मोदी के महानायक बनने का रास्ता खोलेगी राज्यसभा? उच्च सदन में कैसा है भाजपा का गणित
क्या भाजपा राज्यसभा में भी बहुमत हासिल करेगी? - फोटो : PTI |
अपने नाम और काम के बलबूते 16वीं लोकसभा में अपनी स्थिति और अधिक मजबूत करने के साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राज्यसभा में भी अपनी ताकत में भारी इजाफा करने जा रहे हैं। अगले साल मोदी को राज्यसभा में भी स्पष्ट बहुमत मिलने से वह साहसिक फैसले लेकर नायक से महानायक बनने की दिशा में अग्रसर हो सकते हैं। संसद के दोनों सदनों में बहुमत मिलने से वह संविधान संशोधन जैसे बड़े फैसले लेने के लिए विपक्ष या किसी अन्य की मदद के लिए मोहताज नहीं रहेंगे।
क्या है भाजपा की संसद में स्थिति?
संसद में बहुमत के साथ ही अधिकांश राज्यों में भाजपा की सरकारें होने के कारण मोदी अपने दूसरे कार्यकाल में मनचाहे संविधान संशोधन कर धारा 370 हटाने एवं राष्ट्रपति शासन प्रणाली या फिर पूरे देश में लोकसभा के साथ विधानसभाओं के चुनाव कराने के जैसे ऐतिहासिक फैसले ले सकते हैं।
पिछली लोकसभा में मोदी सरकार राज्यसभा में बहुमत न होने के कारण ट्रिपल तलाक जैसे विधेयक पारित नहीं करा सकी थी। जीएसटी के मामले में मोदी सरकार को राज्यसभा में कांग्रेस की बड़ी अनुनय विनय करना पड़ा। अगले पांच सालों में मजबूत सरकार होने का सबूत देने के लिए सामरिक दृष्टि से भी बड़े फैसले लिए जा सकते हैं।
अगले साल मोदी को राज्यसभा में भी बहुमत
प्रधानमंत्री के रूप में अपने लिए देशवासियों से वोट मांगकर लोकसभा में स्पष्ट बहुमत हासिल करने के बाद प्रधानमंत्री मोदी सामान्य कामकाज के लिए विपक्ष तो क्या अपने एनडीए घटक दलों की कृपा के लिए मोहताज नहीं रह गए हैं। फिर भी एनडीए उनके साथ चट्टान की तरह खड़ा नजर आ रहा है। दरअसल, घटक दलों के पास मोदी के साथ खड़े रहने के सिवा विकल्प भी नहीं है। एनडीए विधिवत् मोदी को अपना नेता चुन भी चुका है और भाजपा या मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए को अगले साल नवम्बर तक राज्यसभा में भी पूर्ण बहुमत मिलने जा रहा है। वर्तमान में राज्यसभा में एनडीए की सदस्य संख्या 83 तथा जबकि भाजपा के 73 सदस्य हैं। वहीं कांग्रेसनीत् यूपीए की सदस्य संख्या मात्र 73 है। जबकि 245 सदस्यीय राज्यसभा में बहुमत के लिए 123 सदस्यों की दरकार होती है। इसी कमजोरी के कारण मोदी सरकार पिछले कार्यकाल में तीन तलाक का विधेयक राज्यसभा में पारित नहीं करा सकी। अगर राज्यसभा सदस्यों का कार्यकाल देखें तो इस उच्च सदन की 10 सीटें इसी साल और 72 सीटें अगले साल 2020 में रिक्त होने जा रही हैं। इनमें अगले साल 51 सीटें जुलाई में तथा 11 सीटें नवम्बर में रिक्त हो जाएंगी। इनमें 10 सीटें उत्तर प्रदेश की भी हैं जहां प्रचण्ड बहुमत की भाजपा सरकार चल रही है जिसका कार्यकाल 2022 तक है।
मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उडीसा, तेलंगाना और आन्ध्र प्रदेश में हुए चुनावों में हार के कारण भाजपा या एनडीए को राज्यसभा में भी बहुमत का आंकड़ा छूने में विलम्ब हो गया। लेकिन हरियाणा, महाराष्ट्र एवं झारखण्ड में इसी साल चुनाव होने हैं और इन राज्यों में भाजपा गत् लोकसभा चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन कर चुकी है।
संसद में बहुमत के साथ ही अधिकांश राज्यों में भाजपा की सरकारें होने के कारण मोदी अपने दूसरे कार्यकाल में मनचाहे संविधान संशोधन कर धारा 370 हटाने एवं राष्ट्रपति शासन प्रणाली या फिर पूरे देश में लोकसभा के साथ विधानसभाओं के चुनाव कराने के जैसे ऐतिहासिक फैसले ले सकते हैं।
पिछली लोकसभा में मोदी सरकार राज्यसभा में बहुमत न होने के कारण ट्रिपल तलाक जैसे विधेयक पारित नहीं करा सकी थी। जीएसटी के मामले में मोदी सरकार को राज्यसभा में कांग्रेस की बड़ी अनुनय विनय करना पड़ा। अगले पांच सालों में मजबूत सरकार होने का सबूत देने के लिए सामरिक दृष्टि से भी बड़े फैसले लिए जा सकते हैं।
अगले साल मोदी को राज्यसभा में भी बहुमत
प्रधानमंत्री के रूप में अपने लिए देशवासियों से वोट मांगकर लोकसभा में स्पष्ट बहुमत हासिल करने के बाद प्रधानमंत्री मोदी सामान्य कामकाज के लिए विपक्ष तो क्या अपने एनडीए घटक दलों की कृपा के लिए मोहताज नहीं रह गए हैं। फिर भी एनडीए उनके साथ चट्टान की तरह खड़ा नजर आ रहा है। दरअसल, घटक दलों के पास मोदी के साथ खड़े रहने के सिवा विकल्प भी नहीं है। एनडीए विधिवत् मोदी को अपना नेता चुन भी चुका है और भाजपा या मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए को अगले साल नवम्बर तक राज्यसभा में भी पूर्ण बहुमत मिलने जा रहा है। वर्तमान में राज्यसभा में एनडीए की सदस्य संख्या 83 तथा जबकि भाजपा के 73 सदस्य हैं। वहीं कांग्रेसनीत् यूपीए की सदस्य संख्या मात्र 73 है। जबकि 245 सदस्यीय राज्यसभा में बहुमत के लिए 123 सदस्यों की दरकार होती है। इसी कमजोरी के कारण मोदी सरकार पिछले कार्यकाल में तीन तलाक का विधेयक राज्यसभा में पारित नहीं करा सकी। अगर राज्यसभा सदस्यों का कार्यकाल देखें तो इस उच्च सदन की 10 सीटें इसी साल और 72 सीटें अगले साल 2020 में रिक्त होने जा रही हैं। इनमें अगले साल 51 सीटें जुलाई में तथा 11 सीटें नवम्बर में रिक्त हो जाएंगी। इनमें 10 सीटें उत्तर प्रदेश की भी हैं जहां प्रचण्ड बहुमत की भाजपा सरकार चल रही है जिसका कार्यकाल 2022 तक है।
मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उडीसा, तेलंगाना और आन्ध्र प्रदेश में हुए चुनावों में हार के कारण भाजपा या एनडीए को राज्यसभा में भी बहुमत का आंकड़ा छूने में विलम्ब हो गया। लेकिन हरियाणा, महाराष्ट्र एवं झारखण्ड में इसी साल चुनाव होने हैं और इन राज्यों में भाजपा गत् लोकसभा चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन कर चुकी है।
राज्यसभा में भाजपा को बहुमत मोदी को महानायक बना सकता है। - फोटो : पीटीआई
एनडीए राज्यसभा में बहुमत से 21 सीटें दूर
