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Wednesday, May 31, 2017

SICK MEDICAL AND HEALTH SERVICES OF UTTARAKHAND NEEDS URGENT TREATMENT : SAYS JAY SINGH RAWAT

RELIGIOUS ENCROACHMENT ON TRIBAL HRITAGE

 “उत्तराखंड की जनजातियों का इतिहास”

जनजातीय संस्कृति पर धर्मांतरण का साया

आदिवासियों के धर्मांतरण के लिये देशभर में इसाई मिशनरियां ही ज्यादा बदनाम रही हैं, मगर उत्तराखंड में शायद ही कोई ऐसा धर्म हो जो कि आदिवासियों या जनजातियों को उनकी धार्मिक आस्थाओं से विचलित न कर रहा हो। उत्तराखंड के बौद्ध धर्म के अनुयायी जाड भोटिया जहां लोसर को होली की तरह मनाने लगे हैं, वहीं तराई में बड़ी संख्या में थारू और बोक्सा अमृत छक कर सिख बन गये हैं। जबकि मिशनरियां उत्तरकाशी की बंगाण पट्टी से लेकर तराई के उधमसिंहनगर तक लोगों को ललचा रही हैं। यहां तक कि कुछ भोटिया परिवारों द्वारा इस्लाम कबूले जाने की पुष्टि जनगणना रिपोर्टों से हो रही है। अगर यह सिलसिला इसी तरह अनवरत जारी रहा तो उत्तराखंड की जनजातीय संस्कृति की विलक्षणता और विविधता मानव विज्ञान और समाजशास्त्र की पुस्तकों तक ही सिमट कर रह जायेगी।
सन् 2000 में उत्तर प्रदेश के विभाजन के बाद उसकी पांच की पाचों जनजातियां उत्तराखंड के

