजपा नेता प्रमोद कुमार गुप्ता को 376 (2) (ह) (गैंग रेप) 366 (अपहरण) व धारा 3 (2) पंचम एससी, एसटी एक्ट का दोषी माना था। जबकि उसे अदालत ने 323 और 504 के आरोप से दोषमुक्त कर दिया। जबकि भाजपा एनजीओ प्रकोष्ठ के पूर्व महामंत्री अशोक कुमार को अदालत ने धारा 366 (अपहरण), 354 (लज्जा भंग) व धारा 120 बी (षड़यंत्र) का दोषी माना। अदालत ने उसे 377 के अपराध से दोषमुक्त कर दिया। प्रवीन कुमार को अदालत ने धारा 328, 120 बी व अन्य आरोपों से मुक्त कर दिया था।
वर्ष 2009 में हैदराबाद राजभवन के सेक्स स्कैंडल के कारण स्वयं नारायण दत्त तिवारी को पद से इस्तीफा देना पड़ा था। वर्ष 2009 में अल्मोड़ा जिले की एक लड़की गीता खोलिया ने पीलीभीत में आत्महत्या की और उस लड़की की मां ने अपनी बेटी की मौत के लिये खण्डूड़ी सरकार में अल्मोड़ा जिले के एक मंत्री को जिम्मेदार बताया था। इसी तरह अप्रैल 2007 में दिल्ली में नीलम शर्मा नाम की एक तलाकशुदा महिला द्वारा आत्महत्या किये जाने पर भी उत्तराखण्ड की राजनीति काफी गरमा्ररमह रही। उस समय राज्य में कांग्रेस विपक्ष में थी और उसके नेताओं का आरोप था कि नीलम ने आत्महत्या नहीं की बल्कि उसकी हत्या की गयी थी ताकि वह उन सफेदपोशों का नाम न ले सके जिन्होंने उसका शोषण किया था। नीलम के शव को उसके परिजन दिल्ली के एक अस्पताल से हरिद्वार लाये थे जहां उसका दाह संस्कार कर दिया गया। नीलम की मौत की सीबीआइ जांच की मांग को लेकर हरिद्वार में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन भी किये थे। कांग्रेस की ओर से इस मामले को लेकर 29 अप्रैल को हरिद्वार में प्रदर्शन करने के साथ ही राज्य के कैबिनेट मंत्री का पुतला भी फूंका गया था। कांग्रेस नेता राजेश रस्तोगी ने हरिद्वार में विरोध प्रदर्शन की अगुवायी की थी। उस दौरान राज्य महिला आयोग की पूर्व अध्यक्षा डा0 सन्तोष चैहान ने कहा था कि इस मामले में हरिद्वार के एक कैबिनेट मंत्री का नाम आ रहा है, इसलिये इस मामले की सीबीआइ जांच जरूरी है। इस मामले को लेकर समाजवादी पार्टी ने अम्बरीश कुमार के नेतृत्व में 30 अप्रैल को सुभाष घाट पर धरना दे कर खण्डूड़ी सरकार के उस कैबिनेट मंत्री से इस्तीफे की मांग की थी। जबकि राज्य सरकार में मंत्री मदन कौशिक ने आरोपों को बकवास बताया था।
खण्डूड़ी के बाद रमेश पोखरियाल निशंक सरकार के दौरान भी कुछ महिलाओं की दिन दूनी रात चैगुनी तरक्की भी लोगों को हजम नहीं हो पायी। एक युवती ने 11 अगस्त 2010 को नैनीताल हाइकोर्ट में याचिका दायर कर स्वयं निशंक पर यौन शोषण का आरोप लगाते हुये कोर्ट से सुरक्षा की मांग की थी। यह आरोप उस महिला ने लगाया था जो कि हत्या के आरोप में जेल में थी और उस समय जमानत पर थी। याचिका में आरोप लगाया गया था कि 1999 में जब निशंक तत्कालीन यूपी सरकार में संस्कृति और धर्मस्व मंत्री थे उस समय उस युवती पर निशंक को ‘ऑबलाइज’ करने के लिए लगातार दबाव डाला गया था। बाद में मामला अदालत से खारिज हो गया था।
भाजपा के बाद विजय बहुगुणा के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार बनीं तो उनके कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत एक बार पुनः चर्चाओं में आ गये। उन पर वर्ष 2014 में मेरठ की एक युवती ने यौन शोषण की एफआइआर दिल्ली में दर्ज कराई थी लेकिन बाद में पुलिस ने युवती को जब बयान के लिये बुलाया तो वह हाजिर नहीं हुयी। इस तरह वह मामला वहीं समाप्त हो गया। लेकिन इस तरह के विवाद उनका पीछ कहां छोड़ने वाले थे। दिल्ली के सफदरजंग थाने में हरक सिंह रावत के खिलाफ 29 जुलाइ 2016 को दुष्कर्म का एक और मामला दर्ज हुआ। मजेदार बात यह रही कि असम की जिस युवती ने 2003 में हरक सिंह रावत पर नौकरी का झांसा दे कर दुष्कर्म का आरोप लगाया था इस बार भी उसी ने हरक सिंह के खिलाफ मामला दर्ज किया था। महिला का आरोप था कि उनके साथ 2013 में हरक सिंह रावत के ग्रीन पार्क दिल्ली स्थित आवास पर दुष्कर्म किया गया था। लेकिन यह महिला कुछ ही दिन बाद अपने आरोप से मुकर गयी और उसने रावत को सच्चरित्र और आदर्श नेता बता दिया। यही नहीं उसने तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के निजी सचिव कमल सिंह रावत पर आरोप लगा दिया कि उसी के बहकावे में आ कर उसने हरक सिंह पर ऐसा गंभीर आरोप लगाया था। हालांकि बाद में कमल सिंह रावत ने भी उस महिला के खिलाफ झूठा आरोप लगा कर बदनाम करने की एफआइआर दर्ज करा दी थी। यह मामला उस दौरान का है जबकि हरक सिंह सहित 9 विधायकों ने कांग्रेस से विद्रोह कर हरीश रावत सरकार को संकट में डाल दिया था।
