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Monday, December 24, 2018

त्रिवेन्द्र जी ने पठानों को सैनिक बना दिया पेशावर काण्ड में


त्रिवेन्द्र जी ने पठानों को सैनिक बना दिया पेशावर काण्ड में
-जयसिंह रावत
स्वाधीनता सेनानियों के महान त्याग-तपस्या और बलिदान की बदौलत एक सार्वभौम और धर्म निरपेक्ष गणराज्य में स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के माहौल में दिन दूनी रात चौगुनी कर रहे हम लोग कितने कृतघ्न हो गये कि अपने स्वाधीनता सेनानियों के महान कृत्यों को ही भूल गये। खास कर हम उत्तराखण्डवासियों के लिये इससे बड़ी लज्जा का विषय और क्या हो सकता है कि जिस चन्द्र सिंह गढ़वाली ने 23 अप्रैल 1930 को पेशावर में निहत्थे स्वाधीनता संग्रामी पठानों पर गोली चलाने से इंकार कर एक और जलियांवाला बाग काण्ड होने से रोकने के साथ ही दुनियां में हिन्दू -मुस्लिम भाईचारे की एक मिसाल पेश कर उत्तराखण्ड का नाम रोशन किया उस चन्द्र सिंह गढ़वाली के बारे में उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री और उनके मीडिया सहायकों को कोई जानकारी ही नहीं है। गढ़वाली सैनिकों ने 23 अपै्रल 1930 को पेशावर में गांधी जी के आवाहन पर खान अब्दुल गफार खान बंधुओं द्वारा चलाये जा रहे नमक आन्दोलन के दौरान पठानों पर गोलियां चलाने से इंकार किया था जबकि मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की ओर से जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि गढ़वाली और उनके सैनिकों ने निहत्थे सैनिकों पर गोली चलाने से इंकार कर दिया था। विज्ञप्ति में इतिहास के साथ कुछ अन्य ज्यादतियां भी की गयी हैं। विज्ञप्ति में कहा गया है कि उनको गढ़वाली की पदवी महात्मा गांधी ने दी थी जबकि इस तरह का कोई भी ऐतिहासिक प्रमाण मौजूद नहीं है। पेशावर काण्ड सन् 1857 के बाद भारतीय सेनिकों का यह पहला विद्रोह था। मगर विद्रोह भी ऐसा कि किसी पर बंदूक उठा कर नहीं बल्कि बंदूक झुका कर। इस घटना से सारे देश में आजादी के आन्दोलन को नयी स्फूर्ति मिली। भारत से लेकर ब्रितानियां तक गढ़वालियों का नाम हुआ। मोती लाल नेहरू के आवाहन पर देश के प्रमुख नगरों में ‘‘गढ़वाली दिवस’’ मनाया गया। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने गढ़वाली सेनिकों और अफसरों को उनके देश प्रेम और बलिदान के लिये सहर्ष तत्पर रहने की भावना से प्रभावित हो कर उन्हें आजाद हिन्द फौज में महत्वपूर्ण पदों पर रखा। इस काण्ड में चन्द्रसिंह एवं अन्य गढ़वाली सैनिकों को मृत्युदण्ड भी मिल सकता था, लेकिन बैरिस्टर मुकन्दीलाल की जबरदस्त पैरवी से उन्हें फांसी की सजा नहीं हुयी मगर सारी उम्र कालापानी की सजा अवश्य मिली। 13 जून 1930 को पेशावर काण्ड के सैनिकों और ओहदेदारों को ऐबटाबाद मिलिट्री कोर्ट मार्शल द्वारा सजा सुनाई गयी थी। (इसी एबटाबाद सैन्य छावनी क्षेत्र में बिन लादेन भी अमरीकी कमाण्डो द्वारा मारा गया था) इनमें चन्द्रसिंह भण्डारी ‘‘गढ़वाली’’ को जिन्दगी भर कालापानी की सजा के साथ ही उनकी सारी जमीन जायदाद जब्त, हवलदार पद से डिमोशन कर सिपाही का दर्जा और सिपाही पद से भी बर्खास्तगी हुयी।  