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Saturday, March 30, 2019

हवाई चप्पल में हवाई यात्रा कराने का वायदा हवा में ही उड़ा



हवाई चप्पल से हवाई यात्रा भी हवा हो गयी उत्तराखण्ड में
-जयसिंह रावत
हवाई चप्पल से हवाई जहाज तककी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बहुप्रचारितउड़ानयोजना हिमालयी राज्य उत्तराखण्ड के पहाड़ चढ़ पाने के कारण हवा हवाई हो गयी है। प्रदेश की पांच हवाई पट्टियों में से दो पर निर्माण कार्य अधूरा पड़ा है और सीमान्त जिला पिथौरागढ़ में स्थित एक अन्य नैनी सैनी हवाई अड्डे के लिये फरबरी में जैसे ही उड़ान भरी गयी तो हवा में उसकी खिड़की खुल गयी। इस घटना में एक बड़ा हादसा तो टल गया मगर प्रस्तावित नियमित उड़ानें भी अनिश्चित काल के लिये स्थगित हो गयीं।
Article of Jay Singh Rawat published in Navjivan on
31 March 2019
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा वर्ष 2017 में रीजनल कनेक्टिविटी स्कीम, जिसे ‘‘उड़ान’’ नाम से जाना गया, को लांच करते समय जब हवाई चप्पल पहन कर भी हवाई यात्रा का सपना दिखाया गया तो पहाड़ी राज्य उत्तराखण्ड के निवासियों की उम्मीदों पर भी पंख लगने लगे थे। राज्य में अवागमन हेतु सड़क मार्ग पर ही जनता को निर्भर करना पड़ता है। आपदा के समय बचाव कार्य हेतु एवम् चारधाम यात्रा तथा पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए राज्य में हवाई मार्ग से हवाई यातायात को अति आवश्यक माना जाता रहा है। इसके लिये राज्य सरकार ने नये हेलीपैडों का निर्माण, मौजूदा हेलीपैडों एवं हवाईपट्टी का सुदृड़ीकरण की बात कही थी। लेकिन मोदी और त्रिवेन्द्र रावत की डबल इंजन सरकारों की हवाई घोषणाओं के धरती पर उतरने के कारण देहरादून और पन्तनगर के अलावा प्रदेश के पहाड़ी इलाकों की जनता की कल्पना की हवाई उड़ाने अभी हवा में ही गोते खा रही हैं।
उत्तराखण्ड में देहरादून के जौलीग्राण्ट और उधमसिंहनगर जिले के पन्तनगर के अलावा भी सामरिक और पर्यटन की दृष्टि से सीमान्त जिला उत्तरकाशी के चिन्यालीसौड़, चमोली के गौचर और पिथौरागढ़ जिले के नैनी सैनी में हवाई सेवाएं शुरू करने की दृष्टि से हवाई पट्टियां लम्बे अर्से पूर्व बनाई गयीं थी।
हवाई सेवाओं के पीछे एक सोच पहाड़वासियों की देहरादून जैसे शहरों के साथ ही दिल्ली और लखनऊ के बीच की दूरी कम करने की भी थी। वर्तमान में पिथौरागढ़ से देहरादून की सड़क मार्ग से दूरी 578 किमी, चम्पावत से 503 किमी, बागेश्वर से 442 किमी और अल्मोड़़ा से 409 किमी बैठती है। दिल्ली और लखनऊ तो रहे दूर पहाड़ के कुछ इलाकों के लोग तो अब भी सड़क मार्ग से दूसरे दिन देहरादून पहुंचते हैं। जब कभी कोई दुर्घटना होती है तो गंभीर घायल अक्सर देहरादून या ऋषिकेश के बड़े अस्पताल तक पहुंचने से पहले ही रास्ते में दम तोड़ देते हैं।
