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Monday, December 21, 2020

भविष्य के रंगीन सपने संजो कर तैयारियों में जुटे युवाओं के लिये एक बहुत ही उपयोगी सौगात 

उज्ज्वल भविष्य के लिये प्रयत्नशील युवाओं को नयी भेंट
-जयसिंह रावत 

ग्रामीण पत्रकारिता, उत्तराखण्ड की जनजातियों का इतिहास, स्वाधीनता आन्दोलन में उत्तराखण्ड की पत्रकारिता (प्रथम एवं द्वितीय संस्करण), टिहरी के ऐतिहासिक जन विद्रोह के साथ ही हिमालयी राज्य संदर्भ कोश शीर्षक से इस पुस्तक का यह तीसरा अपडेटेड संस्करण पाठकों और खास कर भविष्य के रंगीन सपने संजो कर तैयारियों में जुटे युवाओं के लिये प्रस्तुत है। इस पुस्तक के साथ ही संघ एवं राज्य लोक सेवा आयोग तथा विभिन्न राज्यों के अधीनस्थ कर्मचारी चयन आयोगों द्वारा आयोजित प्रतियोगी परीक्षाओं में युवाओं को मेरे द्वारा संपादित विन्सर इयर बुक (हिन्दी एवं अंग्रेजी) के वार्षिक संस्करणों का लाभ भी निरन्तर मिल रहा है। इस पुस्तक का शोध एवं अध्ययन इन्हीं प्रतियोगी परीक्षाओं को ध्यान में रख कर किया गया है। सिन्धु से लेकर ब्रह्मपुत्र या कराकोरम से लेकर अरुणाचल की पटकाइ पहाड़ियों तक की लगभग 2400 किमी लम्बी यह पर्वतमाला विलक्षण विविधताओं से भरपूर है। इस उच्च भूभाग में जितनी भौगोलिक विधिताएं हैं उतनी ही जैविक और सांस्कृतिक विविधताएं भी हंै। इन विधिताओं की जानकारियां जुटा कर समेटने का एक छोटा प्रयास मैंने इस पुस्तक में किया है। मेरा यह भी प्रयास है कि इस पुस्तक के माध्यम से देश के अन्य हिस्सों के लोग भी हिमालय और हिमालयी राज्यों तथा यहां के लोगों के बारे में अधिक से अधिक वाकिफ हो सकें। हिमालय में 15 हजार से अधिक ग्लेशियर हैं और 100 से अधिक ऊंचे पर्वत शिखर। जिनमें दुनियां की सबसे ऊंची एवरेस्ट चोटी भी शामिल है। मानव सभ्यता और संस्कृति को ढालने में भौगोलिक कारक का महत्वपूर्ण योगदान होता है। इसलिये एक पर्वत के पीछे और एक नदी के दूसरे किनारे से न केवल बोलचाल बल्कि रहन सहन में भी अन्तर आ जाता है। अब आप कल्पना कर सकते हैं कि सिन्धु से लेकर ब्रह्मपुत्र तक कितनी संस्कृतियां मौजूद होंगी। आपना काम संक्षिप्त करने के लिये मैने केवल हिमालय की गोद में बसे इन 11 राज्यों के बारे में पाठकों को और खास कर युवा वर्ग को और खास कर प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होने वाले युवाओं के लिये कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक जानकारियां उपलब्ध कराने का प्रयास किया है। यहां यह बात भी स्पष्ट करना मैं जरूरी समझता हूं कि यह मेरा कोई शोधग्रन्थ नहीं है। ये जानकारियों मैंने विभिन्न राज्य सरकारों के वैब पोर्टलों, जनगणना रिपोर्ट, इतिहास की पुस्तकों, कुछ उपलब्ध प्राचीन ग्रन्थों के इधर उधर छपे अंशों आदि से जुटाई हैं और ऐसे ही दूसरे श्रोतों से उनकी पुष्टि की है। इस प्रक्रिया में मुझे कई जगह सरकारी दस्तावेजों में भी विसंगतियां भी नजर आई हैं। अध्ययान के दौरान मुझे उत्तरपूर्व के कुछ राज्यों के सरकारी पोर्टल अपडेट नहीं मिले। एक छोर से लेकर दूसरे तक हिमालयी राज्यों में विविधताएं ही विविधताएं भरी पड़ी हैं। यहां सेकड़ों की संख्या में जन जातियां और उनकी उप जातियां मौजूद हैं और इनमें से सभी का अपना अलग-अलग जीने का तरीका है। इसीलिये इन जनजातियों की सांस्कृतिक पहचान को अक्षुण रखने और उन्हे उनके ही ढंग से जीने देने के लिये संविधान में इनके हितों, रिवाजों और पहचान को संरक्षण की गारण्टी दी गयी है। वास्तव में हिमालय की गोद में इतने अधिक वैविध्य के बावजूद इसमें निवास करने वाले सारे के सारे मानव समूह एक ही हिमालयी बिरादरी के सदस्य हैं। इसी सोच के तहत मैं भी चाहता हूं कि इस पुस्तक के माध्यम से समूची हिमालयी बिरादरी के युवा बेहतर भविष्य के सपने के साथ एक सूत्र में बंध जांय। हालांकि हिमालय से अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, नेपाल, भूटान, तिब्बत जुड़े हुये हैं, लेकिन यहां केवल भारतीय हिमालय का उल्लेख हो रहा है। सच्चाई यह है कि पूरे हिमालय और उसके निवासियों का सम्पूर्ण ज्ञानकोश तैयार करना किसी एक व्यक्ति के बूते की बात नहीं है। इसलिये मैंने केवल भारतीय हिमालय की गोद में बसे़े 11 राज्यों के बारे में जानकारियां जुटानेे का प्रयास किया है। फिर भी मेरा यह प्रयास गागर में सागर भरने का नहीं बल्कि सागर से एक गागरभर जानकारियां निकालने का है। वास्तव में मेरा प्रयास है कि इस पुस्तक के माध्यम से हिमालयी क्षेत्र के युवा पूरे क्षेत्र के बारे में अधिक से अधिक जानकारियां हासिल कर प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता हासिल कर सके। मुझे पूरा भरोसा है कि इस पुस्तक से लाखों युवा लाभान्वित होंगे और उनका भविष्य संवरेगा। इसमें सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्र का नवीनतम् राजनीतिक, सामाजिक, प्रशासनिक, सांस्कृतिक और विकास सम्बन्धी विवरण समाहित है। इस पुस्तक का प्रथम संस्करण वर्ष 2013, द्वितीय वर्ष 2016 और अब तीसरा संशोधित एवं सवंर्धित संस्करण 2020 में प्रकाशित हुआ है। ‘स्वाधीनता आन्दोलन में उत्तराखण्ड की पत्रकारिता’ शीर्षक के शोध ग्रन्थ का पहला प्रकाशन भी विन्सर पब्लिशिंग कंपनी द्वारा प्रकाशित किया गया था जबकि दूसरा अपडेटेड संस्करण भारत सरकार के नेशनल बुक ट्रस्ट आॅफ इंडिया द्वारा प्रकाशित किया गया, जिसकी पहले प्रिंट की सारी प्रतियां बिक गयीं। पुस्तक का विवरण शीर्षक: हिमालयी राज्य संदर्भ कोश (तीसरा संस्करण) लेखक: जयसिंह रावत प्रकाशक: कीर्ति नवानी, विन्सर पब्लिशिंग कंपनी, प्रथम तल, के.सी.सिटी सेंटर, 4 डिस्पेंसरी रोड, देहरादून। मोबाइल- 07055587779 एवं 09412325979 winsar.nawani@gmail.com मूल्य - रु0 215/- पृष्ठ: 216 आइएसबीएन: 978-81-86844-39-7

