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Saturday, January 28, 2012

KOTDWAR IS GOING TO CREATE HISTORY

इतिहास रचने वाला है चक्रवर्ती भरत का कोटद्वार

जयसिंह रावत, देहरादून।

भारतवर्ष को अपना नाम देने वाले दुष्यंत और शकुन्तला के पुत्र तथा कुरूवंश के आदि पुरूष चक्रवर्ती महाराजा भरत की क्रीडा और शिक्षा स्थली कण्वाश्रम की कोटद्वार सीट इस विधनसभा चुनाव में एक बार फिर इतिहास रचने जा रही है। इस सीट पर अगर मुख्यमंत्री भुवन चन्द्र खंडूड़ी चुनाव जीतते है तो वह 45 सालों के बाद इस क्षेत्र से चुनाव जीतने वाले पहले ब्राह्मण प्रत्याशी होंगे और अगर चुनाव हार जाते हैं तो पहले मुख्यमंत्री होंगे। शनिवार रात्रि एक भाजपा नेता की गाड़ी से वोटरों को बांटी जाने वाली शराब और नोट पकड़े जाने के बाद तो स्थिति और भी रोमंाचक हो गयी है।

उत्तराखंड की तीसरी निर्वाचित विधानसभा के चुनाव के लिए सारे मुद्दे खण्डूड़ी है जरूरी या मजबूरी के नारे पर टिक जाने के साथ ही उत्तराखंड ही नहीं बल्कि सारे देश की निगाह गढ़वाल के प्रवेश द्वार और कण्व ऋषि की तपोस्थली (कण्वाश्रम) कोटद्वार पर टिक गई है। लगभग 82 हजार मतदाताओं वाली इस विधानसभा सीट पर कुल 8 प्रत्याशी चुनाव मैदान में है जिनमें प्रदेश के मुख्यमंत्री भुवन चन्द्र खंडूड़ी भी एक है जिन्हें भाजपा केवल पहले ही अपना अगला मुख्यमंत्री घोषित कर चुकी है बल्कि उनके नाम से ही अन्य सीटों पर वोट भी मांग रही है। दूसरी ओर कांग्रेस ने अपने परखे हुए प्रत्याशी सुरेन्द्र सिंह नेगी को चुनाव मैदान में उतारा हुआ है। हालांकि सुरेन्द्र सिंह नेगी 2007 में हुए ध्ुमाकोट विधनसभा उपचुनाव में खंडूड़ी से हार गए थे लेकिन इस समय परिस्थितियां बिल्कुल अलग है क्योंकि कोटद्वार सुरेन्द्र सिंह नेगी का गढ़ होने के साथ ही एक ठाकुर बहुल निर्वाचन क्षेत्र है जहां से पिछले 44 सालों में आज तक कोई भी ब्राह्मण प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत पाया अगर इस समय भुवन चन्द्र खंडूड़ी यहां से चुनाव जीतते है तो यह अपने आप में एक इतिहास तो होगा ही लेकिन अगर उन्हें कांग्रेस के सुरेन्द्र सिंह नेगी पटकनी देकर चुनाव जीत जाते है तो उत्तराखंड के राजनीतिक इतिहास में एक और रोचक पन्ना जुड़ जाएगा।

हालांकि इस निर्वाचन क्षेत्र में 8 प्रत्याशी मैदान में है लेकिन मुख्य मुकाबला मुख्यमंत्री खंडूड़ी और कांग्रेस के सुरेन्द्र सिंह नेगी के बीच ही सिमट कर रह गया है। इस चुनाव में बसपा,उक्रांद और रक्षा मोर्चा के प्रत्याशी भी मैदान में है लेकिन उनकी भूमिका केवल इन दोनों दलों के चुनावी समीकरण को गड़बड़ाने के अलावा नजर नहीं रही है। प्रदेश के अन्य हिस्सों की तरह कोटद्वार में भी परिवर्तन की चर्चाएं काफी गर्म है लेकिन जब मतदाताओं के सामने केवल प्रदेश का मुख्यमंत्री हो और वह भी एक पार्टी का खेवनहार हो तो परिवर्तन की हवाएं स्वयं ही दम तोड देती है लेकिन राजनीतिक विश्लेषक कहते है कि उत्तराखंड की सर्वाधिक जातिवादग्रस्त सीट होने के कारण कोटद्वार खंडूड़ी के लिए आसान नहीं रह गया है। पिछले इतिहास का हवाला देते हुए चुनावी विश्लेषक मानते है कि सन् 1967 में आखिरी ब्राह्मण प्रत्याशी भैरवदत्त धूलिया इस क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीते थे। उस समय उन्होंने कांग्रेस के जगमोहन सिंह नेगी को हराया था। जगमोहन सिंह नेगी उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री भी थे। उस समय से लेकर उत्तराखंड राज्य के गठन तक कोटद्वार, लैन्सडौन विधानसभा क्षेत्र का ही अंग रहा। उस चुनाव के बाद गढ़वाल की राजनीति में जातिवाद का असर इतना फैला कि उसके बाद आज तक कोई ब्राहमण चुनाव नहीं जीत पाया।

