अराजकता
की भेंट चढ़ी मध्य हिमालय की चारधाम यात्रा
-जयसिंह रावत
देश के मैदानी
इलाकों में पड़
रही भयंकर गर्मी
से निजात पाने
और इसी बहाने
हिमालयी तीर्थों में पुण्य
लाभ कमाने के
लिए इस वर्ष
उत्तराखण्ड के विख्यात
चार धामों और
पर्यटन स्थलों पर ऐसा
जन सैलाब उमड़
पड़ा जिसे व्यवस्थित
करना राज्य सरकार
के बूते से
बाहर हो गया।
तीर्थ स्थलों और
पर्यटक स्थलों पर आशा
से अधिक भीड़
के उमड़ पड़ने
के कारण चिकित्सा
एवं स्वास्थ्य से
लेकर परिवहन, आवास
एवं शौचालय की
जैसी सुविधाओं के
लिये हायतौबा मच
गयी। केदारनाथ में
तो एक ही
दिन 36 हजार से
अधिक यात्रियों का
हुजूम उमड़ पड़ा
जबकि वहां 5 हजार
से अधिक यात्रियों
के ठहरने का
इंतजाम नहीं है।
नैनीताल में तो
हालत इतनी खराब
है कि पर्यटकों
के वाहनों को
10 किमी पीछे ही
रोक दिया गया
जिस कारण कई
सैलानी गंतव्य तक पहुंचने
से पहले ही
निराश लौट गये।
चारों धामों में
इस बार सवा
माह की अवधि
में ही हृदय
गति रुकने और
ठण्ड आदि से
मरने वाले की
संख्या 48 तक पहुंच
गई है। चारधाम
यात्रा और पर्यटन
सीजन में ऐसी
अराजक स्थिति आज
तक कभी नहीं
देखी गयी थी।
Article of Jay Singh Rawat Published in Nav Jivan on 23 June 2019 |
मानसून की दस्तक
से आसमान से
बरसने वाली आग
कुछ कम तो
हुयी मगर इस आग
से बचने के
लिये अब भी
उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध
चार धामों और
मसूरी तथा नैनीताल
जैसे पर्यटन स्थलों
पर तीर्थ यात्रियों
तथा पर्यटकों का
भारी रेला आना
जारी है। बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति
के मुख्य कार्याधिकारी
बी.डी. सिंह
के अनुसार इस
वर्ष 18 जून तक
बदरीनाथ एवं केदारनाथ
धामों में देश-विदेश के 13,86,321 तीर्थ
यात्री दर्शन लाभ कर
चुके थे। इनमें
6,92,124 यात्री बदरीनाथ के और
6,94197 यात्री केदारनाथ धाम के
शामिल हैं। 18 जून
को 11,447 यात्री बदरीनाथ और
13,316 यात्री केदारनाथ पहुंचे। इस साल
7 जून को एक
ही दिन में
36,179 यात्रियों का रेला
केदारनाथ जा पहुंचा।
उसके अगले दिन
8 जून को 20,121 यात्री
बदरीनाथ और 35,122 यात्री केदारनाथ
पहुंचे। केदारनाथ यात्रा तथा
दर्शन व्यवस्था सुव्यवस्थित
करने के लिये
जिला प्रशासन ने
इस बार टोकन
की व्यवस्था शुरू
की थी जो
कि बुरी तरह
विफल हो गयी।
मंदिर परिसर में
ही पुलिस द्वारा
यात्रियों को धक्के
मार कर भगाने
की शिकायतें भी
सरकार तक पहुंची
हैं। कुल मिला
कर देखा जाय
तो इन दिनों
लगभग 1350 किमी लम्बे
चार धाम यात्रा
मार्ग एवं समुद्रतल
से लगभग 2 हजार
मीटर की ऊंचाई
पर स्थित पहाड़ी
पर्यटन नगरों में उमड़
रहे मानव सैलाब
को सम्भालने में
बुरी तरह विफल
रही है। यही