हवलदार मेजर चन्द्र सिंह के अलावा हवलदार नारायण सिंह गुसाईं, नायक जीत सिंह रावत, नायक भोला सिंह बुटोला, नायक केशर सिंह रावत, नायक हरक सिंह धपोला, लांस नायक महेन्द्र सिंह, लांस नायक भीमसिंह बिष्ट, लांस नायक रतन सिंह नेगी, लांस नायक आनन्द सिंह रावत, लांस नायक आलम सिंह फरस्वाण, लांस नायक भवान सिंह रावत, लांस नायक उमराव सिंह रावत, लांस नायक हुकम सिंह कठैत, और लांस नायक जीतसिंह बिष्ट को  लम्बी सजायंे हुयीं। इनके अलावा पाती राम भण्डारी, पान सिंह दानू, रामसिंह दानू, हरक सिंह रावत, लछमसिंह रावत, माधोसिंह गुसाईं चन्द्र सिंह रावत, जगत सिंह नेगी, ज्ञानसिंह भण्डारी, शेरसिंह भण्डारी,  मानसिंह कुंवर, बचन सिंह नेगी, रूपचन्द सिंह रावत, श्रीचन्द सिंह सुनार, गुमान सिंह नेगी, माधोसिंह नेगी, शेरसिंह महर, बुद्धिसिंह असवाल, जूरासंध सिंह रमोला, रायसिंह नेगी, किशन सिंह रावत, दौलत सिंह रावत, करम सिंह रौतेला, डबल सिंह रावत, हरकसिंह नेगी, रतन सिंह नेगी, हुक्म सिंह सुनार, श्यामसिंह सुनार, सरोप सिंह नेगी, मदनसिंह नेगी, प्रताप सिंह रावत, खेमसिंह गुसाईं एवं रामचन्द्र सिंह चौधरी को कोटमार्शल द्वारा सेना की नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। इनके अलावा त्रिलोक सिंह रावत, जैसिंह बिष्ट, गोरिया सिंह रावत, गोविन्द सिंह बिष्ट, दौलत सिंह नेगी, प्रताप सिंह नेगी और रामशरण बडोला को सेना से डिस्चार्ज किया गया। चन्द्र सिंह गढ़वाली की जायदाद जब्त हो चुकी थी इसीलिये आजादी के बाद उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कोटद्वार भाबर के हल्दूखत्ता में आजीविका के लिये लीज पर जमीन दी थी लेकिन उत्तर प्रदेश का वन विभाग आये दिन गढ़वाली के वारिशों को जमीन खाली कराने की धमकी देता रहता है।
उत्तराखण्ड सरकार को जब पेशावर काण्ड की जनकारी ही नहीं है तो उनसे आजीविका और दो गज जमीन के लिये तरस रहे गढ़वाली जी के वंशजों की सुध लेने की अपेक्षा कैसे की जा सकती है। उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री की ओर से सूचना एवं लोक सम्पर्क विभाग द्वारा जारी इस विज्ञप्ति से पता चल जाता है कि मुख्यमंत्री और उनके मीडिया मैनेजरों को भारत के स्वाधीनता संग्राम के इतिहास और खास कर उत्तराखण्ड के स्वधीनता सेनानियों के बारे में कितनी जानकारी है। आज 24 दिसम्बर को जारी हिन्दी एवं अंग्रेजी की विज्ञप्तियां इस प्रकार हैंः-

 Dehradun 24 December, 2018

Press Note-02(12/87)
CM Rawat remembered Veer Chander Singh ‘Garhwali’ on his anniversary
Chief Minister Mr. Trivendra Singh Rawat remembered the hero of ‘Peshawar incident’ Veer Chander Singh ‘Garhwali’ on his birth anniversary. On the eve of his birth anniversary, Chief Minister Mr. Trivendra Singh Rawat said that ‘Peshawar incident’ was a milestone in the freedom struggle and Veer Chander Singh ‘Garhwali’ who was a hero of Peshawar is a heritage of Uttarakhand. He said that Veer Chander Singh ‘Garhwali’ played a stellar role in freedom struggle.       
Terming Veer Chander Singh ‘Garhwali’ as great hero of ‘Peshawar incident’, Chief Minister said that by ordering not to fire on unarmed soldiers, he displayed the great spirit of patriotism. He further said that the incident was a milestone in the freedom struggle which paved the way for the basis of revolution.      
