उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत SelfieFromMyVillage अभियान
उत्तराखण्ड
के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र
सिंह रावत ने
आज से SelfieFromMyVillage अभियान शुरू
किया है। मुख्यमंत्री श्री रावत ने उत्तराखण्ड वासिायों विशेषकर प्रवासी उत्तराखण्ड वासियों से अपील की है कि इन गर्मियों में अपने परिवार व बच्चों के साथ अपने पैतृक गांव जाएं। उन्होंने कहा कि यदि हम अपने बच्चों को अपने गांव से जुड़ेंगे, तो उनका अपने गांव, भाषा व संस्कृति से पुनः जुड़ाव होगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि अपने गांव से अपने बच्चों के साथ #SelfieFromMyVillage हैश् टैग के साथ अपनी फोटो शेयर करें। मुख्यमंत्री जी की इस मुहिम के अंतर्गत हर तस्वीर एक कहानी बोलेगी। #SelfieFromMyVillage हैश्टैग उत्तराखण्ड के एक अलग स्वरूप को सोशल मीडिया के माध्यम से आगे लाएगा।
मुख्यमंत्री
की यह योजना
आकर्षक जरूर है
और इसके पीछे
पलायन का दर्द
अवश्य झलक रहा
है मगर इन
दिनों यह व्यवहारिक
नहीं है। मौसम
विभाग ने आगामी
20 जून तक उत्तराखण्ड
में मानसून पहुंचने
की भविष्यवाणी की
है। मानसून के
दौरान पहाड़ी इलाकों
में जन जीवन
अस्त व्यस्त होने
के साथ ही
खतरे बढ़ जाते
हैं। यह राज्य
दैवी आपदाओं की
दृष्टि से बेहद
संवेदनशील है। अगर
2013 की जैसे प्रलयकारी
आपदा न भी
आयी तो भी
मासून के दौरान
100 सवा सौ लोगों
की जानें जाना
आम बात है।
इसकी शुरूआत उत्तरकाशी
जिले के मोरी
ब्लाक के सुदूरवर्ती
क्षेत्र चांइसिल बुग्याल में
बिजली गिरने से
3 लोगों की मौत
एवं 7 अन्य के
घायल होने की
घटना से हो
चुकी है। इस
साल मई में
शुरू हुयी चार
धाम यात्रा में
ही हादसों और
बीमारी से लगभग
56 यात्री जानें गंवा चुके
हैं। सरकार पहाड़ों
में वहां जन
जीवन को तो
सुरक्षित बना नहीं
रही और इस
बरसात में प्रवासियों
को अपने गांव
जाकर सेल्फी खिंचवाने
की बचकानी सलाह
दे रही है।
आज ही प्रदेश
के पुलिस महानिदेशक
की सभी जिला
पुलिस प्रमुखों को
हिदायद अखबारों में छपी
है कि पुलिस
अधिकारी लोगों को और
खास कर बाहर
से आने वाले
लोगों को नदी
नालों, पहाडियों या ढाल
वाले स्थानों पर
सेल्फी न लेने
दें और जहां
तहां चेतावनी के
बोर्ड लगा दें।
यह इसलिये कि
सेल्फी के चक्कर
में कई लोग
गिर कर या
बह कर जानें
गंवा चुके हैं।
मुख्यमंत्री जी के
ज्ञानी सलाहकार भूल गये
कि राज्य में
आपदाओं की दृष्टि
से संवदेनशील गावों
की संख्या 400 तक
पहुंच गयी है।
इनमें से भी
लगभग 70 गांव अत्यन्त
संवेदनशील हैं। क्या
राज्य सरकार इस
बरसात में प्रवासियों
को इन गावों
में भेजना चाहती
है? पहाड़ों में
प्रवासियों को कब
भेजा जाय, इसकी
जानकारी तो सरकार
को होनी ही
चाहिये। घूमने और रहने
में अंतर समझा
जाना चाहिये। वहां
घूमने का सबसे
उचित समय अप्रैल
आखिरी सप्ताह से
जून मध्य तक
और फिर सितम्बर
से लेकर अक्टूबर
अंतिम सप्ताह तक
का है। ऊंचाई
वाले क्षेत्रों में
शीत ऋतु में
जाने की सलाह
नहीं दी जाती
है। अगर कोई
अपने गांव में
कुछ लम्बे समय
तक रहने के
लिये जा रहा
हो तो तब
बात और है।
लेकिन बरसात शुरू
होते ही पहाड़ों
में सड़कें टूट
जाती है। राष्ट्रीय
राजमार्ग की काफी
समय तक अवरुद्ध
हो जाते हैं।
कुछ ही दिन
पहले जोशी मठ
के निकट हाथी
पहाड़ी से चट्टान
खिसकने से 14 हजार यात्री
दो दिन तक
फंसे रहे। ग्रामीण
इलाकों की सड़कों
का तो बुरा
हाल है। अगर
आप कार से
अपने गांव गये
और बरसात में
भूस्खलन से सड़क
अवरुद्ध हो गयी
तो समझो कि
आप और आपकी
गाड़ी फंस गयी।
सरकार को प्रवासियों
को बेतुकी राय
देने के बजाय
पहले वहां जन
जीवन सुरक्षित बनाना
होगा। वहां सड़क
संचार के साथ
ही दूर संचार
के साधनों और
आपातकालीन व्यवस्थाओं को मजबूत
करना होगा।
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