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Saturday, October 28, 2017

आधार ही कमजोर है आधार कार्ड का

आधार   ही कमजोर है आधार कार्ड का  
महत्मा गाँधी ने अपना पहला सत्याग्रह दक्षिण अफ्रीका में किया   २२  अगस्त  १९०६ को दक्षिण अफ्रीका की सरकार ने एशियाटिक ला अमेंडमेंट लागू किया इसके तहत ट्रांसवाल इलाके के सारे भारतीयों को रजिस्ट्रार ऑफिस जाकर अपने फिंगर प्रिंट्स देने थे, जिससे उनका परिचय पत्र बनना था जिसे हर समय अपने पास रखने की हिदायत दी गई थी   ना रखने पर सजा भी तय  कर दी थी गाँधी जी ने इसे काला कानून बताया जोहान्सबर्ग में तीन हज़ार भारतीओं को साथ लेकर उन्होंने मार्च किया  अगर आज गाँधी जी होते तो जरुर घोर का विरोध करते   आधार के चीफ नंदन निलकनी ने खुद ही नेल्सन कम्पनी के कन्जूमर ३६० के कार्यक्रम  के दौरान उन्होंने बताया की भारत के एक तिहाई कन्जूमर बैंकिंग और सामाजिक सेवा की पहुँच से बाहर हैं ये लोग गरीब हैं इस लिये खुद बाज़ार तक नहीं पहुँच सकते   पहचान नंबर मिलते ही मोबाइल फ़ोन के जरिये इन तक पहुंचा जा सकता है।   इसी कार्यक्रम में नेल्सन कम्पनी के चेयर मेन  का  कहना था कि  मजबूत सिस्टम से कंपनियों को फायदा पहुंचेगा  विशेषज्ञों का मानना है कि  एक ना एक दिन ये अभियान भी फ्लाप होगा और तब तक इस परियोजना पर देश का कई हज़ार करोड़ रूपए खर्च  हो चुके होंगे।
आधार कार्ड  के प्रचार की बाकी योजनाएं तो फेल हो चुकी हैं। जब उससे सीधे लाभ मिलेगा तो लोग उसे बनवाने के लिए भी लाइन लगाएंगे। यह मुद्दा हो सकता है, पर दो लाख करोड़ रुपए सालाना लुटाने की योजना इतने भर के लिए नहीं बन सकती। यह निश्चित रूप से सरकार द्वारा अपनी विफलता को छिपाने और वोट खरीदने के लिए उठाया गया कदम है। यह काम प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति बनने के बाद से आए आत्मविश्वास के बाद उठा दूसरा बड़ा कदम है। उदारीकरण के दूसरे चरण के फैसले वोट दिला ही देंगे, यह भरोसा नहीं है। लेकिन करोड़ों गरीबों को सीधे नगदी पाने का लाभ हो, यह कोई नहीं मानता। पर इस क्रम में सरकार गरीबों के प्रति अपनी जवाबदेही से हाथ झाड़ ले, यह गलत है।

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