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Thursday, June 6, 2019

मैदान में लू और हिमालय पर लपटें- रखवाले सैर सपाटे पर विदेश ( courtsey -Amar Ujala blog)


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मैदान में लू और हिमालय पर लपटें, धू-धू कर जल रहे जंगल

जयसिंह रावत Updated Wed, 05 Jun 2019 07:04 PM IST

पहाड़ों के जंगलों में आग - फोटो : सोशल मीडिया
ग्रीष्म ऋतु में आसमान से आग बरसने से लगभग आधा हिन्दुस्तान झुलस रहा है। राजस्थान जैसे कुछ राज्यों में पारा 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया और सम्पूर्ण एशिया के मौसम चक्र को नियंत्रित करने वाला हिमसागर, हिमालय प्रचण्ड गर्मी का मुकाबला करने के बजाय स्वयं ही जल रहा है। जम्मू कश्मीर से लेकर उत्तर पूर्व तक के जंगल इन दिनों प्रचण्ड वनाग्नि की चपेट में हैं। लू और वनाग्नि से उत्तर भारत के लोग तो त्रस्त हैं ही लेकिन इस आपदा से वन्य जीव संसार महाविनाश के संकट में फंसा हुआ है।
जैव विविधता के लिये दुनिया के सबसे सम्पन्न हाॅट स्पाॅट्स में से एक हिमालय के उत्तर पूर्वी राज्यों की स्थिति तो और भी अधिक विकट है। नौकरशाही का ध्यान वृक्षों और वन संपदा को हो रहे नुकसान की ओर तो जाता है मगर जीव संसार के महाविनाश और हिमालय की लोकल वार्मिंग के साथ ही वहां से पैदा हो रही कार्बन डाइऑक्साइड पर नहीं जाता। चूंकि अब जंगल सरकार के हैं और उनसे जुड़े स्थानीय समुदायों के साथ घुसपैठियों का जैसा बर्ताव किया जाता है तो वे भी हिमालय के जंगलों को बचाने का प्रयास क्यों करेंगे?

शीतलता देने वाला हिमालय स्वयं ही झुलसा
ग्रीष्म ऋतु अपने चरम पर है। महाराष्ट्र, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश को लू के थपेड़ों ने झुलसा रखा है। गत 19 मई को राजस्थान के फलोदी में तो हद ही हो गयी। वहां उस दिन तापमान 51 डिग्री सेल्सियस यानी कि 123.8 डिग्री फाॅरेनहाइट तक पहुंच गया। राजस्थान के ही श्रीगंगानगर में तापमान 49.6 डिग्री तक पहले ही छू चुका है और अभी मानसून की प्रतीक्षा ही है। ऐसी स्थिति में सामान्यतः नागाधिराज हिमालय का ही सहारा होता है जो कि भारत ही नहीं अपितु समूचे ऐशिया के ऋतु चक्र को नियंत्रित करता है और उसकी बर्फीली चोटियों को चूम कर चलने वाली ठण्डी हवायें उत्तर भारत के तापमान को नियंत्रित करती हैं।

हिमालय अपने आप में एक हिमसागर है जिसमें बर्फ के रूप में एक महासागर से अधिक पानी जमा रहता है। हवायें महासागर से पानी लाकर बर्फ के रूप में हिमालय पर उंडेल देती हैं और वह बर्फ साल भर पिघल कर फिर पानी के रूप में गंगा, यमुना, सिन्धु और ब्रह्मपुत्र जैसी सदावाहिनियों के रूप में प्रवाहित होकर मनुष्यों, जीव-जन्तुओं और धरती की प्यास बुझाता है। लेकिन जब यह बर्फ का महासागर स्वयं ही जल रहा हो तो वह सूरज की अग्निवर्षा का क्या मुकाबला करेगा? वनों से भरपूर जो हिमालय धरती के बड़े हिस्से से कार्बनडाइ ऑक्साइड सोख कर ऑक्सीजन देता है वही हिमालय अगर वनों में लगी भीषण आग के कारण ताप देने के साथ ही धुआं ही धुआं देता हो तो उससे स्वास्थ्य वर्धक और जीवन रक्षक आबोहवा की अपेक्षा कैसे की जा सकती है।
 

