छतों पर बिजली उत्पादन के नाम पर पहाड़वासियों से ठगी
-जयसिंह रावत
Article of Jay Singh Rawat on reality of Solar energy programe in Uttarakhand published in Navjivan (Associated Journals Lt.) |
गत वर्ष 7 एवं 8 अक्टूबर
को देहरादून में
त्रिवेन्द्र सरकार द्वारा आयोजित
इनवेस्टर्स समिट में
देशभर के उद्योगपतियों
को राज्य में
निवेश करने के
लिये कई सुनहरे
सपने दिखाने के
साथ ही राज्य
में सौर ऊर्जा
उत्पादन की अपार
संभावनाएं प्रर्दशित करने के
लिये पौड़ी जिले
के मुख्यालय से
5 किमी दूर कोट
ब्लाक के उड्डा
गांव में सौर
ऊर्जा प्लाण्ट को
सक्सेस स्टोरी के तौर
पर पेश कर
जो चमत्कारी संभावनाओं
की तस्बीर पेश
की गयी थी
वह प्लाण्ट दिल्ली
छोड़ कर अपने
पहाड़ में लौटे
उद्यमी धीरेन्द्र सिंह रावत
का था। त्रिवेन्द्र
सरकार ने धीरेन्द्र
सिंह की खून
पसीने की कमाई
से लगे सोलर
प्लाण्ट से अपना
प्रचार तो करा
लिया मगर उत्तराखण्ड
अक्षय ऊर्जा अभिकरण
(उरेडा) और राज्य
सरकार के अफसरों
की सबसिडी डकारू
काली करतूतों के
कारण धीरेन्द्र रावत
के आर्थिक संकट
पर गौर करने
की जरूरत तक
नहीं समझी।
केन्द्र में मोदी
सरकार आने के
बाद धीरेन्द्र रावत
ने 2015 में केंद्र
सरकार की “ग्रिड
कनेक्टेड रूफ टॉप
सोलर पावर प्लाण्ट
परियोजना” के तहत
500 किलोवाट का सोलर
प्रोजेक्ट अपने गांव
उड्डा में लगाया
था। इसे लगवाने
के लिए रावत
ने यूको बैंक
से करीब 2.60 करोड़
रूपये का कर्ज
भी लिया। इस
कर्ज के लिये
धीरेन्द्र ने अपनी
3.27 करोड़ की सम्पत्ति
गिरवी रखी थी
और यह सम्पति
गढ़वाल के इस
उद्यमी ने दिल्ली
में ठेकेदारी आदि
उद्यमों से कमाई
थी। उन्होंने रिवर्स
पलायन कर अपने
गांव लौटने की
भावना से इतना
बड़ा जोखिम उठाया
था। गैर परम्परागत
ऊर्जा को प्रोत्साहन
की नीति के
तहत धीरेन्द्र रावत
को कुल लागत
के 70 प्रतिशत की
वापसी सबसिडी के
रूप में मिलनी
थी जो कि
अब तक नहीं
मिली। रावत को
प्रति माह बैंक
को 2.60 लाख रुपये
ब्याज और मूलधन
के रूप में
चुकाने पड़ रहे
हैं, जबकि सरकार
को उन्हें जो
2.40 करोड़ की सबसिडी
देनी थी और
वह अब तक नहीं
मिली। वह अब
तक बैंक को
70 लाख रुपये लौटा चुके
हैं। यही नहीं
धीरेन्द्र के प्लाण्ट
से जो बिजली
यूपीसीएल के ग्रिड
को जाती है
उसमें अक्सर गड़बड़ी
रहती है और
बार-बार के
शटडाउन से बिजली
उत्पादन में भी
भारी व्यवधान पैदा
होता है। अब
तक तक तो
धीरेन्द्र रावत अपनी
जेब से पैसा
लगाकर प्लाण्ट चलाते
रहे लेकिन अब
उनकी हिम्मत जवाब
देने लगी है।
वेतन न मिलने
की वजह से
प्लाण्ट में काम
करने वाले आठ
लोग नौकरी छोड़कर
चले गए और
मैंटेनेंस न होने
की वजह से
जिस प्लाण्ट का
एनर्जी कनवर्जन रेश्यो राज्य
में सबसे अधिक
था उसकी हालत
भी खराब हो
गयी।
पहाड़ के दूसरे
उद्यमी कवीन्द्र सिंह बिष्ट
की भी यही
कहानी है। उन्होंने
मोदी सरकार की
लुभावनी घोषणा से गदगद
हो कर पौड़ी
के कोट ब्लाक
के सीकू गांव
में 4 करोड़ की
लगात से 500 किलोवाट
क्षमता का सोलर
प्लाण्ट लगाया था। लेकिन
उनको भी आज
तक भारत सरकार
से मिलने वाली
सबसिडी नहीं मिली।
इस सम्बन्ध में
धीरेन्द्र सिंह रावत
एवं कवीन्द्र सिंह
बिष्ट कई बार
राज्य के नौकरशाहों
से मिलने के
बाद राज्य के
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत
से भी तीन