हिस्से में आ गयीं थीं। नये राज्य को उस समय न केवल जनजातीय विविधता मिली बल्कि विरासत में एक अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर भी मिली। लेकिन विभिन्न धर्मों की विस्तारवादी मनोवृत्तियां धर्मांतरण के लिये जिस तरह उत्तराखण्ड की पाचों जनजातियों को ललचा रही हैं, उससे प्रदेश की इस विलक्षण सांस्कृतिक विविधता के लिये संकट खड़ा हो गया है। पूर्वोत्तर में इसाई मिशनरियों ने आदिवासियों का धर्म तो बदला है मगर उनकी संस्कृति से छेड़छाड़ नहीं की, लेकिन उत्तराखंड में जनजातीय रीति रिवाजों के साथ धर्मांतरण हो रहा है।
देशभर में कहीं मुसलमानों को हिन्दू बनाने तो कहीं आदिवासियों को इसाई बनाये जाने पर कोहराम मचाया जा रहा है। लेकिन पिछली जनगणना की रिपोर्टों पर न तो समाजशास्त्री और ना ही विभिन्न धर्मों के झंडाबरदार ध्यान दे रहे हैं। अगर 2001 की जनगणना रिपोर्ट के पन्ने पलटे जांय तो आपको उच्च हिमालयी क्षेत्र में रह रहे भोटिया जनजाति के कई लोगों द्वारा अपना धर्म हिन्दू के अलावा, इस्लाम, इसाई और सिख तक लिखाये जाने का पता चलता है। उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले की जादुंग और नेलंग घाटियों के भोटिया समुदाय के लोग मूलतः बौद्ध धर्म के अनुयायी रहे हैं। मगर अब वे हिन्दू धर्म के प्रभाव में इतने अधिक आ चुके हैं कि वे अपना लोसर जैसा सबसे बड़ा पर्व भी होली की तर्ज पर मना रहे हैं। उनमें से कई लोग हिन्दू बन गये हैं और आम गढ़वालियों के साथ समरस हो चुके हैं। अब तक तराई में मिशनरियों द्वारा थारू और बोक्सा जनजाति के लोगों को ललचाने की चर्चाऐं होती थीं। लेकिन पिछली जनगणना की रिपोर्ट पर गौर करें तो मालूम होता है कि इन जनजातियों के लोग बड़ी संख्या में सिख धर्म को अपना चुके हैं। यही नहीं सन् 2001 में जौनसारियों में भी मुस्लिमों और इसाइयों की गणना हो चुकी है।
मुख्यमंत्री हरीश रावत द्वारा हाल ही में विमोचित  “उत्तराखंड की जनजातियों का इतिहास” नामक मेरी पुस्तक में जनजातियों पर माओवादियों और मिशनरियों द्वारा डोरे डाले जाने का विस्तार से उल्लेख किया गया है। उस पुस्तक के अनुसार ऊधमसिंह नगर जिले के खटीमा ब्लाक के मोहम्मदपुर भुड़िया, जोगीठेर नगला, सहजना, फुलैया, अमाऊं, चांदा, मोहनपुर, गंगापुर, भक्चुरी, भिलय्या, टेडाघाट, नौगवा ठगू, पहनिया, भूड़िया थारू आदि गांवों के कई थारू परिवार धर्म परिवर्तन कर इसाई बन गए हैं। कुछ विद्वान इन्हें गौतम बुद्ध के सीधे वंशज मानते हैं, इसलिये कुछ थारू धर्म बदल कर बोद्ध भी बन गये हैं। पुस्तक में खुलासा किया है कि धर्म बदल कर इसाई बन चुके लोगों से पूछताछ करने पर पता चला कि जब गांवों में कोई बीमार होता है तो वे उसे झाड़-फूॅक और तंत्र-मंत्र के लिए ’भरारे’ के पास ले जाते हैं। भरारे की तंत्र-मंत्र विद्या का जब कोई असर नहीं होता है तथा बीमार की बीमारी गंभीर होती जाती है तो तब अक्सर लोग बीमार को पौलीगंज स्थित इसाइयों के सेण्ट पैट्रिक अस्पताल ले जाते हैं। वहां इसाइयों का तो मुफ्त इलाज होता है, परन्तु गैर इसाइयों से इलाज का पूरा खर्च वसूला जाता है। ऐसी स्थिति में थारू इसाई बन जाते हैं, ताकि उनके परिजन की जान तो बच जाए।