Sunday, November 29, 2020

सूर्यधार झील में डूबी त्रिवेंद्र मंत्रिमंडल की सामूहिक जिम्मेदारी 

सूर्यधार झील में गोते खाने लगीं कई अटकलें मुख्य मंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के ड्रीम Þ
सूर्यधार झील’’ प्रोजेक्ट का रविवार को भव्य उद्घाटन हो गया। मुख्यमंत्री जी के अपने निर्वाचन क्षेत्र में इस प्रोजेक्ट का आर्थिक या पर्यटन सम्बन्धी महत्व चाहे जितना भी हो मगर 50.25 करोउ़ के इस प्रोजेक्ट का भारी राजनीतिक महत्व है। इसीलिये इसे उत्तराखण्ड को त्रिवेन्द्र जी की ओर से महानतम् और ऐतिहासिक सौगात के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। पिछले 14 साल से बन रहे डोबरा चंाठी पुल को भी मीडिया ने त्रिवेन्द्र जी को ही समर्पित कर दिया। मगर हैरानी का विषय यह है कि सूर्यधार के भव्य उद्घाटन समारोह से सिंचाई मंत्री सतपाल महाराज नदारद रहे। जबकि यह उन्हीं के सिंचाई विभाग का प्रोजेक्ट है और महाराज पर्यटन मंत्री होने के नाते भी इस प्रोजेक्ट पर विशेष रुचि दिखा रहे थे और बार-बार प्रोजक्ट साइट पर जा कर कार्य की गुणवत्ता और प्रगति की समीक्षा कर रहे थे। इस समारोह से विभागीय मंत्री के नदारद रहने से सूर्यधार झील की गहराइयों में कई अटकलें गोते खाने लगी हैं। कुछ बुलबुलों की तरह तैर भी रही हैं। झील से बुलबुले की तरह एक स्वाभाविक अटकल यह भी है कि सतपाल महाराज शुरू से मुख्यमंत्री पद के दावेदार रहे हैं और काफी समय से कुर्सी खाली होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। झील में तैर रही एक अटकल का सम्बन्ध सतपाल महाराज की उस घोषणा से जोड़ा जा रहा है जिसमें उन्होंने सूर्यधार प्रोजेक्ट से सम्बन्धित विवादों की जांच की बात कही थी। सूर्यधार झील की लहरें एक बार फिर उस पत्रकार के मन को अशांत करने लगी हैं जो कि काफी समय से त्रिवेन्द्र जी के पीछे हाथ धो कर पड़ा था। बहरहाल आज के उद्घाटन कार्यक्रम से इतना तो लगभग साफ होने लगा है कि त्रिवेन्द्र सरकार में कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है जहां विभागीय मंत्रियों को कानों कान खबर नहीं हो रही है और मुख्यमंत्री उनके विभाग में बड़े-बडे फैसले कर रहे हैं। सामूहिक जिम्मेदारी का सिद्धान्त भी सूर्यधार की झील में डूब गया है। हरक सिंह के बाद सतपाल महाराज और फिर किसकी बारी आयेगी? इसके लिये नयी अटकलों की जमीन भी तैयार हो गयी है। इधर बात यहां तक पहुंचने लगी है कि क्या त्रिवेन्द्र रावत बिना सतपाल महाराज और हरक सिंह आदि के अकेले ही भाजपा की नय्या 2022 के चुनाव में पार लगाने की सोच कर अभियान में जुट गये हैं।

