सेक्स स्कैण्डलों से कलंकित हुआ उत्तराखण्ड
-जयसिंह रावत
बेरोकटोक भ्रष्टाचार के कारण उत्तराखण्ड राज्य घोटाला प्रदेश के पर्याय से तो बदनाम हो ही रहा है लेकिन शासन-प्रशासन में बैठे कुछ दुराचारियों के आये दिन उछल रहे सेक्स स्कैण्डलों से यह देवभूमि कलंकित भी हो रही है। हैरानी का विषय तो यह है कि सेक्स स्कैण्डलों के मामलों में संस्कारी पार्टी भाजपा ने कांग्रेस को भी पीछे छोड़ दिया है। राजनेताओं और नौकरशाहों को हैसियत प्रदेश के विकास और जन कल्याण के लिये मिली हुयी है उसका प्रयोग कई लोग दौलत और औरत की हवश मिटाने के लिये कर रहे हैं। पहले तो भ्रष्ट लोग अपने सही या गलत काम निकालने के लिये रिश्वत के रूप में धन का प्रयोग करते थे लेकिन अब नारीदेह भी परोशी जाने लगी है। यही नहीं दुराचारी लोग नौकरी का झांसा देकर या नौकरी के बदले यौन शोषण में लगे हुये हैं।
कहना गलत न होगा कि उत्तराखण्ड की शुरुआत ही सेक्स स्कैण्डलों से हुयी और आज स्थिति यह है कि अगर किसी को किसी सरकारी विभाग से कोई काम निकलवाना हो या फिर राजनीतिक पद या टिकट लेना हो तो सुविधा शुल्क के तौर पर करेंसी नोटों या अन्य वस्तुओं की जगह नारी देह को भी परोसा जा सकता है। अगर किसी बड़ी पोजिशन वाले व्यक्ति से कोई बड़ा काम निकलवाना हो तो फिर सुविधा शुल्क की डोज बढाने के लिये दोनों विकल्पों का इस्तेमाल कर राज्य के संसाधनों और खुशहाली के अवसरों को हड़पा जा सकता है। देखा जाय तो उत्तराखण्ड में सेक्स सकैण्डलों की शुरुआत राज्य बनने के तत्काल बाद एक मंत्री के खासमखास कोच ने द्रोण होटल में एक खिलाड़ी के साथ दुराचार करने के साथ ही कर दी थी। चूंकि मामला मंत्री के करीबी का था इसलिये दब गया। उसके बाद तिवारी जी के शासन में राजनीति की रंगीन मिजाजी की छाप प्रख्यात लोक गायक नरेन्द्र सिंह नेगी के बहुचर्चित गीत ‘‘नौछमी नारैण’’ में देखने को मिल जाती है। तिवारी जी के ही शासनकाल में असम की एक अनब्याही लड़की के मां बन जाने से इतना बड़ा राजनीतिक तूफान उठा कि कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि उस बहुचर्चित सेक्स स्कैण्डल में सीबीआइ जांच में हरक सिंह रावत को क्लीन चिट तो मिल गयी मगर मुख्यमंत्री तिवारी ने उन्हें वापस कैबिनेट में नहीं लिया। उस समय भाजपा ने उस काण्ड के विरोध में सड़क से लेकर सदन तक काफी बवाल काटा था और विरोध करने वालों में भाजपा विधायक अजय भट्ट सबसे आगे थे। अजय भट्ट विधानसभा की उस जांच कमेटी में भी शामिल थे जिसे तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष यशपाल आर्य ने गठित किया था। बाद में जांच में हरक सिंह का डीयनए नवजात बच्चे से नहीं मिला। सीबीआइ से यह मामला निस्तारित होने पर भी काफी लम्बे अर्से तक नारी निकेतन में रहने के बाद राज्य सरकार के कर्मचारी असम की उस बिनव्याही मां को उसके घर तक छोड़ आये थे। यह बात दीगर है कि वह लड़की उसके बाद दिल्ली आ गयी और वहां से भी उत्तराखण्ड की राजनीति में भूचाल लाती रही। उस समय श्रीमती उज्वला के पुत्र रोहित शेखर के पितृत्व का मामला सुगबुगाहट करने लगा था और मीडिया में बात आने लगी थी कि तिवारी जी के खिलाफ कभी भी मामला दर्ज हो सकता है। जानकार मानते हैं कि अगर नारायण दत्त तिवारी उसी समय रोहित को अपना पुत्र मान लेते तो न तो मामला सुप्रीम कोर्ट तक जाता और ना ही उनकी इतनी फजीहत होती और एक सन्तान को उसका असली पिता मिल जाता। उनको समय से अपना पुत्र एवं देखभाल करने वाली पत्नी मिल जाती तो उनकी सेहत भी कहीं बेहतर होती और देश को उनकी सेवाओं का लाभ मिलता।