पुस्तक में कहा गया है कि खटीमा ब्लाक में ही जोगीठेर नगला के लक्ष्मण सिंह की पत्नी 1998 में बीमार हुई। शुरू में लक्ष्मण ने तांत्रिकों और देवी देवताओं के खूब चक्कर लगाये मगर बीमारी बढ़ती गई। इसी दौरान उसका सम्पर्क पादरी दानसिंह से हुआ जो कि स्वयं पूर्व में हिन्दू थारू था। फादर दानसिंह ने कहा कि धर्म बदलो तो औरत का इलाज हो जाएगा। लक्ष्मण ने धर्म बदल लिया और फिर पादरी की सिफारिश पर लक्ष्मण अपनी पत्नी को पौलीगंज स्थित सेण्ट पेट्रिक अस्पताल ले गया। वहां पता चला कि रोगिणी को कैंसर है। लक्ष्मण के अनुरोध पर डाक्टरों ने उसकी पत्नी का आपरेशन किया लेकिन वह फिर भी न बच सकी। कैंसर का इतना महंगा इलाज निशुल्क हुआ था। लक्ष्मण ने बताया कि वह पुनः हिन्दू बन गया है। लेकिन लेखक जब उसके घर के अन्दर गया तो पवित्र क्रास का निशान एवं सफेद कपड़े वहां तब भी भी मौजूद थे। ईसाई बनने पर उसके भाईयों ने उसका बहिष्कार कर दिया था। घर के आंगन में बाकी भाइयों के संयुक्त परिवार का एक ही चूल्हा जलता था इसलिये एक विधुर के लिये संयुक्त जानजातीय परिवार से अलग चूल्हा जलाना  व्यवहारिक नहीं था, इसलिए संभव है कि वह पजिनों को खुश रखने के लिए पुनः पूर्व धर्म में लौटने की बात कर रहा हो। किसी की उपासना के तरीके में किसी की कोई दखल नहीं होनी चाहिए। परन्तु महत्वपूर्ण सवाल यह है कि अपनी संस्कृति और परंपराओं के प्रति इतने मजबूत लगाव वाले अन्धविश्वासी थारुओं को क्यों धर्म बदलना पड़ रहा है?
तराई क्षेत्र ही नहीं बल्कि जनजाति क्षेत्र जौनसार बावर पर भी मिशनरियों की नजर टिकी हुयी है। खास कर कोल्टा और अन्य दलित वर्ग के लोग मिशनरियों के साफ्ट टारगेट माने जाते हैं। सन् 1866 में जब ब्रिटिश सेना की 55 वीं रेजिमेंण्ट के कर्नल ह्यूम और उनके सहयोगी अधिकारियों ने सेनिकों के लिये समर कैम्प के रूप में चकराता छावनी क्षेत्र स्थापित किया तो उसी समय अंग्रेज सैनिकों और अफसरों के लिये तीन चर्च भी स्थापित किये गये थे। आजादी के बाद अंग्रेज तो चले गये मगर चकराता में चर्च छूट गये। हालांकि अति संवेदनशील सैन्य क्षेत्र में होने के कारण फिलहाल वहां तीनों ही चर्च सेना के कब्जे में हैं, मगर मिशनरियों ने स्थानीय लोगों का धर्म परिवर्तन करा कर उनके ही माध्यम से चर्चों को सेना के नियंत्रण से मुक्त करने की मुहिम शुरू कर रखी है। चकराता के इन तीन चर्चों में से एक में पादरी सुन्दर सिंह चौहान और उनका परिवार रहता है। चौहान स्थानीय जौनसारी ही हैं और चर्च मुक्ति अभियान चला रहे हैं।
इसाई मिशनरियों ने पहले तराई की जनजातियों में अपना नेटवर्क बढ़ाया और अब वे सीमांत उत्तरकाशी जिले की सुदूर रवांईं घाटी में भी सक्रिय होने लगी हैं। एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार हिमाचल से सटी उत्तरकाशी जिले की बंगाण पट्टी के कलीच गांव में रोहडू (हिमाचल) से आए कुछ लोग ग्रामीणों को धर्मांतरण के लिये प्रेरित कर रहे हैं। कलीच के ग्राम प्रधान जगमोहन सिंह रावत के अनुसार एक वर्ष से कलीच, आराकोट, ईशाली, जागटा, मैंजणी, थुनारा, भुटाणु, गोकुल, माकुडी, देलन, मोरा, भंकवाड़, बरनाली, डगोली एवं पावली आदि दर्जनों गांवों में हिमाचल से आए कुछ लोग सभाएं कर और पैसे का लालच देकर धर्म परिवर्तन करा रहे हैं। अकेले कलीच गांव में चार साल के भीतर ही अनुसूचित जाति के 17 परिवार धर्म परिवर्तन कर ईसाई बन चुके हैं। धर्मान्तरण को लेकर क्षेत्र में विवाद के बाद दोनों पक्षों ने एक दूसरे के खिलाफ तहसील मोरी में मुकदमा तक दर्ज करवा है। ग्राम प्रधान जगमोहन सिंह की शिकायत पर भी मुन्नू सहित 16 लोगों के खिलाफ भादंसं की धारा 323, 147, 296 एवं 298 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया। वास्तविकता यह है कि कोल्टा और अन्य अनुसूचित जाति के लोग मिशनरियों द्वारा सम्मान की जिन्दगी देने और अस्पृस्यता से मुक्ति दिलाने के वायदे से काफी प्रभावित हो रहे हैं। अस्पृस्यता वास्तव में बहुत बड़ा सामाजिक कलंक है, और इस दाग से मुक्ति पाये बिना मिशनरियों का विरोध बेमानी है।