नवम्बर 2018 में भारतीय जनता पार्टी के संगठन महामंत्री संजय कुमार पर संगठन की ही एक युवती द्वारा यौन उत्पीड़न के आरोप लगाये जाने से अनुमान लगाया जा सकता है कि उत्तराखण्ड की राजनीति अवसरवाद, सिद्धान्तहीनता, भाई भतीजा वाद, जातिवाद और सम्प्रदायवाद से भी नीचे गिर गयी है। भाजपा का संगठन महामंत्री अन्य दलों की तरह कोई साधारण पदाधिकारी नहीं होता है। यह दरअसल आरएसएस का प्रतिनिधि होता है जिसे सीधे आरएसएस द्वारा नियुक्त किया जाता है। उसे प्रदेश अध्यक्ष न तो हटा सकता है और ना ही उसे कोई आदेश दे सकता है। वह एक तरह से आरएसएस के प्रतिनिधि के तौर पर संगठन की गतिविधियों पर नजर रखता है और संघ उसी के माध्यम से संगठन को दिशा निर्देश भी देता है। उसकी हैसियत मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष से कम नहीं होती है। जाहिर है कि टिकट वितरण और पदों के वितरण में तो उसकी प्रमुख भूमिका होती ही है लेकिन अगर सरकार बन जाय तो उसकी निगाह सरकार के कामकाज पर भी होती है। इसलिये वह सरकार से जो चाहे सो काम सरकार से करा सकता है। जिस व्यक्ति के इशारे पर संगठन और सरकार में काम हो जाते हों और जिसे नारी देह की ऐसी लत हो तो फिर समझा जा सकता है कि इस देवभूमि सत्ता में बैठे लोगों का कितना नैतिक पतन हो चुका है।
उत्तराखंड से गहरा ताल्लुक रखने वाले भाजपा के राष्ट्रीय सह महामंत्री (संगठन) शिवप्रकाश के खिलाफ पश्चिम बंगाल के कोलकाता में कोलकाता के बहेला थाने में एक महिला ने एफआईआर दर्ज कराई है। महिला का आरोप था कि उसे एक होटल में बुलाया गया और वहां मौजूद शिवप्रकाश और सुब्रत चटर्जी ने उसके साथ बलात्कार की कोशिश की। इसी बीच वहां पहुंचे एक अन्य नेता अमलेंदु उपाध्याय ने उसे बचाया। लेकिन बाद में उसके साथ कई बार बलात्कार किया गया और गर्भपात भी कराया गया। इस मामले में कोलकाता पुलिस अमलेंदु को गिरफ्तार भी कर चुकी है। शिवप्रकाश उत्तराखंड में प्रांत प्रचारक भी रह चुके हैं। भाजपा ने इस एफआईआर को टीएमसी (तृणमूल कांग्रेस) सरकार की काली करतूत बताया है।
सेक्स सकैंडलों के मामले में उत्तराखण्ड का सचिवालय भी पीछे नहीं रहा। जब लोकतांत्रिक शासक ही रंगरलियों में डूबे हों और अपनी पोजिशन के बल पर सुरा सुन्दरी का उपभोग करते हों तो उनके मातहत जन सेवकों से आप आदर्श आचरण की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं? राज्य का शासन सचिवालय से चलता है। यूं कहें सचिावालय राज्य के शासन-प्रशासन की धुरी और सरकार का दिमाग होता है। इसलिये जब नेता भी उस ताकत का दुरुपयोग करते हों तो फिर सचिवालय में बैठे रसिया मिजाज अधिकारी भी भला अपनी कुर्सी की ताकत का क्यों न प्रयोग करें। आम धारणा है कि राज्य सचिवालय में कुछ भ्रष्ट अफसर बड़े कामों के लिये बड़ी रकम तो लेते ही हैं साथ ही उनकी फरमाइश लड़कियों की भी होती है। कुछ लड़कियों से वे सीधे सम्पर्क कर नौकरी या किसी अन्य काम के बदले जिश्म की अपेक्षा भी करते हैं। यही नहीं कुछ कामुक अफसर अपनी महिला सहकर्मियों का उत्पीड़न करने तक से नहीं चूकते। वर्ष 2013 में सचिवालय के दो सेक्स स्कैण्डलों ने सत्ता के गलियारों में तहलका मचा दिया था। अगस्त 2013 में जब सारा प्रदेश आपदाग्रस्त था हजारों लोग केदारनाथ आपदा में मारे गये थे और हजारों अन्य बेघर हो गये थे। इस विनाशलीला से लोगों के बचाव एवं राहत के लिये सचिवालय में देर रात तक काम चल रहा था तो एक अधिकारी ने रात और एकान्त का दुरुपयोग करते हुये अपनी मातहत कर्मचारी के साथ दुराचार का प्रयास किया। उस दुराचारी के चंगुल से बची कर्मचारी ने इसकी शिकायत मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा और मुख्य सचिव सुभाष कुमार से भी की मगर दोषी अधिकारी का बाल बांका तक नहीं हुआ। इसके बाद नवम्बर में दिल्ली में राज्य के अपर सचिव जे. पी. जोशी के खिलाफ दुराचार की एफ.आइ.आर. दर्ज हुयी जो कि बाद में देहरादून ट्रांसफर हुयी। चूंकि मामला काफी प्रचारित हो गया था इसलिये पुलिस को जे. पी. जोशी को 3 दिसम्बर 2013 को गिरफ्तार करना ही पड़ा। इस काण्ड में जोशी पूरे एक साल बाद फरबरी 2015 में जमानत पर रिहा हुये।
