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Sunday, June 30, 2019

सरकार की नादानी शंकराचार्य द्वारा स्थापित ज्योतिर्मठ खतरे में


त्रिवेन्द्र सरकार की नादानी से शंकराचार्य द्वारा स्थापित ज्योतिर्मठ खतरे  में
-जयसिंह रावत
Snow clad  skeing slopes of famous winter sports center Auli
सीमान्त जिला चमोली में समुद्रतल से 2591 मीटर से लेकर 3049 मीटर की ऊंचाई तक फैली औली के शीतकालीन क्रीड़ा स्थल पर गुप्ता बन्धुओं की 200 करोड़ की बहुचर्चित शादी का कूड़ा कचरा तो स्थानीय प्रशासन साफ कर ही देगा। लेकिन इतने संवेदनशील स्थान पर इतने बड़े आयोजन की अनुमति दे कर राज्य की त्रिवेन्द्र रावत सरकार ने पौराणिक नगरी एवं आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा स्थापित चौथे धाम ज्योतिर्पीठ के अस्तित्व के लिये गंभीर खतरे को आमंत्रण दे दिया है। भूवैज्ञानिकों के अनुसार जोशीमठ भूस्खलन एवं त्वरित बाढ़ जैसी आपदाओं के मामले में अति संवेदनशील है और इसके आसपास भारी निर्माण और खासकर इसके ऊपर औली और गोरसों बुग्यालों पर छेड़छाड़ करना बहुत ही जोखिमपूर्ण है।
गुप्ताओं के शादी समारोह के लिए औली  की स्कीइंग ढलानों का सत्यानाश 
दक्षिण अफ्रीका में व्यापार करने वाले सहारनपुर के खरबपति गुप्ता बन्धु विश्व प्रसिद्ध स्कीइंग स्थल औली में अपने पुत्रों की शाही शादी करा कर दुल्हा-दुल्हनों समेत वापस लौट गये हैं मगर अपने पीछे दर्जनों टन कूड़ा कचरा छोड़ गये। हाइकोर्ट की दखल पर यह कूड़ा गुप्ता बन्धुओं के खर्च पर नगरपालिका जोशीमठ साफ कर रही है। लेकिन इस अति महंगे आयोजन के कारण धर्म नगरी पर भूस्खलन का जो खतरा पैदा हो गया है, उसे कौन दूर करेगा, इसका जवाब गुप्ता बन्धु तो रहे दूर स्वयं राज्य की त्रिवेन्द्र सरकार के पास भी नहीं है। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने स्वयं स्वीकार किया है कि उन्होंने ही गुप्ता बन्धुओं को औली में अब तक की सबसे खर्चीली शादी कराने का आमंत्रण दिया था, जिसे उन्होंने स्वीकार किया। इस शादी समारोह के लिये देश की जानी मानी हस्तियों के लिये आलीशान टेंट कालोनी, विवाह मण्डप, समारोह स्थल, वैंक्वेट हाल, वाहनों की पार्किंग एवं हैलीकाप्टरों के लिये हैंगर और प्लेट फार्म और सामान ढोने के लिये ट्रकों के लिये सड़क का निर्माण हुआ है। इन सभी निर्माणों के लिये औली की स्कीइंग ढलानों पर खुदाई और मखमली घास की कारपेटों को उखाड़ कर उसके नीचे की मिट्टी को उघेड़ा गया जो कि बरसात में भयंकर भूस्खलन और जोशीमठ के ऊपर से आने वाले पांच नालों में त्वरित बाढ़ का कारण बन सकती है। लूज मिट्टी को डलानों पर फेंका गया है जो बरसात में आफत बन कर बह सकती है।
अदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित भारत की ४ सर्वोच्च धार्मिक
 पीठों में से एक ज्योतिर्पीठ की पीठ पर गुप्ता बंधुओं के 
शादी समारोह के मल जल का तालाब 