आग - फोटो : सोशल मीडिया
वनों को आग के हवाले छोड़ रखवाले विदेश खिसके
मध्य हिमालय स्थित उत्तराखण्ड में मई के महीने तक 1722 वनाग्नि काण्डों में 2362.85 हेक्टेअर पर 42 लाख रुपए मूल्य की वन संपदा नष्ट हुयी है। जबकि पिछले साल 4287.86 हेक्टेअर पर 83.21 लाख की वन संपदा नष्ट हुयी थी। गत 30 मई को इस वन बाहुल्य प्रदेश में रिजर्व फॉरेस्ट के अंदर 447 एवं रिजर्व फॉरेस्ट से बाहर 224 वनाग्नि की घटनाएं घटीं थी। जंगल की इस आग ने 85 गांव खतरे में डाल दिये थे। जंगल की आग से कीर्तिनगर के निकट कड़ाकोट इंटर कालेज का भवन पूरी तरह जल गया। कुमाऊं के बागेश्वर वन प्रभाग के बैजनाथ रेंज में एक श्रमिक लीसा डिपो बचाते समय जल कर मर गया। चिन्यालीसौड़ के निकट आग बुझाते समय एक वनकर्मी झुलस गया। गत दिनों नैनीताल के निकट वनों से घिरे एक गेस्ट हाउस में ठहरी फ्रांस की युवती समेत दो लोगों को बड़ी मशक्कत के बाद बचाया जा सका।

पौड़ी गढ़वाल के थलीसैण-बीरोंखाल के जंगलों में लगी आग की चपेट में आने से एक गुलदार जल कर मर गया जिसका जला हुआ शव नयार नदी में मिला। उत्तराखण्ड में सबसे अधिक वनाग्नि प्रभावित, टिहरी, अल्मोड़ा और नैनीताल जिले हैं। लेकिन कुल 13 जिलों में से एक भी जिला ऐसा नहीं जो कि वनाग्नि से प्रभावित हो। जिन वनाधिकारियों को जंगल की आग रोकने और बुझाने की व्यवस्था की जिम्मेदारी थी वे फायर सीजन शुरू होते ही सैर सपाटे पर विदेश चले गये। जंगलों को आग के हवाले छोड़ कर राज्य के प्रमुख वन संरक्षक जयराज समेत 6 वरिष्ठ वनाधिकारियों के विदेश जाने पर वन एवं पर्यावरण मंत्री हरकसिंह रावत ने मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत के समक्ष कड़ा विरोध भी दर्ज किया था। नवीनतम् सर्वेक्षणों के अनुसार राज्य में स्तनपायियों की 102, पक्षियों की 687, उभयचरों की 19, सरीसृपों की 70, मछलियों की 124 प्रजातियां हैं। दुर्लभ श्रेणी में बाघ, एशियाई हाथी, कस्तूरा मृग, हिम तेंदुआ, मोनाल समेत अन्य वन्यजीव हैं।

हिमाचल में भी वन्यजीवन सपुर्दे खाक
जो हालत उत्तराखण्ड के हैं वहीं पड़ोसी हिमालयी राज्य हिमाचल प्रदेश में भी हैं। वहां भी इस साल लगभग 5 हजार हैक्टेअर वन आग की चपेट में चुके हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार जून के शुरू में ही राज्य की राजधानी शिमला समेत कसौली, चैल, धरमपुर, बिलासपुर, कांगड़ा, हमीरपुर, धर्मशाला एवं पालमपुर जैसे नगरों के आकाश में वनाग्नि के कारण धुएं के बादल नजर रहे थे। राज्य में लगभग 22 प्रतिशत वन आग के खतरे में हैं तथा  23 वन प्रभागों को वनाग्नि के लिये संवेदनशील चिहनित किया गया है। वनाग्नि के दृष्टि से पिछला साल 2018 हिमाचल के लिये बहुत खराब रहा। वहां गत वर्ष 2469 वनाग्नि की घटनाओं में 25,300 हैक्टेअर वन प्रभावित हुये। वहां 29 मई 2018 को डलहौजी वन प्रभाग के चैवाड़ी रेंज में आग बुझाते हुये एक डिप्टी रेंजर अशोक सिंह की मृत्यु हो गयी थी।

इस साल भी वहां बिलासपुर, ऊना, हमीरपुर, कांगड़ा, सिरमौर, सोलन और शिमला जिले वनाग्नि से सबसे अधिक प्रभावित हुये। एक वनाधिकारी के अनुसार इस साल अब तक हिमाचल में 25 से 30 लाख रुपये तक की वन संपदा नष्ट हो चुकी है। इस सम्पदा में केवल लकड़ी गिनी गयी है जबकि ज्यादा नुकसान जीवधारियों को हुआ है। हिमालय में लगभग 45 हजार ज्ञात पादप प्रजातियों में से 3,295 प्रजातियां पायी जाती है। यहीं ग्रेट हिमालयन पार्क जैसे वन्यजीवन से भरपूर संरक्षित क्षेत्र हैं जो कि विश्व धरोहर में शामिल हैं।

