Article authored by Jay Singh Rawat appeared in Navjivan Sunday epaper on December 2, 2018. link :-http://navjivan.4cplus.net//index.php?mod=1&pgnum=2&edcode=71&pagedate=2018-12-01&type= |
ढैंचा घोटाला पीछा नहीं छोड़ रहा त्रिवेन्द्र रावत का
-जयसिंह रावत
उत्तराखण्ड
के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र
सिंह रावत चाहे
भ्रष्टाचार के खिलाफ
जीरो टालरेंस का
जितना भी डंका
बजा लें मगर
राज्य का बहुचर्चित
ढैंचा बीज घोटाला
है कि उनका
पीछा ही नहीं
छोड़ रहा। करोड़ों
के इस घोटाले
में त्रिपाठी जांच
आयोग ने त्रिवेन्द्र
सिंह रावत, तत्कालीन
कृषि निदेशक और
कृषि सचिव को
दोषी माना था।
गाजियाबाद निवासी जय प्रकाश
डबराल ने उत्तराखण्ड
के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र
सिंह रावत के
खिलाफ नैनीताल हाइकोर्ट
में दायर ढैंचा
बीज घोटाले से
सम्बन्धित याचिका फिलहाल तो
वापस तो ले
ली मगर सदा
के लिये नहीं।
डबराल का कहना
है कि अदालत
ने उनसे पूरे
तथ्य के साथ
दुबारा आने को
कहा था और
वह शीघ्र ही
घोटाले के पूरे
सबूतों के साथ
अदालत का दरवाजा
पुनः खटखटाने जा
रहे हैं। डबराल
ने नवजीवन से
बातचीत में कहा
कि त्रिवेन्द्र रावत
को राज्य सरकार
द्वारा क्लीन चिट दिया
जाना हास्यास्पद है
और वह तमाम
सबूतों के साथ
हाइकोर्ट में दुबारा
याचिका दाखिल करने जा
रहे हैं। इस
मामले में आरोप
है कि किसानों
को वितरित होने
वाला ढैंचा बीज
बिना नयी मांग
के 50 प्रतिशत अधिक
मात्रा में अधिक
दाम पर खरीदा
गया और तत्कलीन
कृषि मंत्री ने
न केवल पद
का दुरुपयोग कर
मनमाने ढंग से
निर्णय लेने के
साथ ही भ्रष्टाचारियों
को भी बचाया।
यह घोटाला रमेश
पोखरियाल ‘निशंक’ के कार्यकाल
में हुआ था।
बाद में विजय
बहुगुणा जो कि
अब भाजपा में
हैं, ने अपने
मुख्यमंत्रित्वकाल में अधिसूचना
संख्या-1014 द्वारा 28 मार्च 2013 को
एस.सी. त्रिपाठी
की अध्यक्षता में
एकल सदस्यीय जांच
आयोग का गठन
किया गया था।
त्रिपाठी जांच आयोग
ने तीन बिन्दुओं
पर तत्कालीन कृषिमंत्री
त्रिवेन्द्र सिंह रावत
को दोषी पाया
था। इनमें पहला
बिन्दु यह था
कि कृषिमंत्री ने
कृषि निदेशक के
खरीफ 2010 में ढैंचा
बीज के क्रय
व वितरण के
प्रस्ताव को नयी
मागों के प्रस्ताव
(शेड्यूल ऑफ न्यू
डिमाण्ड) की प्रकृया
सुनिश्चित किये बिना
अनुमोदन कर सचिवालय
अनुदेश एवं उत्तराखण्ड
में लागू उ0प्र0 कार्य
नियमावली 1975 का उल्लंघन
किया। उन्होंने बिना
मंत्रिमण्डल एवं विधान
मण्डल की स्वीकृति
के ढैंचा बीज
की मात्रा लगभग
50 प्रतिशत बढ़ाते हुये नयी
मांग 15,000 कुंतल का प्रस्ताव
अनुमादित कर दिया।
इस प्रकार उन्होंने
शसकीय धन का
कस्टोडियन होते हुये
भी बजट मैनुअल,
सचिवालय अनुदेश वे कार्य
नियमावली का उल्लंघन
किया। दूसरा सिद्ध
आरोप यह था
कि, ढैंचा बीज
की आपूर्ति में
अनियमितताओं की जांच
रिपोर्ट आने पर
कृषि सचिव की
संस्तूति पर पहले
तो नैनीताल, देहरादून,
हरिद्वार एवं उधमसिंहनगर
के मुख्य कृषि
अधिकारियों के निलंबन
