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Monday, March 25, 2019

भाजपा सरकार पहाड़ चिंता कहां ?

Article of Jay Singh Rawat appeared in Shah Times on 25 March 2019

मैदानी जिलों में ही सिमट गया उत्तराखण्ड में विकास
-जयसिंह रावत
पहाड़ों से बड़े पैमाने पर हो रहे पलायन को रोकने और केन्द्र तथा राज्य सरकारों के डबल इंजन के प्रयासों से उत्तराखण्ड की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से भी अधिक ले जाने के राज्य सरकार के खोखले दावों की पोल उसी के द्वारा विधानसभा में पेश की गयी आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2018-19 ने खोल कर रख दी है। रिपोर्ट के अनुसार राज्य के विकास की गाड़ी पहाड़ पर चढ़ ही नहीं पा रही है जिस कारण सारी विकास गतिविधियां प्रदेश के तीन मैदानी जिलों तक ही सिमट गयी है। प्रदेश की 64 प्रतिशत परिवार महज 5 हजार रुपये महीने पर गुजारा कर रहे हैं। हरिद्वार में प्रति व्यक्ति आय ढाइ लाख से ऊपर चली गयी है जबकि कुछ पहाड़ी जिलों में प्रति व्यक्ति आय 90 हजार भी नहीं पहुंच पायी है। पहाड़ों की जो कुछ आय दिखाई गयी है वह भी चुनींदा कस्बों के साधन सम्पन्न लोगों की है अन्यथा अधिकांश परिवार मनरेगा की लगभग 1458 रुपये मासिक आमदनी पर गुजारा कर रहे हैं। विकास के मामले में इतनी अधिक विषमता की जानकारी के बावजूद त्रिवेन्द्र सरकार के 2019-20 के बजट में भी इन पहाड़ी परिवारों को गरीबी से मुक्ति दिलाने के लिये कोई प्रावधान नहीं किया गया है।
त्रिवेन्द्र सरकार पिछले दो सालों से प्रदेश के 84.37 प्रतिशत पहाड़ी भूभाग में विकास गतिविधियां तेज कर इस क्षेत्र से बड़े पैमाने पर हो रहे पलायन को रोकने के दावे कर रही है। इस दिशा में सरकार ने ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग का गठन किया था जिसके अनुसार उत्तराखंड में पिछले 10 सालों में 3,946 ग्राम पंचायतों से 1,18,981 लोग स्थायी और 3,83,726 लोग अस्थाई रूप से अपने गांव छोड़ गये हैं। इस सीमान्त राज्य में इतने बड़े पैमाने पर हो रहे पलायन से राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये भी खतरा उत्पन्न हो गया है। लेकिन इतना जानते हुये भी त्रिवेन्द्र सरकार ने कोई खास कदम नहीं उठा पायी है। त्रिवेन्द्र सरकार का दावा है कि राज्य की प्रति व्यक्ति आय 1,74,622 रुपये है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर प्रति व्यक्ति आय अभी तक 1,12,835 ही है। लेकिन यह आर्थिक उन्नति केवल तीन मैदानी जिलों हरिद्वार, देहरादून और उधमसिंहनगर तक ही सिमट गयी है। उत्तराखंड के 63.41 प्रतिशत परिवार महीने में पांच हजार रुपये से कम की आय पर गुजारा कर रहे हैं। 21 प्रतिशत परिवार 10 हजार रुपये महीने से कम जबकि 14 प्रतिशत लोग महीने में दस हजार से अधिक कमाते हैं। हरिद्वार की प्रति व्यक्ति आय जहां 2,54,050 तक पहुंच गयी वहीं रुद्रप्रयाग जिले की प्रति व्यक्ति आय 83,521 रुपये से आगे नहीं बढ़ पायी। प्रदेश के 9 पहाड़ी जिलों में औसत प्रति व्यक्ति आय केवल 89994.88 रुपये के करीब है वहीं तीन मैदानी जिलों की औसत प्रति व्यक्ति आय 2,12,429 से अधिक पहुंच गयी है। इस हिसाब से 10 पहाड़ी जिलों में प्रति व्यक्ति की प्रति माह आय 7499.57 रुपये बैठती है। यह आय भी पहाड़ी नगरों तक ही सीमित है। सामान्यतः पहाड़ के ग्रामीण मनरेगा में 100 दिन के रोजगार की गारण्टी के तहत औसतन 1458ध्- रुपये प्रति माह की कमाई पर गृहस्थी चला रहे हैं। पहाड़ों में भी सारी आर्थिक गतिविधियां चार धाम यात्रा मार्ग, जिला, तहसील और ब्लाक मुख्यालयों के छोटे बड़े नगरों तक ही सीमित हैं।