Chief Minister Mr. Trivendra Singh Rawat said that after Peshawar revolution, Veer Chander Singh ‘Garhwali’ stood amongst the first rank of freedom fighters. Mahatama Gandhi honoured him by giving him the name of ‘Garhwali’.  Terming the contribution of Veer Chander Singh ‘Garhwali’ and his associates was unforgettable and unique, he said that this incident was written in golden letters in the history of freedom struggle of the country. Chief Minister Mr. Trivendra Singh Rawat said that following the path shown by Veer Chander Singh ‘Garhwali’ will be the true tribute to him.
Information and Public Relations Department
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मा.मुख्यमंत्री प्रेस सूचना ब्यूरो
(सूचना एवं लोक सम्पर्क विभाग)
देहरादून 24 दिसम्बर, 2018 (सू.ब्यूरो)
प्रेस नोट-02(12/93)
मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने पेशावर कांड के नायक वीर चन्द्र सिंह ‘गढ़वाली‘ का उनकी जंयती पर भावपूर्ण स्मरण किया है। उनकी जयंती की पूर्व संध्या पर जारी अपने संदेश में मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि भारत की आजादी के लिए ‘पेशावर कांड‘ एक महत्वपूर्ण पड़ाव था। पेशावर कांड के नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली उत्तराखण्ड की धरोहर हैं। देश की आजादी के आंदोलन में उनका अग्रणी योगदान रहा है। 
वीर चन्द्र सिंह ‘‘गढ़वाली‘‘ को पेशावर कांड का महानायक बताते हुए मुख्यमंत्री ने कहा की उन्होंने निहत्थे सैनिकों पर गोली न चलाने का आदेश देकर महान देशभक्ति का परिचय दिया था। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के आन्दोलन में यह घटना मील का पत्थर साबित हुई, जिसने भविष्य के लिए एक क्रांतिकारी आधारशिला रखी। 
मुख्यमंत्री श्री त्रिवन्द्र ने कहा कि पेशावर क्रांति के बाद वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली राष्ट्र के अग्रणी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की पंक्ति में खडे हो गये। महात्मा गांधी ने उन्हें ‘‘गढ़वाली‘‘ नाम देकर सम्मानित किया था। उन्होंने भारत की आजादी में वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली तथा उनके साथियों के योगदान को अविस्मरणीय एवं अद्वितीय बताया है और कहा कि यह महत्वपूर्ण घटना भारत की आजादी के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है। मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि वीर चन्द्र सिंह ‘गढ़वाली‘ के बताये मार्ग का अनुकरण करना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
सूचना एवं लोक सम्पर्क विभाग

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मा.मुख्यमंत्री प्रेस सूचना ब्यूरो
(सूचना एवं लोक सम्पर्क विभाग)
सचिवालय परिसर, सुभाष रोड, देहरादून
उत्तराखण्ड, देहरादून।

Wednesday, December 19, 2018

औद्योगीकरण के भूत के आगे पहाड़ी किसान लाचार




औद्योगीकरण के भूत के आगे पहाड़ी किसान लाचार
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जयसिंह रावत