तिवारी जी के बाद भुवन चन्द्र खण्डूड़ी की सरकार आयी तो खण्डूड़ी की कड़क मिजाजी का असर भ्रष्टाचारियों पर तो थोड़ा बहुत अवश्य हुआ मगर रंगीन मिजाजों के कारनामें अनवरत जारी रहे। सहकारी बैंक के पूर्व चेयरमैन रह चुके भाजपा नेता प्रमोद गुप्ता एवं एक अन्य एनजीओ संचालक अशोक कुमार सहित तीन अन्य को बारहवीं कक्षा की छात्रा से गैग रेप करने के आरोप में सजा हो चुकी है। एनजीओ संचालक अशोक कुमार भी भाजपा से ही संबंधित था। प्रमोद कुमार गुप्ता को स्थानीय अदालत ने गैंगरेप में आरोप साबित होने के बाद आजीवन कारावास की सजा सुनाई। जबकि दूसरे दोषी अशोक को 10 साल की सजा हुयी। इस बहुचर्चित प्रकरण में कुछ अन्य बड़े नेताओं और नौकरशाहों के नाम भी उछले मगर पुलिस उन पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं कर सकी। इस मामले में इंटर की एक छात्रा ने नौकरी का झांसा देकर गैंग रेप का आरोप लगाया था। पुलिस के अनुसार 19 अप्रैल वर्ष 2008 को प्रमोद सहारनपुर चैक से युवती को अपनी कार में बैठाकर राजपुर रोड स्थित रिजॉर्ट में ले गया। उसने युवती को बताया कि वह सचिवालय का अधिकारी है और इस रिजॉर्ट में उसका नौकरी के लिए इंटरव्यू होना है। रिजॉर्ट में गैंग रेप प्रकरण में पुलिस ने कांड के सूत्रधार भाजपा एनजीओ प्रकोष्ठ के महामंत्री अशोक कुमार, रिसॉर्ट प्रबंधक प्रवीन कुमार और तीन अन्य अज्ञात के खिलाफ मामला दर्ज किया था। अदालत ने भाजपा नेता प्रमोद कुमार गुप्ता को 376 (2) (ह) (गैंग रेप) 366 (अपहरण) व धारा 3 (2) पंचम एससी, एसटी एक्ट का दोषी माना था। जबकि उसे अदालत ने 323 और 504 के आरोप से दोषमुक्त कर दिया। जबकि भाजपा एनजीओ प्रकोष्ठ के पूर्व महामंत्री अशोक कुमार को अदालत ने धारा 366 (अपहरण), 354 (लज्जा भंग) व धारा 120 बी (षड़यंत्र) का दोषी माना। अदालत ने उसे 377 के अपराध से दोषमुक्त कर दिया। प्रवीन कुमार को अदालत ने धारा 328, 120 बी व अन्य आरोपों से मुक्त कर दिया था।
वर्ष 2009 में हैदराबाद राजभवन के सेक्स स्कैंडल के कारण स्वयं नारायण दत्त तिवारी को पद से इस्तीफा देना पड़ा था। वर्ष 2009 में अल्मोड़ा जिले की एक लड़की गीता खोलिया ने पीलीभीत में आत्महत्या की और उस लड़की की मां ने अपनी बेटी की मौत के लिये खण्डूड़ी सरकार में अल्मोड़ा जिले के एक मंत्री को जिम्मेदार बताया था। इसी तरह अप्रैल 2007 में दिल्ली में नीलम शर्मा नाम की एक तलाकशुदा महिला द्वारा आत्महत्या किये जाने पर भी उत्तराखण्ड की राजनीति काफी गरमा्ररमह रही। उस समय राज्य में कांग्रेस विपक्ष में थी और उसके नेताओं का आरोप था कि नीलम ने आत्महत्या नहीं की बल्कि उसकी हत्या की गयी थी ताकि वह उन सफेदपोशों का नाम न ले सके जिन्होंने उसका शोषण किया था। नीलम के शव को उसके परिजन दिल्ली के एक अस्पताल से हरिद्वार लाये थे जहां उसका दाह संस्कार कर दिया गया। नीलम की मौत की सीबीआइ जांच की मांग को लेकर हरिद्वार में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन भी किये थे। कांग्रेस की ओर से इस मामले को लेकर 29 अप्रैल को हरिद्वार में प्रदर्शन करने के साथ ही राज्य के कैबिनेट मंत्री का पुतला भी फूंका गया था। कांग्रेस नेता राजेश रस्तोगी ने हरिद्वार में विरोध प्रदर्शन की अगुवायी की थी। उस दौरान राज्य महिला आयोग की पूर्व अध्यक्षा डा0 सन्तोष चैहान ने कहा था कि इस मामले में हरिद्वार के एक कैबिनेट मंत्री का नाम आ रहा है, इसलिये इस मामले की सीबीआइ जांच जरूरी है। इस मामले को लेकर समाजवादी पार्टी ने अम्बरीश कुमार के नेतृत्व में 30 अप्रैल को सुभाष घाट पर धरना दे कर खण्डूड़ी सरकार के उस कैबिनेट मंत्री से इस्तीफे की मांग की थी। जबकि राज्य सरकार में मंत्री मदन कौशिक ने आरोपों को बकवास बताया था।