प्रदेश में जौलीग्राण्ट एवं पन्तनगर हवाई अड्डों का संचालन भारतीय विमान पत्तन प्राधिकरण द्वारा तथा पहाड़ी जिलों में स्थित नैनीसैनी, चिन्यालीसौड़ और गौचर की आधी अधूरी हवाई पट्टियों का निर्माण राज्य सरकार द्वारा किया गया है। जौलीग्राण्ट में सबसे पहले पैरा ग्लाइडिंग के लिये छोटी पट्टी का निर्माण सन् 1979 में हो गया था। लेकिन 2008 में यहां से नियमित वायुदूत सेवा शुरू हुई। जौलीग्रण्ट के बाद पन्तनगर हवाई अड्डे का भी उपयोग होने लगा है। लेकिन सीमान्त जिलों में स्थित तीनों हवाई पट्टियां अभी भी अधर में लटकी हुयी हैं। जबकि जौलीग्राण्ट के बाद उत्तरकाशी जिले में स्थित चिन्यालीसौड़ हवाई पट्टी से वायु सेना वर्ष 2018 में अपने भारी विमानों की उड़ानों का ट्रायल भी ले चुकी है। सन् 1992-93 में चिन्यालीसौड़ में 1200 मीटर रनवे का निर्माण किया गया था। बाद में सेना और सिविल के विमानों की नियमित उड़ानों के लिये 2014 में इस हवाई पट्टी के विस्तार के लिये 40 करोड़ की योजना बनी, जिसमें टर्मिनल बिल्डिंग, पार्किंग, बाउण्ड्री और सौन्दर्यीकरण का काम होना था जो कि धनाभाव के कारण पिछले दो सालों से अधूरा पड़ा हुआ है।
इसी तरह चमोली जिले की गौचर हवाई पट्टी से नियमित यात्री उड़ानों की घोषणा धरती पर नहीं उतर पायी है। चिपको आन्दोलन में चण्डी प्रसाद भट्ट के अनन्य सहयोगी रहे रमेश पहाड़ी के अनुसार सामरिक दृष्टि से पहाड़ में हवाई पट्टियां बनाने की कल्पना 1954-55 से और फिर 1962 के बाद की जाने लगी थी, लेकिन गौचर के मैदान में सन् 1981 से हवाई पट्टी बनाने पहल हुयी। उस समय लोग अपनी उपजाऊ जमीन देने को राजी नहीं हुये। वर्ष 1997 में लगभग 200 परिवारों की 800 नाली उपजाऊ जमीन को कौड़ियों के भाव अधिग्रहित कर वहां 1450 मीटर लम्बी हवाई पट्टी का निर्माण करने के साथ ही उसके बाहर 52 मीटर के दायरे में निर्माण पर रोक लगा दी गयी। लेकिन तब से अब तक तो वहां से हवाई सेवायंे शुरू हुयी और ना ही काश्तकारों को उनकी जमीन का उचित मुआवजा मिला।
सीमान्त जिला पिथौरागढ़ की नैनी सैनी हवाई पट्टी से इस साल केन्द्र और राज्य की भाजपा सरकारों ने ‘‘उड़ान’’ सेवा शुरू करने का खूब प्रचार प्रसार तो किया मगर 9 फरबरी को हवा में विमान की खिड़की खुलने से हवाई चप्पल समेत हवाई यात्रा की तैयारियों की पोल भी खुल गयी। नैनीसैनी हवाई पट्टी से 17 जनवरी से पहली व्यावसायिक उड़ान शुरू हुई थी। 18 जनवरी को दूसरे दिन ही विमान सेवा में व्यवधान आया। विमान पंतनगर से सुबह 10.30 बजे के बजाय दिन में 2.10 बजे नैनीसैनी पहुंचा। 19 जनवरी को तीनों फ्लाइट ठीक रही मगर 20, 21, 22 जनवरी को विमान सेवा बंद रही। 23 जनवरी को साप्ताहिक छुट्टी के कारण उड़ान बंद रही। इसके बाद 24 जनवरी को सेवा सुचारु रही। 25 जनवरी को तकनीकी खराबी के कारण विमान पंतनगर से पिथौरागढ़ नहीं सका। 26 जनवरी को तीन फ्लाइटें संचालित हुईं। 27 जनवरी को पंतनगर में विजीविलिटी कम होने से अपराह्न तीन बजे विमान यहां पहुंचा। 31 जनवरी से छह फरवरी तक हवाई सेवा सुचारू रही, सात फरबरी को खराब मौसम के कारण फिर विमान सेवा बंद रही। आठ फरवरी को खराब मौसम के कारण विमान दो घंटा देरी से नैनीसैनी पहुंचा। नौ फरवरी को नैनीसैनी से पंतनगर के लिए यात्रियों को लेकर गये विमान की खिड़की हवा में ख्ुल जाने से विमान वापस पंतनगर लैण्ड कराना पड़ा और उसके बाद डीजीसीए ने सुरक्षा कारणों से सेवा बंद करा दी। इस तरह प्रधानमंत्री मोदी द्वारा हवाई चप्पल में हवाई यात्रा कराने का वायदा हवा में ही उड़ गया।
- जयसिंह रावत
-11फ्रेण्ड्स एन्कलेव, शाहनगर,
डिफेंस कालोनी रोड,
देहरादून।
मोबाइल-09412324999

Monday, March 25, 2019

भाजपा सरकार पहाड़ चिंता कहां ?