Thursday, November 19, 2020

बद्रीनाथ की ज़मीन उत्तर प्रदेश के हवाले 

भू माफियाओं के हाथ की कठपुतली बनी उत्तराखण्ड सरकार- गरिमा महरा दसौनी उत्तराखण्ड कांगे्रस की नेत्री श्रीमती गरिमा महरा दसौनी ने त्रिवेन्द्र सरकार पर उत्तराखण्ड की भोलीभाली जनता को ठगने का आरोप लगाया है। श्रीमती दसौनी ने कहा कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पिछले दिनों बद्रीनाथ केदारनाथ आये थे और इसी दौरान उत्तराखण्ड सरकार ने जनता की आंखों में धूल झोंकते हुए बद्रीनाथ हैलीपैड़ के बगल में 20 नाली भूमि उत्तर प्रदेश के पर्यटन गृह के निर्माण हेतु दे दी। हद तो तब हो गई जब इस पर्यटन गृह के शीलान्यास के दौरान मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि दोनों राज्यों के बीच परिसम्पत्तियों के सारे विवाद निपटा लिये गये हैं। हैरतअंगेज बात यह है कि उस दौरान मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत भी वहाॅ मौजूद थ,े योगी आदित्यनाथ के इतने बड़े झूठ पर भी वह मौन धारण कर आपत्ति तक दर्ज नही करा पाये। जबकि असलियत यह है कि उत्तर प्रदेश का उत्तराखण्ड के सिंचाई विभाग के 13 हजार हेक्टेयर से अधिक भूमि एवं 4 हजार से अधिक भवनों पर कब्जा है। हरिद्वार का कुंभ मेला क्षेत्र जहाॅ कावड़ मेला लगता है वहाॅ की 697.05 हेक्टेयर मेला भूमि पर उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग का कब्जा है जिसे लौटाने पर उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग साफ इंकार कर चुका है। उत्तराखण्ड की आवास-विकास की भूमि को लौटाने के बजाय उत्तर प्रदेश खुद उस भूमि का मालिक बने रहना चाहता है। दसौनी ने कहा कि हरिद्वार का भीमगौड़ा बैराज, बनबसा का लोहिया हेड बैराज, कालागढ़ का रामगंगा बैराज अभी भी उत्तर प्रदेश के कब्जे में है। टिहरी डैम के जिस हिस्से का मालिक उत्तराखण्ड को होने चाहिए था उत्तर प्रदेश अभी भी उसका मालिक बना हुआ है और करीब 1 हजार करोड़ सालाना राजस्व ले रहा है। इतना ही नही 11 विभागों की भूमि, भवन तथा उत्तराखण्ड की सीमा के अन्दर कई अन्य परिसम्पत्तियों पर उत्तर प्रदेश का कब्जा है। इतना ही नही उत्तराखण्ड परिवहन विभाग की 7 सौ करोड़ की देनदारी उत्तर प्रदेश पर है जिस कारण उत्तराखण्ड परिवहन विभाग गर्त में जा चुका है और भारी कर्जे में है। आज अपने कर्मचारियोें की तन्खाह नही दे पा रहा है तथा अपनी सम्पत्तियां बेचने को मजबूर हो रहा है। दसौनी ने उत्तराखण्ड की त्रिवेन्द्र सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि सरकार के रवैये को देखते हुए लगता है कि उसने उत्तराखण्ड को भू माफियाआंे के तहत गिरवी रखने की कसम खाई है। पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा बाहरी लोगों के जमीन खरीद पर जो रोक लगाई गई थी उस कानून पर ़ित्रवेन्द्र सरकार ने सत्ता पर काबिज होते ही ढिलाई कर दी। सच्चाई यह है कि त्रिवेन्द्र सरकार ने भू कानून में संशोधन करके जमीन की खरीद फरोक्त पर लगी बंदीशें हटाकर पहाडियों की जमीन हडपने की खूली छूट दे दी है। यही नही धारा 143 के तहत कृषि भूमि का भू उपयोग को बदलने की जो बंदिशें थी उन्हें भी समाप्त कर दिया गया है। गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने के साथ ही हैलीपेड़ के नजदीक प्राईम लोकेरूशन पर 6 नाली स्वयं मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने और 6 नाली राज्यमंत्री धनसिंह रावत ने खरीद ली। इससे साफ पता चलता है कि त्रिवेन्द्र सरकार का पूरा फोकस विकास पर ना होकर उत्तराखण्ड की भूमि पर है। गरिमा दसौनी ने राज्य सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि अपने कार्यकाल में ना सिर्फ उत्तराखण्ड सरकार ने भू माफियाओं को संरक्षण दिया है बल्कि सही मायने में कहा जाय तो सरकार उनके हाथों की कठपुली बन गई है।