वर्ष 2017 नवंबर के नवम्बर माह में देहरादून के नारी निकेतन में एक मूक- बधिर संवासिनी के साथ दुष्कर्म और उसका गर्भपात के मामले ने सारी मानवता को ही शर्मसार कर दिया था। इस मामले में एक सफाई कर्मचारी गुरुदास का डीएनए संवासिनी के भू्रण से मैच कर गया था। लेकिन तत्कालीन विपक्षी दल भाजपा ने इस मामले में कुछ बड़े लोगों के संलिप्त होने का भी आरोप लगाया था। भाजपा का आरोप था कि इन मजबूर संवासिनियों को हवश के भूखे भेड़ियों के सामने परोशा जाता है। इस मामले में 25 नवम्बर को एसआईटी का गठन हुआ था और  29 नवंबर को पीड़िता ने मजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज कराए गये थे। उसके बाद 30 नवम्बर को केयर टेकर हासिम और होम गार्ड ललित की गिरफ्तारी की गई तथा 4 दिसम्बर को साक्ष्य छिपाने के आरोप में 3 महिलाओं सहित 4 की गिरफ्तारी हुई। इस मामले में 13 दिसम्बर को अधीक्षक मीनाक्षी पोखरियाल और शिक्षक की गिरफ्तारी हुई। 6 जनवरी को डीएनए रिपोर्ट आने के बाद सफाई कर्मचारी गुरदास की गिरफ्तारी हुयी। इस तरह इस शर्मनाक काण्ड में कुल 9 आरोपियों की गिरफ्तारी करके जेल भेजा गया।

Tuesday, November 13, 2018

कौन था मुजफ्फरनगर कांड १९९४ का असली जिम्मेदार? किसने किया दिल्ली पुलिस को गुमराह ? पढ़िए जय सिंह रावत का लेख।


Who was the culprit behind Muzaffarnagar carnage and rapes in 1994, the question still haunts Uttarakhandis


दशकों के जनसंघर्षों के बाद भारतीय गणतंत्र के 27वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आने वाला  उत्तराखण्ड राज्य अपने जीवनकाल के 18 साल पूरे कर 19वें वर्ष में प्रवेश कर गया। इन 19 वर्षों में राजनीतिक नेताओं के लिये विधायकी की 70 सीटें और मुख्यमंत्री सहित मंत्रिमण्डल के 12 पदों तथा मंत्रियों के ठाटबाट जैसे सकेड़ों पद श्रृजित हो गये। ऐसे-वैसे भी कैसे-कैसे हो गये। नेतागिरी के पेशे में लगे लोगों की आमदनी दिन दोगुनी और रात चैगुनी हो गयी। मगर जिन लोगों ने इस राज्य की मांग के लिये अपनी जानें कुर्बान कर दीं और जिन महिलाओं ने अपनी आबरू तक लुटवा ली उन्हें अब तक न्याय नहीं मिला। उत्तराखण्ड आन्दोलन के दौरान हुये सरकारी दमन को इलाहाबाद हाइकोर्ट ने राज्य प्रायोजित आतंकवाद बताया था। सीबीआइ ने मुजफ्फरनगर के जैसे काण्डों की जांच कर मामले अदालत में तो डाल दिये मगर एक भी बलात्कारी या हत्यारे को सजा नहीं हुयी। जिन लोगों ने दिल्ली पुलिस को आन्दोलनकारियों के हथियार ले कर दिल्ली आने की झूठी सूचना दी उनके चेहरे आज तक बेनकाब नहीं हो पाये। अगर दिल्ली पुलिस को उत्तराखण्ड के ही कुछ नेताओं द्वारा गुमराह नहीं किया जाता तो बहुत संभव था कि आन्दोलन के दौरान इतना सरकारी दमन नहीं होता।
सीबीआइ की पहली रिपोर्ट के पृष्ठ 22 से लेकर 27 तक में बलात्कार एवं लज्जाभंग और छेड़छाड़ का विवरण दिया गया है। इसके समर्थन में संलग्नक भी दिये गये हैं। प्रथम रिपोर्ट के साथ लगे संलग्नक 6 भागों में तथा 391 पृष्ठों में हैं। इसके भाग तीन में गवाहों के बयान दर्ज हैं। रिपोर्ट के अनुसार 2 अक्टूबर 1994 की प्रातः लगभग 5.30 बजे देहरादून और आसपास के इलाकों से आई 53 से अधिक बसें रामपुर तिराहे पर पहुंची और उनमें सवार आन्दोलनकारी पिछली रात्रि से वहां पर रोके गये लगभग 2000 रैलीवालों से आकर मिल गये। अधिकारियों के बयानों के अनुसार इन बसों को भी तलाशी के लिये रोक दिया गया था। पहाड़ से आयी बसों से यात्रा कर रहीं 17 आन्दोलनकारी महिलाओं ने आरोप लगाया कि उस रात पुलिसकर्मियों ने लाठी चार्ज करने के बाद उनसे छेड़छाड़ की और बड़ी संख्या में आन्दोलनकारियों को गिरफ्तार कर लिया। लाठीचार्ज के बाद रैली वाले इधर-उधर तितर वितर हो गये थे। कुछ महिलाओं ने बताया कि कुछ पुलिसकर्मियों ने बसों में चढ़ कर महिलाओं से छेड़छाड़ की। कुछ ने कहा कि उनके साथ पुलिसकर्मियों द्वारा बलात्कार किया गया। इनमें से 3 महिलाओं ने कहा कि उनके साथ बसों के अन्दर ही बलात्कार किया गया, जबकि 4 अन्य का आरोप था कि उन्हें बसों से खींच कर नजदीक गन्ने के खेतों में ले जाया गया और वहां बलात्कार किया गया। ये सारी वारदातें मध्य रात्रि 12 बजे से लेकर 2 अक्टूवर सुबह 3 बजे के बीच हुयीं। महिलाओं ने पुलिसकर्मियों पर उनके हाथों की घड़ियां, गले की सोने की चेन और नकदी लूटने का आरोप भी लगाया।