त्रिवेन्द्र सरकार के सिर औद्योगीकरण का ऐसा भूत सवार हो गया कि वह पृथक उत्तराखण्ड राज्य की मांग और नये राज्य के गठन के पीछे की भावना ही भूल गयी। पहाड़ के लोग लम्बे समय से अपनी विशिष्ट परिस्थितियों के अनुकूल अलग राज्य की मांग अपने त्वरित विकास के लिये तो कर रही रहे थे लेकिन इसके पीछे उनकी अलग पहचान बनाये रखने और पहाड़ की जमीनों को माफिया और धन्ना सेठों के हाथ जाने से रोकने की भावना भी थी। लेकिन प्रदेश की मौजूदा त्रिवेन्द्र सिंह रावत सरकार ने उद्योगपतियों को लुभाने के लिये उस भूकानून को सूली पर चढ़ा दिया जिसे जनता की भारी मांग पर नारायण दत्त तिवारी सरकार ने बनाया था और बाद में भुवन चन्द्र खण्डूड़ी सरकार ने उसे जनभावनाओं की कसौटी पर खरा उतारने के लिये और कठोर बना दिया था। निवेश आने से पहले ही निवेश के नशे में चूर त्रिवेन्द्र सरकार यह भी भूल गयी कि इसी उत्तराखण्ड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950) (अनुकूलन एवं उपान्तरण आदेश, 2001) (संशोधन) अधिनियम 2008 को पिछली सरकार कानूनी लड़ाई लड़ कर सुप्रीम कोर्ट से बचा कर लायी थी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री राजनाथ सिंह की उपस्थिति में गत 7 एवं 8 अक्टूबर को देहरादून में आयोजित इन्वेस्टर्स सम्मिट में आये 1.25 लाख करोड़ के निवेश के प्रस्तावों से त्रिवेन्द्र सिंह रावत सरकार इतनी गदगद है मानों कि इसी साल पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में भी लाखों करोड़ का निवेश करने का वायदा करने वाले गिने चुने उद्योगपति सचमुच सवा लाख करोड़ के कल कारखाने त्रिवेन्द्र सरकार की झोली में डाल चुके हों। इसी साल जनवरी में पश्चिम बंगाल में आयोजित इसी तरह की इन्वेस्टर्स सम्मिट में इन्हीं उद्योगपतियों ने 2.28 लाख करोड़ के निवेश के एमओयू पर हस्ताक्षर करने के बाद फरवरी में आयोजित उत्तर प्रदेष के इन्वेस्टर्स सम्मिट में 4.19 लाख करोड़ के निवेश के प्रस्तावों पर हस्ताक्षर किये थे। इन दो राज्यों में अभी तक तो कोई निवेश आया नहीं और भविष्य का भी कोई पता नहीं बहरहाल उत्तराखण्ड की त्रिवेन्द्र सरकार ने पहाड़ विरोधी सलाहकारों के बहकावे में आकर उत्तराखण्ड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950) (अनुकूलन एवं उपान्तरण आदेश, 2001) (संशोधन) अधिनियम 2008की उन धाराओं को ही हटा दिया जिनसे पहाड़ की जमीनों की अनियंत्रित खरीद फरोख्त पर अंकुश लगाया गया था।
कई दशकों से अपनी अलग पहचान और अपना शासन अलग चाहने वाले पहाड़वासियों की तीन प्रमुख मांगों में पहली मांग उत्तराखण्ड राज्य की और दूसरी मांग पहाड़ की राजधानी पहाड़ में बनाने के साथ ही तीसरी मांग हिमाचल प्रदेश टेनेंसी एण्ड लैंड रिफार्म एक्ट 1972 की धारा 118 की तर्ज पर बाहरी लोगों द्वारा जमीनों की खरीद फरोख्त रोकने के लिये सख्त भूकानून बनाने की थी। इसके साथ ही पहाड़ की जनता अपनी विशिष्ट सामाजिक परिस्थितियों और सीमावर्ती इस राज्य की सामरिक संवेदनशीलता को देखते हुये उत्तर पूर्व के राज्यों की तरह संविधान की धारा 371(), 371 बी), 371 (सी), 371 (एफ) और 371 (जी) की जैसी संवैधानिक व्यवस्था उत्तराखण्ड में भी करने की मांग उठ रही थी। धारा 371 की मांग करने वालों में भाजपा के तत्कालीन सांसद मनोहरकान्त ध्यानी भी थे, जिन्होंने बाकायदा यह प्रस्ताव राज्यसभा में रखा भी था। इसलिये राज्य बनने के बाद जनता के भारी दबाव के कारण पहले नारायण दत्त तिवारी ने हिमाचल प्रदेश