भाजपा के लिये थराली की जीत में भी खतरे का संदेश
-जयसिंह रावत
हाल ही में
11 राज्यों में हुये
4 लोकसभा और 10 विधानसभा सीटों
के उप चुनावों
में भाजपा को
जो तगड़ा झटका
लगा है उसकी
पीड़ा शायद ही
महाराष्ट्र की पालधर
संसदीय सीट और
उत्तराखण्ड विधानसभा की थराली
सीट पर हुयी
जीत के मरहम
ने कम की
होगी। चमोली गढ़वाल
की थराली विधानसभा
सीट वह एकमात्र
सीट रही जिस
पर इन उप
चुनावों में भाजपा
को काफी मशक्कत
करने के बाद
जीत हासिल हो
सकी। यह जीत
भी इतने कम
अंतर से कि
इस पहाड़ी राज्य
में भी मोदी
का जादू कायम
रहने पर संदेह
उत्पन्न हो गया।
इस चुनाव में
भाजपा ने केन्द्र
सरकार के पिछले
4 साल के तथा
राज्य की त्रिवेन्द्र
सरकार के एक
साल के कामकाज
पर वोट मांगे
थे। लेकिन चुनाव
नतीजों से तो
लगता है कि
थराली की जनता
मजबूरी में ही
सत्ताधारी दल के
साथ गयी है।
Munni Devi the winner |
Professor Jeet Ram the looser |
उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पंजाब,
बिहार, झारखण्ड, पं0 बंगाल,
तमिलनाडू, केरल और
मेघालय विधानसभाओं के लिये
हुये उप चुनाव
में भारतीय जनता
पार्टी के हाथ
केवल उत्तराखण्ड की
थराली सीट लगी
है। चमोली गढ़वाल
के इस विधानसभा
क्षेत्र में भाजपा
के विधायक मगन
लाल के निधन
के बाद यहां
उप चुनाव हुआ
और भाजपा ने
क्षेत्र की जनता
की सहानुभूति बटोरने
के लिये स्वर्गीय
मगन लाल की
विधवा श्रीमती मुन्नी
देवी को अपनी
प्रत्याशी बनाया था। जबकि
कांग्रेस ने अपने
पूर्व विधायक प्रोफेसर
जीतराम को एक
बार फिर इस
सीट पर आजमाया
था। सत्ताधारी दल
की प्रत्याशी मुन्नी
देवी अपने प्रतिद्वन्दी
प्रो0 जीतराम को
एक रोमांचक मुकाबले
में केवल 1981 वोटों
से पराजित कर
पायी जबकि पिछले
ही साल 2017 में
हुये विधानसभा चुनाव
में उनके पति
मगन लाल ने
प्रो0 जीतराम को
4858 मतों से पराजित
किया था। सत्ताधारी
दल और प्रदेश
की त्रिवेन्द्र सिंह
रावत सरकार द्वारा
अपनी पूरी ताकत
इस उप चुनाव
में झोंके जाने
के बाद भी
सत्ताधारी दल का
इस तरह हारते-हारते चुनाव जीत
जाना और राज्य
में अब तक
हुये उप चुनावों
में सबसे कम
मार्जिन से चुनाव
जीतने का रिकार्ड
बनाना सत्ताधारी दल
के लिये खतरे
की घंटी ही
माना जा सकता
है। खास कर
आने वाले नगर
निकाय चुनाव और
फिर 2019 के लोकसभा
चुनाव के लिये
मतदाताओं की यह
उत्साहविहीनता भाजपा के लिये
काफी कष्टकर हो
सकती है।
सन्् 2000 में राज्य
के रूप में
अस्तित्व में आने
के बाद उत्तराखण्ड
विधानसभा के 11 उप चुनाव
हो चुके हैं
और हर एक
चुनाव में राज्य
में सत्ताधारी पार्टी
की भारी मतों
से जीत का
सिलसिला चलता रहा
है। उप चुनाव
में क्षेत्रीय जनता
का सत्ताधारी दल
का दामन थामे
रखना या विपक्ष
को छोड़ कर
सत्ताधारी दल का