वर्तमान में भाजपा के 73 सदस्यों सहित जनता दल (यूनाइटेड) के 6, शिरोमणी अकाली दल के 3, शिवसेना के 3 और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के 1 सदस्य को मिलाकर एनडीए की ताकत राज्यसभा में 86 सदस्यों की है। इनकेे अलावा वर्तमान में अन्ना द्रमुक के 13 राज्यसभा सांसद हैं और इनका समर्थन भी भाजपा को ऐन वक्त पर मिलता रहा है। इस तरह एनडीए और उसके शुभचिन्तकों के सांसदों की संख्या राज्यसभा में 99 तक हो जाती है। इसके अलावा तीन मनोनीत् सदस्य स्वप्न दासगुप्ता, मैरीकॉम और नरेंद्र जाधव का समर्थन भी मोदी सरकार के साथ रहा है। इस तरह देखा जाए तो फिलहाल एनडीए राज्यसभा में बहुमत से मात्र 21 सीटें दूर है।
कांग्रेस की शक्ति का ह्रास जारी रहेगा
भाजपा जहां लोकसभा के साथ ही राज्यसभा में अपनी स्थिति मजबूत कर रही है वहीं कांग्रेस की शक्ति राज्यसभा में क्षीण होती जा रही है। कांग्रेस के संरक्षक समान बुजुर्ग एवं पूर्व प्रधानमंत्री का कार्यकाल 14 जून को पूरा होने जा रहा है और असम से उनके दुबारा चुने जाने की कोई संभावना नहीं है। असम में 126 सदस्यीय विधानसभा में केवल 26 सदस्य हैं जबकि सत्ताधरी भाजपा के अपने ही 60 सदस्यों के अलावा उनको 14 सदस्यीय असमगण परिषद जैसे सहयोगियों का भी समर्थन हासिल है। डॉ0 मनमोहन सिंह के साथ ही असम से कांग्रेस के सेंटियूज कुजुर भी रिटायर हो रहे हैं। इन पदों के लिए 7 जून को चुनाव होना है और ये दोनों सीटें भाजपा एवं उसके सहयोगियों को मिलनी तय है। अब असम में भाजपा बहुमत में है, इसलिए इन दोनों सीटों पर एनडीए का कब्जा सुनिश्चित है। इन्हीं में से एक सीट से लोजपा के संस्थापक रामविलास पासवान को देने पर बीजेपी चुनाव से ठीक पहले तैयार हुई थी। रामविलास पासवान का मोदी कैबिनेट में शामिल किए जाने का मतलब उनको वायदे के मुताबिक राज्यसभा सीट दी जानी पक्का है।
वर्तमान में भाजपा के 73 सदस्यों सहित जनता दल (यूनाइटेड) के 6, शिरोमणी अकाली दल के 3, शिवसेना के 3 और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के 1 सदस्य को मिलाकर एनडीए की ताकत राज्यसभा में 86 सदस्यों की है। इनकेे अलावा वर्तमान में अन्ना द्रमुक के 13 राज्यसभा सांसद हैं और इनका समर्थन भी भाजपा को ऐन वक्त पर मिलता रहा है। इस तरह एनडीए और उसके शुभचिन्तकों के सांसदों की संख्या राज्यसभा में 99 तक हो जाती है। इसके अलावा तीन मनोनीत् सदस्य स्वप्न दासगुप्ता, मैरीकॉम और नरेंद्र जाधव का समर्थन भी मोदी सरकार के साथ रहा है। इस तरह देखा जाए तो फिलहाल एनडीए राज्यसभा में बहुमत से मात्र 21 सीटें दूर है।
कांग्रेस की शक्ति का ह्रास जारी रहेगा
भाजपा जहां लोकसभा के साथ ही राज्यसभा में अपनी स्थिति मजबूत कर रही है वहीं कांग्रेस की शक्ति राज्यसभा में क्षीण होती जा रही है। कांग्रेस के संरक्षक समान बुजुर्ग एवं पूर्व प्रधानमंत्री का कार्यकाल 14 जून को पूरा होने जा रहा है और असम से उनके दुबारा चुने जाने की कोई संभावना नहीं है। असम में 126 सदस्यीय विधानसभा में केवल 26 सदस्य हैं जबकि सत्ताधरी भाजपा के अपने ही 60 सदस्यों के अलावा उनको 14 सदस्यीय असमगण परिषद जैसे सहयोगियों