अेनेंसी एण्ड लैण्ड रिफॉर्म एक्ट 172 एक्ट की धारा-118 से मिलता जुलता कानून बनाया और फिर भुवनचन्द्र खण्डूड़ी ने जनता की भावनाओं को ध्यान में रखते हुये तिवारी के कानून को और सख्त बनाया था। सन् 2012 में जब राज्य विधानसभा का चुनाव हुआ था तो उस समय भाजपा के पास खण्डूड़ी सरकार द्वारा पहाड़ की जमीनों की खरीद फरोख्त पर अंकुश लगाने के लिये बनाया गया उत्तराखण्ड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950) (अनुकूलन एवं उपान्तरण आदेश, 2001) (संशोधन) विधेयक 2008 सबसे बड़ा चुनावी हथियार था। इस कानून को भुवनचन्द्र खण्डूड़़ी और भाजपा दोनों ने ही अपने राजनीतिक लाभ के लिये खूब भुनाया था। इस कानून में व्यवस्था थी कि 12 सितम्बर, 2003 तक जिन लोगों के पास राज्य में जमीन है, वह 12 एकड़ तक कृषि योग्य जमीन खरीद सकते हैं। लेकिन जिनके पास जमीन नहीं है, वे आवासीय उद्ेश्य के लिये भी इस तारीख के बाद 250 वर्ग मीटर से ज्यादा जमीन नहीं खरीद सकते हैं। लेकिन अब सरकार ने उद्योग के नाम पर कितनी ही जमीन खरीदने की छूट दे दी है। इसके अलावा धारा 143 के तहत कृषि भूमि का भूउपयोग बदलने की जो बंदिशें थीं उन्हें भी समाप्त करने का निर्णय त्रिवेन्द्र सरकार ने ले लिया है। अब कोई भी धन्नासेठ उद्योग लगाने के नाम पर बहुत ही सीमित मात्रा में उपब्ध कृषि भूमि खरीद कर उसका कुछ भी उपयोग कर सकता है। दरअसल प्रदेश में जमीनों की खरीद फरोख्त पर नियंत्रण के लिये सन् 2003 में नारायण दत्त तिवारी सरकार ने सबसे पहले उत्तरांचल (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950) (अनुकूलन एवं उपान्तरण आदेश, 2001) (संशोधन) विधेयक 2003 के जरिये कानून बना दिया था। इसमें जमीन खरीदने की सीमा 500 वर्गमीटर थी जिसे बाद में खण्डूड़ी सरकार ने नाकाफी बता कर उसमें सन् 2008 में संशोधन कर प्रावधानों को और कठोर बना दिया था ताकि हिमाचल प्रदेश की तरह ही उत्तराखण्ड में भी बाहरी लोग आकर भोले-ंउचयभाले काश्तकारों की जमीनें खरीद कर उन्हें भूमिहीन बना दें। विधेयक से पहले तिवारी सरकार ने 12 सितम्बर 2003 को उत्तरांचल (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950) (अनुकूलन एवं उपान्तरण आदेश, 2001) (संशोधन) अध्यादेश 2003 प्रख्यापित किया। जिसे बाद में अधिनियम का रूप देने के लिये विधानसभा में पेश किया गया मगर भूमाफिया और ग्रामीणों की जमीनों पर गिद्धदृष्टि जमाये धन्नासेठों को वह बिल रास नहीं आया। बाहरी लोगों के भारी दबाव में तिवारी सरकार ने विजय बहुगुणा के नेतृत्व में एक समिति बना डाली जिसे जनता का पक्ष सुनने के बाद विधेयक का ड्राफ्ट तैयार करना था। राज्यपाल द्वारा जारी किये गये पहले अध्यादेश में कुल 13 संशोधन करा कर बहुगुणा समिति ने उसकी आत्मा ही मार दी गयी। उसमें गैर कृषक उपयोग वाली भूमि के विक्रय पर भी प्रतिबंध था जबकि इसकी जगह यह व्यवस्था की गयी कि 500 वर्ग मीटर तक बिना अनुमति के अकृषक भी जमीन खरीद सकता है। तिवारी सरकार द्वारा मूल अधिनियम में धारा 152 (), 154 (3), 154 (4) (1) एवं 154 (4) (2) जोड़ कर यह बंदिश लगा यह व्यवस्था कर दी थी कि प्रदेश में कोई भी अकृषक या जो मूल अधिनियम की धारा 129 के तहत जमीन का खातेदार हो वह 500 वर्ग मीटर तक बिना अनुमति के भी जमीन खरीद सकता है। लेकिन अब तो त्रिवेन्द्र सरकार ने रही सही बंदिशें भी समाप्त कर पहाड़ की जमीनें लूटने का मार्ग प्रशस्त कर दिया। गौरतलब है कि इस कानून को जब राज्य सरकार की लापरवाही के कारण नैनीताल हाइकोर्ट ने असंवैधानिक घोषित कर दिया था तो फिर राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट में जा कर अपना यह कानून बचा कर लाना पड़ा था।