मुजफ्फरनगर काण्ड कितना विभत्स था इसकी एक बानगी राष्ट्रीय महिला आयोग की रिपोर्ट की इस समरी से मिल जाती हैः-
 ‘‘कई महिलाओं के साथ उनके बच्चे और युवा लड़कियां भी थीं। ये महिलाऐं रैली में भाग लेने के साथ दिल्ली में लाल किला जैसी दर्शनीय जगहें देखने भी गयीं थी। उन्होंने बताया कि उस रात पुलिसकर्मियों ने गन्ने के खेतों तथा पेड़ों पर पोजिशन ले रखी थी। हमने देहरादून में कुछ महिलाओं की टांगों पर पुलिस के डण्डों के प्रहार से हुये नीले निशान भी देखे। वास्तव में उनमें से एक महिला की जांघ के ज्वाइंट पर गंभीर चोट लगी थी। एक गवाह ने हमें मुजफ्फरनगर में पुलिस द्वारा हाथापाई के दौरान फाड़े गये अपने वस्त्र भी दिखाये। देहरादून में एक महिला ने हमें असाधारण रूप से सूजे हुये अपने स्तन दिखाये जिन पर पुलिसकर्मियों की दरिन्दगी (मोलेस्टेशन) के नीले निशान घटना के एक सप्ताह बाद भी साफ नजर आ रहे थे। उस महिला ने बताया कि एक सप्ताह से इलाज कराने के बाद भी उसकी चोटें अब भी दुख रही हैं। गोपेश्वर में एक महिला ने हमें बताया कि उसने 2 अक्टूबर प्रातः लगभग 9.30 बजे एक महिला को मुजफ्फरनगर अस्पताल में निर्वस्त्र ठिठुरते हुये देखा जो कि अपने हाथों से अपनी लाज ढकने का प्रयास कर रही थी। पहले ही उल्लेख किया जा चुका है कि कुछ महिलाएं उस रात पेटीकोट में ही बदहवास भाग रहीं थीं। अधिकांश महिलाओं ने बताया कि पुलिसकर्मियों ने उनके ब्लाउज के अंदर हाथ डाले, उनसे हाथापाई की, उनके सोने के आभूषण और नकदी छीन ली। संक्षेप में कहा जाय तो उस रात ने पुलिस का सबसे गंदा आचरण देखा। महिलाओं को संभालने के लिये वहां महिला पुलिस तो थी नहीं और पुरुष पुलिसकर्मी बेकाबू हो कर पहिलाओं की लज्जाभंग, लूटपाट, उनसे मारपीट, गाली गलौच और दुष्कर्म पर उतर आये। प्रत्यक्षदर्शियों और सामाजसेवियों ने इस घटना पर दुख प्रकट करते हुये कहा कि यह सब उस दिन हुआ जिस दिन अहिंसा के प्रतीक महात्मा गांधी का जन्मदिन था।’’
केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) द्वारा आदालत में दाखिल की गयी दूसरी रिपोर्ट के पृष्ठ 2 और 3 में दिये गये विवरण एवं उत्तर प्रदेश सरकार के एडवोकेट द्वारा हाइकोर्ट में जमा रिपोर्टों के अनुसार 18 अगस्त 1994 से लेकर 9 दिसम्बर 1994 तक गढ़वाल और कुमाऊं में उत्तर प्रदेश सरकार की आरक्षण नीति के खिलाफ एवं पृथक राज्य की मांग को लेकर चले आन्दोलन में बड़ी संख्या में आन्दोलनकारियों को गिरफ्तार किया गया। इस दौरान चमोली, टिहरी गढ़वाल, उत्तरकाशी, अल्मोड़ा, देहरादून, नैनीताल, पिथौरागढ़ एवं पौड़ी गढ़वाल जिलों में कुल 20,522 गिरफ्तारियां की गयीं जिनमें से 19,143 लोगों को उसी दिन रिहा कर दिया गया जबकि 1,379 को जेलों में भेजा गया। इनमें से भी 398 लोगों को पहाड़ों से बहुत दूर बरेली, गोरखपुर, आजमगढ़, फतेहगढ़, मैनपुरी, जालौन, बांदा, गाजीपुर बलिया और उन्नाव की जेलों में भेजा गया।
 हाइकोर्ट ने पहाड़ के इन आन्दोलनकारियों को उनकी गिरफ्तारी के स्थान से 300 से लेकर 800 किमी दूर तक की जेलों में भेजे जाने पर राज्य सरकार की नीयत पर भी सवाल उठाया। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 12 जनवरी 1995 के आदेशानुसार सीबीआइ ने विभिन्न वारदातों में 64 मामलों की विवेचना की थी जिसके पश्चात सीबीआइ ने 43 मामलों में आरोप पत्र दाखिल किये इन 43 मामलों में 3 मामलों में निर्णय हो चुका था उनमें किसी को सजा नहीं हुयी थी शेष 40 मामले सुनवाई के विभिन्न चरणों में थे। इन आरोपियों में डीएसपी गीता प्रसाद नैनवाल और सब इंस्पेक्टर इन्दुभूषण नौटियाल भी शामिल थे। नैनवाल पर एसपी राजेन्द्र पाल सिंह के साथ ही एक सिपाही की स्टेनगन छीन कर आन्दोलनकारियों पर गोलियां बरसाने का आरोप था और नौटियाल पर अरोपियों को बचाने के लिये पुलिस रिकार्ड में हेराफेरी का आरोप था। हैरानी का विषय यह है कि राज्य गठन के बाद गीता प्रसाद नैनवाल रिटायर हो गये तो पुलिस ट्रेनिंग के विशेषज्ञ के तौर पर 