खण्डूड़ी के बाद रमेश पोखरियाल निशंक सरकार के दौरान भी कुछ महिलाओं की दिन दूनी रात चैगुनी तरक्की भी लोगों को हजम नहीं हो पायी। एक युवती ने 11 अगस्त 2010 को नैनीताल हाइकोर्ट में याचिका दायर कर स्वयं निशंक पर यौन शोषण का आरोप लगाते हुये कोर्ट से सुरक्षा की मांग की थी। यह आरोप उस महिला ने लगाया था जो कि हत्या के आरोप में जेल में थी और उस समय जमानत पर थी। याचिका में आरोप लगाया गया था कि 1999 में जब निशंक तत्कालीन यूपी सरकार में संस्कृति और धर्मस्व मंत्री थे उस समय उस युवती पर निशंक को ‘ऑबलाइज’ करने के लिए लगातार दबाव डाला गया था। बाद में मामला अदालत से खारिज हो गया था।
भाजपा के बाद विजय बहुगुणा के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार बनीं तो उनके कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत एक बार पुनः चर्चाओं में आ गये। उन पर वर्ष 2014 में मेरठ की एक युवती ने यौन शोषण की एफआइआर दिल्ली में दर्ज कराई थी लेकिन बाद में पुलिस ने युवती को जब बयान के लिये बुलाया तो वह हाजिर नहीं हुयी। इस तरह वह मामला वहीं समाप्त हो गया। लेकिन इस तरह के विवाद उनका पीछ कहां छोड़ने वाले थे। दिल्ली के सफदरजंग थाने में हरक सिंह रावत के खिलाफ 29 जुलाइ 2016 को दुष्कर्म का एक और मामला दर्ज हुआ। मजेदार बात यह रही कि असम की जिस युवती ने 2003 में हरक सिंह रावत पर नौकरी का झांसा दे कर दुष्कर्म का आरोप लगाया था इस बार भी उसी ने हरक सिंह के खिलाफ मामला दर्ज किया था। महिला का आरोप था कि उनके साथ 2013 में हरक सिंह रावत के ग्रीन पार्क दिल्ली स्थित आवास पर दुष्कर्म किया गया था। लेकिन यह महिला कुछ ही दिन बाद अपने आरोप से मुकर गयी और उसने रावत को सच्चरित्र और आदर्श नेता बता दिया। यही नहीं उसने तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के निजी सचिव कमल सिंह रावत पर आरोप लगा दिया कि उसी के बहकावे में आ कर उसने हरक सिंह पर ऐसा गंभीर आरोप लगाया था। हालांकि बाद में कमल सिंह रावत ने भी उस महिला के खिलाफ झूठा आरोप लगा कर बदनाम करने की एफआइआर दर्ज करा दी थी। यह मामला उस दौरान का है जबकि हरक सिंह सहित 9 विधायकों ने कांग्रेस से विद्रोह कर हरीश रावत सरकार को संकट में डाल दिया था।
नवम्बर 2018 में भारतीय जनता पार्टी के संगठन महामंत्री संजय कुमार पर संगठन की ही एक युवती द्वारा यौन उत्पीड़न के आरोप लगाये जाने से अनुमान लगाया जा सकता है कि उत्तराखण्ड की राजनीति अवसरवाद, सिद्धान्तहीनता, भाई भतीजा वाद, जातिवाद और सम्प्रदायवाद से भी नीचे गिर गयी है। भाजपा का संगठन महामंत्री अन्य दलों की तरह कोई साधारण पदाधिकारी नहीं होता है। यह दरअसल आरएसएस का प्रतिनिधि होता है जिसे सीधे आरएसएस द्वारा नियुक्त किया जाता है। उसे प्रदेश अध्यक्ष न तो हटा सकता है और ना ही उसे कोई आदेश दे सकता है। वह एक तरह से आरएसएस के प्रतिनिधि के तौर पर संगठन की गतिविधियों पर नजर रखता है और संघ उसी के माध्यम से संगठन को दिशा निर्देश भी देता है। उसकी हैसियत मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष से कम नहीं होती है। जाहिर है कि टिकट वितरण और पदों के वितरण में तो उसकी प्रमुख भूमिका होती ही है लेकिन अगर सरकार बन जाय तो उसकी निगाह सरकार के कामकाज पर भी होती है। इसलिये वह सरकार से जो चाहे सो काम सरकार से करा सकता है। जिस व्यक्ति के इशारे पर संगठन और सरकार में काम हो जाते हों और जिसे नारी देह की ऐसी लत हो तो फिर समझा जा सकता है कि इस देवभूमि सत्ता में बैठे लोगों का कितना नैतिक पतन हो चुका है।