आदेश पारित करना
परन्तु दिनांक 28-12-2010 को उन
आदेशों को बिना
समुचित कारण के
बदल कर निलंबन
आदेश वापस (विदड्रा)
करना और केवल
विभागीय कार्यवाही के आदेश
करना उनको संदेह
के घेरे में
लाता है।
तीसरा आरोप यह
सिद्ध हुआ कि
कृषि मंत्री त्रिवेन्द्र
सिंह रावत ने
कृषि सचिव की
सतर्कता (विजिलेंस) विभाग से
जांच की अनुशंसा
को अपने आदेश
दिनांक 9-4-11 से अस्वीकार
किया तथा उपरोक्त
कृत्य द्वारा भ्रष्टाचार
पर अंकुश लगाने
के शासकीय/प्रशासकीय
दायित्व का निर्वहन
नहीं किया गया।
जांच का प्रस्ताव
अस्वीकार करने के
पीछे भी उन्होंने
कोई कारण भी
अंकित नहीं किया।
अगर इसके सतर्कता
विभाग से जांच
होती तो पूरी
स्थिति स्पष्ट हो जाती
लेकिन मंत्री के
निर्णय के कारण
षढ़यंत्र और अपराधिक
इरादे दबे और
छिपे रह गये।आयोग
ने तत्कालीन कृषिमंत्री
त्रिवेन्द्र सिंह रावत
के खिलाफ प्राप्त
शिकायत में प्रथम
दृष्टया कुछ तथ्य
पाते हुये उन्हें
भ्रष्टाचार अधिनियम 1988 की धारा
8 बी के तहत
26 सितम्बर 2013 को जो
नोटिस दिया था
उसके जवाब में
त्रिवेन्द्र सिंह रावत
ने अपनी सफाई
दे कर स्वयं
को निर्दोष बताया
था लेकिन आयोग
ने उनके जवाब
को आरापों पर
लीपापोती ही बताया
।
त्रिपाठी आयोग ने
अपनी जांच रिपोर्ट
में कहा है
कि श्री त्रिवेन्द्र
सिंह रावत की
चूक व कृत्य
के कारण कृषि
निदेशक डा0 मदन
लाल के प्रस्तर
11.3 में उल्लिखित अनियमितताऐं कर
पाये तथा एक
अपराधिक षढ़यंत्र रच कर
उसका लाभ उठा
पाये। त्रिवेन्द्र रावत
की चूक एवं
कृत्य के कारण
एक प्राइवेट फर्म
निधि शीड कारपोरेशन
को लाभ पहुंचा
जो कि लोकहित
के विपरीत था।
इससे श्री रावत
भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम 1988 की
धारा 13 (1)(डी)(पपप)
की परिधि में
आते हैं। आयोग
ने राज्य सरकार
से इस मामले
का विधिवत् परीक्षण
कर अग्रेतर कार्यवाही
के लिये कहा
था। यह रिपोर्ट
जब सरकार को
प्राप्त हुयी तो
उसके आधार पर
केवल एकमात्र दोषी
तत्कालीन कृषि निदेशक
डा0 मदन लाल
के खिलाफ ही
सरकार की ओर
से मुकदमा दायर
हुआ जबकि त्रिपाठी
आयोग ने मदन
लाल के साथ
ही कृषि मंत्री
त्रिवेन्द्र सिंह रावत
को भी बराबर
का दोषी माना
था और तत्कालीन
कृषि सचिव को
लापरवाही का दोषी
पातेहुये उनके खिलाफ
केवल अनुशासनात्मक कार्यवाही
की सिफारिश की
थी।
विजय बहुगुणा, हरक सिंह
रावत, सतपाल महाराज,
यशपाल आर्य, कुंवर
प्रणव सिंह चैंपियन,
रेखा आर्य एवं
सुबोध उनियाल जब
कांग्रेस में थे
तो भाजपा ने
उन पर कई
गंभीर आरोप लगाये
थे। लेकिन ये
सारे नेता जब
भाजपा में चले
गये तो भाजपा
इन नेताओं के
कथत घोटाले भूल
गयी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी ने भी
एक जनसभा में
कहा था कि
उत्तराखण्ड में स्कूटर
भी नोट पीता
है। मोदी जी
को याद नहीं
रहा कि आपदा
घोटाले का लेकर
वह जो व्यग्य
वाण चला चुके
हैं वह किसी
और को नहीं
बल्कि उनकी बगल
में बैठे विजय
बहुगुणा को लग
गया।
--जयसिंह
रावत-
ई-11 फ्रेंड्स एन्क्लेव , शाहनगर,
डिफेंस कालोनी रोड,
देहरादून.