इस बहुचर्चित समारोह को अनुमति देने से पहले त्रिवेन्द्र सरकार को वर्ष 2010 की वह आपदा याद नहीं आयी जबकि जोशीमठ नीचे अलकनन्दा नदी में जाते-जाते रह गया था। उस समय जोशीमठ के कई मकानों और दुकानों में ऊपर से आया हुआ मलबा भर गया था। दरअसल 2011 में हुये सैफ शीतकालीन खेलों के लिये औली की ढलानों पर इसी तरह का निर्माण कार्य किया गया था और उससे पहले 2010 की बरसात में सारी पोली मिट्टी मलबे के रूप में बहकर जोशीमठ के ऊपर गयी थी। इस बार त्रिवेन्द्र सरकार की नादानी के कारण फिर वैसे ही हालात पैदा हो गये हैं।
जोशीमठ पर दैवी आपदा का खतरा नया नहीं है। 1970 की अलकनन्दा की बाढ़ के बाद उत्तर प्रदेश सरकार को जब स्वयं आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा ढाइ हजार साल पहले स्थापित हिमालयी धार्मिक पीठ ज्योतिर्पीठ पर खतरे का अहसास हुआ था तो सरकार ने 1976 में गढ़वाल के तत्कालीन कमिश्नर महेशचन्द्र मिश्रा की अध्यक्षता में वैज्ञानिकों की एक कमेटी का गठन कर जोशीमठ की संवेदनशीलता का अध्ययन कराया था। इस कमेटी में सिंचाई एवं लोक निर्माण विभाग के इंजिनीयर, रुड़की इंजिनीयरिंग कालेज (अब आइआइटी) तथा भूगर्व विभाग के विशेषज्ञों के साथ ही पर्यावरणविद् चण्डी प्रसाद भट्ट को शामिल किया था। ( रौतेला एवं डा. एम.पी.एस.बिष्ट: डिसआस्टर लूम्स लार्ज ओवर जोशीमठ: करंट साइंस वाल्यूम 98) इस कमेटी ने अपनी अध्ययन रिपोर्ट में कहा था कि जोशीमठ स्वयं ही एक भूस्खलन पर बसा हुआ है और इसके आसपास किसी भी तरह का भारी निर्माण करना बेहद जोखिमपूर्ण है। कमेटी ने केवल भारी निर्माण अपितु ओली की ढलानों पर भी छेड़छाड़ करने का सुझाव दिया था ताकि जोशीमठ के ऊपर कोई भूस्खलन या नालों में त्वरित बाढ़ सके। जोशीमठ के ऊपर औली की तरफ से 5 नाले आते हैं। ये नाले भूक्षरण और भूस्खलन से बिकराल रूप लेकर जोशीमठ के ऊपर वर्ष 2013 की केदारनाथ की जैसी आपदा ला सकते हैं।
 गुप्ता बन्धु दुल्हनों को लेकर फुर्र और पीछे छोड़ दिया
 जोशीमठ के ऊपर मलजल का तालाब 
वर्ष 1988-89 में जब बार्डर रोड आर्गनाइजेशन (बीआरओ) ने बरीनाथ के लिये जोशीमठ के नीचे हेलंग से मारवाड़ी रोड का निर्माण शुरू किया तो इसे रुकवाने के लिये स्थानीय लोग इलाहाबाद हाइकोर्ट चले गये। हाइकोर्ट में जब मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट पेश की गयी तो स्थिति की गंभीरता को भांपते हुये हाइकोर्ट ने सड़क निर्माण पर रोक लगा दी जबकि वह सड़क लगभग 80 प्रतिशत बन चुकी थी। जोशीमठ की संवेदनशीलता के कारण ही बीआरओ की लाख कोशिशों के बावजूद वह सड़क आज तक नहीं बन सकी।