उत्तराखंड से गहरा ताल्लुक रखने वाले भाजपा के राष्ट्रीय सह महामंत्री (संगठन) शिवप्रकाश के खिलाफ पश्चिम बंगाल के कोलकाता में कोलकाता के बहेला थाने में एक महिला ने एफआईआर दर्ज कराई है। महिला का आरोप था कि उसे एक होटल में बुलाया गया और वहां मौजूद शिवप्रकाश और सुब्रत चटर्जी ने उसके साथ बलात्कार की कोशिश की। इसी बीच वहां पहुंचे एक अन्य नेता अमलेंदु उपाध्याय ने उसे बचाया। लेकिन बाद में उसके साथ कई बार बलात्कार किया गया और गर्भपात भी कराया गया। इस मामले में कोलकाता पुलिस अमलेंदु को गिरफ्तार भी कर चुकी है। शिवप्रकाश उत्तराखंड में प्रांत प्रचारक भी रह चुके हैं। भाजपा ने इस एफआईआर को टीएमसी (तृणमूल कांग्रेस) सरकार की काली करतूत बताया है।
सेक्स सकैंडलों के मामले में उत्तराखण्ड का सचिवालय भी पीछे नहीं रहा। जब लोकतांत्रिक शासक ही रंगरलियों में डूबे हों और अपनी पोजिशन के बल पर सुरा सुन्दरी का उपभोग करते हों तो उनके मातहत जन सेवकों से आप आदर्श आचरण की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं? राज्य का शासन सचिवालय से चलता है। यूं कहें सचिावालय राज्य के शासन-प्रशासन की धुरी और सरकार का दिमाग होता है। इसलिये जब नेता भी उस ताकत का दुरुपयोग करते हों तो फिर सचिवालय में बैठे रसिया मिजाज अधिकारी भी भला अपनी कुर्सी की ताकत का क्यों न प्रयोग करें। आम धारणा है कि राज्य सचिवालय में कुछ भ्रष्ट अफसर बड़े कामों के लिये बड़ी रकम तो लेते ही हैं साथ ही उनकी फरमाइश लड़कियों की भी होती है। कुछ लड़कियों से वे सीधे सम्पर्क कर नौकरी या किसी अन्य काम के बदले जिश्म की अपेक्षा भी करते हैं। यही नहीं कुछ कामुक अफसर अपनी महिला सहकर्मियों का उत्पीड़न करने तक से नहीं चूकते। वर्ष 2013 में सचिवालय के दो सेक्स स्कैण्डलों ने सत्ता के गलियारों में तहलका मचा दिया था। अगस्त 2013 में जब सारा प्रदेश आपदाग्रस्त था हजारों लोग केदारनाथ आपदा में मारे गये थे और हजारों अन्य बेघर हो गये थे। इस विनाशलीला से लोगों के बचाव एवं राहत के लिये सचिवालय में देर रात तक काम चल रहा था तो एक अधिकारी ने रात और एकान्त का दुरुपयोग करते हुये अपनी मातहत कर्मचारी के साथ दुराचार का प्रयास किया। उस दुराचारी के चंगुल से बची कर्मचारी ने इसकी शिकायत मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा और मुख्य सचिव सुभाष कुमार से भी की मगर दोषी अधिकारी का बाल बांका तक नहीं हुआ। इसके बाद नवम्बर में दिल्ली में राज्य के अपर सचिव जे. पी. जोशी के खिलाफ दुराचार की एफ.आइ.आर. दर्ज हुयी जो कि बाद में देहरादून ट्रांसफर हुयी। चूंकि मामला काफी प्रचारित हो गया था इसलिये पुलिस को जे. पी. जोशी को 3 दिसम्बर 2013 को गिरफ्तार करना ही पड़ा। इस काण्ड में जोशी पूरे एक साल बाद फरबरी 2015 में जमानत पर रिहा हुये।
वर्ष 2017 नवंबर के नवम्बर माह में देहरादून के नारी निकेतन में एक मूक- बधिर संवासिनी के साथ दुष्कर्म और उसका गर्भपात के मामले ने सारी मानवता को ही शर्मसार कर दिया था। इस मामले में एक सफाई कर्मचारी गुरुदास का डीएनए संवासिनी के भू्रण से मैच कर गया था। लेकिन तत्कालीन विपक्षी दल भाजपा ने इस मामले में कुछ बड़े लोगों के संलिप्त होने का भी आरोप लगाया था। भाजपा का आरोप था कि इन मजबूर संवासिनियों को हवश के भूखे भेड़ियों के सामने परोशा जाता है। इस मामले में 25 नवम्बर को एसआईटी का गठन हुआ था और 29 नवंबर को पीड़िता ने मजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज कराए गये थे। उसके बाद 30 नवम्बर को केयर टेकर हासिम और होम गार्ड ललित की गिरफ्तारी की गई तथा 4 दिसम्बर को साक्ष्य छिपाने के आरोप में 3 महिलाओं सहित 4 की गिरफ्तारी हुई। इस मामले में 13 दिसम्बर को अधीक्षक मीनाक्षी पोखरियाल और शिक्षक की गिरफ्तारी हुई। 6 जनवरी को डीएनए रिपोर्ट आने के बाद सफाई कर्मचारी गुरदास की गिरफ्तारी हुयी। इस तरह इस शर्मनाक काण्ड में कुल 9 आरोपियों की गिरफ्तारी करके जेल भेजा गया।