उत्तराखण्ड।
मोबाइल-
09412324999
jaysinghrawat@gmail.com
जीरो टालरेंस पर स्टिंग का धब्बा
|
ढैंचा घोटाला पीछा नहीं छोड़ रहा त्रिवेन्द्र रावत का
-जयसिंह रावत
उत्तराखण्ड
के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र
सिंह रावत चाहे
भ्रष्टाचार के खिलाफ
जीरो टालरेंस का
जितना भी डंका
बजा लें मगर
राज्य का बहुचर्चित
ढैंचा बीज घोटाला
है कि उनका
पीछा ही नहीं
छोड़ रहा। करोड़ों
के इस घोटाले
में त्रिपाठी जांच
आयोग ने त्रिवेन्द्र
सिंह रावत, तत्कालीन
कृषि निदेशक और
कृषि सचिव को
दोषी माना था।
गाजियाबाद निवासी जय प्रकाश
डबराल ने उत्तराखण्ड
के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र
सिंह रावत के
खिलाफ नैनीताल हाइकोर्ट
में दायर ढैंचा
बीज घोटाले से
सम्बन्धित याचिका फिलहाल तो
वापस तो ले
ली मगर सदा
के लिये नहीं।
डबराल का कहना
है कि अदालत
ने उनसे पूरे
तथ्य के साथ
दुबारा आने को
कहा था और
वह शीघ्र ही
घोटाले के पूरे
सबूतों के साथ
अदालत का दरवाजा
पुनः खटखटाने जा
रहे हैं। डबराल
ने नवजीवन से
बातचीत में कहा
कि त्रिवेन्द्र रावत
को राज्य सरकार
द्वारा क्लीन चिट दिया
जाना हास्यास्पद है
और वह तमाम
सबूतों के साथ
हाइकोर्ट में दुबारा
याचिका दाखिल करने जा
रहे हैं। इस
मामले में आरोप
है कि किसानों
को वितरित होने
वाला ढैंचा बीज
बिना नयी मांग
के 50 प्रतिशत अधिक
मात्रा में अधिक
दाम पर खरीदा
गया और तत्कलीन
कृषि मंत्री ने
न केवल पद
का दुरुपयोग कर
मनमाने ढंग से
निर्णय लेने के
साथ ही भ्रष्टाचारियों
को भी बचाया।
यह घोटाला रमेश
पोखरियाल ‘निशंक’ के कार्यकाल
में हुआ था।
बाद में विजय
बहुगुणा जो कि
अब भाजपा में
हैं, ने अपने
मुख्यमंत्रित्वकाल में अधिसूचना
संख्या-1014 द्वारा 28 मार्च 2013 को
एस.सी. त्रिपाठी
की अध्यक्षता में
एकल सदस्यीय जांच
आयोग का गठन
किया गया था।
त्रिपाठी जांच आयोग
ने तीन बिन्दुओं
पर तत्कालीन कृषिमंत्री
त्रिवेन्द्र सिंह रावत
को दोषी पाया
था। इनमें पहला
बिन्दु यह था
कि कृषिमंत्री ने
कृषि निदेशक के
खरीफ 2010 में ढैंचा
बीज के क्रय
व वितरण के
प्रस्ताव को नयी
मागों के प्रस्ताव
(शेड्यूल ऑफ न्यू
डिमाण्ड) की प्रकृया
सुनिश्चित किये बिना
अनुमोदन कर सचिवालय
अनुदेश एवं उत्तराखण्ड
में लागू उ0प्र0 कार्य
नियमावली 1975 का उल्लंघन
किया। उन्होंने बिना
मंत्रिमण्डल एवं विधान
मण्डल की स्वीकृति