राज्य सरकार का सारा ध्यान प्रदेश के 15.63 प्रतिशत मैदानी भूभाग पर ही केन्द्रित होने के कारण पहाड़ों पर विकास की गतिविधियां केवल औपचारिकत के तौर पर चल रही है। राज्य की अर्थ व्यवस्था में मुख्य रूप से कृषि, बागवानी, विनिर्माण, निर्माण, व्यापार, होटल एवं जलपान गृह, परिवहन, भण्डारण, संचार एवं प्रसारण से सम्बन्धित सेवा आदि गतिविधियों का योगदान रहता है। इसी आधार पर सकल राज्य घरेलू उत्पाद तय होता है। लेकिन इस राज्य में सारी आर्थिक गतिविधियां मैदानी जिलों तक सिमट गयी है। पहाड़ों में जो गतिविधियां हैं भी वे पहाड़ी नगरों के इतर कहीं नहीं हैं। इसीलिये प्रचलित भावों पर राज्य का कुल घरेलू उत्पाद 2,14,933 करोड़ रुपये तक और 2018-19 में यह 2,37,147 करोड़ रुपये तक पहुचने का अनुमान है। इसमें भी सर्वाधिक 58,168.24 लाख रुपये सकल घरेलू उत्पाद हरिद्वार जिले का और सबसे कम 2,510.40 लाख रुपये रुद्रप्रयाग जिले का है। राज्य के 10 में से 9 पहाड़ी जिलों का औसत सकल घरेलू उत्पाद 4849.20 लाख करोड़ है तो अकेले तीन मैदानी जिले हरिद्वार, देहरादून और उधमसिंहनगर का औसत सकल घरेलू उत्पाद 45,447.39 लाख रुपये है। त्रिवेन्द्र सरकार ने उज्जवला योजना के तहत प्रदेश के सभी गरीब परिवारों को गैस गैस कनेक्शन देने की घोषणा पिछले साल ही कर दी थी लेकिन आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में अब भी 1.10 लाख गरीब परिवारों के पास गैस कनेक्शन नहीं हैं। बैंक भी आर्थिक गतिविधियां बढ़ाने के लिये पहाड़ों में ऋण देने में भारी कंजूसी कर रहे हैं। बैंकों का ऋण जमानुपात जहां उधमसिंहनगर में 122 हैं वहीं सर्वाधिक पलायन प्रभावित अल्मोड़ा और पौड़ी जिलों में यह अनुपात मात्र 23 है। मानव विकास सूचकांक में भीपहाड़ी जिले पिछड़े और मैदानी जिले आगे हैं। राज्य के 13 जिलों में से रुद्रप्रयाग, चम्पावत और टिहरी जिले क्रमशः 11वें, 12वें और 13वें स्थन पर जबकि देहरादून, हरद्विार और उधमसिंहनगर पहले तीन स्थानों पर हैं। त्रिवेन्द्र सरकार ने सौभाग्य योजना में शतप्रतिशत गावों और घरों का विद्युतीकरण करने का दावा किया है मगर इस रिपोर्ट में 1250 तोकों और मजरों का विद्युतीकरण अब प्रस्तावित होने की बात कही गयी है।
त्रिवेन्द्र सरकार के ही कार्यकाल में अप्रैल 2017 में अल्मोड़ा जिले के खुजरानी गांव में एक 17 साल की किशोरी की भूख से मौत की सूचना स्वयं भाजपा विधायक महेश नेगी ने दी थी। उत्तराखण्ड से भूख से किसी के मरने की यह अब तक की पहली घटना थी। पहाड़ों की गरीबी से देश की सुरक्षा व्यवस्था भी प्रभावित होती है, क्योंकि आजीविका की तलाश में पलायन होने से सीमावर्ती गांव खाली हो रहे हैं। यहां बाड़ाहोती क्षेत्र में हर साल चीनी सेना सीमा का उल्लंघन कर भारतीय क्षेत्र में घुस आती है।
जयसिंह रावत
-11, फ्रेण्ड्स एन्कलव, शाहनगर,
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून।
मोबाइल-9412324999

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