दामन पकड़ना स्वाभाविक
ही है। भौगोलिक
कठिनाइयों के कारण
उत्तराखण्ड के लोग
आर्थिक रूप से
पिछड़े तो हैं
मगर राजनीतिक रूप
से उन्हें किसी
भी दृष्टि से
पिछड़ा नहीं कहा
जा सकता है।
इसका जीता जागता
सबूत इस छोटे
से भूभाग का
उत्तर प्रदेश जैसे
विशाल राज्य को
पं0 गोविन्द बल्लभ
पन्त, नारायण दत्त
तिवारी और और
हेमवती नन्दन बहुगुणा जैसे
दिग्गजों के रूप
में लगभग 27 सालों
तक नेतृत्व प्रदान
करना रहा है।
इसी राजनीतिक जागरूकता
के कारण जब
भी उप चुनाव
होते रहे हैं
तब क्षेत्र विशेष
की जनता ने
अपनी विभिन्न समस्याओं
से मुक्ति तथा
विकास की जरूरतों
की पूर्ति के
लिये सत्ताधारी दल
के साथ जाना
ही श्रेयस्कर समझा
है। थराली की
जनता से भी
इसी राजनीतिक समझदारी
की अपेक्षा थी
जिस पर वह
खरी तो उतरी
मगर उसने सत्ताधारी
दल को खुल
कर समर्थन देने
और विपक्ष से
दूरी बनाने में
इतना संकोच कर
भाजपा के लिये
खतरे का सायरन
तो बजा ही
दिया है।
राज्य गठन के
बाद उत्तराखण्ड में
उप चुनाव का
सिलसिला 2002 में नैनीताल
जिले की रामनगर
सीट से तब
शुरू हुआ जबकि
उस सीट से
जीते विधायक योगम्बर
सिंह रावत ने
नारायण दत्त तिवारी
के लिये वह
सीट खाली कर
दी। इस उप
चुनाव में तिवारी
केवल अपना नामांकनपत्र
दाखिल करने के
लिये रामनगर गये
थे फिर भी
उन्होंने भाजपा के अपने
प्रतिद्वन्दी को 23,220 मतांे से
पराजित किया। रामनगर के
बाद 2005 में सत्ताधारी
कांग्रेस के सुरेन्द्र
सिंह नेगी ने
अपने भाजपा के
प्रतिद्वन्दी अनिल बलूनी
को 7,900 मतों से
पराजित कर सीट
जीत ली। बलूनी
की अपील पर
सुप्रीमकोर्ट ने 2002 में हुये
कोटद्वार सीट के
चुनाव को रद्द
कर दिया था,
इसलिये 2005 में वहां
पुनः चुनाव कराने
पड़े तो सत्ताधारी
कांग्रेस का प्रत्याशी
पहले से अधिक
मतों से चुनाव
जीत गया। सन्
2007 में भाजपा सत्ता में
आयी तो भुवनचन्द्र
खण्डूड़ी के लिये
कांग्रेस के ले0
जनरल (सेनि) तेजपाल
सिंह रावत ने
धूमाकोट सीट खाली
की और खण्डूड़ी
ने यह सीट
14,171 मतों के अन्तर
से जीत कर
कांग्रेस की एक
और सीट विधानसभा
में कम कर
दी। उसके बाद
भगत सिंह कोश्यारी
राज्यसभा के लिये
चुने गये तो
उन्होंने कपकोट सीट खाली
कर दी। उस
चुनाव में भाजपा
के शेरसिंह गढ़िया
ने कांग्रेस की
कुंती परिहार को
7,167 मतों से पराजित
कर सीट पुनः
भाजपा की झोली
में डाल दी।
वर्ष 2007 के विधानसभा
चुनाव में मुन्ना
सिंह चौहान भाजपा
के टिकट पर
विकासनगर सीट जीते
थे, लेकिन 2009 में
भाजपा से मतभेद
हो जाने पर
उन्होंने पार्टी के साथ
ही विकासनगर सीट
भी छोड़ दी
और वह बसपा
टिकट पर टिहरी
से लोकसभा चुनाव
लड़ बैठे। इस
सीट पर हुये
उप चुनाव में
तत्कालीन सत्ताधारी दल के
बिल्कुल नोसिखिये कुलदीप कुमार
मुना सिंह चौहान
और नव प्रभात