का भी समर्थन हासिल है। डॉ0 मनमोहन सिंह के साथ ही असम से कांग्रेस के सेंटियूज कुजुर भी रिटायर हो रहे हैं। इन पदों के लिए 7 जून को चुनाव होना है और ये दोनों सीटें भाजपा एवं उसके सहयोगियों को मिलनी तय है। अब असम में भाजपा बहुमत में है, इसलिए इन दोनों सीटों पर एनडीए का कब्जा सुनिश्चित है। इन्हीं में से एक सीट से लोजपा के संस्थापक रामविलास पासवान को देने पर बीजेपी चुनाव से ठीक पहले तैयार हुई थी। रामविलास पासवान का मोदी कैबिनेट में शामिल किए जाने का मतलब उनको वायदे के मुताबिक राज्यसभा सीट दी जानी पक्का है।
कांग्रेस को डीएमके से मनमोहन सिंह के लिए उम्मीद बाकी है? - फोटो : PTI
कांग्रेस को डीएमके से मनमोहन सिंह के लिए उम्मीद
इसी प्रकार देवगौड़ा भी राज्यसभा से रिटायर होने वाले हैं। वह लोकसभा चुनाव भी हार चुके हैं। यद्यपि असम के अलावा इस साल 8 अन्य राज्यसभा की सीटें रिक्त हो रही हैं और उनमें से कोई भी सीट कांग्रेस के पक्ष में जाती नजर नहीं आ रही है। अगर डीएमके की कृपा हो गई तो डॉ मनमोहन सिंह को तमिलनाडु से राज्यसभा भेजा जा सकता है। इस साल तमिलनाडु से 6 सीटें खाली हो रही हैं। इसी साल बिहार और उड़ीसा से भी एक-एक सीट खाली हो रही है, मगर कांग्रेस के पास इतने विधायक नहीं जो कि इन दो सीटों पर विजय दिला दें।
2020 की शुरुआत में यूपीए की ओर से मनोनीत केटीएस तुलसी रिटायर हो जाएंगे, ऐसे में एनडीए अपनी पसंद के सांसद को मनोनीत कर पाएगी। कांग्रेस अगले साल होने वाले चुनाव में देवगौड़ा या मनमोहन सिंह को राज्यसभा भेज सकती है। अगले साल 22 राज्यों से 72 सीटों पर चुनाव होने हैं।
अविवादित विधेयक पारित कराने में कठिनाई नहीं
अगर कोई बहुत विवादित विषय न हो तो वर्तमान में भी मोदी सरकार को राज्यसभा में महत्वपूर्ण विधेयक पारित कराने में ज्यादा कठिनाई नहीं होगी। क्योंकि एनडीए की मोदी सरकार को बीजू जनता दल के 9, तेलंगाना राष्ट्र समिति के 6 और वाइएसआर कांग्रेस के दो सासंदों का समर्थन भी मिल सकता है। इन तीनों दलों का मोदी सरकार के प्रति रुख लगभग दोस्ताना ही मना जा सकता है।
2020 में 19 मिल सकती हैं भाजपा को
अगले साल अप्रैल में महाराष्ट्र, असम, झारखण्ड, हरियाणा, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश से राज्यसभा की 55 सीटें खाली होने जा रही है और इन सभी राज्यों में भाजपा या एनडीए की सरकारें हैं। इन 55 सीटों में उत्तर प्रदेश से नौ सीटें भी शामिल हैं जिनमें समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव, नीरज शेखर, जावेद अली खान और कांग्रेस के पीएल पूनिया जैसे सांसद भी शामिल हैं। राज्यसभा की इन 55 सीटों में कम से कम 19 सीटें भाजपा को मिलने की उम्मीद है। ऐसे में अगले साल तक भाजपा को राज्यसभा को अपने बलबूते पर बहुमत हासिल हो जाएगा। चूंकि उत्तर प्रदेश में भाजपा के 309 विधायक और 62 सांसद हैं, इसलिए राज्य की 9 सीटों में से केवल एक सीट को छोड़कर बाकी सभी 8 सीटें भाजपा को मिलनी तय हैं। एक सीट पर समाजवादी पार्टी वापस लौट सकती।
