उत्तराखण्ड :अंधेर नगरी चौपट राजा
-जयसिंह रावत
Joshimath towon facing threat of landslide and flash flood |
उत्तराखण्ड अगर ‘‘मैरियेज डेस्टिनेशन’’ बनता है तो खुशी की बात है। लेकिन औली ही क्यों? क्या उत्तराखण्ड जैसे धरती के स्वर्ग में खूबसूरत नजारों और पर्यटन स्थलों की कमी है? अकेला सवाल औली में उच्च हिमालयी क्षेत्र में मानवीय दखल से पारितंत्र को खतरे का नहीं है। असली सवाल यह है कि इस अन्धी सरकार ने भूस्खलन के खतरे में घिरे पौराणिक नगर जोशीमठ की खोपड़ी में टेंट कालोनी बनाने की इजाजत कैसे दे दी। माना कि हाइकोर्ट के आदेश पर गुप्ता बन्धु चमोली के डीएम को औली के पर्यावरण की क्षतिपूर्ति के लिये 3 करोड़ दे देते हैं तो जब तक ये 3 करोड़ खर्च होंगे और ओली जैसा का तैसा बनेगा तब तक जोशीमठ पर केदारनाथ की तरह बरबाद होने का खतरा मंडराता ही रहेगा। वर्ष 2010 में जोशीमठ भी केदारनाथ की तरह बरबाद होते-होते बचा। फिर भी उस समय नगर को काफी नुकसान हुआ था। उस समय सैफ खेलों के लिये ओली में इसी तरह निर्माण एवं खुदाई हुयी थी जिसका नतीता त्वरित बाढ़ के रूप में निकला। वैसे भी जोशीमठ पुराने भूस्खलन पर बसा हुआ है। बरसात दस्तक दे चुकी है और औली की ढलानों पर टेंट कालोनी आदि के लिये जो गड्ढे आदि बने होंगे तथा मिट्टी निकली होगी वह मामूली बारिश में भी बहेगी और फिर ढलान पानी और मिट्टी का वेग मलवा उखाड़ते हुये नीचे बहेगा। फिर क्या होगा? वास्तव में यह उत्तराखण्ड ही अन्धेर नगरी हो गयी है जहां सब कुछ चौपट हो चुका है। जोशीमठ की भूगर्वीय संवेदनशीलता को देखते हुये उत्तर प्रदेश सरकार ने 1976 में मिश्रा समिति का गठन किया था जिसने जोशीमठ को भूस्खलन से गंभीर खतरा बताया था। इस समिति के सदस्य प्रख्यात पर्यावरणविद् पद्मभूषण चण्डी प्रसाद भट्ट भी थे।
राजनीतिक शासकों की अज्ञानता के कारण अभी-अभी लालढांग-चिल्लरखाल मार्ग के मामले में राज्य सरकार को मुंह की खानी पड़ी। मैंने त्रिवेन्द्र जी की पहली ही प्रेस कान्फ्रेंस में उनको टोक कर पूछा था कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के कारण जो काम आपके वश का नहीं है उसकी घोषणा क्यों कर रहे हो? मुझे नहीं पता कि त्रिवेन्द्र जी को मेरी वो बात आज भी याद है या नहीं! म्गर मैं उनको याद दिलाना चाहता हूं कि वह प्रेस कान्फ्रेंस के बाद हमारी टेबल पर आये थे और मुझे कह गये थे कि सुझाव भी दिया करो। सुझाव किसको देते? उनके मीडिया सलाहकारों और कोर्डिनेटरों ने हमारे लिये उनके दरवाजे बन्द करा रखे हैं। अब हम उस दिन की प्रतीक्षा में हैं जब हमारा पड़ोसी हमारे पड़ोस में लौटेगा और फिर सुबह शाम स्वाभाविक मुलाकातें बहाल होंगी।
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