बार मिल चुके
हैं लेकिन सरकार
की बादाखिलाफी के
शिकार पहाड़ के
इन निवेशकों को
अपने ही राज्य
में न्याय नहीं
मिला। जबकि त्रिवेन्द्र
सरकार सारे देश
के उद्योगपतियों को
राज्य में निवेश
के लिये आमंत्रित
करने का ढकोसला
कर रही है।
“ग्रिड
कनेक्टड रूफ टॉप
सोलर पावर प्लाण्ट
परियोजना” भले ही
बुरी तरह विफल
हो गयी मगर
उत्तराखण्ड अक्षय ऊर्जा अभिकरण
(उरेडा) तथा राज्य
सरकार के अफसरों
ने राजनीतिक संरक्षण
में अपने-अपनों
को सबसिडी की
जो रेवड़ियों बांटनी
थीं वे बांट
दी। इस मिशन
के तहत राज्य
में पहले चरण
में 352 मेगावाट क्षमता के
सौर ऊर्जा प्लाण्ट
लगने थे लेकिन
इनमें से 51 मेगावाट
के प्लाण्ट भी
नहीं लग पाये
और कागजों में
जो प्लाण्ट लगे
भी वे सबसिडी
की बंदरबांट करने
के लिये उत्तराखण्ड
अक्षय ऊर्जा अभिकरण
(उरेडा) तथा राज्य
सरकार के अफसरों
ने राजनीतिक संरक्षण
में रेवड़ियों की
तरह अपने-अपनों
में बांट दिये।
देखा जाय तो
352 मेगावाट के लक्ष्य
के विपरीत धरती
पर केवल 7 मगावाट
के प्लाण्ट ही
उतरे हैं और
इस तरह 4.80 करोड़
प्रति मेगावाट के
हिसाब से राज्य
लगभग 17 अरब की
सबसिडी से वंचित
हो गया और
जो थेड़ी बहुत
सबसिडी मिली भी
उसकी बंदरबांट हो
गयी।
“ग्रिड
कनेक्टड रूफ टॉप
सोलर पावर प्लाण्ट
परियोजना” में केंद्र
सरकार की तरफ
से लाभार्थी को
70 फीसदी सब्सिडी का प्रावधान
था। “पहले आओ-पहले पाओ” वाली योजना के तमाम
नियमों को ताक
पर रखते हुए
अपने दोस्तों और
रिश्तेदारों को ही
प्लांट आवंटित कर दिए
गये। इतना ही
नहीं इन प्लांटों
को नियमतः बिल्डिंग
की छतों और
उससे सटी हुई
बेकार भूमि पर
लगना था। लेकिन
पहले तो इन्हें
कृषि भूमि पर
लगा दिया गया
और बाद में
जब गलती पकड़ी
गई तो कृषि
भूमि का लैंड
यूज ही बदलवा
दिया गया।
इस योजना में घरों
की छतों पर उत्पादित
बिजली उत्तराखण्ड पावर
कारपोरेशन द्वारा लगभग 7 रुपये
प्रति यूनिट की
दर से 25 साल
तक खरीदी जानी
थी। जिस दिन
ये स्कीम लॉंच
हुई एक घंटे
के अंदर सभी
आवेदन उरेडा में
जमा हो गए।
इन आवेदकों में
ज्यादातर उरेडा के अधिकारियों
के रिश्तेदार और
दोस्त थे। एक
अधिकारी ने तो
अपनी पत्नी के
नाम पर ही
प्रोजेक्ट को आबंटित
करा लिया। हद
तो तब हो
गई जब एक
ही प्लांट को
तीन बार अलग-अलग दिशाओं
के गेट दिखा
कर तीन सब्सिडी
भी रिलीज करा
लीं गईं। इतना
ही नहीं सब्सिडी
की 50 प्रतिशत रकम
में इन अधिकारियों
ने अपने करीबियों
को 100 प्रतिशत सब्सिडी रिलीज
कर दी। जबकि
धीरेन्द्र रावत, पेटवाल और
कवीन्द्र बिष्ट जैसे आबंटी
अब भी करोड़ों
रुपये की सबसिडी
का इंतजार कर
रहे हैं। यही
नहीं जब कि
सबसिडी वाला मिशन
का पहला चरण
फेल हो गया
तो अब उत्तराखण्ड
के पहाड़ी क्षेत्रों
के लिये बिना
सबसिडी की 200 मेगावाट की
नयी योजना शुरू
की जा रही
है। इसका मकसद
भी बिजली उत्पादन
करना नहीं बल्कि
सौर ऊर्जा के
नाम पर पहाड़ियों
की बेसकीमती जमीन
को औने पौने
दामों पर खरीद
कर पहाड़ियों को
उनकी ही पुश्तैनी
जमीन पर मजदूरी
कराना है। त्रिवेन्द्र
सरकार ने इसी
मकसद से राज्य
के भूकानून में
संशोधन किया था।
जयसिंह रावत
ई-11, फ्रेण्ड्स एन्कलेव, शाहनगर
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून।
मोबाइल-9412324999
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