मुंह की खानी पड़ी थी सरकार को
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में राज्यसभा में बहुमत न होने कारण सरकार कई कानून नहीं पास करा पाई थी। पास न हो पाने वाले विधेयकों में से एक भूमि अधिग्रहण संशोधन जैसा महत्वपूर्ण विधेयक भी था। विपक्षी दलों के विपरीत रुख को देखते हुए सरकार इसे राज्यसभा में लेकर ही नहीं गई। सरकार तीन तलाक को अपराधिक बनाए जाने का कानून भी पारित नहीं हो पाई। यही नहीं, 2016 में तो संयुक्त विपक्ष ने राष्ट्रपति के भाषण में संशोधन को पास करा लिया था। किसी भी सत्तारूढ़ दल के लिए इस तरह की स्थिति शर्मनाक होती है। चूंकि मनी बिल के मामले में राज्यसभा की शक्ति बहुत सीमित है इसलिए सरकार राज्यसभा में बहुमत नहीं होने की वजह से आधार विधेयक को मनी बिल बनाकर पारित करवा पाई थी। इन विधेयकों के अलावा मोटर वाहन संशोधन विधेयक, कंपनी संशोधन विधेयक, नागरिकता संबंधी विधेयक और इंडियन मेडिकल काउंसिल संशोधन विधेयक भी राज्यसभा में फंस गये थे।
चुनाव में किए बड़े वायदों को पूरा करने की चुनौती
दूसरी पारी में भी कानून मंत्रालय का कार्यभार संभालते ही रवि शंकर ने तीन तलाक विधेयक को पारित कराने का संकल्प व्यक्त किया है। जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाना भाजपा का घोषित एजेंडा रहा है और इसके संकेत अमित शाह गत लोकसभा चुनाव में भी दे चुके हैं। जब अमित शाह स्वयं गृहमंत्री हों तो उनके कार्यकाल में इसके लिए संविधान संशोधन आना अवश्यंभावी है।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट की पहल पर तीन सदस्यीय कमेटी अयोध्या विवाद पर आगामी अगस्त तक का समय अदालत से मांग चुकी है, इसलिए बहुत संभव है कि मोदी सरकार राम मंदिर मामले में अगस्त तक इंतजार कर ले। लेकिन मादी-अमित शाह की जोड़ी से यह मामला अब और आगे लटकाए जाने की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। लोकसभा के साथ ही राज्य विधानसभाओं के चुनाव कराने की सोच भी भाजपा की ही है। अगर इस समय दोनों चुनाव एक साथ हो जाते तो बहुत संभव है कि इसका फायदा भाजपा को मिलता, इसलिए एक साथ चुनाव का इरादा भाजपा ने अभी त्यागा नहीं है। हो सकता है कि अगला चुनाव अब एक ही साथ हो। इस विचार का समर्थन निर्वाचन आयोग भी कर चुका है। ये भी हो सकता है कि संविधान के अनुच्छेद 74 एवं 75 के साथ ही 164 और 165 में भी बदलाव का प्रयास किया जाय ताकि राष्ट्र प्रमुख को ही शासन प्रमुख की तरह कार्यकारी शक्तियां दिलाई जा सके और देश में राष्ट्रपति तथा राज्यपालों के चुनाव सीधे जनता करे। वाजपेयी सरकार ने भी सुप्रीमकोर्ट के पूर्व मख्य न्यायाधीश एम.ए. वैंकटचलैया की अध्यक्षता में 23 फरवरी 2000 को संविधान की समीक्षा के लिये एक 11 सदस्यीय आयोग का गठन किया था। बहुत संभव है कि देश की शासन प्रणाली में बदलाव के इरादे से पुनः संविधान की समीक्षा कराई जाए।