नहीं मूुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र
रावत मेहमानों और
आम नागरिकों को
होने वाली भारी
परेशानियों के लिये
खेद प्रकट करने
के बजाय इस
अराजकता को अपनी
उपलब्धि मान रहे
हैं।
इस यात्रा सीजन में
जून के पहले
पखवाड़े तक कोई
बड़ी सड़क दुर्घटना
तो नहीं हुयी
मगर समय से
इलाज न मिल
पाने के कारण
हार्ट अटैक जैसी
बीमारियों से यात्रियों
के मरने की
संख्या का रिकार्ड
अवश्य ही टूट
गया है। इस
साल 14 जून तक
चारों धामों के
यात्रा मार्गों पर मरने
वाले श्रद्धालुओं की
संख्या 48 तक पहुंच
गयी है जबकि
गत वर्ष 2018 की
यात्रा में पहले
एक महीने में
27 यात्रियों की जानें
गयीं थीं। 19 जून
को पश्चिम बंगाल
के गौराज चन्द्र
मुखर्जी (67) तथा मुम्बई
के विनोद व्यास
(51) की मौत के
साथ ही 9 मई को
यात्रा शुरू होने
से लेकर 19 जून
तक एक माह
10 दिन की अवधि
में ही अकेले
केदारनाथ और उसके
यात्रा मार्ग पर मरने
वालों की संख्या
34 तक पहुंच गयी
थी और अभी
यात्रा के लगभग
साढ़े चार माह
बाकी हैं। इन
में से कुछ
यात्रियों ो समुचित
चिकित्सा व्यवस्था उपलब्ध होने
पर बचाया जा
सकता था। डाक्टरों
के अनुसार यात्रियों
की ज्यादातर मौतें
हाइपोक्सेमिया (रक्त में
ऑक्सीजन का न्यूनतम
स्तर) के कारण
हार्ट अटैक होने
से हुयी हैं।
पिछले साल 6 माह
के पूरे यात्रा
सीजन में 65 यात्रियों
की मौतें हुयीं
थीं। सूबे के
चिकित्सा विभाग का भार
भी स्वयं मुख्यमंत्री
त्रिवेद्र के पास
है।
ऋषिकेश स्थित बायोमीट्रिक पंजीकरण
केन्द्र के अनुसार
वहां पर प्रति
दिन औसतन 9500 यात्री
चारधाम के लिये
पंजीकरण करा रहे
हैं। इस हिसाब
से वहां पर
40 सीट वाली कम
से कम 225 बसों
की प्रतिदिन आवश्यकता
है जो कि
पूरी नहीं हो
पा रही है।
मजबूरन यात्रियों को ऊंची
दरों पर टैक्सियां
और जीपें लेनीं
पड़ रही हैं।
अधिकांश बसें तीर्थ
यात्रियों को ढोने
पर लगा दिये
जाने से प्रदेश
के स्थानीय यात्रियों
को भारी परेशानियों
का सामना करना
पड़ रहा है।
ऋषिकेश में बाहरी
आगन्तुकों के लिये
बायोमीट्रिक पंजीकरण जरूरी है।
बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति
जहां अब तक
13 लाख से अधिक
श्रद्धालुओं के आने
की पुष्टि कर
रही है वहीं
यात्रा के आधार
केन्द्र ऋषिकेश में 18 जून
तक केवल 5,55,960 यात्री
ही अपना पंजीकरण
करा पाये थे।
जाहिर है कि
यात्री अपने निजी
वाहनों से बिना
पंजीकरण के ही
यात्रा कर रहे
हैं। यह व्यवस्था
2013 के केदारनाथ त्रासदी के
कटु अनुभवों के
आधार पर की
गयी थी क्योंकि
उस महा आपदा
में मरने और
लापता होने वाले
लोगों का सही-सही आंकड़ा
कोई भी नहीं
जुटा पाया।
जून शुरू होते
ही नैनीताल और
मसूरी जैसे पर्यटन
स्थलों पर्यटकों का तांता
लगना शुरू हो
गया था। लेकिन