के ढैंचा बीज
की मात्रा लगभग
50 प्रतिशत बढ़ाते हुये नयी
मांग 15,000 कुंतल का प्रस्ताव
अनुमादित कर दिया।
इस प्रकार उन्होंने
शसकीय धन का
कस्टोडियन होते हुये
भी बजट मैनुअल,
सचिवालय अनुदेश वे कार्य
नियमावली का उल्लंघन
किया। दूसरा सिद्ध
आरोप यह था
कि, ढैंचा बीज
की आपूर्ति में
अनियमितताओं की जांच
रिपोर्ट आने पर
कृषि सचिव की
संस्तूति पर पहले
तो नैनीताल, देहरादून,
हरिद्वार एवं उधमसिंहनगर
के मुख्य कृषि
अधिकारियों के निलंबन
आदेश पारित करना
परन्तु दिनांक 28-12-2010 को उन
आदेशों को बिना
समुचित कारण के
बदल कर निलंबन
आदेश वापस (विदड्रा)
करना और केवल
विभागीय कार्यवाही के आदेश
करना उनको संदेह
के घेरे में
लाता है।
तीसरा आरोप यह
सिद्ध हुआ कि
कृषि मंत्री त्रिवेन्द्र
सिंह रावत ने
कृषि सचिव की
सतर्कता (विजिलेंस) विभाग से
जांच की अनुशंसा
को अपने आदेश
दिनांक 9-4-11 से अस्वीकार
किया तथा उपरोक्त
कृत्य द्वारा भ्रष्टाचार
पर अंकुश लगाने
के शासकीय/प्रशासकीय
दायित्व का निर्वहन
नहीं किया गया।
जांच का प्रस्ताव
अस्वीकार करने के
पीछे भी उन्होंने
कोई कारण भी
अंकित नहीं किया।
अगर इसके सतर्कता
विभाग से जांच
होती तो पूरी
स्थिति स्पष्ट हो जाती
लेकिन मंत्री के
निर्णय के कारण
षढ़यंत्र और अपराधिक
इरादे दबे और
छिपे रह गये।आयोग
ने तत्कालीन कृषिमंत्री
त्रिवेन्द्र सिंह रावत
के खिलाफ प्राप्त
शिकायत में प्रथम
दृष्टया कुछ तथ्य
पाते हुये उन्हें
भ्रष्टाचार अधिनियम 1988 की धारा
8 बी के तहत
26 सितम्बर 2013 को जो
नोटिस दिया था
उसके जवाब में
त्रिवेन्द्र सिंह रावत
ने अपनी सफाई
दे कर स्वयं
को निर्दोष बताया
था लेकिन आयोग
ने उनके जवाब
को आरापों पर
लीपापोती ही बताया
।
त्रिपाठी आयोग ने
अपनी जांच रिपोर्ट
में कहा है
कि श्री त्रिवेन्द्र
सिंह रावत की
चूक व कृत्य
के कारण कृषि
निदेशक डा0 मदन
लाल के प्रस्तर
11.3 में उल्लिखित अनियमितताऐं कर
पाये तथा एक
अपराधिक षढ़यंत्र रच कर
उसका लाभ उठा
पाये। त्रिवेन्द्र रावत
की चूक एवं
कृत्य के कारण
एक प्राइवेट फर्म
निधि शीड कारपोरेशन
को लाभ पहुंचा
जो कि लोकहित
के विपरीत था।
इससे श्री रावत
भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम 1988 की
धारा 13 (1)(डी)(पपप)
की परिधि में
आते हैं। आयोग
ने राज्य सरकार
से इस मामले
का विधिवत् परीक्षण
कर अग्रेतर कार्यवाही
के लिये कहा
था। यह रिपोर्ट
जब सरकार को