उत्तराखण्ड पुलिस के मुख्यालय में पुनर्नियुक्ति दी गयी। 
खटीमा और मसूरी गोलीकाण्डों के बाद अगर दिल्ली पुलिस को आन्दोलनकारियों के हथियार ले कर दिल्ली रैली में भाग लेने की गलत सूचना नहीं दी जाती तो मुजफ्फरनगर काण्ड नहीं होता। दिल्ली पुलिस को ऐसी खतरनाक सूचना देने वाले का चेहरा आज तक बेनकाब नहीं हो सका। दिल्ली पुलिस के तत्कालीन उपायुक्त दीपचन्द की आन्दोलनकारी नेता दिवाकर भट्ट को 30 सितम्बर 1994 को लिखी गई चिðी का रहस्य आज तक नहीं खुला। इस चिðी में कहा गया था कि गढ़वाल के सांसद मेजर जनरल (सेनि) भुवनचन्द्र खण्डूड़ी ने पूर्व सैनिकों से बावर्दी दिल्ली रैली में भाग लेने की अपील की थी। चिðी में हथियार लेकर आन्दोलनकारियों के पहुंचने की संभावना व्यक्त की गयी थी। लेकिन बाद मंे स्वयं तत्कालीन गृहमंत्री एस बी चह्वाण ने न केवल खण्डूड़ी को क्लीन चिट दे दी बल्कि उन पर गलत आरोप के लिये खेद भी प्रकट किया। इस चिðी से इतना तो स्पष्ट हो ही जाता है कि दिल्ली पुलिस को मिली गलत सूचना की जानकारी कम से कम दिवाकर भट्ट को तो थी ही लेकिन उन्होंने अगर चिðी के जवाब में सही जानकारी नहीं दी। आन्दोलन के स्वयंभू फील्ड मार्शल दिवाकर भट्ट का मुजफ्फरनगर काण्ड के बाद लम्बे समय तक गायब रहना भी किसी की समझ में नहीं आया। कुमाऊं मण्डल के आन्दोलनकारी रामपुर, मुरादाबाद एवं गाजियाबाद होते हुये बेरोकटोक सकुशल दिल्ली पहुंच गये थे तो फिर गढ़वाल से आने वाले आन्दोलनकारियों को ही क्यों बंदूक की नोकों पर रोका गया और उनका नरसंहार और बलात्कार किया गया, यह रहस्य भी आज तक नहीं खुला।

जयसिंह रावत
ई-11, फ्रेंड्स एन्कलेव, शाहनगर
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून
मोबाइल -9412324999



Friday, November 9, 2018

Uttarakhandis : Victims of State Terrorism Deprived of Justice... Why ?

Five  out of 8 Ex Chief Ministers of Uttarakhand from left to right Ramesh pPokhariyal Nishan, Vijay Bahuguan, Bhagat Singh Koshyari, Harish Rawat and Bhuvan Chandra Khanduri.

उत्तराखण्ड राज्य तो मिला मगर न्याय नहीं मिला
-जयसिंह रावत
Author and Journalist Jay Singh Rawat whose book on this subject is
 under publication
दशकों के जनसंघर्षों के बाद भारतीय गणतंत्र के 27वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आने वाला  उत्तराखण्ड राज्य अपने जीवनकाल के 18 साल पूरे कर 19वें वर्ष में प्रवेश कर गया। इन 19 वर्षों में राजनीतिक नेताओं के लिये विधायकी की 70 सीटें और मुख्यमंत्री सहित मंत्रिमण्डल के 12 पदों तथा मंत्रियों के ठाटबाट जैसे सकेड़ों पद श्रृजित हो गये। ऐसे-वैसे भी कैसे-कैसे हो गये। नेतागिरी के पेशे में लगे लोगों की आमदनी दिन दोगुनी और रात चैगुनी हो गयी। मगर जिन लोगों ने इस राज्य की मांग के लिये अपनी जानें कुर्बान कर दीं और जिन महिलाओं ने अपनी आबरू तक लुटवा ली उन्हें अब तक न्याय नहीं मिला। उत्तराखण्ड आन्दोलन के दौरान हुये सरकारी दमन को इलाहाबाद हाइकोर्ट ने राज्य प्रायोजित आतंकवाद बताया था। सीबीआइ ने मुजफ्फरनगर के जैसे काण्डों की जांच कर मामले अदालत में तो डाल दिये मगर एक भी बलात्कारी या हत्यारे को सजा नहीं हुयी। जिन लोगों ने दिल्ली पुलिस को आन्दोलनकारियों के हथियार ले कर दिल्ली आने की झूठी सूचना दी उनके चेहरे आज तक बेनकाब नहीं हो पाये। अगर दिल्ली पुलिस को उत्तराखण्ड के ही कुछ नेताओं द्वारा गुमराह नहीं किया जाता तो बहुत संभव था कि आन्दोलन के दौरान इतना सरकारी दमन नहीं होता।