वहां समुचित पार्किंग
व्यवस्था न होने
के कारण पर्यटकों
को भारी परेशानियों
का सामना करना
पड़ रहा है।
ईद के तत्काल
बाद जून के
पहले सप्ताह तो
स्थिति इतनी बद्तर
थी कि पर्यटकों
के वाहनों को
नैनीताल से 10 किमी पीछे
बल्दिया खान में
रोक दिया गया।
डंडाधारी पुलिसकर्मियों ने पर्यटकों
के साथ भी
कानून तोड़ने वालों
की तरह पुलिसिया
व्यवहार किया। जिस कारण
कई पर्यटकों को
निराश हो कर
वापस लौटना पड़ा
तो कुछ को
उनकी लग्जरी कारें
छुड़वाकऱ भेड़ बकरियों
की तरह जीपों
ठूंस कर नैनीताल
पहुंचाया गया। जबकि
इतनी बेकाबू भीड़
के बावजूद होटलों
में कमरे खाली
रहे। इस अराजक
स्थिति का शिकार
स्थानीय नागरिकों को भी
होना पड़ा। मसूरी
क्षेत्र के मुख्य
आकर्षण केम्प्टी फॉल जाने
के लिये तो
ट्रैफिक की सबसे
बद्तर स्थिति है।
वहां की यह
समस्या नयी नहीं
है मगर उसका
समाधान नहीं निकाला
जा रहा है।
ऋषिकेश से लेकर
चार धामों तक
जाने वाले लगभग
1350 किमी लम्बे मार्गों पर
एक भी व्यवस्थित
बस अड्डा न
होने से यात्रियों
को भारी परेशानी
का सामना करना
पड़ रहा है।
बस स्टेशनों पर
स्थानाभाव के कारण
वाहनों को प्रमुख
नगरों में रुकने
नहीं दिया जाता
जिस कारण यात्री
अपनी जरूरत की
वस्तु तक नहीं
खरीद पाते। इधर
चारधाम यात्रा को अराजकता
में छोड़ कर
प्रदेश के पर्यटन
एवं धर्मस्व मंत्री
सतपाल महाराज अपने
राजनीतिक नम्बर बढ़ाने के
लिये अपने अव्यवहारिक
‘‘डार्क टूरिज्म’’ को लेकर
दिल्ली-देहरादून में ही
मग्न रहे।
चार धाम मार्ग
पर पेट्रोल की
सामान्य उपलब्धता से कहीं
अधिक खपत बढ़
जाने से भी
अक्सर पेट्रोल और
डीजल की किल्लत
हो रही है
मगर राज्य सरकार
की ओर से
इस दिशा में
कोई ठोस पहल
नहीं की गयी।
केदारनाथ मार्ग की जड़
पर तथा बदरीनाथ
मार्ग के एक
मुख्य नगर रुद्रप्रयाग
में तथा उसके
आसपास के 9 पेट्रोल
पम्पों पर सामान्य
दिनों में औसतन
10 हजार लीटर पेट्रोल
और 30 हजार लीटर
डीजल की खपत
होती है मगर
इन दिनों वहां
पेट्रोल की मांग
30 हजार और डीजल
की मांग 80 हजार
लीटर तक पहुंच
गयी है। बदरीनाथ
मार्ग पर स्थित
9 पेट्रोल पम्पों पर सामान्य
दिनों औसतन 10 हजार
लीटर पेट्रोल और
25 हजार लीटर डीजल
की खपत होती
है, मगर इन
दिनों पेट्रोल की
मांग सवा लाख
लीटर और डीजल
की मांग 45 हजार
लीटर तक पहुंच
गयी है। मैदानी
क्षेत्र से इतना
तेल समय से
इन पेट्रोल पम्पों
पर नहीं पहुंच
पाता है। इस
किल्लत का लाभ
भी ब्लैकिये उठा
रहे हैं। ऑल
वेदर रोड के
निर्माण कार्य के कारण
भी पेट्रोल आपूर्ति
में विम्ब हो
रहा है। सड़क
निर्माण के कारण
भी रास्ते में
कभी-कभी घण्टों
तक जाम लग
जाता है।
जयसिंह रावत
ई-11, फ्रेंड्स एन्कलेव, शाहनगर,
डिफेंस कालोनी, देहरादून।
No comments:
Post a Comment