बेरोकटोक भ्रष्टाचार के कारण उत्तराखण्ड राज्य घोटाला प्रदेश के पर्याय से तो बदनाम हो ही रहा है लेकिन शासन-प्रशासन में बैठे कुछ दुराचारियों के आये दिन उछल रहे सेक्स स्कैण्डलों से यह देवभूमि कलंकित भी हो रही है। हैरानी का विषय तो यह है कि सेक्स स्कैण्डलों के मामलों में संस्कारी पार्टी भाजपा ने कांग्रेस को भी पीछे छोड़ दिया है। राजनेताओं और नौकरशाहों को हैसियत प्रदेश के विकास और जन कल्याण के लिये मिली हुयी है उसका प्रयोग कई लोग दौलत और औरत की हवश मिटाने के लिये कर रहे हैं। पहले तो भ्रष्ट लोग अपने सही या गलत काम निकालने के लिये रिश्वत के रूप में धन का प्रयोग करते थे लेकिन अब नारीदेह भी परोशी जाने लगी है। यही नहीं दुराचारी लोग नौकरी का झांसा देकर या नौकरी के बदले यौन शोषण में लगे हुये हैं।
कहना गलत न होगा कि उत्तराखण्ड की शुरुआत ही सेक्स स्कैण्डलों से हुयी और आज स्थिति यह है कि अगर किसी को किसी सरकारी विभाग से कोई काम निकलवाना हो या फिर राजनीतिक पद या टिकट लेना हो तो सुविधा शुल्क के तौर पर करेंसी नोटों या अन्य वस्तुओं की जगह नारी देह को भी परोसा जा सकता है। अगर किसी बड़ी पोजिशन वाले व्यक्ति से कोई बड़ा काम निकलवाना हो तो फिर सुविधा शुल्क की डोज बढाने के लिये दोनों विकल्पों का इस्तेमाल कर राज्य के संसाधनों और खुशहाली के अवसरों को हड़पा जा सकता है। देखा जाय तो उत्तराखण्ड में सेक्स सकैण्डलों की शुरुआत राज्य बनने के तत्काल बाद एक मंत्री के खासमखास कोच ने द्रोण होटल में एक खिलाड़ी के साथ दुराचार करने के साथ ही कर दी थी। चूंकि मामला मंत्री के करीबी का था इसलिये दब गया। उसके बाद तिवारी जी के शासन में राजनीति की रंगीन मिजाजी की छाप प्रख्यात लोक गायक नरेन्द्र सिंह नेगी के बहुचर्चित गीत ‘‘नौछमी नारैण’’ में देखने को मिल जाती है। तिवारी जी के ही शासनकाल में असम की एक अनब्याही लड़की के मां बन जाने से इतना बड़ा राजनीतिक तूफान उठा कि कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि उस बहुचर्चित सेक्स स्कैण्डल में सीबीआइ जांच में हरक सिंह रावत को क्लीन चिट तो मिल गयी मगर मुख्यमंत्री तिवारी ने उन्हें वापस कैबिनेट में नहीं लिया। उस समय भाजपा ने उस काण्ड के विरोध में सड़क से लेकर सदन तक काफी बवाल काटा था और विरोध करने वालों में भाजपा विधायक अजय भट्ट सबसे आगे थे। अजय भट्ट विधानसभा की उस जांच कमेटी में भी शामिल थे जिसे तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष यशपाल आर्य ने गठित किया था। बाद में जांच में हरक सिंह का डीयनए नवजात बच्चे से नहीं मिला। सीबीआइ से यह मामला निस्तारित होने पर भी काफी लम्बे अर्से तक नारी निकेतन में रहने के बाद राज्य सरकार के कर्मचारी असम की उस बिनव्याही मां को उसके घर तक छोड़ आये थे। यह बात दीगर है कि वह लड़की उसके बाद दिल्ली आ गयी और वहां से भी उत्तराखण्ड की राजनीति में भूचाल लाती रही। उस समय श्रीमती उज्वला के पुत्र रोहित शेखर के पितृत्व का मामला सुगबुगाहट करने लगा था और मीडिया में बात आने लगी थी कि तिवारी जी के खिलाफ कभी भी मामला दर्ज हो सकता है। जानकार मानते हैं कि अगर नारायण दत्त तिवारी उसी समय रोहित को अपना पुत्र मान लेते तो न तो मामला सुप्रीम कोर्ट तक जाता और ना ही उनकी इतनी फजीहत होती और एक सन्तान को उसका असली पिता मिल जाता। उनको समय से अपना पुत्र एवं देखभाल करने वाली पत्नी मिल जाती तो उनकी सेहत भी कहीं बेहतर होती और देश को उनकी सेवाओं का लाभ मिलता।