Tuesday, November 17, 2020

बिहार चुनाव: नीतीश जीत कर हारे और तेजस्वी हार कर भी जीत गये

बिहार चुनाव: नीतीश जीत कर हारे और तेजस्वी हार कर भी जीत गये -जयसिंह रावत विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 के प्रकोप के साये में असाधारण प्ररिस्थितियों में हुये पहले विधानसभा चुनाव में बिहार की जनता ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को पुनः सत्ता सौंपने के साथ ही राज्य का राजनीतिक वरीयताक्रम ही बदल दिया जिसमें अब भाजपा का दर्जा छोटे भाई की जगह बड़े भाई का और नीतीश कुमार का जनता दल यूनाइटेड (जदयू) बड़े भाई से घट कर छोटा भाई हो गया। स्वयं नीतीश कुमार भले ही मुख्यमंत्री बने रहेंगे मगर उधार और अनुकम्पा में मिली सत्ता की कुर्सी उन्हें चुभती ही रहेगी। यही नहीं बिहार के इन चुनावों ने भले ही जीत का सेहरा एनडीए को पहनाया हो मगर नीतीश कुमार जीत कर भी हार गये और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव हार कर भी जीत गये हैं। राजद के पराजित होने के बावजूद सबसे बड़े दल का नेता होने के कारण तेजस्वी बिहार के सबसे चहेते नेता बन कर उभरे हैं। भाजपा के लिये तो यह चुनाव दीपावली का तोहफा जैसा ही है। जिसमें मोदी जी की महानायक की छवि बरकरार रही जो कि 2021 में होने वाले 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी काम आयेगी। बिहार चुनाव के रोमांच पर गौर करें तो राजद के तेजस्वी यादव चुनाव हार कर भी जीत गये हैं। सबसे कम उम्र का यह नौजवान बिहार की राजनीति के फलक पर नये नेता के रूप में उभर चुका है। सबसे बड़े दल के नेता के रूप में उभरने के साथ ही उनके पास सबसे बड़ा जनादेश है। उनके पास सबसे अधिक 76 विधायकों का समर्थन होने के साथ ही सर्वाधिक 23.11 प्रतिशत मत प्रतिशत का जनादेश भी है जबकि भाजपा को 19.32 प्रतिशत और जदयू को 15.42 ही मत प्रतिशत हासिल हुआ है। इस चुनावमें भाजपा का मतप्रतिशत भी घटा है। तेजस्वी के लिये इस चुनाव में कांग्रेस सबसे कमजोर कड़ी साबित हुयी। अगर कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन करती और कुछ और सीटें हासिल कर पाती तो चुनाव के नतीजे कुछ और ही होते। वैसे भी देखा जाय तो कांग्रेस ने इस चुनाव को तेजस्वी के भरोसे छोड़ दिया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने अत्यन्त व्यस्त शेड्यूल में से 12 चुनाव रैलियों के लिये समय निकाला जबकि सोनिया गांधी बिहार गयी ही नहीं और राहुल गांधी केवल 8 रैलियां ही कर सके। जबकि तेजस्वी ने अपनी कुल 247 रैलियों में से 47 रैलियां कांग्रेस प्रत्याशियों और 8 रैलियां वामदलों के प्रत्याशियों के समर्थन में कीं। जाहिर है कि तेजस्वी इस चुनाव में कांग्रेस का बोझा भी ढो रहे थे। बिहार चुनाव के इन नतीजों ने नीतीश कुमार को बड़ा भाई से छोटा भाई बना दिया है। भाजपा ने चुनाव से पहले सीटों के बंटवारे में जदयू को अपने से एक अधिक 122 सीटें देकर उसके बड़े भाई के दर्जे को स्वीकार कर लिया था। इन 122 सीटों में से जदयू केवल 43 सीटें ही जीत पाया। जबकि 2015 के विधानसभा चुनाव में उसने 101 सीटों पर चुनाव लड़ कर 71 सीटें जीतीं थी। इस प्रकार उसकी 28 सीटें कम हुयीं और मत प्रतिशत भी 1.44 प्रतिशत घट गया। जबकि सहयोगी भाजपा ने नीतीश से 1 कम 121 सीटों में से 73 पर जीत दर्ज कर अपना 2015 का 53 सीटों का स्कोर भी सुधारा। इस रोमांचक मुकाबले में भाजपा ही अन्त तक तेजस्वी से भिड़ी रही। इस तरह बिहार की जनता ने भले ही एनडीए को जिता दिया हो मगर इस जीत में नीतीश कहीं भी नजर नहीं आ रहे हैं। यद्यपि बिहार भाजपा में मुख्यमंत्री का राजमुकुट नीतीश को सरेण्डर किये जाने पर अन्दरखाने कसमसाहट अवश्य है और अपनी अनिच्छा बिहार के नेता प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से प्रकट भी करते रहे हैं, मगर मोदी जी सहित भाजपा का शीर्ष नेतृत्व नीतीश को मुख्यमंत्री बने रहने का वचन चुनाव से पहले ही दे चुका है, इसलिये नहीं लगता कि भाजपा अपने वादे से मुकर जायेगी। लेकिन नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री की वह कुर्सी सदैव चुभती रहेगी। इसीलिये यह संभावना भी है कि वह मुख्यमंत्री का पद किसी अन्य को देने का आग्रह कर सकते हैं। 2015 के चुनाव में भी बड़े दल राजद ने अनुकम्पा के तौर पर कम सीटें मिलने पर भी उन्हें यह कुर्सी सौंपी थी जो उन्हें बार-बार चुभन देती रही और अन्ततः उन्हें राजद की अनुकम्पा से छुटकारा पाना पड़ा। मुख्यमंत्री की कुर्सी नीतीश को सौंपे जाने के पीछे भाजपा की मजबूरी भी है। भाजपा नेता नीतीश कुमार के पलटूराम वाली छवि से अनविझ नहीं हैं। अगर नीतीश को मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाता या बाद में हटा दिया जाता है तो वह तेजस्वी के साथ दुबारा मिल कर आसानी से सरकार बना सकते हैं और राजनीति में असंभव या स्थाई कुछ भी नहीं होता है। अगले साल अप्रैल या मई में असम, पश्चिम बंगाल, केरल, पुडुचेरी और तमिलनाडू की विधानसभाओं के चुनाव होने हैं। इनमें से असम में भाजपा की सरकार चल रही है जिसे विपक्ष से बचाना भाजपा के लिये एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि एनआरसी के बाद वहां हालात बदले हुये हैं। लेकिन इससे भी कहीं बड़ा लक्ष्य भाजपा के सामने पश्चिम बंगाल का है जिसे ममता बनर्जी से छीनने के लिये भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झौंकी हुयी है। चूंकि पश्चिम बंगाल भौगोलिक रूप से बिहार से जुड़ा हुआ है इसलिये बिहार के ताजा राजनीतिक घटनाक्रम का प्रभाव पश्चिम बंगाल पर भी पड़ सकता है। शिवसेना के बाद अकाली दल की किनाराकसी से एनडीए में जो बिखराव शुरू हुआ वह इन चुनाव नतीजों के बाद रुक जायेगा और बहुत संभव है कि अकाली दल और पासवान की लोजपा भी वापस एनडीए के फोल्ड में लौट जांय। बिहार चुनाव ने मीडिया और खासकर ओपीनियन पोल और एक्जिट पोल कराने वालों की पोल भी खुल गयी है। उनकी विश्वसनीयता का भट्टा बैठ गया है। मतदान से पहले ओपिनियन पोल वाली ज्यादातर ऐजेंसियां एनडीए की एकतरफा जीत की भविष्यवाणियां कर रहीं थीं तो मतगणना से पहले एक्जिट पोल वाले तेजस्वी की एकतरफा जीत बता रहे थे। चिन्ता का विषय यह कि इस गोरखधन्धे में कुछ मीडिया ग्रुप भी शामिल थे जिन्होंने मीडिया की विश्वसनीयता को एक बार फिर कठघरे में लाकर खड़ा कर दिया। जयसिंह रावत ई-11,फ्रेंड्स एन्कलेव, शाहनगर डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून।