सीबीआइ की पहली रिपोर्ट के पृष्ठ 22 से लेकर 27 तक में बलात्कार एवं लज्जाभंग और छेड़छाड़ का विवरण दिया गया है। इसके समर्थन में संलग्नक भी दिये गये हैं। प्रथम रिपोर्ट के साथ लगे संलग्नक 6 भागों में तथा 391 पृष्ठों में हैं। इसके भाग तीन में गवाहों के बयान दर्ज हैं। रिपोर्ट के अनुसार 2 अक्टूबर 1994 की प्रातः लगभग 5.30 बजे देहरादून और आसपास के इलाकों से आई 53 से अधिक बसें रामपुर तिराहे पर पहुंची और उनमें सवार आन्दोलनकारी पिछली रात्रि से वहां पर रोके गये लगभग 2000 रैलीवालों से आकर मिल गये। अधिकारियों के बयानों के अनुसार इन बसों को भी तलाशी के लिये रोक दिया गया था। पहाड़ से आयी बसों से यात्रा कर रहीं 17 आन्दोलनकारी महिलाओं ने आरोप लगाया कि उस रात पुलिसकर्मियों ने लाठी चार्ज करने के बाद उनसे छेड़छाड़ की और बड़ी संख्या में आन्दोलनकारियों को गिरफ्तार कर लिया। लाठीचार्ज के बाद रैली वाले इधर-उधर तितर वितर हो गये थे। कुछ महिलाओं ने बताया कि कुछ पुलिसकर्मियों ने बसों में चढ़ कर महिलाओं से छेड़छाड़ की। कुछ ने कहा कि उनके साथ पुलिसकर्मियों द्वारा बलात्कार किया गया। इनमें से 3 महिलाओं ने कहा कि उनके साथ बसों के अन्दर ही बलात्कार किया गया, जबकि 4 अन्य का आरोप था कि उन्हें बसों से खींच कर नजदीक गन्ने के खेतों में ले जाया गया और वहां बलात्कार किया गया। ये सारी वारदातें मध्य रात्रि 12 बजे से लेकर 2 अक्टूवर सुबह 3 बजे के बीच हुयीं। महिलाओं ने पुलिसकर्मियों पर उनके हाथों की घड़ियां, गले की सोने की चेन और नकदी लूटने का आरोप भी लगाया।
मुजफ्फरनगर काण्ड कितना विभत्स था इसकी एक बानगी राष्ट्रीय महिला आयोग की रिपोर्ट की इस समरी से मिल जाती हैः-
 ‘‘कई महिलाओं के साथ उनके बच्चे और युवा लड़कियां भी थीं। ये महिलाऐं रैली में भाग लेने के साथ दिल्ली में लाल किला जैसी दर्शनीय जगहें देखने भी गयीं थी। उन्होंने बताया कि उस रात पुलिसकर्मियों ने गन्ने के खेतों तथा पेड़ों पर पोजिशन ले रखी थी। हमने देहरादून में कुछ महिलाओं की टांगों पर पुलिस के डण्डों के प्रहार से हुये नीले निशान भी देखे। वास्तव में उनमें से एक महिला की जांघ के ज्वाइंट पर गंभीर चोट लगी थी। एक गवाह ने हमें मुजफ्फरनगर में पुलिस द्वारा हाथापाई के दौरान फाड़े गये अपने वस्त्र भी दिखाये। देहरादून में एक महिला ने हमें असाधारण रूप से सूजे हुये अपने स्तन दिखाये जिन पर पुलिसकर्मियों की दरिन्दगी (मोलेस्टेशन) के नीले निशान घटना के एक सप्ताह बाद भी साफ नजर रहे थे। उस महिला ने बताया कि एक सप्ताह से इलाज कराने के बाद भी उसकी चोटें अब भी दुख रही हैं। गोपेश्वर में एक महिला ने हमें बताया कि उसने 2 अक्टूबर प्रातः लगभग 9.30 बजे एक महिला को मुजफ्फरनगर अस्पताल में निर्वस्त्र ठिठुरते हुये देखा जो कि अपने हाथों से अपनी लाज ढकने का प्रयास कर रही थी। पहले ही उल्लेख किया जा चुका है कि कुछ महिलाएं उस रात पेटीकोट में ही बदहवास भाग रहीं थीं। अधिकांश महिलाओं ने बताया कि पुलिसकर्मियों ने उनके ब्लाउज के अंदर हाथ डाले, उनसे हाथापाई की, उनके सोने के आभूषण और नकदी छीन ली। संक्षेप में कहा जाय तो उस रात ने पुलिस का सबसे गंदा आचरण देखा। महिलाओं को संभालने के लिये वहां महिला पुलिस तो थी नहीं और पुरुष पुलिसकर्मी बेकाबू हो कर पहिलाओं की लज्जाभंग, लूटपाट, उनसे मारपीट, गाली गलौच और दुष्कर्म पर उतर आये। प्रत्यक्षदर्शियों और सामाजसेवियों ने इस घटना पर दुख प्रकट करते हुये कहा कि यह सब उस दिन हुआ जिस दिन अहिंसा के प्रतीक महात्मा गांधी का जन्मदिन था।’’
सीबीआइ को दिये गये अधिकारियों के बयानों के अनुसार इन बसों को भी तलाशी के लिये रोक दिया गया था और जब उन्हें तलाशी देने को कहा गया तो उन्होंने इंकार करने के साथ ही वे उग्र भी हो गये। अधिकारियों के बयानों के अनुसार इस ग्रुप ने उग्र रूप धारण कर पुलिस पर ईंट और पत्थर बरसाने शुरू कर दिये बार-बार चेतावनी देने पर भी जब वे नहीं माने तो पुलिस को लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल करना पड़ा। जब इसके बाद भी पथराव और ईंट बरसाने बंद नहीं हुये तो पुलिस को रबर की गोलियां चलानी पड़ी। मुजफ्फरनगर जिले में पहले ही 9 सितम्बर 1994 से लेकर 8 अक्टूबर 1994 तक धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लागू थी, इसलिये बिना अनुमति के 5 से अधिक व्यक्तियों का एक स्थान पर एकत्र होना और आग्नेयास्त्र तथा अन्य हथियार लेकर चलना प्रतिबंधित था। जिला प्रशासन के रिकार्ड के अनुसार इस घटना में एक हेड कांस्टेबल और 5 कांस्टेबलों द्वारा थ्रीनाॅट थ्री (.303) रायफलों से 24 राउण्ड फायर किये गये।