सन् 2011 की पूरी जनगणना विश्लेषण की रिपोर्ट अभी प्रतीक्षित है। लेकिन 2001 की रिपोर्ट को अगर देखें तो उसमें उत्तराखंड की जनजातियों के लोगों की गणना हिन्दू, इस्लाम, सिख, इसाई, बौद्ध एवं जैन धर्म में भी की गयी है। जबकि प्रदेश की सभी जनजातियों का हजारों सालों का इतिहास चाहे जो भी हो मगर वे वर्तमान में हिन्दू ही हैं। भोटिया जनजाति के कुछ लोग सिक्किम में इस्लाम के अनुयायी जरूर हैं, मगर उत्तराखंड में मुसलमान भोटिया होना एक नयी बात ही है। अब तक पंजाब से आये हुये लोगों द्वारा तराई में थारुओं और बोक्सों की जमीनें हड़पने की बातें आम रही हैं, मगर अब तो उनकी आस्था की पुरातन पद्धति को भी हड़पने की बात जनगणना रिपोर्ट से सामने आ रही है। यही नहीं उत्तरकाशी के बोद्ध भोटिया समुदाय का हिन्दू बन जाना भी कोई साधारण बात नहीं है। दरअसल यह एक तरह से जनजातियों का अपनी संस्कृति से विचलित होना ही है। अगर वे इसी तरह अपनी विशिष्ठ संस्कृति को हीन भावना से देखते रहे तो उत्तराखंड जल्दी ही अपनी इस अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर से वंचित हो सकता है।
संविधान (उत्तर प्रदेश) अनुसूचित जाति आदेश 1967 के तहत उत्तर प्रदेश की भोटिया, जौनसारी, थारू, बोक्सा और राजी को अनुसूचित जनजाति घोषित किया गया था, लेकिन उत्तर प्रदेश के विभाजन के साथ ही पांचों जनजातियां उत्तराखण्ड के हिस्से में आ गयीं। सन् 1974 में भारत सरकार ने राजी और बोक्सा सहित देश की 75 जनजातियों को आदिम जाति की सूची में शामिल कर दिया। बिरासत में मिली इन जनजातियों के गुलदस्ते ने छोटे से इस नवोदित प्रदेश की सांस्कृतिक विविधता पर चार चांद लगा दिये। भारत में जनजातीय आसबादी का प्रतिशत 8.2 है तो उत्तराखंड में भी जनजातियों की आबादी लगभग तीन प्रतिशत तक है।