इसी प्रकार देवगौड़ा भी राज्यसभा से रिटायर होने वाले हैं। वह लोकसभा चुनाव भी हार चुके हैं। यद्यपि असम के अलावा इस साल 8 अन्य राज्यसभा की सीटें रिक्त हो रही हैं और उनमें से कोई भी सीट कांग्रेस के पक्ष में जाती नजर नहीं आ रही है। अगर डीएमके की कृपा हो गई तो डॉ मनमोहन सिंह को तमिलनाडु से राज्यसभा भेजा जा सकता है। इस साल तमिलनाडु से 6 सीटें खाली हो रही हैं। इसी साल बिहार और उड़ीसा से भी एक-एक सीट खाली हो रही है, मगर कांग्रेस के पास इतने विधायक नहीं जो कि इन दो सीटों पर विजय दिला दें।
2020 की शुरुआत में यूपीए की ओर से मनोनीत केटीएस तुलसी रिटायर हो जाएंगे, ऐसे में एनडीए अपनी पसंद के सांसद को मनोनीत कर पाएगी। कांग्रेस अगले साल होने वाले चुनाव में देवगौड़ा या मनमोहन सिंह को राज्यसभा भेज सकती है। अगले साल 22 राज्यों से 72 सीटों पर चुनाव होने हैं।
अविवादित विधेयक पारित कराने में कठिनाई नहीं
अगर कोई बहुत विवादित विषय न हो तो वर्तमान में भी मोदी सरकार को राज्यसभा में महत्वपूर्ण विधेयक पारित कराने में ज्यादा कठिनाई नहीं होगी। क्योंकि एनडीए की मोदी सरकार को बीजू जनता दल के 9, तेलंगाना राष्ट्र समिति के 6 और वाइएसआर कांग्रेस के दो सासंदों का समर्थन भी मिल सकता है। इन तीनों दलों का मोदी सरकार के प्रति रुख लगभग दोस्ताना ही मना जा सकता है।
2020 में 19 मिल सकती हैं भाजपा को
अगले साल अप्रैल में महाराष्ट्र, असम, झारखण्ड, हरियाणा, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश से राज्यसभा की 55 सीटें खाली होने जा रही है और इन सभी राज्यों में भाजपा या एनडीए की सरकारें हैं। इन 55 सीटों में उत्तर प्रदेश से नौ सीटें भी शामिल हैं जिनमें समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव, नीरज शेखर, जावेद अली खान और कांग्रेस के पीएल पूनिया जैसे सांसद भी शामिल हैं। राज्यसभा की इन 55 सीटों में कम से कम 19 सीटें भाजपा को मिलने की उम्मीद है। ऐसे में अगले साल तक भाजपा को राज्यसभा को अपने बलबूते पर बहुमत हासिल हो जाएगा। चूंकि उत्तर प्रदेश में भाजपा के 309 विधायक और 62 सांसद हैं, इसलिए राज्य की 9 सीटों में से केवल एक सीट को छोड़कर बाकी सभी 8 सीटें भाजपा को मिलनी तय हैं। एक सीट पर समाजवादी पार्टी वापस लौट सकती।
मुंह की खानी पड़ी थी सरकार को
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में राज्यसभा में बहुमत न होने कारण सरकार कई कानून नहीं पास करा पाई थी। पास न हो पाने वाले विधेयकों में से एक भूमि अधिग्रहण संशोधन जैसा महत्वपूर्ण विधेयक भी था। विपक्षी दलों के विपरीत रुख को देखते हुए सरकार इसे राज्यसभा में लेकर ही नहीं गई। सरकार तीन तलाक को अपराधिक बनाए जाने का कानून भी पारित नहीं हो पाई। यही नहीं, 2016 में तो संयुक्त विपक्ष ने राष्ट्रपति के भाषण में संशोधन को पास करा लिया था। किसी भी सत्तारूढ़ दल के लिए इस तरह की स्थिति शर्मनाक होती है। चूंकि मनी बिल के मामले में राज्यसभा की शक्ति बहुत सीमित है इसलिए सरकार राज्यसभा में बहुमत नहीं होने की वजह से आधार विधेयक को मनी बिल बनाकर पारित करवा पाई थी। इन विधेयकों के अलावा मोटर वाहन संशोधन विधेयक, कंपनी संशोधन विधेयक, नागरिकता संबंधी विधेयक और इंडियन मेडिकल काउंसिल संशोधन विधेयक भी राज्यसभा में फंस गये थे।