लेकिन जांच के दौरान सीबीआइ को अपने बयान में छोटे रैंक के 6 पुलिसकर्मियों ने बताया कि उन्होंने रैली वालों पर कोई फायरिंग नहीं की मगर उच्च अधिकारियों ने उन पर रैली वालों पर गोलियां चलाने की बात स्वीकार करने के लिये दबाव डाला। इन पुलिस कर्मियों में हेड कांस्टेबल नं0-158 सीपी सतीश चन्द्र, नं0-715 सीपी चमन त्यागी, एवं कांस्टेबल महाराज सिंह शामिल थे। एक कांस्टेबल नं0-90 एपी सुभाष चन्द्र ने सीबीआइ को बताया कि उसे तो आटोमेटिक हथियार चलाना भी नहीं आता है। वह सीओ मण्डी जगदीश सिंह के साथ सिक्यौरिटी ड्यूटी पर था और डीएसपी जगदीश सिंह ने ही उसकी स्टेनगन से फायरिंग की थी। फायरिंग में 5 लोग मारे गये थे और 23 अन्य घायल हो गये थे। कांस्टेबल सुभाष चन्द्र ने आगे बताया कि मुजफ्फरनगर के एस.पी राजेन्द्र पाल सिंह ने एक कांस्टेबल से रायफल छीन कर फायरिंग की। उसने डीएसपी गीता प्रसाद नैनवाल एवं एडिशनल एस.पी के गनर को आटोमेटिक हथियार से भीड़ पर फायरिंग करते देखा।
पूछताछ के दौरान मुजफ्फरनगर पुलिस के रिकार्ड की जांच के दौरान मूल अभिलेखों की सीबीआइ द्वारा जांच की गयी। जांच के दौरान पाया गया कि जिला पुलिस की जनरल डायरी इश्यू रजिस्टर में ओवर राइटिंग की गयी थी। पुलिस सटेशनों को जारी जनरल डायरी संख्या 7 को बदल दिया गया था। मुजफ्फरनगर पुलिस लाइन की जनरल डायरी का पेज संख्या 479571 गायब मिला। डुप्लीकेट जनरल डायरी के 200 पृष्ठों में से केवल 199 पृष्ठ ही डायरी में पाये गये। रामपुर तिराहे पर महिला पुलिस की तैनाती के सम्बन्ध में नयी मण्डी थाने की जनरल डायरी में ओवर राइटिंग मिली। 3 अक्टूवर 1994 को जिला कण्ट्रोल रूम  में दर्ज संदेश में कहा गया था कि सभी जनरल डायरियां एस.पी मुजफ्फरनगर के गोपन कार्यालय को तत्काल भेज दी जांय। जांच में पुलिस अधीक्षक राजेन्द्र पाल सिंह के रीडर सब इंस्पेक्टर इन्दुभूषण नौटियाल द्वारा आरोपियों को बचाने के लिये रिकार्ड में हेराफेरी किये जाने की बात भी सामने आयी।
उच्च न्यायालय के दिनांक 12 जनवरी 1994 के आदेशानुसार सीबीआइ ने मसूरी गोलीकाण्ड मामले की जांच अपने हाथ में ली। रिपोर्ट के अनुसार2 सितम्बर की प्रातः मसूरी के नये थाना प्रभारी ने झूलाघर के हाॅल से 5 आन्दोलनकारियों को गिरफ्तार कर उन्हें वहां से हटा दिया था जिस कारण आन्दालनकारी भड़क गये और आन्दोलन और उग्र हो गया। इस पर 43 लोगों को गिरफ्तार किया गया। इसके विरोध में मसूरी के महिला, पुरुष और बच्चे बड़ी संख्या में झूलाघर पहुंचे और नारेबाजी करने लगे। पत्थरबाजी के बाद वहां तैनात पुलिस ने भीड़ पर लाठीचार्ज करने के साथ ही आंसू गैस का भी प्रयोग किया। महिलाओं की अगुवायी में भीड़ हाॅल के अंदर घुसी और वहां कैंप कर रहे पीएसी के जवानों का सामान तथा उनके हथियार एवं एम्युनिशन बाहर फेंकने लगे। उस वक्त पुलिस उपाधीक्षक उमाकांन्त त्रिपाठी हाॅल में मौजूद थे। उनके दाहिने हाथ पर चोट लगी थी। इस फायरिंग में 2 महिलाओं समेत 6 लोगों की मौत हो गयी। मृतक महिलाओं में श्रीमती हंसा धनाई और श्रीमती बेलमती चैहान शामिल थीं। उपाधीक्षक उमाकांत त्रिपाठी जो कि घायलों के साथ इलाज के लिये सेंट मैरी अस्पताल गये थे, की मौत अस्पताल के बाहर हो गयी। जांच के दौरान यह बात भी सामने आयी कि इस कार्यवाही के दौरान पुलिस ने आन्दोलनकारियों का कुछ सामान भी जब्त कर दिया था जिसमें एक दानपात्र भी था जिसे मसूरी थाने के मालखाने में जमा कर दिया गया। इस घटना में 48 आन्दोलनकारी गिरफ्तार किये गये जिन्हें बरेली जेल भेज दिया गया। ये आन्दोलनकारी 6-9- 1994 को रिहा किये गये।