पुस्तक- “उत्तराखंड की जनजातियों का इतिहास”
लेखक-जयसिंह रावत
प्रकाशक- कीर्ति नवानी, विन्सर पब्लिसिंग कंपनी, 8, प्रथम तल, के.सी. सिटी सेंटर, डिस्पेंसरी रोड, देहरादून। मोबाइल: 9456372442 एवं 7055585559  and  9412324999
आइएसबीएन- 978-81-86844-83-0
मूल्य-रु0 395-00



Saturday, May 27, 2017

POLITICAL STABILTY A DISTANT DREAM IN UTTARAKHAND

उत्तरासखण्ड में प्रचण्ड बहुमत फिर भी सरकार पर खतरा 

-जयसिंह रावत
इस साल फरबरी में हुये उत्तराखण्ड विधानसभा के चौथे चुनाव में जब पहली बार किसी एक दल को 70 में 57 सीटों का प्रचण्ड बहुमत मिला तो लगा कि इस बार तो इस नवोदित राज्य में पिछले 17 सालों से चली आ रही राजनीतिक अस्थिरता और कुर्सी की छीना झपटी के खेल से मुक्ति मिल ही जायेगी और अब प्रचण्ड बहुमत वाली सरकार ऐसे साहसिक और विवेकपूर्ण निर्णय लेगी जिन से पलायन, गरीबी, शिक्षा और चिकित्सा सुविधाओं का अभाव जैसी समस्याओं से निजात मिलने के साथ ही प्रदेश के विकास की गाड़ी सरपट दौड़ने लगेगी। लेकिन सत्ताधारी दल और सरकार के अन्दर से उठ रही असन्तोष की आवाजों पर गौर करें तो इस बार भी प्रदेशवासियों की स्थिर सरकार का सपना दूर की कौड़ी नजर आ रही है।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत त्रिवेन्द्र सिंह रावत 27 अप्रैल को ऋषिकेश में चारधाम यात्रा का उद्घाटन करते हैं तो तीर्थाटन मंत्री सतपाल महाराज कार्यक्रम से गायब रहते हैं। उनकी अनुपस्थिति में यात्रियों के जत्थे को हरी झण्डी सतपाल महाराज के अनुज भोले महाराज (महिपाल सिंह रावत) एवं महाराज की अनुज वधू मंगला रावत से लहरवायी जाती है। जबकि एक जमानें में सहोदरों के बीच एकता और भाईचारे की मिसाल रहे इन दोनों भाइयों के बीच की खटपट घर की चाहरदीवारी को पार कर चुकी है। इस कार्यक्रम में वन मंत्री हरक सिंह रावत भी शामिल होते हैं जिनकी कैमिस्टीª भी सतपाल महाराज से मेल नहीं खा रही है। इसी तरह इसी साल 13 मई को केन्द्रीय रेल मंत्री बदरीनाथ में चारधाम रेल सर्वे का उद्घाटन करते हैं और इस अवसर पर भी तीर्थाटन मंत्री सतपाल महाराज नजर नहीं आते जबकि इस रेल लाइन का जो सपना साकार होने जा रहा है उसका श्रेय केवल सतपाल महाराज को ही जाता है। जाहिर है कि मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार रहे सतपाल महाराज की पटरी मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह के साथ नहीं बैठ रही है। सवाल केवल सतपाल महाराज का नहीं है। त्रिवेन्द्र मंत्रिमण्डल के वरिष्ठतम् मंत्री हरक सिंह रावत का भी अपनी सरकार से दो महीनों में ही मोह भंग हो गया लगता है। हरक सिंह रावत ने हाल ही में यह कह कर राजनीतिक गलियारों में सनसनी फैला दी कि अभी तक कोई सरकार जनता उम्मीदों की कसौटी पर खरी नहीं उतरी है और जिस तरह से आंकड़ेबाजी की जा रही है उससे जनता का भूखा पेट नहीं भरा जा सकता है। यही नहीं हरक सिंह रावत पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की भी तारीफ कर गये जबकि उन्होंने पिछले साल हरीश रावत सरकार गिराने के लिये कोई कसर नहीं छोड़ी थी। नब्बे के दशक में हरक सिंह रावत उस समय कल्याण सिंह सरकार में मंत्री थे जबकि रमेश पोखरियाल निशंक जैसे नेता मात्र विधायक थे और कुछ पूर्व मुख्यमंत्रियों ने विधानसभा तक नहीं देखी थी। राज्य विधानसभा में वरिष्ठतम् सदस्य हरवंश कपूर की नाराजगी भी किसी से छिपी नहीं रह गयी है। कपूर के नाराज समर्थकों ने गत 23 मार्च को उस समय मुख्यमंत्री और पार्टी नेतृत्व के पसीने छुड़वा दिये जब उन्होंने कपूर को उन्हीं के आवास पर विधानसभा जाने से रोक दिया। कपूर को उस दिन प्रोटेम स्पीकर के तौर पर 11 बजे से शुरू होने वाली विधानसभा की कार्यवाही संचालित करने के साथ ही प्रेमचन्द अग्रवाल को निर्विरोध विधानसभा अध्यक्ष चुने जाने की घोषणा भी करनी थी। अगर स्पीकर समय से विधानसभा में नहीं पहंुचते तो कल्पना की जा सकती है कि कितना बड़ा संकट खड़ा हो जाता। कपूर को आशा थी कि उनकी वरिष्ठता और स्पीकर के तौर पर उनके अनुभव को ध्यान में रखते हुये उन्हीं को स्पीकर बनाया जायेगा। विधायक दल में कपूर अकेले कंुठित नहीं हैं। पांच बार के विधायक और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष विशन सिंह चुफाल भी अपनी नाराजगी को छिपा नहीं पाये। कांग्रेस से आये नये लोगों को ज्यादा महत्व मिलने से कई अन्य विधायक असहज हैं।
त्रिवेन्द्र सरकार को जिन वरिष्ठ और अनुभवी मंत्रियों से संबल मिलना था उनको ही इस सरकार की स्थिरता के लिये खतरा माना जा रहा है। दरअसल सरकार के हैवीवेट मंत्री स्वयं को ज्यादा काबिल और मुख्यमंत्री को नोसिखिया साबित करने पर तुले हुये हैं। इन हैवीवेट मंत्रियों के समर्थक खुले आम यह कहते हुये सुने जा सकते हैं कि त्रिवेन्द्रशाही अब ज्यादा दिन की मेहमान नहीं है। भले ही ज्यादातर स्वतंत्र राजनीतिक विश्लेषक त्रिवेन्द्र सरकार की स्थिरता का आधार 2019 के लोकसभा चुनाव में आने वाले नतीजों को मानते हों मगर मुख्यमंत्री पद के दावेदारों के समर्थक सरकार की उम्र एक साल से अधिक मानने को तैयार नहीं हैं। मन के लड्डू खाने की वजह साफ है। त्रिवेन्द्र कुर्सी खाली करेंगे तो तब जा कर बाकी को मौका मिलेगा। छींका टूटने के लिये अपने भाग के भरोसे बैठे भाजपाइयों का मानना है कि त्रिवेन्द्र रावत उत्तरप्रदेश के योगी की तरह जनता को लुभाने वाला कोई मजबूत संदेश नहीं दे पा रहे हैं। उनका यह भी मानना है कि नेतृत्व परिवर्तन के लिये 2019 के चुनाव नतीजों का इंतजार करने से काफी देर हो जायेगी। परिवर्तनकामी भाजपाई त्रिवेन्द्र के नेतृत्व में आने वाले लोकसभा चुनाव में जीत के प्रति आश्वस्त नहीं हैं। देखा जाय तो वास्तव में त्रिवेन्द्र सिंह रावत को कदम-कदम पर अग्नि परीक्षाएं देनी हैं। लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने पंचायत चुनावों में और फिर नगर निकाय चुनावों में पार्टी की नैया पार लगानी है और जब इन चुनावों में पार्टी की हार होगी तभी मुख्यमंत्री पद के बाकी दावेदारों की लाटरी खुलेगी।
