मेरी पुस्तक के दावे की पुष्टि
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जनसत्ता के 7 मई
2017 के अंक के
रविवारी परिशिष्ट में प्रकाशित लेख ‘‘जहां
मिस्टर से महात्मा
बने गांधी’’ मेरी
पुस्तक ‘‘स्वाधीनता आन्दोलन में
उत्तराखण्ड की पत्रकारिता”
में मेरे द्वारा
किये गये दावे
की पुष्टि करता
है। इस लेख
में लेखक सुरेन्द्र
कुमार ने तार्किक
ढंग से उन
धारणाओं को गलत
साबित किया है
जिनके अनुसार गांधी
जी को कविवर
रवीन्द्र नाथ ठाकुर
ने यह उपाधि
दी थी। मेरी
पुस्तक ‘‘स्वाधीनता आन्दोलन में
उत्तराखण्ड की पत्रकारिता”
को जब विन्सर
पब्लिशिंग कम्पनी ने प्रकाशित
किया था तो
कुछ सम्पादक मेरे
उस दावे से
सहमत नहीं थे
कि महात्मा मुन्शी राम ने ही
सबसे पहले मोहनदास
कर्मचन्द गांधी को ’’महात्मा”
सम्बोधन
से पुकारा था।
मेरी उपरोक्त पुस्तक
के पृष्ठ 171 से
लेकर 173 तक इसका
पूरा विवरण है।
यही नहीं इस
पुस्तक ‘‘स्वाधीनता आन्दोलन में
उत्तराखण्ड की पत्रकारिता”
के
पृष्ठ 71 से लेकर
80 तक में भी
मुन्शी राम द्वारा
स्थापित गुरुकुल कांगड़ी और
उस दौर के
देश के जानेमाने
स्वाधीनता सेनानी पत्रकारों और
ऐतिहासिक अखबारों का विवरण
है। गुरुकुल कांगड़ी
के संस्थापक मुन्शी
राम बाद में
सन्यास लेकर स्वामी
श्रद्धानन्द बन गये
थे। उनके एक
पुत्र क्रांतिकारी राजा
महेन्द्र प्रताप के सहयोगी
थे और दूसरे
पुत्र इन्द्र विद्यावाचस्पति
महान पत्रकार थे
जिन्होंने वीर अर्जुन
की स्थापना की
थी।
लेखकः-जयसिंह रावत
प्रकाशकः-कीर्ति नवानी
विनसर पब्लिशिंग कंपनी,
8,प्रथम
तल, के.सी.
सिटी सेंटर (गांधी
स्कूल के सामने)
4 डिस्पेंसरी
रोड,
देहरादून,
उत्तराखण्ड
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