Article of Jay Singh Rawat appeared in Shah Times on 25 March 2019

मैदानी जिलों में ही सिमट गया उत्तराखण्ड में विकास
-जयसिंह रावत
पहाड़ों से बड़े पैमाने पर हो रहे पलायन को रोकने और केन्द्र तथा राज्य सरकारों के डबल इंजन के प्रयासों से उत्तराखण्ड की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से भी अधिक ले जाने के राज्य सरकार के खोखले दावों की पोल उसी के द्वारा विधानसभा में पेश की गयी आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2018-19 ने खोल कर रख दी है। रिपोर्ट के अनुसार राज्य के विकास की गाड़ी पहाड़ पर चढ़ ही नहीं पा रही है जिस कारण सारी विकास गतिविधियां प्रदेश के तीन मैदानी जिलों तक ही सिमट गयी है। प्रदेश की 64 प्रतिशत परिवार महज 5 हजार रुपये महीने पर गुजारा कर रहे हैं। हरिद्वार में प्रति व्यक्ति आय ढाइ लाख से ऊपर चली गयी है जबकि कुछ पहाड़ी जिलों में प्रति व्यक्ति आय 90 हजार भी नहीं पहुंच पायी है। पहाड़ों की जो कुछ आय दिखाई गयी है वह भी चुनींदा कस्बों के साधन सम्पन्न लोगों की है अन्यथा अधिकांश परिवार मनरेगा की लगभग 1458 रुपये मासिक आमदनी पर गुजारा कर रहे हैं। विकास के मामले में इतनी अधिक विषमता की जानकारी के बावजूद त्रिवेन्द्र सरकार के 2019-20 के बजट में भी इन पहाड़ी परिवारों को गरीबी से मुक्ति दिलाने के लिये कोई प्रावधान नहीं किया गया है।
त्रिवेन्द्र सरकार पिछले दो सालों से प्रदेश के 84.37 प्रतिशत पहाड़ी भूभाग में विकास गतिविधियां तेज कर इस क्षेत्र से बड़े पैमाने पर हो रहे पलायन को रोकने के दावे कर रही है। इस दिशा में सरकार ने ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग का गठन किया था जिसके अनुसार उत्तराखंड में पिछले 10 सालों में 3,946 ग्राम पंचायतों से 1,18,981 लोग स्थायी और 3,83,726 लोग अस्थाई रूप से अपने गांव छोड़ गये हैं। इस सीमान्त राज्य में इतने बड़े पैमाने पर हो रहे पलायन से राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये भी खतरा उत्पन्न हो गया है। लेकिन इतना जानते हुये भी त्रिवेन्द्र सरकार ने कोई खास कदम नहीं उठा पायी है। त्रिवेन्द्र सरकार का दावा है कि राज्य की प्रति व्यक्ति आय 1,74,622 रुपये है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर प्रति व्यक्ति आय अभी तक 1,12,835 ही है। लेकिन यह आर्थिक उन्नति केवल तीन मैदानी जिलों हरिद्वार, देहरादून और उधमसिंहनगर तक ही सिमट गयी है। उत्तराखंड के 63.41 प्रतिशत परिवार महीने में पांच हजार रुपये से कम की आय पर गुजारा कर रहे हैं। 21 प्रतिशत परिवार 10 हजार रुपये महीने से कम जबकि 14 प्रतिशत लोग महीने में दस हजार से अधिक कमाते हैं। हरिद्वार की प्रति व्यक्ति आय जहां 2,54,050 तक पहुंच गयी वहीं रुद्रप्रयाग जिले की प्रति व्यक्ति आय 83,521 रुपये से आगे नहीं बढ़ पायी। प्रदेश के 9 पहाड़ी जिलों में औसत प्रति व्यक्ति आय केवल 89994.88 रुपये के करीब है वहीं तीन मैदानी जिलों की औसत प्रति व्यक्ति आय 2,12,429 से अधिक पहुंच गयी है। इस हिसाब से 10 पहाड़ी जिलों में प्रति व्यक्ति की प्रति माह आय 7499.57 रुपये बैठती है। यह आय भी पहाड़ी नगरों तक ही सीमित है। सामान्यतः पहाड़ के ग्रामीण मनरेगा में 100 दिन के रोजगार की गारण्टी के तहत औसतन 1458ध्- रुपये प्रति माह की कमाई पर गृहस्थी चला रहे हैं। पहाड़ों में भी सारी आर्थिक गतिविधियां चार धाम यात्रा मार्ग, जिला, तहसील और ब्लाक मुख्यालयों के छोटे बड़े नगरों तक ही सीमित हैं।