Wednesday, November 11, 2020

बिहार चुनाव: छोटा भाई बड़ा और बड़ा भाई छोटा हो गया

बिहार चुनाव: छोटा भाई बड़ा और बड़ा भाई छोटा हो गया जयसिंह रावत Updated Wed, 11 Nov 2020 03:31 PM IST स्वयं नीतीश कुमार भले ही मुख्यमंत्री बने रहेंगे मगर उधार और अनुकम्पा में मिली सत्ता की कुर्सी उन्हें चुभती ही रहेगी - फोटो : अमर उजाला विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 के प्रकोप के साए में असाधारण परिस्थितियों में हुए पहले विधानसभा चुनाव में बिहार की जनता ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को पुनः सत्ता सौंपने के साथ ही राज्य का राजनीतिक वरीयताक्रम ही बदल दिया, जिसमें अब भाजपा का दर्जा छोटे भाई की जगह बड़े भाई का और नीतीश कुमार का जनता दल यूनाइटेड (जदयू) बड़े भाई से घट कर छोटा भाई हो गया। स्वयं नीतीश कुमार भले ही मुख्यमंत्री बने रहेंगे मगर उधार और अनुकम्पा में मिली सत्ता की कुर्सी उन्हें चुभती ही रहेगी। यही नहीं बिहार के इन चुनावों ने भले ही जीत का सेहरा एनडीए को पहनाया हो मगर नीतीश कुमार जीत कर भी हार गए और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव हार कर भी जीत गए हैं। राजद के पराजित होने के बावजूद सबसे बड़े दल का नेता होने के कारण तेजस्वी बिहार के सबसे चहेते नेता बन कर उभरे हैं। भाजपा के लिए तो यह चुनाव दीपावली का तोहफा जैसा ही है, जिसमें मोदी जी की महानायक की छवि बरकरार रही जो कि 2021 में होने वाले 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी काम आएगी। आइपीएल से अधिक रोमांचक रहा बिहार चुनाव नवंबर महीने की 10 तारीख को बिहार के 55 मतगणना केंद्रों में चली विधानसभा चुनावों की रोमांचकारी मतगणना ने दुबई में चल रहे आइपीएल के 20-20 मैच के रोमांच को भी फीका कर दिया। कोविड महामारी के चलते ईवीएम मशीनों से मतगणना की व्यवस्था शुरू होने के बाद पहली बार किसी मतगणना में इतना समय लगा। एनडीए और महागठबंधन में कांटे की टक्कर के चलते भी राजनीति का यह मैच इतना रोमांचक रहा कि अंत तक पासा कहीं भी पलट जाने की संभावना बनी रही। बहरहाल चुनाव नतीजे नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए के पक्ष में तो चले गए, मगर वोटों का विष्लेषण करें तो यह जीत नीतीश कुमार के सुशासन को नहीं बल्कि उनकी सरकार पर लगे केंद्र की मोदी सरकार के डबल इंजन की पावर को मिली है। जिसमें मोदी का पराक्रम और भाजपा की रणनीति का मुख्य योगदान रहा। बड़ा छोटा हुआ और छोटा बड़ा हो गया बिहार चुनाव के इन नतीजों ने नीतीश कुमार को बड़ा भाई से छोटा भाई बना दिया है। भाजपा ने चुनाव से पहले सीटों के बंटवारे में जदयू को अपने से एक अधिक 122 सीटें देकर उसके बड़े भाई के दर्जे को स्वीकार कर लिया था। इन 122 सीटों में से जदयू केवल 43 सीटें ही जीत पाया। जबकि 2015 के विधानसभा चुनाव में उसने 101 सीटों पर चुनाव लड़ कर 71 सीटें जीती थीं। इस प्रकार उसकी 28 सीटें कम हुईं और मत प्रतिशत भी 1.44 प्रतिशत घट गया। जबकि सहयोगी भाजपा ने नीतीश से 1 कम 121 सीटों में से 73 पर जीत दर्ज कर अपना 2015 का 53 सीटों का स्कोर भी सुधारा। इस रोमांचक मुकाबले में भाजपा ही अंत तक तेजस्वी से भिड़ी रही। इस तरह बिहार की जनता ने भले ही एनडीए को जिता दिया हो मगर इस जीत में नीतीश कहीं भी नजर नहीं आ रहे हैं। अनुकंपा स्वरूप मिलेगी नीतीश को मुख्यमंत्री की कुर्सी यद्यपि बिहार भाजपा में मुख्यमंत्री का राजमुकुट नीतीश को सरेंडर किए जाने पर अंदरखाने कसमसाहट अवश्य है और अपनी अनिच्छा बिहार के नेता प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से प्रकट भी करते रहे हैं, मगर मोदी जी सहित भाजपा का शीर्ष नेतृत्व नीतीश को मुख्यमंत्री बने रहने का वचन चुनाव से पहले ही दे चुका है, इसलिए नहीं लगता कि भाजपा अपने वादे से मुकर जाएगी। लेकिन नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री की वह कुर्सी सदैव चुभती रहेगी। इसीलिए यह संभावना भी है कि वह मुख्यमंत्री का पद किसी अन्य को देने का आग्रह कर सकते हैं। 