एक मुसलमान ने दी करोड़ों जुबानों के लिये बदरीनाथ की आरती
-जयसिंह रावत।
उत्तराखण्ड
के चारधाम न
केवल भारत की
सांस्कृतिक विविधता की एकता
के प्रतीक हैं
बल्कि ये देश
के चारों कोनो
को जोड़ने वाले
और साम्प्रदायिक सौहार्द
के प्रतीक भी
हैं। शायद बहुत
कम लोगों को
पता होगा कि
मोक्ष धाम के
रूप में आराध्य
हिन्दुओं के सर्वोच्च
तीर्थ बद्रीनाथ की
आरती की रचना
एक मुसलमान संत
नसरुद्दीन ने की
थी।यही नहीं मुगल
बादशाह अकबर ने
पांडुकेश्वर स्थित योगध्यान-बदरी
के मंदिर में
निर्माण कार्य करवा कर
घंटा भी चढ़वाया
था।
बदरीनाथ
मंदिर के धर्माधिकारी
जगदम्बा प्रसाद सती के
अनुसार बद्रीनारायण की स्तुति-
‘‘ पवन मंद, सुगंध
शीतल....... ’’ चमोली जिले के
नदंप्रयाग कस्बे के सिद्दकी
परिवार के मुस्लिम
सन्त ने लिखी
थी। सती के
अनुसार ‘यह स्तुति
विश्व भर में
करोड़ो हिंदुओं द्वारा
श्रद्धापूर्वक गायी जाती
है।’ बद्रीनाथ मंदिर
में भगवान की
कर्पूर,चांदी व स्वर्ण
आरतियां होती हैं,
इनमें कृष्ण-यजुर्वेद
के मंत्रों का
वाचन होता है।
सती के अनुसार
सिद्दकी द्वारा रचित स्तुति
एक ‘अद्भुत रचना
है’ इस रचना
में धार्मिक पुट
के अलावा बद्रीपुरी
की पौराणिकता,भौगोलिक
स्थिति,ऐतिहासिकता तथा बदरीश
पंचायत का वर्णन
भी है। इसीलिए
यह स्तुति जन-जन में
प्रिय है और
बदरीनारायण की सर्व
मान्य स्तुति है।’
बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति
के पूर्व मुख्य
कार्याधिकारी जगत सिंह
विष्ट के अनुसार
‘ सभी बुजुर्गों ने
यही बताया है
कि इस ‘बदरी
स्तुति’ का रचनाकार
नंदप्रयाग के सिद्दकी
की परिवार का
ही कोई व्यक्ति
था। इस स्तुति
को अनुराधा पौडवाल
सहित अनेकों गायकों
ने अपनी-अपनी
तरह से गाया
है। बदरीनाथ के
आरती गायक प.
पवन गोदियाल बताते
हैं कि इस
स्तुति के लाखों
कैसेट और सी
डी अभी तक
बिक चुके हैं।
एक प्रसिद्व म्यूजिक
कंपनी ने उनकी
बेटी कविता गोदियाल
द्वारा गायी गई
इस स्तुति के
भजन को 12 सालों
में कई
बार डब कर
बाजार में बेचा
है। धर्मपरायण लोगों का मानना है
कि ‘ यह
रचना आम मनुष्य
या कवि का
शब्द संयोजन नहीं
हो सकती है।
इसके भावों से
सिद्ध होता है
कि इसका रचनाकार
कोई सिद्ध पुरुष
रहा होगा।
नसरुद्दीन
के भाई फखरुद्दीन
सिद्दकी उस समय(वर्ष 1886-1950) नंदप्रयाग के प्रतिष्ठित
सामाजिक व्यक्ति और व्यापारी
थे। वह संयुक्त
प्रांत की एसेम्बली
के सदस्य भी
रहे थे। तब
सड़क मार्ग न
होने के कारण
नंदप्रयाग तब यात्रा
का महत्वपूर्ण पड़ाव
था। फकरुदीन के
पोते अयाजुद्दीन बताते
हैं कि, ‘उनके
दादा फखरुद्दीन की
भी बदरीनारायण पर
अगाध आस्था थी
। इस मुस्लिम संत ने अपने पुत्र का नाम बदरुद्दीन रखा था
आदिगुरू
शंकराचार्य ने हिमालयी
पीठ की स्थापना
भारत की अध्यात्मिक और सांस्कृतिक
एकता के लिये
ही की थी।
वास्तव में बद्रीनाथ
और केदारनाथ धाम
इस देश की
सांस्कृतिक एकता की
एक अद्भुत मिसाल
हैं। केदारनाथ के
रावल दक्षिण भारत
के ‘शुद्ध वीर
शैव लिंगायत’ सम्प्रदाय
के ‘जंगम’ होते
हैं। वे पूजा
नहीं करते बल्कि
गुरु गद्दी में
बैठते हैं। पंचकेदारों
में से एक
केदारनाथ और मद्महेश्वर
में उनके शिष्य
पूजा करते हैं।
मद्महेश्वर मेले के
बाद केदारनाथ के
रावल दक्षिण भारत
की ओर प्रस्थान
करते हैं। जंहा
वे वीर शैव-लिंगायतों के पंचाचार्यों
(पांच आचार्यों ) में
से एक हैं।
यह है आरती
पवन मंद सुगंध शीतल हेम मंदिर शोभितम |
निकट गंगा बहत निर्मल श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम |
शेष सुमिरन करत निशदिन धरत ध्यान महेश्वरम |
शक्ति गौरी गणेश शारद नारद मुनि उच्चारणम |
जोग ध्यान अपार लीला श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम |
इंद्र चंद्र कुबेर धुनि कर धूप दीप प्रकाशितम |
सिद्ध मुनिजन करत जै जै बद्रीनाथ विश्व्म्भरम |
यक्ष किन्नर करत कौतुक ज्ञान गंधर्व प्रकाशितम |
श्री लक्ष्मी कमला चंवरडोल श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम |
कैलाश में एक देव निंरजन शैल शिखर महेश्वरम |
राजयुधिष्ठिर करतस्तुति श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम |
श्री बद्री जी के पंच रत्न पढ्त पाप विनाशनम |
कोटि तीर्थ भवेत पुण्य प्राप्यते फलदायकम |
पवन मंद सुगंध शीतल हेम मंदिर शोभितम |
निकट गंगा बहत निर्मल श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम |
शेष सुमिरन करत निशदिन धरत ध्यान महेश्वरम |
शक्ति गौरी गणेश शारद नारद मुनि उच्चारणम |
जोग ध्यान अपार लीला श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम |
इंद्र चंद्र कुबेर धुनि कर धूप दीप प्रकाशितम |
सिद्ध मुनिजन करत जै जै बद्रीनाथ विश्व्म्भरम |
यक्ष किन्नर करत कौतुक ज्ञान गंधर्व प्रकाशितम |
श्री लक्ष्मी कमला चंवरडोल श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम |
कैलाश में एक देव निंरजन शैल शिखर महेश्वरम |
राजयुधिष्ठिर करतस्तुति श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम |
श्री बद्री जी के पंच रत्न पढ्त पाप विनाशनम |
कोटि तीर्थ भवेत पुण्य प्राप्यते फलदायकम |
No comments:
Post a Comment