चुनाव में किए बड़े वायदों को पूरा करने की चुनौती
दूसरी पारी में भी कानून मंत्रालय का कार्यभार संभालते ही रवि शंकर ने तीन तलाक विधेयक को पारित कराने का संकल्प व्यक्त किया है। जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाना भाजपा का घोषित एजेंडा रहा है और इसके संकेत अमित शाह गत लोकसभा चुनाव में भी दे चुके हैं। जब अमित शाह स्वयं गृहमंत्री हों तो उनके कार्यकाल में इसके लिए संविधान संशोधन आना अवश्यंभावी है।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट की पहल पर तीन सदस्यीय कमेटी अयोध्या विवाद पर आगामी अगस्त तक का समय अदालत से मांग चुकी है, इसलिए बहुत संभव है कि मोदी सरकार राम मंदिर मामले में अगस्त तक इंतजार कर ले। लेकिन मादी-अमित शाह की जोड़ी से यह मामला अब और आगे लटकाए जाने की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। लोकसभा के साथ ही राज्य विधानसभाओं के चुनाव कराने की सोच भी भाजपा की ही है। अगर इस समय दोनों चुनाव एक साथ हो जाते तो बहुत संभव है कि इसका फायदा भाजपा को मिलता, इसलिए एक साथ चुनाव का इरादा भाजपा ने अभी त्यागा नहीं है। हो सकता है कि अगला चुनाव अब एक ही साथ हो। इस विचार का समर्थन निर्वाचन आयोग भी कर चुका है। ये भी हो सकता है कि संविधान के अनुच्छेद 74 एवं 75 के साथ ही 164 और 165 में भी बदलाव का प्रयास किया जाय ताकि राष्ट्र प्रमुख को ही शासन प्रमुख की तरह कार्यकारी शक्तियां दिलाई जा सके और देश में राष्ट्रपति तथा राज्यपालों के चुनाव सीधे जनता करे। वाजपेयी सरकार ने भी सुप्रीमकोर्ट के पूर्व मख्य न्यायाधीश एम.ए. वैंकटचलैया की अध्यक्षता में 23 फरवरी 2000 को संविधान की समीक्षा के लिये एक 11 सदस्यीय आयोग का गठन किया था। बहुत संभव है कि देश की शासन प्रणाली में बदलाव के इरादे से पुनः संविधान की समीक्षा कराई जाए।
बहुत बड़े फैसले आसान नहीं होंगे मोदी-शाह के लिए - फोटो : PTI
बहुत बड़े फैसले आसान नहीं होंगे मोदी-शाह के लिए
संविधान संशोधन की प्रक्रिया स्वयं संविधान के अनुच्छेद 368 में दी गई है। इस अनुच्छदे के अनुसार संशोधन संबंधी संसद के दोनों में से किसी भी सदन में लाया जा सकता है। संविधान संशोधन विधेयकों को तीन श्रेणियों में रखा गया है। इनमें संविधान के कुछ ऐसे अनुच्छेद हैं जिनमें साधारण बहुमत से संशोधन पारित किया जा सकता है। इनके अलावा कुछ ऐसे अनुच्छेद हैं जिन्हें विशेष बहुमत से पारित किया जा सकता है। तीसरी श्रेणी अनुच्छेदों में संशोधन के लिए दो तिहाई बहुमत के साथ ही कम से कम आधे राज्यों की विधानसभाओं द्वारा संशोधन विधेयक पर समर्थन आवश्यक है। जिन अनुच्छेदों या विषयों में विशेष बहुमत और आधे से अधिक राज्यों के अनुसमर्थन की आवश्यकता होती है उनमें राष्ट्रपति का निर्वाचन, संघ एवं राज्यों की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार, उच्चतम