2015 के चुनाव में भी बड़े दल राजद ने अनुकंपा के तौर पर कम सीटें मिलने पर भी उन्हें यह कुर्सी सौंपी थी जो उन्हें बार-बार चुभन देती रही और अंतत; उन्हें राजद की अनुकंपा से छुटकारा पाना पड़ा। मुख्यमंत्री की कुर्सी नीतीश को सौंपे जाने के पीछे भाजपा की मजबूरी भी है। भाजपा नेता नीतीश कुमार के पलटूराम वाली छवि से अनविझ नहीं हैं। अगर नीतीश को मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाता या बाद में हटा दिया जाता है तो वह तेजस्वी के साथ दुबारा मिल कर आसानी से सरकार बना सकते हैं और राजनीति में असंभव या स्थाई कुछ भी नहीं होता है। इस चुनाव में भाजपा का मतप्रतिशत भी घटा है... तेजस्वी चुनाव हार कर भी जीत गए बिहार चुनाव के रोमांच पर गौर करें तो राजद के तेजस्वी यादव चुनाव हार कर भी जीत गए हैं। सबसे कम उम्र का यह नौजवान बिहार की राजनीति के फलक पर नए नेता के रूप में उभर चुका है। सबसे बड़े दल के नेता के रूप में उभरने के साथ ही उनके पास सबसे बड़ा जनादेश है। उनके पास सबसे अधिक 76 विधायकों का समर्थन होने के साथ ही सर्वाधिक 23.11 प्रतिशत मत प्रतिशत का जनादेश भी है जबकि भाजपा को 19.32 प्रतिशत और जदयू को 15.42 ही मत प्रतिशत हासिल हुआ है। इस चुनाव में भाजपा का मतप्रतिशत भी घटा है। तेजस्वी के लिए इस चुनाव में कांग्रेस सबसे कमजोर कड़ी साबित हुई। अगर कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन करती और कुछ और सीटें हासिल कर पाती तो चुनाव के नतीजे कुछ और ही होते। वैसे भी देखा जाए तो कांग्रेस ने इस चुनाव को तेजस्वी के भरोसे छोड़ दिया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने अत्यंत व्यस्त शेड्यूल में से 12 चुनाव रैलियों के लिए समय निकाला जबकि सोनिया गांधी बिहार गई ही नहीं और राहुल गांधी केवल 8 रैलियां ही कर सके। जबकि तेजस्वी ने अपनी कुल 247 रैलियों में से 47 रैलियां कांग्रेस प्रत्याशियों और 8 रैलियां वामदलों के प्रत्याशियों के समर्थन में कीं। जाहिर है कि तेजस्वी इस चुनाव में कांग्रेस का बोझा भी ढो रहे थे। अगले साल भाजपा के काम आएंगे ये चुनाव नतीजे अगले साल अप्रैल या मई में असम, पश्चिम बंगाल, केरल, पुडुचेरी और तमिलनाडू की विधानसभाओं के चुनाव होने हैं। इनमें से असम में भाजपा की सरकार चल रही है जिसे विपक्ष से बचाना भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि एनआरसी के बाद वहां हालात बदले हुए हैं। लेकिन इससे भी कहीं बड़ा लक्ष्य भाजपा के सामने पश्चिम बंगाल का है जिसे ममता बनर्जी से छीनने के लिए भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झौंकी हुई हैं। चूंकि पश्चिम बंगाल भौगोलिक रूप से बिहार से जुड़ा हुआ है इसलिए बिहार के ताजा राजनीतिक घटनाक्रम का प्रभाव पश्चिम बंगाल पर भी पड़ सकता है। इन विधानसभा चुनावों में बिहार से मिली ऊर्जा भाजपा के काम आएगी जबकि विपक्ष को अपना मनोबल उठाने में काफी मशक्कत करनी पड़ेगी। एनडीए एकजुट रहेगा बिहार चुनाव नतीजों ने साबित कर दिया कि अब भी नरेंद्र मोदी की छत्रछाया ही जीत की सबसे बड़ी गारंटी है। इसलिए शिवसेना के बाद अकाली दल की किनाराकसी से एनडीए में जो बिखराव शुरू हुआ वह फिलहाल रुक जाएगा और बहुत संभव है कि अकाली दल और पासवान की लोजपा वापस एनडीए के फोल्ड में लौट जाएं। ओपिनियन और एक्जिट पोल की पोल खुली बिहार चुनाव ने मीडिया और खासकर ओपीनियन पोल और एक्जिट पोल कराने वालों की पोल भी खुल गई है। उनकी विश्वसनीयता का भट्टा बैठ गया है। मतदान से पहले ओपिनियन पोल वाली ज्यादातर ऐजेंसियां एनडीए की एकतरफा जीत की भविष्यवाणियां कर रहीं थीं तो मतगणना से पहले एक्जिट पोल वाले तेजस्वी की एकतरफा जीत बता रहे थे। चिंता का विषय यह कि इस गोरखधंधे में कुछ मीडिया ग्रुप भी शामिल थे जिन्होंने मीडिया की विश्वसनीयता को एक बार फिर कठघरे में लाकर खड़ा कर दिया।