तिवारी जी के बाद भुवन चन्द्र खण्डूड़ी की सरकार आयी तो खण्डूड़ी की कड़क मिजाजी का असर भ्रष्टाचारियों पर तो थोड़ा बहुत अवश्य हुआ मगर रंगीन मिजाजों के कारनामें अनवरत जारी रहे। सहकारी बैंक के पूर्व चेयरमैन रह चुके भाजपा नेता प्रमोद गुप्ता एवं एक अन्य एनजीओ संचालक अशोक कुमार सहित तीन अन्य को बारहवीं कक्षा की छात्रा से गैग रेप करने के आरोप में सजा हो चुकी है। एनजीओ संचालक अशोक कुमार भी भाजपा से ही संबंधित था। प्रमोद कुमार गुप्ता को स्थानीय अदालत ने गैंगरेप में आरोप साबित होने के बाद आजीवन कारावास की सजा सुनाई। जबकि दूसरे दोषी अशोक को 10 साल की सजा हुयी। इस बहुचर्चित प्रकरण में कुछ अन्य बड़े नेताओं और नौकरशाहों के नाम भी उछले मगर पुलिस उन पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं कर सकी। इस मामले में इंटर की एक छात्रा ने नौकरी का झांसा देकर गैंग रेप का आरोप लगाया था। पुलिस के अनुसार 19 अप्रैल वर्ष 2008 को प्रमोद सहारनपुर चैक से युवती को अपनी कार में बैठाकर राजपुर रोड स्थित रिजॉर्ट में ले गया। उसने युवती को बताया कि वह सचिवालय का अधिकारी है और इस रिजॉर्ट में उसका नौकरी के लिए इंटरव्यू होना है। रिजॉर्ट में गैंग रेप प्रकरण में पुलिस ने कांड के सूत्रधार भाजपा एनजीओ प्रकोष्ठ के महामंत्री अशोक कुमार, रिसॉर्ट प्रबंधक प्रवीन कुमार और तीन अन्य अज्ञात के खिलाफ मामला दर्ज किया था। अदालत ने भाजपा नेता प्रमोद कुमार गुप्ता को 376 (2) (ह) (गैंग रेप) 366 (अपहरण) व धारा 3 (2) पंचम एससी, एसटी एक्ट का दोषी माना था। जबकि उसे अदालत ने 323 और 504 के आरोप से दोषमुक्त कर दिया। जबकि भाजपा एनजीओ प्रकोष्ठ के पूर्व महामंत्री अशोक कुमार को अदालत ने धारा 366 (अपहरण), 354 (लज्जा भंग) व धारा 120 बी (षड़यंत्र) का दोषी माना। अदालत ने उसे 377 के अपराध से दोषमुक्त कर दिया। प्रवीन कुमार को अदालत ने धारा 328, 120 बी व अन्य आरोपों से मुक्त कर दिया था।
वर्ष 2009 में हैदराबाद राजभवन के सेक्स स्कैंडल के कारण स्वयं नारायण दत्त तिवारी को पद से इस्तीफा देना पड़ा था। वर्ष 2009 में अल्मोड़ा जिले की एक लड़की गीता खोलिया ने पीलीभीत में आत्महत्या की और उस लड़की की मां ने अपनी बेटी की मौत के लिये खण्डूड़ी सरकार में अल्मोड़ा जिले के एक मंत्री को जिम्मेदार बताया था। इसी तरह अप्रैल 2007 में दिल्ली में नीलम शर्मा नाम की एक तलाकशुदा महिला द्वारा आत्महत्या किये जाने पर भी उत्तराखण्ड की राजनीति काफी गरमा्ररमह रही। उस समय राज्य में कांग्रेस विपक्ष में थी और उसके नेताओं का आरोप था कि नीलम ने आत्महत्या नहीं की बल्कि उसकी हत्या की गयी थी ताकि वह उन सफेदपोशों का नाम न ले सके जिन्होंने उसका शोषण किया था। नीलम के शव को उसके परिजन दिल्ली के एक अस्पताल से हरिद्वार लाये थे जहां उसका दाह संस्कार कर दिया गया। नीलम की मौत की सीबीआइ जांच की मांग को लेकर हरिद्वार में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन भी किये थे। कांग्रेस की ओर से इस मामले को लेकर 29 अप्रैल को हरिद्वार में प्रदर्शन करने के साथ ही राज्य के कैबिनेट मंत्री का पुतला भी फूंका गया था। कांग्रेस नेता राजेश रस्तोगी ने हरिद्वार में विरोध प्रदर्शन की अगुवायी की थी। उस दौरान राज्य महिला आयोग की पूर्व अध्यक्षा डा0 सन्तोष चैहान ने कहा था कि इस मामले में हरिद्वार के एक कैबिनेट मंत्री का नाम आ रहा है, इसलिये इस मामले की सीबीआइ जांच जरूरी है। इस मामले को लेकर समाजवादी पार्टी ने अम्बरीश कुमार के नेतृत्व में 30 अप्रैल को सुभाष घाट पर धरना दे कर खण्डूड़ी सरकार के उस कैबिनेट मंत्री से इस्तीफे की मांग की थी। जबकि राज्य सरकार में मंत्री मदन कौशिक ने आरोपों को बकवास बताया था।