एवं उच्च न्यायालय, संघ एवं राज्यों के बीच विधायी शक्तियों का वितरण, संसद में राज्यों का प्रतिनिधित्व एवं संविधान में संशोधन की प्रक्रिया शामिल है। इस तरह के संशोधन के लिए राज्यों की विधानसभाओं द्वारा अपना अनुसमर्थन देने की सूचना के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है। लिहाजा राज्य संशोधन विधेयक पर अपना अनुसमर्थन काफी समय तक लटकाए भी रख सकते हैं। यही नहीं संसद में दो तिहाई बहुमत के साथ ही राष्ट्रपति की अनुमति के लिए विधेयक उसके समक्ष प्रस्तुत करने से पूर्व कम से कम आधे राज्यों के विधानमण्डलों द्वारा संकल्प पारित करके उनका अनुसमर्थन करना होता है। इसलिए कम से कम मोदी शासन-दो में राष्ट्रपति शासन प्रणाली की उम्मीद तो बहुत क्षीण है। इसी प्रकार अनुच्छेद 370 या 35 ए को समाप्त करना भी आसान प्रतीत नहीं होता है। लेकिन जब मोदी स्वयं ही कहते हों कि ‘‘मोदी हैं तो मुमकिन है’’, तो नामुमकिन को मुमकिन करने का उनका दावा इस बार कसौटी पर रहेगा।
संविधान संशोधन की प्रक्रिया स्वयं संविधान के अनुच्छेद 368 में दी गई है। इस अनुच्छदे के अनुसार संशोधन संबंधी संसद के दोनों में से किसी भी सदन में लाया जा सकता है। संविधान संशोधन विधेयकों को तीन श्रेणियों में रखा गया है। इनमें संविधान के कुछ ऐसे अनुच्छेद हैं जिनमें साधारण बहुमत से संशोधन पारित किया जा सकता है। इनके अलावा कुछ ऐसे अनुच्छेद हैं जिन्हें विशेष बहुमत से पारित किया जा सकता है। तीसरी श्रेणी अनुच्छेदों में संशोधन के लिए दो तिहाई बहुमत के साथ ही कम से कम आधे राज्यों की विधानसभाओं द्वारा संशोधन विधेयक पर समर्थन आवश्यक है। जिन अनुच्छेदों या विषयों में विशेष बहुमत और आधे से अधिक राज्यों के अनुसमर्थन की आवश्यकता होती है उनमें राष्ट्रपति का निर्वाचन, संघ एवं राज्यों की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार, उच्चतम एवं उच्च न्यायालय, संघ एवं राज्यों के बीच विधायी शक्तियों का वितरण, संसद में राज्यों का प्रतिनिधित्व एवं संविधान में संशोधन की प्रक्रिया शामिल है। इस तरह के संशोधन के लिए राज्यों की विधानसभाओं द्वारा अपना अनुसमर्थन देने की सूचना के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है। लिहाजा राज्य संशोधन विधेयक पर अपना अनुसमर्थन काफी समय तक लटकाए भी रख सकते हैं। यही नहीं संसद में दो तिहाई बहुमत के साथ ही राष्ट्रपति की अनुमति के लिए विधेयक उसके समक्ष प्रस्तुत करने से पूर्व कम से कम आधे राज्यों के विधानमण्डलों द्वारा संकल्प पारित करके उनका अनुसमर्थन करना होता है। इसलिए कम से कम मोदी शासन-दो में राष्ट्रपति शासन प्रणाली की उम्मीद तो बहुत क्षीण है। इसी प्रकार अनुच्छेद 370 या 35 ए को समाप्त करना भी आसान प्रतीत नहीं होता है। लेकिन जब मोदी स्वयं ही कहते हों कि ‘‘मोदी हैं तो मुमकिन है’’, तो नामुमकिन को मुमकिन करने का उनका दावा इस बार कसौटी पर रहेगा।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।
No comments:
Post a Comment