राज्य सरकार का सारा ध्यान प्रदेश के 15.63 प्रतिशत मैदानी भूभाग पर ही केन्द्रित होने के कारण पहाड़ों पर विकास की गतिविधियां केवल औपचारिकत के तौर पर चल रही है। राज्य की अर्थ व्यवस्था में मुख्य रूप से कृषि, बागवानी, विनिर्माण, निर्माण, व्यापार, होटल एवं जलपान गृह, परिवहन, भण्डारण, संचार एवं प्रसारण से सम्बन्धित सेवा आदि गतिविधियों का योगदान रहता है। इसी आधार पर सकल राज्य घरेलू उत्पाद तय होता है। लेकिन इस राज्य में सारी आर्थिक गतिविधियां मैदानी जिलों तक सिमट गयी है। पहाड़ों में जो गतिविधियां हैं भी वे पहाड़ी नगरों के इतर कहीं नहीं हैं। इसीलिये प्रचलित भावों पर राज्य का कुल घरेलू उत्पाद 2,14,933 करोड़ रुपये तक और 2018-19 में यह 2,37,147 करोड़ रुपये तक पहुचने का अनुमान है। इसमें भी सर्वाधिक 58,168.24 लाख रुपये सकल घरेलू उत्पाद हरिद्वार जिले का और सबसे कम 2,510.40 लाख रुपये रुद्रप्रयाग जिले का है। राज्य के 10 में से 9 पहाड़ी जिलों का औसत सकल घरेलू उत्पाद 4849.20 लाख करोड़ है तो अकेले तीन मैदानी जिले हरिद्वार, देहरादून और उधमसिंहनगर का औसत सकल घरेलू उत्पाद 45,447.39 लाख रुपये है। त्रिवेन्द्र सरकार ने उज्जवला योजना के तहत प्रदेश के सभी गरीब परिवारों को गैस गैस कनेक्शन देने की घोषणा पिछले साल ही कर दी थी लेकिन आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में अब भी 1.10 लाख गरीब परिवारों के पास गैस कनेक्शन नहीं हैं। बैंक भी आर्थिक गतिविधियां बढ़ाने के लिये पहाड़ों में ऋण देने में भारी कंजूसी कर रहे हैं। बैंकों का ऋण जमानुपात जहां उधमसिंहनगर में 122 हैं वहीं सर्वाधिक पलायन प्रभावित अल्मोड़ा और पौड़ी जिलों में यह अनुपात मात्र 23 है। मानव विकास सूचकांक में भीपहाड़ी जिले पिछड़े और मैदानी जिले आगे हैं। राज्य के 13 जिलों में से रुद्रप्रयाग, चम्पावत और टिहरी जिले क्रमशः 11वें, 12वें और 13वें स्थन पर जबकि देहरादून, हरद्विार और उधमसिंहनगर पहले तीन स्थानों पर हैं। त्रिवेन्द्र सरकार ने सौभाग्य योजना में शतप्रतिशत गावों और घरों का विद्युतीकरण करने का दावा किया है मगर इस रिपोर्ट में 1250 तोकों और मजरों का विद्युतीकरण अब प्रस्तावित होने की बात कही गयी है।
त्रिवेन्द्र सरकार के ही कार्यकाल में अप्रैल 2017 में अल्मोड़ा जिले के खुजरानी गांव में एक 17 साल की किशोरी की भूख से मौत की सूचना स्वयं भाजपा विधायक महेश नेगी ने दी थी। उत्तराखण्ड से भूख से किसी के मरने की यह अब तक की पहली घटना थी। पहाड़ों की गरीबी से देश की सुरक्षा व्यवस्था भी प्रभावित होती है, क्योंकि आजीविका की तलाश में पलायन होने से सीमावर्ती गांव खाली हो रहे हैं। यहां बाड़ाहोती क्षेत्र में हर साल चीनी सेना सीमा का उल्लंघन कर भारतीय क्षेत्र में घुस आती है।
जयसिंह रावत
-11, फ्रेण्ड्स एन्कलव, शाहनगर,
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून।
मोबाइल-9412324999