जैसे दिग्गजों को
हरा कर विधानसभा
पहुंच गये। सन्
2012 में कांग्रेस सत्ता में
आयी तो एक
बार फिर विधायक
दल का नेता
विधायकों में से
चुने जाने के
बजाय ऊपर से
विजय बहुगुणा के
रूप में थोपा
गया। लिहाजा उनके
लिये भी एक
अदद विधानसभा सीट
सीट सितारगंज में
तलाशी गयी जो
कि विपक्षी भाजपा
के किरन मण्डल
के पास थी।
कांग्रेस ने भी
भाजपा के पद
्चिन्हों पर चलते
हुये अपना एक
विधायक कम करने
के बजाय विपक्ष
में तोड़फोड़ कर
भाजपा के किरन
मण्डल से इस्तीफा
दिलवा दिया। इस
सीट पर हुये
उप चुनाव में
कांग्रेस के विजय
बहुगुणा ने भाजपा
के प्रकाश पन्त
को 39,954 मतों के
भारी भरकम अन्तर
से हरा दिया।
सन् 2014 के लोकसभा
चुनाव में डोइवाला
विधानसभा क्षेत्र के विधायक
रमेश पोखरियाल निशंक
के हरिद्वार संसदीय
सीट से और
सोमेश्वर के विधायक
अजय टमटा के
अल्मोड़ा संसदीय सीट से
भाजपा टिकट पर
चुनाव जीत जाने
से उनकी विधानसभा
की सीटें रिक्त
हो गयीं। इसी
प्रकार विजय बहुगुणा
की जगह हरीश
रावत को उत्तराखण्ड
का मुख्यमंत्री बनाये
जाने पर रावत
के लिये हरीश
धामी ने अपनी
धारचुला विधानसभा सीट खाली
कर ली। इन
तीन सीटों पर
हुये विधानसभा उपचुनाव
में हरीश रावत
ने 20,604 मतों से
धारचुला सीट जीतने
के साथ ही
सत्ताधारी कांग्रेस ने डोइवाला
और सोमेश्वर सीटें
भी भाजपा से
छीन लीं। डोइवाला
में कांग्रेस के
हीरा सिंह बिष्ट
ने भाजपा के
त्रिवेन्द्र सिंह रावत
(वर्तमान मुख्यमंत्री) को 6,518 मतों से
तथा सोमेश्वर में
कांग्रेस की रेखा
आर्य ने भाजपा
के मोहनराम आर्य
को 21,911 मतों से
पराजित कर सीटें
जीत लीं। कांग्रेस
सरकार में बसपा
के कोटे से
कैबिनेट मंत्री सुरेन्द्र राकेश
के निधन से
हरिद्वार की भगवानपुर
सीट खाली हुयी
तो सत्ताधारी कांग्रेस
ने 2015 के उपचुनाव
में दिवंगत विधायक
की पत्नी ममता
रोकश को अपनी
प्रत्याशी बना दिया
और ममता राकेश
ने भाजपा प्रत्याशी
को 36,909 मतों के
भारी अंतर से
हरा क रवह
सीट जीत ली।
उत्तराखण्ड में अब
तक हुये उप
चुनाव नतीजों पर
गौर करें तो
मतदाता हमेशा सत्ताधारी दल
के प्रत्याशी को
भारी मतों से
जिताते रहे हैं।
इसलिये गत 28 मई को
हुये उप चुनाव
में थराली से
भाजपा प्रत्याशी की
जीत अप्रत्याशित नहीं
थी। लेकिन अब
तक के उपचुनावों
में सत्ताधारी दल
के प्रत्याशी का
सबसे कम मतों
के अन्तर से
चुनाव जीतना और
एक साल के
अन्दर ही विपक्ष
के प्रत्याशी का
वोट शेयर बढ़ना
सत्ताधारी दल के
लिये खतरे का
संकेत अवश्य ही
है। कर्नाटक के
बाद इस चुनाव
में भी विपक्षी
कांग्रेस हार कर
भी सत्ता पक्ष
को झकझोर गयी
है।
जयसिंह रावत
पत्रकार
ई-11, फ्रेंड्स एन्क्लेव,
शाहनगर,
डिफेंस कालोनी रोड,
देहरादून
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