Tuesday, September 29, 2020

अब बद्रीनाथ पर डबल इंजन का बुलडोज़र फिरने को तैयार 




Article of Jay Singh Rawat on Badrinath master plan

अब बदरीनाथ का मास्टर प्लान शंकाओं के घेरे में

-जयसिंह रावत

पर्यावरणीय चिन्ताओं को गंभीरता से लेते हुये सुप्रीम कोर्ट द्वारा उत्तराखण्ड के चार हिमालयी धामों को जोड़ने वाले मार्ग को सभी मौसमों में खुला रखने के उद्ेश्य से इसके चौड़ीकरण पर रोक लगाये जाने के बाद अब बदरीनाथ को स्मार्ट धाम बनाने की सरकार की योजना पर भी सवाल उठने लगे हैं। पर्यावरणवादियों का मानना है कि राज्य के चारों ही धामों पर वैसे ही भूस्खलन, हिमस्खलन और भूकम्प का खतरा मंडरा रहा है। केदारनाथ के पकृति से अनावश्यक छेड़छाड़ का नतीजा 2013 की अकल्पनीय त्रासदी से सामने चुका है। अगर हिमालय के अति संवेदनशील पारितंत्र से छेड़छाड़ जारी रही तो केदारनाथ महाआपदा की पुनरावृत्ति एवलांच की दृष्टि से अति संवेदनशील नर और नारायण पर्वतों की गोद में स्थित करोड़ों सनातन धर्मावलम्बियों की आस्था के केन्द्र बदरीनाथ धाम में भी हो सकती है।

हिमालयी सुनामी के नाम से भी पुकारी जाने वाली 2013 की केदारनाथ महाअपदा से तबाह केदारनाथ धाम के पुननिर्माण कार्य के साथ ही अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रबल इच्छानुसार हिमालयी धामों को भव्य रूप देने की दिशा में उत्तराखण्ड सरकार ने बदरीनाथ को स्मार्ट सिटी की तर्ज पर स्मार्ट धाम बनाने के लिये मास्टर प्लान तैयार करने के साथ ही उसका प्रस्तुतीकरण भी सीधे प्रधानमंत्री के समक्ष कर दिया है। इस प्लान के अनुसार बदरीनाथ धाम में यात्रियों की सुविधा के लिये होटल, पार्किंग, श्रद्धालुओं को ठंड से बचाने का इंतजाम, बदरी ताल तथा नेत्र ताल का सौंदर्यीकरण का निर्माण किया जाना है। श्रद्धालुओं के मनोरंजन के लिये साउंड एवं लाइट आदि की व्यवस्था भी की जानी है। चूंकि प्रधानमंत्री समय-समय पर वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिये केदारनाथ के निर्माण कार्यों का जायजा लेने के साथ ही बद्रीनाथ की कायापलट के निर्देश भी दे रहे हैं इसलिये राज्य सरकार के अधिकारियों ने आनन फानन में नवीन बदरीनाथ का मास्टर प्लान बना कर मोदी जी को दिखा भी दिया मगर भूगर्व और हिमनद विशेषज्ञों तथा उस स्थान के इतिहास और भूगोल की जानकारी रखने वालों को पूछना जरूरी नहीं समझा।

चिपको आन्दोलन के जरिये विश्व में पर्यावरण संरक्षण की अलख जगाने वाले पद्मभूषण चण्डी प्रसाद भट्ट का कहना है कि बदरीनाथ में यात्री सुविधाओं को बढ़ाने के साथ ही आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार धामों में से एक बदरीनाथ की पौराणिकता को छेड़े बिना उसके कायापलट के प्रयासों का तो स्वागत है मगर इस उच्च हिमालयी क्षेत्र में ऐसा कोई काम नहीं होना चाहिये जिससे इसका पारितंत्र ही गड़बड़ा जाय और लोग तीर्थाटन की जगह पर्यटन के लिये यहां पहुंचें। चण्डी प्रसाद भट्ट का कहना है कि बदरीनाथ हो या फिर चारों हिमालयी धामों में से कहीं भी क्षेत्र विशेष की धारक क्षमता (कैरीयिंग कैपेसिटी) से अधिक मानवीय भार नहीं पड़ना चाहिय।े अन्यथा हमें केदारनाथ और मालपा जैसी आपदओं का सामना करना पड़ेगा।

New Master plan is ready to bulldoze frazile eco system of Badrianth Sanctum of Sanctorium. 

इससे पहले 1974 में भी बसंत कुमार बिड़ला की पुत्री के नाम पर बने बिड़ला ग्रुप के जयश्री ट्रस्ट ने भी बदरीनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कर उसे नया स्वरूप देने का प्रयास किया था। उस समय सीमेंट कंकरीट का प्लेटफार्म बनने के बाद 22 फुट ऊंची दीवार भी बन गयी थी और आगरा से मंदिर के लिये लाल बालू के पत्थर भी पहुंच गये थे। लेकिन चिपको नेता चण्डी प्रसाद भट्ट एवं गौरा देवी तथा ब्लाक प्रमुख गोविन्द सिंह रावत आदि के नेतृत्व में चले स्थानीय लोगों के आन्दोलन के कारण उत्तर प्रदेश की तत्कालीन हेमवती नन्दन बहुगुणा सरकार ने निर्माण कार्य रुकवा दिया था। इस सम्बन्ध में 13 जुलाइ 1974 को उत्तर प्रदेश विधानसभा में मुख्यमंत्री बहुगुणा ने अपने वरिष्ठ सहयोगी एवं वित्तमंत्री नारायण दत्त तिवारी की अध्यक्षता में हाइपावर कमेटी की घोषणा की थी। इस कमेटी में भूगर्व विभाग के विशेषज्ञों के साथ ही भारतीय पुरातत्व विभाग के तत्कालीन महानिदेशक एम.एन. देशपांडे भी सदस्य थे। कमेटी की सिफारिश पर सरकार ने निर्माण कार्य पर पूर्णतः रोक लगवा दी थी। तिवारी कमेटी ने बदरीनाथ धाम की भूगर्वीय और भूभौतिकीय एवं जलवायु संबंधी तमाम परिस्थितियों का अध्ययन कर बदरीनाथ में अनावश्यक निर्माण से परहेज करने की सिफारिश की थी। लेकिन बदरीनाथ के इतिहास भूगोल से अनविज्ञ उत्तराखण्ड की मौजूदा सरकार ने मास्टर प्लान बनाने में इस सरकारी विशेषज्ञ कमेटी की सिफारिशों की तक अनदेखी कर दी।