मिश्रा समिति के सदस्य एवं प्रख्यात पर्यावरणविद् पद्मभूषण चण्डी प्रसाद भट्ट ने भी औली में इस तरह के भव्य शादी समारोह की अनुमति देने पर चिन्ता प्रकट की है। भट्ट ने इस सम्बन्ध में पूछे जाने पर बताया कि जोशीमठ अपने आप में एक पुराने भूस्खलन पर बसा हुआ है और इसके नीचे या आसपास अगर निर्माण जैसी गतिविधियां हुयी तो यह पुराना भूस्खलन पुनः सक्रिय हो जायेगा और यह पौराणिक नगरी अलकनन्दा में समा जायेगी। उन्होने कहा कि मिश्रा समिति जिसमें वह स्वयं एक सदस्य थे ने सुझाव दिया था कि भविष्य में इसके नीचे या आसपास कोई खुदाई का कार्य किया जाय। समिति ने जोशीमठ की ढलानों पर पेड़ लगान, दरारों को सील करने और वहां से मिटटी या बड़े बोल्डर हटाने की सिफारिश भी की थी। समिति ने जोशीमठ के 5 कि.मी. ब्यास के क्षेत्र में निर्माण कार्यों पर प्रतिबन्ध का भी सुझाव दिया था लेकिन बावजूद इसके औली की ढलानों पर अनावश्यक छेड़छाड़ जारी है जो कि जोशीमठ के लिये बहुत खतरनाक है। भट्ट ने सामरिक दृष्टि से भी इस सीमावर्ती क्षेत्र के पारितंत्र को अत्यंत संवेदनशील बताते हुये भूगर्व विशेषझों से इस क्षेत्र का सर्वेक्षण करा कर इसकी जानकारियों की इन्वेंटरी तैयार करने का सुझाव भी दिया है। गौरतलब है कि पूर्व में चण्डीप्रसाद भट्ट की चेतावनी के बाद फूलों की घाटी क्षेत्र में बिष्णुप्रयाग परियोजना के लिये बनने वाली अतिरिक्त सुरंग का निर्माण रोक दिया गया था।
जोशीमठ की भूगर्वीय संवेदनशीलता पर राज्य आपदा न्यूनीकरण केन्द्र के निदेशक डा0 पियूष रौतेला एवं गढ़वाल विश्वविद्यालय के भूवैज्ञानिक डा0 एम.पी.एस. बिष्ट (जो कि इन दिनों राज्य अंतरिक्ष उपयोग केन्द्र के निदेशक हैं) का एक शोधपत्र करंट साइंस के 25 मई 2010 के वाल्यूम-88,संख्या-10 में प्रकाशित हुआ है। इन भूवैज्ञानिकों ने भी जोशीमठ की संवेदनशीलता को देखते हुये उसके आसपास भारी निर्माण करने की सिफारिश की है। इन वैज्ञानिकों के अनुसार यह समूचा क्षेत्र टूटीफूटी टेक्टॉनिक चट्टानों के ऊपर है। इन्होंने विष्णुगाड-तपोवन जैसी जलविद्युत परियोजनाओं की भूमिगत सुरंगों के निर्माण से क्षेत्र में जल संकट की ओर भी इशारा किया है। इन्होंने विष्णगाड-तपोवन परियोजना में भूगर्वीय संवेदनशीलता की अनदेखी के कारण सुरंग निर्माण के दौरान एक भूगर्वीय जलकुंभ के फटने का उदाहरण देते हुये कहा कि उस चट्टानी जलकुम्भ के फटने से प्रति दिन 6 से लेकर 7 करोड़ लीटर तक पानी का श्राव हुआ जिससे क्षेत्र के जल श्रोत सूख गये। यह सुरंग ओली बुग्याल के लगभग 1 किमी जमीन के नीचे खुद रही थी।
भूवैज्ञानिकों ने जोशीमठ ही नहीं बल्कि इस समूचे क्षेत्र को अति संवेदनशील माना है। जोशीमठ के सामने समूचा चाईंगाव भूसखलन से खिसक गया है जिस कारण उसके कई मकान ध्वस्त हो गये। अगर इसी तरह जोशीमठ का पुराना भूसक्ष्यलन सक्रिय हो गया तो आदि गुरू शंकराचार्य की यह यादगार धर्मनगरी भी अलकनन्दा में समा जायेगी। औली की ढलानों पर खुदाई के तुरन्त बाद मानसून की धमक से खतरा और बढ़ गया है।

-जयसिंह रावत
-11, फ्रेण्ड्स एन्कलेव, शाहनगर
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून।

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