खण्डूड़ी के बाद रमेश पोखरियाल निशंक सरकार के दौरान भी कुछ महिलाओं की दिन दूनी रात चैगुनी तरक्की भी लोगों को हजम नहीं हो पायी। एक युवती ने 11 अगस्त 2010 को नैनीताल हाइकोर्ट में याचिका दायर कर स्वयं निशंक पर यौन शोषण का आरोप लगाते हुये कोर्ट से सुरक्षा की मांग की थी। यह आरोप उस महिला ने लगाया था जो कि हत्या के आरोप में जेल में थी और उस समय जमानत पर थी। याचिका में आरोप लगाया गया था कि 1999 में जब निशंक तत्कालीन यूपी सरकार में संस्कृति और धर्मस्व मंत्री थे उस समय उस युवती पर निशंक को ‘ऑबलाइज’ करने के लिए लगातार दबाव डाला गया था। बाद में मामला अदालत से खारिज हो गया था।
भाजपा के बाद विजय बहुगुणा के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार बनीं तो उनके कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत एक बार पुनः चर्चाओं में आ गये। उन पर वर्ष 2014 में मेरठ की एक युवती ने यौन शोषण की एफआइआर दिल्ली में दर्ज कराई थी लेकिन बाद में पुलिस ने युवती को जब बयान के लिये बुलाया तो वह हाजिर नहीं हुयी। इस तरह वह मामला वहीं समाप्त हो गया। लेकिन इस तरह के विवाद उनका पीछ कहां छोड़ने वाले थे। दिल्ली के सफदरजंग थाने में हरक सिंह रावत के खिलाफ 29 जुलाइ 2016 को दुष्कर्म का एक और मामला दर्ज हुआ। मजेदार बात यह रही कि असम की जिस युवती ने 2003 में हरक सिंह रावत पर नौकरी का झांसा दे कर दुष्कर्म का आरोप लगाया था इस बार भी उसी ने हरक सिंह के खिलाफ मामला दर्ज किया था। महिला का आरोप था कि उनके साथ 2013 में हरक सिंह रावत के ग्रीन पार्क दिल्ली स्थित आवास पर दुष्कर्म किया गया था। लेकिन यह महिला कुछ ही दिन बाद अपने आरोप से मुकर गयी और उसने रावत को सच्चरित्र और आदर्श नेता बता दिया। यही नहीं उसने तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के निजी सचिव कमल सिंह रावत पर आरोप लगा दिया कि उसी के बहकावे में आ कर उसने हरक सिंह पर ऐसा गंभीर आरोप लगाया था। हालांकि बाद में कमल सिंह रावत ने भी उस महिला के खिलाफ झूठा आरोप लगा कर बदनाम करने की एफआइआर दर्ज करा दी थी। यह मामला उस दौरान का है जबकि हरक सिंह सहित 9 विधायकों ने कांग्रेस से विद्रोह कर हरीश रावत सरकार को संकट में डाल दिया था।
नवम्बर 2018 में भारतीय जनता पार्टी के संगठन महामंत्री संजय कुमार पर संगठन की ही एक युवती द्वारा यौन उत्पीड़न के आरोप लगाये जाने से अनुमान लगाया जा सकता है कि उत्तराखण्ड की राजनीति अवसरवाद, सिद्धान्तहीनता, भाई भतीजा वाद, जातिवाद और सम्प्रदायवाद से भी नीचे गिर गयी है। भाजपा का संगठन महामंत्री अन्य दलों की तरह कोई साधारण पदाधिकारी नहीं होता है। यह दरअसल आरएसएस का प्रतिनिधि होता है जिसे सीधे आरएसएस द्वारा नियुक्त किया जाता है। उसे प्रदेश अध्यक्ष न तो हटा सकता है और ना ही उसे कोई आदेश दे सकता है। वह एक तरह से आरएसएस के प्रतिनिधि के तौर पर संगठन की गतिविधियों पर नजर रखता है और संघ उसी के माध्यम से संगठन को दिशा निर्देश भी देता है। उसकी हैसियत मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष से कम नहीं होती है। जाहिर है कि टिकट वितरण और पदों के वितरण में तो उसकी प्रमुख भूमिका होती ही है लेकिन अगर सरकार बन जाय तो उसकी निगाह सरकार के कामकाज पर भी होती है। इसलिये वह सरकार से जो चाहे सो काम सरकार से करा सकता है। जिस व्यक्ति के इशारे पर संगठन और सरकार में काम हो जाते हों और जिसे नारी देह की ऐसी लत हो तो फिर समझा जा सकता है कि इस देवभूमि सत्ता में बैठे लोगों का कितना नैतिक पतन हो चुका है।