प्राप्त हुयी तो
उसके आधार पर
केवल एकमात्र दोषी
तत्कालीन कृषि निदेशक
डा0 मदन लाल
के खिलाफ ही
सरकार की ओर
से मुकदमा दायर
हुआ जबकि त्रिपाठी
आयोग ने मदन
लाल के साथ
ही कृषि मंत्री
त्रिवेन्द्र सिंह रावत
को भी बराबर
का दोषी माना
था और तत्कालीन
कृषि सचिव को
लापरवाही का दोषी
पातेहुये उनके खिलाफ
केवल अनुशासनात्मक कार्यवाही
की सिफारिश की
थी।
विजय बहुगुणा, हरक सिंह
रावत, सतपाल महाराज,
यशपाल आर्य, कुंवर
प्रणव सिंह चैंपियन,
रेखा आर्य एवं
सुबोध उनियाल जब
कांग्रेस में थे
तो भाजपा ने
उन पर कई
गंभीर आरोप लगाये
थे। लेकिन ये
सारे नेता जब
भाजपा में चले
गये तो भाजपा
इन नेताओं के
कथत घोटाले भूल
गयी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी ने भी
एक जनसभा में
कहा था कि
उत्तराखण्ड में स्कूटर
भी नोट पीता
है। मोदी जी
को याद नहीं
रहा कि आपदा
घोटाले का लेकर
वह जो व्यग्य
वाण चला चुके
हैं वह किसी
और को नहीं
बल्कि उनकी बगल
में बैठे विजय
बहुगुणा को लग
गया।
--जयसिंह
रावत-
ई-11 फ्रेंड्स एन्क्लेव , शाहनगर,
डिफेंस कालोनी रोड,
देहरादून.
उत्तराखण्ड।
मोबाइल-
09412324999
jaysinghrawat@gmail.com
जीरो टालरेंस पर स्टिंग का धब्बा
उत्तराखण्ड के
मुख्यमंत्री
त्रिवेन्द्र
सिंह
रावत
का
पीछा
निशंक
सरकार
के
कार्यकाल
में
हुआ
ढैंचा
बीज
घोटाला
तो
पहले
से
ही
पड़़ा
हुआ
था,
लेकिन
हाल
ही
में
एक
निजी
टेलिविजन
चैनल
के
मुखिया
की
गिरफ्तारी
ने
रावत
की
बचीखुची
साख
को
भी
बट्टा
लगा
दिया
है।
त्रिवेन्द्र
सरकार
ने
स्टिंग
आपरेशनों
के
जगजाहिर
होने
से
पहले
चैनल
के
मुखिया
को
गिरफ्तार
करने
के
साथ
ही
उसके
सारे
उपकरण
और
स्टिंग
संबंधी
सामग्री
जब्त
तो
करा
ली
मगर
इस
सवाल
को
जब्त
नहीं
कर
पायी
कि
अगर
आप
सचमुच
ईमान्दार
थे
तो
स्टिंग
से
क्यों
डर
गये
और
आपने
वह
सामग्री
क्यों
जब्त
कर
दी।
इस
मामले
में
नैनीताल
हाइकोर्ट
ने
त्रिवेन्द्र
के
भाई
वीरेन्द्र
सिंह
रावत
एवं
करीबी
दोस्त
संजय
गुप्ता
सहित
8 लागों
को
नोटिस
जारी
किया
है।
आरोप
है
कि
चैनल
वालों
ने
मुख्यमंत्री
के
सबसे
करीबी
अपर
मुख्य
सचिव
ओम
प्रकाश,
बहुचर्चित
अधिकारी
मृत्युंजय
मिश्रा,
मुख्यमंत्री
के
भाई
वीरेन्द्र
रावत
एवं
उनके
दोस्त
संजय
गुप्ता
के
स्टिंग
किये
थे।
स्टिंग
में
मुख्यमंत्री
से
मिलाने
तथा
सौदा
कराने
की
बात
होने
का
दावा
किया
गया
है।
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