उत्तराखण्ड में त्रिवेन्द्र सिंह रावत सरकार को सत्ता में आये हुये अभी केवल दो माह ही हुये हैं। इसलिये इस सरकार को सफल या विफल बताना बेहद जल्दबाजी होगी। त्रिवेन्द्र रावत का इस प्रदेश और अपनी पार्टी के प्रति समर्पण असंदिग्ध है। वह कृषि मंत्री के रूप में अपनी योग्यता 2007 से लेकर 2012 तक दिखा चुके हैं। लेकिन उनकी सबसे बड़ी कमजोरी उनका सीधा और सपाट व्यक्तित्व है। वह अन्य नेताओं की तरह मीठी गोली नहीं देते हैं। हालांकि उन्होंने अपनी वाणी में काफी सुधार कर दिया है फिर भी चेहरे पर बनावटी मुस्कराहट लाने और हर किसी को पुचकारने में सिद्धहस्त नहीं हो पाये हैं। मीडिया से भी उनकी दूरी कम नहीं हुयी है। संभवतः इसीलिये उनकी नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठ रहे हैं। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ का लोकप्रियता का ग्राफ भी त्रिवेन्द्र रावत के लिये चुनौती बन गया है। एक साथ सत्ता संभालने वाले वाले ये दोनों ही युवा मुख्यमंत्री (योगी आदित्यनाथ उर्फ अजय सिंह बिष्ट और त्रिवेन्द्र सिंह रावत) एक ही पार्टी के होने के साथ ही दोनों ही पौड़ी गढ़वाल के मूल निवासी भी हैं और दोनों के ही मूल गावों का फासला काफी कम है। पहाड़ों में इतने करीब के दो ठाकुरों में दूर या नजदीक की रिश्तेदारी भी निकल ही आती है। इसलिये भी त्रिवेन्द्र की तुलना बार-बार योगी से की जा रही है। भाजपाई भी यह कहते हुये नहीं थक रहे हैं कि जिस तरह योगी ने अपने मजबूत इरादों और कठोर प्रशासन का संदेश दिया है वैसा संदेश त्रिवेन्द्र नहीं दे पाये। जबकि दोनों ही प्रदेशों की परिस्थितियां और दोनों ही नेताओं के टेम्परामेंट भिन्न हैं। फिर भी उत्तराखण्ड की जो राजनीतिक संस्कृति और पिछला इतिहास रहा है उस पर गौर करें तो स्वयं अमित शाह या नरेन्द्र मोदी भी इस सरकार के स्थायित्व की भविष्यवाणी नहीं कर सकते। इस सरकार को स्थिरता के लिये पंचायत, नगर निकाय और लोकसभा चुनावों की परीक्षाओं के अलावा भी कई अन्य परीक्षाओं से गुजरना पड़ेगा और अगर पिछले 17 सालों या उससे पहले का इतिहास पढ़ें तो इन परीक्षाओं को पार करना उत्तराखण्ड में नामुमकिन नहीं तो बेहद कठिन अवश्य ही है। राज्य के पहले मुख्यमंत्री नित्यानन्द स्वामी 11 महीने 20 दिन ही सत्ता में रहे। उसके बाद ऐसा राजनीतिक चक्र चला कि नारायणदत्त तिवारी ही 5 साल 5 दिन तक शासन चला पाये बाकी भुवन चन्द्र खण्डूड़ी 2 बार में 2 साल 9 महीने 21 दिन, रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ 2 साल 2 महीने और 14 दिन, विजय बहुगुणा 1 साल 10 महीने 18 दिन और हरीश रावत सुप्रीम कोर्ट से जीवन दान मिलने के बावजूद दो-तीन झटकों में 3 साल 1 महीना और 4 दिन ही अपनी हुकूमत चला पाये।