इतिहास के पन्नों को अगर पलटा जाए तो 1967 में लैन्सडौन क्षेत्र से जगमोहन सिंह नेगी की हार के मात्र 2 साल बाद उनके बेटे चन्द्र मोहन सिंह नेगी ने 1969 में यह सीट दुबारा जीत कर अपने पिता की हार का बदला ले लिया। उसके बाद वह 1974,1977 और 1980 में इस क्षेत्रा से चुनाव जीत कर उत्तर प्रदेश में मंत्री रहे और अस्सी के दशक के बहुचर्चित गढ़वाल चुनाव में उन्होंने हेमवती नंदन बहुगुणा से जबरदस्त टक्कर ली और मात्रा 25 हजार वोट से हार गए। इस सीट पर उसके बाद उनकी विरासत सुरेन्द्र सिंह नेगी ने ही सम्भाली और वह 1985 में इस सीट से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए। सुरेन्द्र सिंह नेगी एक बार निर्दलीय और 2 बार कांग्रेस पत्याशी के रूप् में विधानसभा चुनाव जीते हैं।

कोटद्वार विधानसभा क्षेत्र की कुल जनसंख्या करीब 1 लाख 80 हजार है जिसमें 82 हजार से अध्कि मतदाता हैं। करीब 40 हजार महिला और 42 हजार पुरुष मतदाता हैं। जातिवादी समीकरणों से देखा जाए तो इस सीट पर 40 प्रतिशत ठाकुर, 20-22 प्रतिशत ब्राह्मण और शेष मुस्लिम, अनुसूचितजाति अनु सूचितजनजाति मतदाताओं की संख्या है। इस सीट पर मैदानी मूल के मतदाताओं की भी अच्छी खासी संख्या है। कोटद्वार विधनसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी भुवन चन्द्र खंडूड़ी और कांग्रेस प्रत्याशी सुरेन्द्र सिंह नेगी के बीच ही मुख्य मुकाबला माना जा रहा है, जबकि बसपा के राजेन्द्रसिंह आर्य और टीपीएस रावत के उत्तराखंड रक्षा मोर्चा,गीताराम सुन्द्रियाल तथा निर्दलीय प्रत्याशी राजेन्द्र आर्य के स्थान पर रहने की संभावना है। इस सीट पर आजतक कोई भी राष्ट्रीय नेता प्रचार के लिए नहीं आया है। भाजपा से राजनाथ, राशिद अली प्रदेश स्तरीय नेता ही यहां खंडूड़ी के प्रचार में आए, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में केन्द्रीय भूतल परिवहन मंत्री सीपी जोशी, दिल्ली की मुख्य मंत्री शीला दीक्षित, गढवाल सांसद सतपाल महाराज और टिहरी सांसद विजय बहुगुणा ही पहुंचे।

कोटद्वार-तराई भाबर से लेकर कालागढ़ और कुंभीखाल तक करीब 32 किमी में फैली यह सीट अविभाजित उत्तरप्रदेश के दौरान लैंसडौन विधनसभा में थी, लेकिन पृथक उत्तराखंड के गठन के बाद कोटद्वार विधानसभा सीट अस्तित्व में आई। नये परिसीमन के बाद विकासखंड दुगड्डा का घाड़ क्षेत्र यमकेश्वर विधानसभा में चला गया है। जिससे घाड़ क्षेत्र के करीब 10 हजार मतदाता इस सीट पर कम हो गये हैं। इसका कुछ नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ सकता है,किन्तु उत्तराखंड रक्षा मोर्चा के प्रत्याशी गीताराम सुन्दिरयाल भाजपा को नुकसान पहुंचा सकते है क्योंकि मोर्चा के पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल टीपीएस रावत का होने का के कारण कुछ फौजी वोटों पर जरूर असर डालेगा जिसका नुकसान सीधे - सीधे भाजपा प्रत्याशी को होगा। शनिवार की रात कोटद्वार भाबर में एक भाजपा नेता की गाड़ी से शराब पकड़े जाने के बाद स्थिति और भी रोमांचक हो गयी है। कांग्रेस प्रत्याशी का आरोप है कि भाजपा प्रत्याशी के लोग केवल सत्ता का दुरुपयोग कर रहे हैं बल्कि शराब और रुपये भी वोटरों को बांट रहे हैं।

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