दरअसल जब राज्य का गठन हुआ था तो उसी समय से राज्यवासियों द्वारा हिमाचल प्रदेश टेनेंसी एण्ड लैंड रिफार्म एक्ट 1972 की धारा 118 की तर्ज पर ही ऐसा कानून बनाये जाने की मांग की जा रही थी, ताकि बाहरी लोग पहाड़वासियों की जमीनें खरीद कर उनकी और उनकी आने वाली पीढि़यों के पांव के नीचे की जमीन खिसका दें। अन्य हिमालयी राज्यों में से धारा 370 के चलते जम्मू-कश्मीर में बाहरी लोग जमीनें नहीं खरीद सकते। हिमाचल प्रदेश में में ऐसा कानून राज्य गठन के तत्काल बाद 1972 में बन गया था। जबकि उत्तर पूर्व के हिमालयी राज्य शेड्यूल्ड-6 के दायरे में आते हैं इसलिये बाहरी लोग जनजातियों की जमीनें खरीद ही नहीं सकते। अब उत्तराखण्ड अकेला हिमालयी राज्य हो जायेगा जहां के मूल निवासियों की जमीनें कोई भी खरीद कर उन्हें उनकी ही जमीन पर मजदूरी करने के लिये विवश कर देगा। तराई में थारू और बोक्सा जन जातियों का ऐसा शोषण पहले से ही चल रहा है।
नारायण दत्त तिवारी ने उत्तरांचल (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950) (अनुकूलन एवं उपान्तरण आदेश, 2001) (संशोधन) विधेयक 2003 की भूमिका में कहा था कि उन्हें बड़े पैमाने पर कृषि भूमि की खरीद फरोख्त अकृषि कार्यों और मुनाफाखोरी के लिये किये जाने की शिकायतें मिल रहीं थीं। उनका कहना था कि प्रदेश की अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं को देखते हुये असामाजिक तत्वों द्वारा भी कृषि भूमि के उदार क्रय विक्रय नीति का लाभ उठाया जा सकता है। अतः कृषि भूमि के उदार क्रय विक्रय को नियंत्रित करने और पहाड़वासियों के आर्थिक स्थायित्व तथा विकास के लिये सम्भावनाओं का माहौल बनाये जाने हेतु यह कानून लाया जाना जरूरी है। चूंकि मामला बेहद गंभीर और जनभावनाओं से जुड़ा था और उस समय विधानसभा का सत्र भी नहीं चल रहा था। इसलिये इस खरीद फरोख्त पर तत्काल अंकुश के लिये उत्तरांचल (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950) (अनुकूलन एवं उपान्तरण आदेश, 2001) (संशोधन) अध्यादेश 2003 लाया गया जिसे बाद में संशोधित कर विधानसभा से पारित किया गया। अब त्रिवेन्द्र सरकार ने चन्द उद्योगपतियों को पहाड़ की जमीनें पानी के भाव खरीदने के लिये रास्ता बनाने हेतु मूल कानून की बंदिशें समाप्त करने के लिये उत्तरांचल (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950) (अनुकूलन एवं उपान्तरण आदेश, 2001) (संशोधन) अध्यादेश 2018 को मंजूरी दे दी। उत्तराखण्ड में कृषि के लिये केवल 13 प्रतिशत जमीन वर्गीकृत है बाकी में से 71 प्रतिशत भूभाग पर जंगल हैं। यहां 70 प्रतिशत से अधिक जोतें आधा हैक्टेअर से कम हैं और जमीनांे की कमी के चलते एक ही भूखाते के दर्जनों खातेदार हैं। अगर इतनी सीमित जमीन भी पहाड़ के लोगों से छीन ली गयी तो उनकी पीढि़यां ही भूमिहीन हो जायेंगी।

जयसिंह रावत
-11, फ्रेंड्स एन्कलेव, शाहनगर
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून।
मोबाइल-9412324999