Search This Blog

Tuesday, October 24, 2017

उत्तराखंड की जनजातीय सांस्कृतिक विरासत के संरक्षक शेर सिंह पांगती नहीं रहे

उत्तराखण्ड के लोक कला के प्रसिद्ध डा. शेर सिंह पांगती नहीं रहे 
कुमाऊं के लोक कला के प्रसिद्ध विशेषज्ञ डा शेर सिंह पांगती का  मंगलवार २४ अक्टूबर  २०१७ को  देहरादून के नींबूवाला में निधन हो गया है। डॉ एसएस पांगती लंबे समय से बीमार चल रहे थे। वे पिछले काफी समय से देहरादून अपने पुत्र मनोज के पास रह रहे थे। देहरादून के एक अस्पताल में उनका उपचार चल रहा था। वहीं डॉ पांगती ने मंगलवार सुबह करीब ११:२४ बजे अंतिम सांस ली। डॉ पांगती अपने पीछे पुत्र मनोज पांगती औरपत्नी को छोड़ गए हैं। डा पांगती ने अपने व्यक्तिगत संसाधनों से जोहार संस्कृति के उन्नयन संवर्धन और संरक्षण के लिए अतुलनीय कार्य किया था। उन्होंने मुन्स्यारी में जोहार घाटी की संस्कृति पर आधारित संग्रहालय च्ट्राइवल हेरीटेज म्यूजियमज् भी बनाया था। उन्होंने हिन्दी और अंग्रेजी में विभिन्न विषयों यथा स्थानीय इतिहास भूगोल संस्कृति साहित्य और यात्रा संस्मरण सम्बंधी १६ पुस्तकें लिखी हैं। डॉ पांगती का जन्म १ फरवरी १९३७ को मुनस्यारी के भैंसकोट में हुआ था। उन्होंने इतिहास में एमए और पीएचडी की।
शेर सिंह पांगती का निधन उत्तराखंड   बहुत बड़ी  क्षति  है।  उन्होंने अपने दम  पर एक अद्भुत जनजातीय संग्रहालय बनाया है।  यह संगहालय उनकी ओर  से  समाज को बहुत बड़ी देन है।  वह एक बहुत बड़ी सांस्कृतिक उपलब्धि है।  आज जिस तरह हम अपनी संस्कृति को भूल रहे हैं तथा अन्य संस्कृतियों के मुरीद होते जा रहे हैं उससे हमारी सांस्कृतिक पहचान ही संकट में है।  अपने सांस्कृतिक प्रतीकों को इस तरह संजोना असाधारण कार्य है।  मैंने अपनी "पुस्तक उत्तराखंड की जान जातियों का इतिहास" में इसका उल्लेख किया है।  शेर सिंह पांगती को कम  से कम पद्म विभूषण मिलना चाहिए।
वे ३५ वर्षों तक सीमान्त के विभिन्न विद्यालयों में शिक्षक रहे। उनकी विभिन्न विषयों पर लिखी पुस्तकों में जोहार के स्वर, मध्य हिमालय की भोटिया जनजाति, एक स्वतंत्रता का जीवन संघर्ष, मुनस्यारी लोक और साहित्य, लोक गाथाओं का मंचन, वास्तुकला के विविध आयाम, राजुला मालूशाही : एक समालोचनात्मक अध्ययन, अभिलेखों का अभिलेखीकरण, कैलाश ए बोथ ऑफ लॉड शिवा, न्यूजीलैंड : द कन्ट्री ऑफ फ्लाइटलेस, मुनस्यारी ए जैम इन द इंडियन हिमालया, फसक-फराल, जोहार ज्ञान कोश, हॉट टूरिस्टिक ऑफ कज्जाख बन्डितस बाई ए जोहरी ट्रेडर्स १९४९, राम चरित अभिनय और गौरी घाटी में ऊन उद्योग प्रमुख हैं। लोक संस्कृति के एक पुरोधा डॉ. शेर सिंह पांगती का जाना उत्तराखण्ड के समय, समाज और संस्कृति के लिए अपूरणीय क्षति है।

No comments:

Post a Comment