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Saturday, December 8, 2018

शीतकाल में गैरसैण के नाम से ही ठण्ड लग रही है भाजपा को

Article of Jay Singh Rawat appeared in Navjivan  Sunday News paper (National Herald group) on December 9, 2018

Jay Singh Rawat Author and Journalist
गैरसैण का नाम लेते ही ठंड लगने लगी नेताओं को
-जयसिंह रावत
देहरादून। उत्तराखंड की राजधानी को लेकर सत्तारूढ़ भाजपा का दोहरा चरित्र मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अजय भट्ट के बीच छिड़े जुबानी जंग से खुलकर सामने गया है। भट्ट ने 2017 के विधानसभा चुनाव में गैरसैण को प्रदेश की स्थायी राजधानी बनाने की घोषणा की थी लेकिन अब वह वहां विधानसभा सत्र चलाने के पक्ष में भी नहीं है।
विधानसभा चुनाव प्रचार अभियान के दौरान भट्ट ने कर्णप्रयाग में घोषणा की थी कि भाजपा सत्ता में आई तो गैरसैण स्थायी राजधानी घोषित की जाएगी। इससे पहले भाजपा गैरसैण को लेकर कांग्रेस को घेरती रही। एक बार तो भाजपा के मदन कौशिक गैरसैण में हुए सत्र में गैरसैण को स्थायी राजधानी बनाने का प्रस्ताव तक ले आए थे। इस प्रस्ताव के आधार पर ही भट्ट यह कहते नहीं थकते थे कि भाजपा तो गैरसैण में राजधानी बनाना चाहती है मगर कांग्रेस नहीं चाहती। जबकि कांग्रेस ने ही वहां विधानसभा भवन बनवा कर विधानसभा सत्र शुरू किये थे। लेकिन चुनाव जीतते ही भाजपा के स्वर निरंतर बदलते रहे हैं। भाजपा ने पहले तो स्थायी राजधानी से नीचे उतरकर गैरसैण में ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की बात कही। लेकिन अब उन्हें गैरसैण का नाम लेते ही ठंड लगने लगती है। पिछले साल की तरह इस बार भी गैरसैण के भराड़ीसैण में शीतकालीन सत्र आहूत किए जाने पर सवाल उठे तो अजय भट्ट कह गए कि इस ठंड में पूरे इंतजाम के बिना वहां सत्र आयोजित करना उचित नहीं है। भाजपा अध्यक्ष के ताजा बयान से पहाड़ के लोग इसलिये हैरान हैं कि अगर ठंड के मौसम में विधायक और मंत्री पहाड़ों में हफ्ते भर भी नहीं रह सकते तो प्रदेश के 84.37 प्रतिशत पहाड़ी भूभाग के लोग शीत ऋतु में कैसे रहते होंगे? इसे शांत करने की मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कोशिश की तो भट्ट ने उन्हें यह कहकर चुप करा दिया कि पार्टी सरकार बनाती है, कि सरकार पार्टी को। जब सरकार नहीं रहेगी तो जबाब मुख्यमंत्री को नहीं, बल्कि पार्टी को देना होगा। नगर निकाय चुनाव में कोटद्वार में मेयर पद पर पार्टी प्रत्याशी को हरवाने की तोहमत झेल रहे कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत पार्टी में अपनी स्थिति सुधारने के लिये प्रदेश अध्यक्ष के समर्थन में कूद पड़े और कहने लगे कि गैरसैण में इस ठंड में विधानसभा सत्र बुलाने का कोई तुक नहीं है। रावत पहले लैंसडौन, पौड़ी और रुद्रप्रयाग जैसे पहाड़ी क्षेत्रों से चुनाव लड़ते थे लेकिन गत चुनाव में वे वह पहाड़ से उतर कर कोटद्वार गये और अब उनका नया राजनीतिक ठिकाना देहरादून जिले का सहसपुर क्षेत्र बन रहा है जहां उन्होंने पत्नी के नाम लगभग 50 बीघा जमीन ले रखी है।
उत्तराखंड एकमात्र ऐसा राज्य है जिसके पास स्थायी राजधानी नहीं है। फिलहाल देहरादून राजधानी तो है लेकिन इसे गैरसैण ले जाने की मांग राज्य गठन के दिन से ही की जा रही है। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने 9 नवंबर, 2000 को उत्तरांचल के नाम से नए राज्य का गठन तो करा दिया, मगर छत्तीसगढ़ और झारखंड की तरह इस नए राज्य को स्थायी राजधानी देने के बजाय कभी समाप्त होने वाला विवाद भी उत्तराखण्डवासियों को दे दिया। वैसे, इसके लिए वाजपेयी सरकार से ज्यादा यूपी में भाजपा की तत्कालीन रामप्रकाश गुप्ता सरकार और भाजपा के सांसद और विधायक जिम्मेदार थे। लोकसभा में 1 अगस्त और राज्यसभा में 10 अगस्त को उत्तर प्रदेश राज्य पुनर्गठन विधेयक, 2000 पारित हो जाने के बाद तत्कालीन केन्द्रीय गृह सचिव कमल पांडे ने 12 अगस्त को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्य सचिव योगेंद्र नारायण को पत्र लिखकर नए राज्य की राजधानी का चयन कर आवश्यक व्यवस्थाएं करने को लिखा था। तब के मुख्यमंत्री रामप्रकाश गुप्ता ने उत्तराखंड के सांसदों और विधायकों की 9 सितंबर, 2000 को लखनऊ में बैठक बुलाई। इसमें भाजपा के चार सांसदों और विधानसभा तथा विधान परिषद के 24 सदस्यों में से किसी ने भी गैरसैण की बात नहीं कही। तत्कालीन कैबिनेट मंत्री केदारसिंह फोनिया ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि उस बैठक में गैरसैण के बजाय भाजपा विधायकों एवं सांसदों ने अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में या अपने निकट ही राजधानी की मांग उठाई। राजधानी के लिये भाजपाइयों में खींचातानी के कारण बैठक में हरिद्वार, देहरादून और नैनीताल में से कहीं भी अंतरिम राजधानी बनाने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर छोड़ दी गई।



नेताओं की करनी और कथनी में अंतर
राज्य गठन के बाद जब भाजपा नीत पहली सरकार को स्थायी राजधानी के चयन की जिम्मेदारी मिली तो उसने दीक्षित आयोग का गठन किया। दीक्षित आयोग को भाजपा के चार सांसदों में से केवल एक- मानवेंद्र शाह ने अपना सुझाव दिया और वह भी ऋषिकेश के पक्ष में था। उस समय प्रतिपक्ष के नेता भगतसिंह कोश्यारी ने अपनी पहली प्राथमिकता रामनगर के पक्ष में दी थी। भाजपा विधायक हरभजनसिंह चीमा  हेमपुर में तथा भाजपा के ही नगरपालिका अध्यक्ष श्रीनगर कृष्णानन्द मैठाणी श्रीनगर गढ़वाल में, काशीपुर नगरपालिका अध्यक्ष श्रीमती ऊषा चौधरी काशीपुर में राजधानी बनाने की मांग की। नरेंद्रनगर के पालिका अध्यक्ष राजेन्द्र भंडारी ऋषिकेश में राजधानी चाहते थे। भाजपा के सांसद भुवन चन्द्र खंडूड़ी, बचीसिंह रावत, एवं हरपाल साथी ने इस महत्वपूर्ण मसले पर अपनी बहुमूल्य राय देने के बजाय चुप्पी साधने में ही भलाई समझी।



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