-जयसिंह रावत
ई-11, फ्रेंड्स एन्क्लेव, शाहनगर,
डिफेंस कालोनी रोडए देहरादून।
मोबाइल- 9412324999
jaysinghrawat@gmail.com
jaysinghrawat@hotmail.com








Friday, May 19, 2017

BADRINATH ROAD WAS BLOCKED ON 19th MAY.

Badrinath road has been blocked due to heavy rock fall near Joshimath on Friday. BRO earth movers are trying hard to get the road opened til Saturday afternoon.Thousands of pilgrims are stranded on the way to Badrinath. The BRO is on the task to open the road till Saturday afternoon.





Wednesday, May 10, 2017

गंगा प्रबंधन बोर्ड का गठन शीघ्र

गंगा प्रबंधन बोर्ड का गठन शीघ्र 
जल संसाधनों के प्रबंधन और विकास के बारे में दूसरी बैठक 

उत्‍तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2000 के प्रावधानों के अंतर्गत जल संसाधनों के प्रबंधन में विकास के बारे में दूसरी बैठक 08 मई 2017 को नई दिल्‍ली में आयोजित की गई, जिसकी अध्‍यक्षता सचिव (डब्‍ल्‍यू आर, आरडी और जीआर) डा. अमरजीत सिंह ने की। उत्‍तर प्रदेश सरकार का प्रतिनिधित्‍व राज्‍य सरकार में विशेष सचिव (सिंचाई) श्री सी पी त्रिपाठी ने किया जबकि उत्‍तराखंड सरकार का प्रतिनिधित्‍व राज्‍य सरकार में प्रधान सचिव (सिंचाई) श्री आनंद बर्धन ने किया। केन्‍द्र सरकार की ओर से बैठक में भाग लेने वाले अन्‍य प्रतिभागियों में केन्‍द्रीय जल आयोग के अध्‍यक्ष श्री नरेन्‍द्र कुमार, केन्‍द्रीय जल आयोग के सदस्‍य श्री एस. मसूद हुसैन (डब्‍ल्‍यूपी एंड पी), जल संसाधन, नदी विकास और गंगा जीर्णोद्धार मंत्रालय के संयुक्‍त सचिव, श्री संजय कुंडु, और गृह मंत्रालय में संयुक्‍त सचिव (सीएस) शामिल थे। 

बैठक में उत्‍तर प्रदेश और उत्‍तराखंड के प्रतिनिधियों ने जल संसाधन परिसंपत्तियों और ढांचे के वितरण के बारे में बताया कि उत्‍तर प्रदेश द्वारा 37 नहरें (28 हरिद्वार जिले में और 9 उधम सिंह नगर जिले में) उत्‍तराखंड को सौंपी जा चुकी हैं। उत्‍तराखंड सरकार के नियंत्रण में मुरादाबाद जिले में स्थित 8 नहरें राज्‍य सरकार द्वारा उत्‍तरप्रदेश सरकार को हस्‍तांतरित की जा चुकी हैं।
 

गंगा प्रबंधन बोर्ड के गठन के बारे में बैठक में हुई व्‍यापक सहमति के बाद तत्‍संबधी अधिसूचना का मसौदा दोनों राज्‍यों को पहले ही भेजा जा चुका है। इस बारे में बैठक में व्‍यापक विचार-विमर्श किया गया और दोनों राज्‍यों से कहा गया कि वे अपनी औपचारिक प्रतिक्रियाएं भेजें ताकि बोर्ड का शीघ्र गठन किया जा सके।
 






Tuesday, May 9, 2017

STATUE OF MAHARANA PRATAP UNVEILED IN ISBT DEHRADUN

बस अड्डा देहरादून में महाराणा प्रताप की मूर्ति का अनावरण

देहरादून में रह रहे लगभग 100 गड़िया लौहार (बागड़ी) परिवारों के लिये स्थायी आवास उपलब्ध कराये जाएंगे।
आई.एस.बी.टी. देहरादून में स्थापित महाराणा की प्रतिमा के रखरखाव साफ-सफाई की व्यवस्था मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण द्वारा की जाएगी।
चैन्नई में आयोजित दिव्यांग बालकों की गोला फेंकने की प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल प्राप्त करने वाले विकास को रू0 51 हजार भाला फेंकने की प्रतियोगिता में तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले सोनू चैहान को रू0 31 हजार की सहायता राशि।
मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप की जयन्ती के अवसर पर 478वीं जयन्ती के अवसर पर महाराणा प्रताप अंतर्राज्जीय बस अड्डा देहरादून में उनकी मूर्ति का अनावरण किया। कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा कि ये मेरा सौभाग्य है कि महाराणा प्रताप की मूर्ति का अनावरण का अवसर प्राप्त हुआ।
मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा कि शायद ही ऐसा कोई हो जिसने महाराणा प्रताप का नाम सुना हो। उन्होंने अस्पृश्यता जैसे अभिशाप को समाप्त करने का भी संदेश दिया। वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप ने वन में रहकर,घासफूस खाकर भी चित्तौड़ के सम्मान की रक्षा की। महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का स्मरण करते हुए मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा कि चेतक के बिना महाराणा प्रताप का जिक्र अधूरा है। वह चैतन्य एवं बुद्धिमत्ता का प्रतीक है।
इस अवसर पर सांसद श्री रमेश पोखरियाल निशंक, कैबिनेट मंत्री श्री सतपाल महाराज,  विधायक श्री विनोद चमोली महाराणा प्रताप विचार मंच के रतन सिंह चैहान उपस्थित थे।