 
पहाड़ों के जंगलों में आग - फोटो : सोशल मीडिया
विश्व की विलक्षण जैव विविधता भी आग के हवाले
जैव विधिता की दृष्टि से दुनिया के मात्र डेढ दर्जन मेगा डाइवर्सिटी नेशन में से एक भारत में जैव विधिता की दृष्टि से जो सबसे समृद्ध तीन हाॅट स्पाॅट्स हैं, उनमें से एक हिमालय और दूसरा पश्चिमी घाट है। हिमालय में भी सर्वाधिक जैव विधिता उत्तरपूर्व क्षेत्र में हैं और वही क्षेत्र वनाग्नि की दृष्टि से सबसे अधिक संवेदनशील है। वन सर्वेक्षण विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर पूर्व के आठ राज्यों में हर साल वनाग्नि काण्डों की औसतन 15 हजार घटनाएं होती है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि अग्निकाण्डों से हिमालय के पारितंत्र को कितना नुकसान हो रहा होगा। लेकिन हैरानी का विषय यह है कि इंसानों और पेड़ों को बचाने के लिये तो हायतौबा हो रही है मगर कीट-पतंगों से लेकर स्तनपायी जीवों तक की हजारों प्रजातियों के करोड़ों जीवों के जलभुन जाने के महासंकट के बारे में किसी भी कोने से चिन्ता का स्वर नहीं सुनाई देता।

वनाग्नि से वन्यजीवन खाक
बनाग्नि की लम्बी अग्नि रेखा सब कुछ भस्म कर आगे बढ़ती है तो अपने पीछे केवल राख छोड़ती चली जाती है। वनाग्नि बड़े वृक्षों को छोड़ कर उसके आगे आने वाली हर वनस्पति और हर एक जीव का अस्तित्व राख में बदल कर चलती जाती है। बाघ और हिरन जैसे स्तनधारी वन्यजीव तो जान बचा कर सुरक्षित क्षेत्र की ओर भाग सकते हैं, मगर उन निरीह सरीसृपों और कीट-पतंगों का क्या हाल हुआ होगा जो कि दावानल की गति से भाग ही नहीं सकते। जीवों के पास तो भागने का विकल्प है मगर उन नाजुक वनस्पतियों के महाविनाश की कल्पना की जा सकती है जो कि अपने स्थान पर हिल तो सकती हैं मगर भाग नहीं सकती!

गत सप्ताह पौड़ी गढ़वाल में एक गुलदार वनाग्नि की चपेट में आने से जल कर मर गया। जब बहुत तेज भागने वाला बिल्ली परिवार का गुलदार या बाघ जंगल की आग से बच नहीं सकता तो रेंगने वाले जीवों की स्वयं ही कल्पना की जा सकती है। तमाम वनस्पतियां और वन्यजीव एक दूसरे पर निर्भर होते हैं। कुछ पादप या जीव भी नष्ट हो जायंे तो एक दूसरे पर पराश्रय की वह श्रृंखला ही टूट जाती है। यहां तो सवाल एक दो जीवों या पदपों के लुप्त होने का नहीं बल्कि जंगलों के जीवन विहीन होने का है।

जैव विधिता में विश्व के सबस धनी क्षेत्रों में से एक  हिमालय हाॅट स्पाॅट का कुल क्षेत्रफल 7,41,706 वर्ग किमी है तथा इसमें संरक्षित क्षेत्र 1,12,578 वर्ग किमी है। हिमालय का आइयूसीएन की कैटेगरी 1-6 के तहत संरक्षित क्षेत्र 77,739 वर्ग किमी तथा हाॅटस्पाॅट वनस्पति क्षेत्र 185427 वर्ग किमी है। यहां औसत  मानव जनसंख्या घनत्व -123 प्रति वर्ग किमी है। इस संवेदनशील क्षेत्र में 3160 इंडेमिक पादप प्रजातियां हैं और अस्तित्व के खतरे वाले जीव 4 तथा अस्तित्व के खतरे वाले पक्षी 8 हैं इस क्षेत्र में अस्तित्व के खतरे वाले स्तनपाई जीवों की 4 प्रजातियां हैं। ये सारी प्रजातियों को वनाग्नि नष्ट कर जाती है।
Courtesy from Amarujla.com

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