खटीमा काण्ड के बारे में सीबीआइ रिपोर्ट में कहा गया है कि इस केस में 3 लोगों के मारे जाने और 4 के लापता होने के इस मामले को सीबीआइ द्वारा राज्य पुलिस से जांच के लिये लिया गया। जिन 3 लोगों के फायरिंग में मारे जाने की बात पुलिस ने स्वीकारी उनके शव का खटीमा से 10-15 किमी दूर मझोला में 4 स्थानीय गवाहों के समक्ष अंतिम संस्कार किया गया। मृतकों के परिजनों ने दावा किया कि पीलीभीत में जहां शवों के पोस्टमार्टम हुये वहां पुलिस से शव मांगे गये मगर पुलिस ने उन्हें शव नहीं दिये। सीबीआइ की सातवीं रिपोर्ट के पृष्ठ 13 पर उन 4 व्यक्तियों का उल्लेख है जिन्हें लापता बताया गया था। सीबीआइ के अनुसार-’’ जांच से सरसरी तौर पर पता चला है कि पुलिस फायरिंग में वे भी मारे गये और उनके शवों का उनके वारिशों को बताये बिना निस्तारण कर दिया गया।’’
केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) द्वारा आदालत में दाखिल की गयी दूसरी रिपोर्ट के पृष्ठ 2 और 3 में दिये गये विवरण एवं उत्तर प्रदेश सरकार के एडवोकेट द्वारा हाइकोर्ट में जमा रिपोर्टों के अनुसार 18 अगस्त 1994 से लेकर 9 दिसम्बर 1994 तक गढ़वाल और कुमाऊं में उत्तर प्रदेश सरकार की आरक्षण नीति के खिलाफ एवं पृथक राज्य की मांग को लेकर चले आन्दोलन में बड़ी संख्या में आन्दोलनकारियों को गिरफ्तार किया गया। इस दौरान चमोली, टिहरी गढ़वाल, उत्तरकाशी, अल्मोड़ा, देहरादून, नैनीताल, पिथौरागढ़ एवं पौड़ी गढ़वाल जिलों में कुल 20,522 गिरफ्तारियां की गयीं जिनमें से 19,143 लोगों को उसी दिन रिहा कर दिया गया जबकि 1,379 को जेलों में भेजा गया। इनमें से भी 398 लोगों को पहाड़ों से बहुत दूर बरेली, गोरखपुर, आजमगढ़, फतेहगढ़, मैनपुरी, जालौन, बांदा, गाजीपुर बलिया और उन्नाव की जेलों में भेजा गया। हाइकोर्ट ने पहाड़ के इन आन्दोलनकारियों को उनकी गिरफ्तारी के स्थान से 300 से लेकर 800 किमी दूर तक की जेलों में भेजे जाने पर राज्य सरकार की नीयत पर भी सवाल उठाया। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 12 जनवरी 1995 के आदेशानुसार सीबीआइ ने विभिन्न वारदातों में 64 मामलों की विवेचना की थी जिसके पश्चात सीबीआइ ने 43 मामलों में आरोप पत्र दाखिल किये इन 43 मामलों में 3 मामलों में निर्णय हो चुका था उनमें किसी को सजा नहीं हुयी थी शेष 40 मामले सुनवाई के विभिन्न चरणों में थे। इन आरोपियों में डीएसपी गीता प्रसाद नैनवाल और सब इंस्पेक्टर इन्दुभूषण नौटियाल भी शामिल थे। नैनवाल पर एसपी राजेन्द्र पाल सिंह के साथ ही एक सिपाही की स्टेनगन छीन कर आन्दोलनकारियों पर गोलियां बरसाने का आरोप था और नौटियाल पर अरोपियों को बचाने के लिये पुलिस रिकार्ड में हेराफेरी का आरोप था। हैरानी का विषय यह है कि राज्य गठन के बाद गीता प्रसाद नैनवाल रिटायर हो गये तो पुलिस ट्रेनिंग के विशेषज्ञ के तौर पर उत्तराखण्ड पुलिस के मुख्यालय में पुनर्नियुक्ति दी गयी। 
खटीमा और मसूरी गोलीकाण्डों के बाद अगर दिल्ली पुलिस को आन्दोलनकारियों के हथियार ले कर दिल्ली रैली में भाग लेने की गलत सूचना नहीं दी जाती तो मुजफ्फरनगर काण्ड नहीं होता। दिल्ली पुलिस को ऐसी खतरनाक सूचना देने वाले का चेहरा आज तक बेनकाब नहीं हो सका। दिल्ली पुलिस के तत्कालीन उपायुक्त दीपचन्द की आन्दोलनकारी नेता दिवाकर भट्ट को 30 सितम्बर 1994 को लिखी गई चिð का रहस्य आज तक नहीं खुला। इस चिð में कहा गया था कि गढ़वाल के सांसद मेजर जनरल (सेनि) भुवनचन्द्र खण्डूड़ी ने पूर्व सैनिकों से बावर्दी दिल्ली रैली में भाग लेने की अपील की थी। चिð में हथियार लेकर आन्दोलनकारियों के पहुंचने की संभावना व्यक्त की गयी थी। लेकिन बाद मंे स्वयं तत्कालीन गृहमंत्री एस बी चह्वाण ने केवल खण्डूड़ी को क्लीन चिट दे दी बल्कि उन पर गलत आरोप के लिये खेद भी प्रकट किया। इस चिð से इतना तो स्पष्ट हो ही जाता है कि दिल्ली पुलिस को मिली गलत सूचना की जानकारी कम से कम दिवाकर भट्ट को तो थी ही लेकिन उन्होंने अगर चिð के जवाब में सही जानकारी नहीं दी। आन्दोलन के स्वयंभू फील्ड मार्शल दिवाकर भट्ट का मुजफ्फरनगर काण्ड के बाद लम्बे समय तक गायब रहना भी किसी की समझ में नहीं आया। कुमाऊं मण्डल के आन्दोलनकारी रामपुर, मुरादाबाद एवं गाजियाबाद होते हुये बेरोकटोक सकुशल दिल्ली पहुंच गये थे तो फिर गढ़वाल से आने वाले आन्दोलनकारियों को ही क्यों बंदूक की नोकों पर रोका गया और उनका नरसंहार और बलात्कार किया गया, यह रहस्य भी आज तक नहीं खुला।

जयसिंह रावत
-11, फ्रेंड्स एन्कलेव, शाहनगर
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