Hazardous reconstruction of Kedarnath Shrine 

यह मंदिर हजारों साल पुराना है जिसका जीणोद्धार कर आद्यगुरू शंकराचार्य ने भारत का चौथा धाम ज्योतिर्पीठ बदरिकाश्रम स्थापित किया था। उन्होंने भी स्थानीय भूगोल और भूगर्व की जानकारी लेने के साथ ही वहां की प्राकृतिक गतिविधियों के सदियों से गवाह रहे स्थानीय समुदाय की राय जरूर ली होगी। मंदिर नर और नारायण पर्वतों के बीच नारायण पर्वत की गोद में शेषनाग पहाड़ी की ओट में ऐसी जगह चुनी गयी जहां एयर बोर्न एवलांच सीधे मंदिर के ऊपर से निकल जाते हैं और बाकी एवलांच अगल-बगल से सीधे अलकनन्दा में गिर जाते हैं। मंदिर की स्थिति आंख और भौं की जैसी है और नारायण पर्वत की शेषनाग पहाड़ी भौं की भूमिका में आंख जैसे मंदिर की रक्षा करती है। मंदिर की ऊंचाई भी हिमखण्ड स्खलनों को ध्यान में रखते हुये कम रखी गयी है जबकि मंदिर का जीर्णोद्धार करने वाले इस ऊंचाई को बढ़ाने की वकालत करते रहे हैं। मंदिर तो काफी हद तक सुरक्षित माना जाता है मगर बदरी धाम केवल मंदिर तक सीमित होकर 3 वर्ग किमी तक फैला हुआ है जिसके 85 हैक्टेअर के लिये मास्टर प्लान बना है। इसका ज्यादातर हिस्सा एवलांच  और भूस्ख्सलन की दृष्टि से अति संवेदनशील है।


मास्टर प्लान में 85 हेक्टेअर जमीन का उल्लेख किया गया है जो कि भूमि माप के स्थानीय पैमाने के अनुसार लगभग 425 नाली बैठता है। इतनी जमीन बदरीनाथ में आसानी से उपलब्ध होने का मतलब चारधाम सड़क की तरह पहाड़ काट कर समतल भूमि बनाने से हो सकता है। प्लान में नेत्र ताल के सौंदर्यीकरण का भी उल्लेख है। लेकिन स्थानीय लोगों को भी पता नहीं कि इस वाटर बॉडी का श्रोत क्या है। सामान्यतः सीमेंट कंकरीट के निर्माण के बाद पहाड़ों में ऐसे श्रोत सूख जाते हैं। वास्तव में जब तक वहां के चप्पे-चप्पे का भौगोलिक और भूगर्वीय अध्ययन नहीं किया जाता तब तक किसी भी तरह के मास्टर प्लान को कोई औचित्य नहीं है। अध्ययन भी कम से कम तीन शीत ऋतुओं के आधार पर किया जाना चाहिये ताकि वहां की जलवायु संबंधी परिस्थितियों का डाटा जुटाया जा सके। बदरीनाथ के तप्तकुण्डों के गर्म पानी के तापमान और वॉल्यूम का भी डाटा तैयार किये जाने की जरूरत है। क्योंकि अनावश्यक छेड़छाड़ से पानी के श्रोत सूख जाने का खतरा बना रहता है।

नर और नारायण पर्वतों के बीच में सैण्डविच की जैसी स्थिति में भले ही मंदिर को कुछ हद तक सुरक्षित माना जा सकता है, लेकिन एवलांच या हिमखण्ड स्खलन की दृष्टि से बदरीधाम या बद्रीश पुरी कतई सुरक्षित नहीं है। यहां हर चौथे या पांचवे साल भारी क्षति पहुंचाने वाले हिमखण्ड स्खलन का इतिहास रहा है। सन् 1978 में वहां दोनों पर्वतों से इतना बड़ा एवलांच आया जिसने पुराना बाजार लगभग आधा तबाह कर दिया और खुलार बांक की ओर से आने वाले एवलांच ने बस अड्डा क्षेत्र में भवनों को तहस नहस कर दिया था। शुक्र हुआ कि शीतकाल में कपाट बंद होने कारण वहां आबादी नहीं होती। जिस तरह का मास्टर प्लान बना हुआ है उसमें एवलांचरोधी तकनीक का प्रयोग कतई नजर नहीं आता।

बदरीनाथ को एवलांच के साथ ही अलकनंदा के कटाव से भी खतरा है। बद्रीनाथ के निकट 1930 में अलकनन्दा फिर अवरुद्ध हुयी थी, इसके खुलने पर  नदी का जल स्तर 9 मीटर तक ऊंचा उठ गया था। मंदिर के ठीक नीचे करीब 50 मीटर की दूरी पर तप्त कुंड के ब्लॉक भी अलकनंदा के तेज बहाव से खोखले होने से तप्त कुंड को खतरा उत्पन्न हो गया है। मंदिर के पीछे बनी सुरक्षा दीवार टूटने से नारायणी नाले और इंद्रधारा के समीप बहने वाले नाले में भी भारी मात्र में अक्सर मलबा इकट्ठा हो जाता है। इससे बदरीनाथ मंदिर और नारायणपुरी (मंदिर क्षेत्र) को खतरा रहता है। अगर मास्टर प्लान के अनुसार वहां निर्माण कार्य होता है तो वह भी सुरक्षित नहीं है।

जयसिंह रावत

-11, फ्रेंडृस एन्कलेव, शाहनगर,

डिफेंस कालेनी रोड, देहरादून।

jaysinghrawat@gmail.com