उत्तराखंड से गहरा ताल्लुक रखने वाले भाजपा के राष्ट्रीय सह महामंत्री (संगठन) शिवप्रकाश के खिलाफ पश्चिम बंगाल के कोलकाता में कोलकाता के बहेला थाने में एक महिला ने एफआईआर दर्ज कराई है। महिला का आरोप था कि उसे एक होटल में बुलाया गया और वहां मौजूद शिवप्रकाश और सुब्रत चटर्जी ने उसके साथ बलात्कार की कोशिश की। इसी बीच वहां पहुंचे एक अन्य नेता अमलेंदु उपाध्याय ने उसे बचाया। लेकिन बाद में उसके साथ कई बार बलात्कार किया गया और गर्भपात भी कराया गया। इस मामले में कोलकाता पुलिस अमलेंदु को गिरफ्तार भी कर चुकी है। शिवप्रकाश उत्तराखंड में प्रांत प्रचारक भी रह चुके हैं। भाजपा ने इस एफआईआर को टीएमसी (तृणमूल कांग्रेस) सरकार की काली करतूत बताया है।
सेक्स सकैंडलों के मामले में उत्तराखण्ड का सचिवालय भी पीछे नहीं रहा। जब लोकतांत्रिक शासक ही रंगरलियों में डूबे हों और अपनी पोजिशन के बल पर सुरा सुन्दरी का उपभोग करते हों तो उनके मातहत जन सेवकों से आप आदर्श आचरण की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं? राज्य का शासन सचिवालय से चलता है। यूं कहें सचिावालय राज्य के शासन-प्रशासन की धुरी और सरकार का दिमाग होता है। इसलिये जब नेता भी उस ताकत का दुरुपयोग करते हों तो फिर सचिवालय में बैठे रसिया मिजाज अधिकारी भी भला अपनी कुर्सी की ताकत का क्यों न प्रयोग करें। आम धारणा है कि राज्य सचिवालय में कुछ भ्रष्ट अफसर बड़े कामों के लिये बड़ी रकम तो लेते ही हैं साथ ही उनकी फरमाइश लड़कियों की भी होती है। कुछ लड़कियों से वे सीधे सम्पर्क कर नौकरी या किसी अन्य काम के बदले जिश्म की अपेक्षा भी करते हैं। यही नहीं कुछ कामुक अफसर अपनी महिला सहकर्मियों का उत्पीड़न करने तक से नहीं चूकते। वर्ष 2013 में सचिवालय के दो सेक्स स्कैण्डलों ने सत्ता के गलियारों में तहलका मचा दिया था। अगस्त 2013 में जब सारा प्रदेश आपदाग्रस्त था हजारों लोग केदारनाथ आपदा में मारे गये थे और हजारों अन्य बेघर हो गये थे। इस विनाशलीला से लोगों के बचाव एवं राहत के लिये सचिवालय में देर रात तक काम चल रहा था तो एक अधिकारी ने रात और एकान्त का दुरुपयोग करते हुये अपनी मातहत कर्मचारी के साथ दुराचार का प्रयास किया। उस दुराचारी के चंगुल से बची कर्मचारी ने इसकी शिकायत मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा और मुख्य सचिव सुभाष कुमार से भी की मगर दोषी अधिकारी का बाल बांका तक नहीं हुआ। इसके बाद नवम्बर में दिल्ली में राज्य के अपर सचिव जे. पी. जोशी के खिलाफ दुराचार की एफ.आइ.आर. दर्ज हुयी जो कि बाद में देहरादून ट्रांसफर हुयी। चूंकि मामला काफी प्रचारित हो गया था इसलिये पुलिस को जे. पी. जोशी को 3 दिसम्बर 2013 को गिरफ्तार करना ही पड़ा। इस काण्ड में जोशी पूरे एक साल बाद फरबरी 2015 में जमानत पर रिहा हुये।
वर्ष 2017 नवंबर के नवम्बर माह में देहरादून के नारी निकेतन में एक मूक- बधिर संवासिनी के साथ दुष्कर्म और उसका गर्भपात के मामले ने सारी मानवता को ही शर्मसार कर दिया था। इस मामले में एक सफाई कर्मचारी गुरुदास का डीएनए संवासिनी के भू्रण से मैच कर गया था। लेकिन तत्कालीन विपक्षी दल भाजपा ने इस मामले में कुछ बड़े लोगों के संलिप्त होने का भी आरोप लगाया था। भाजपा का आरोप था कि इन मजबूर संवासिनियों को हवश के भूखे भेड़ियों के सामने परोशा जाता है। इस मामले में 25 नवम्बर को एसआईटी का गठन हुआ था और 29 नवंबर को पीड़िता ने मजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज कराए गये थे। उसके बाद 30 नवम्बर को केयर टेकर हासिम और होम गार्ड ललित की गिरफ्तारी की गई तथा 4 दिसम्बर को साक्ष्य छिपाने के आरोप में 3 महिलाओं सहित 4 की गिरफ्तारी हुई। इस मामले में 13 दिसम्बर को अधीक्षक मीनाक्षी पोखरियाल और शिक्षक की गिरफ्तारी हुई। 6 जनवरी को डीएनए रिपोर्ट आने के बाद सफाई कर्मचारी गुरदास की गिरफ्तारी हुयी। इस तरह इस शर्मनाक काण्ड में कुल 9 आरोपियों की गिरफ्तारी करके जेल भेजा गया।
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