उत्तर भारत के तम्बाकू प्रेमियों में उत्तराखण्ड नम्बर वन
-जयसिंह रावत
कैंसर, लकवा और
टीबी जैसी बीमारियों
का खौफ भी
उत्तराखण्ड के तम्बाकू
प्रेमियों को विचलित
नहीं कर पा
रहा है। इन
दुस्सासियों की बदौलत
उत्तराखण्ड तम्बाकू सेवन के
मामले में उत्तर
भारत में पहले
नम्बर पर आ
गया है।
राष्ट्रीय तम्बाकू नियंत्रण कार्यक्रम
के तहत किये
गये एक सर्वेक्षण
के अनुसार उत्तर
भारत में 18.9 प्रतिशत
लोग तम्बाकू का
सेवन करते हैं।
जबकि उत्तराखण्ड में
30.7 प्रतिशत लोग किसी
न किसी रूप
में तम्बाकू का
सेवन करते हैं।
तम्बाकू सेवन के
मामले में जम्मू-कश्मीर (26.6 प्र.श.)
दूसरे दिल्ली
(24.3 प्र.श.)
तीसरे और हरियाणा
(23.7 प्र.श.) चौथे
नम्बर पर है।
सर्वेक्षण के अनुसार
हिमाचल प्रदेश में 21.2 प.्रश. तथा
पंजाब में 11.7 प्रतिशत
लोग तम्बाकू का
सेवन करते हैं।
उत्तराखण्ड
में तम्बाकू का
सेवन केवल धूम्रपान
से नहीं बल्कि खैनी,
गुटका, पान, जर्दा,
तम्बाकूयुक्त मसाला एवं तम्बाकूयुक्त
दंतमंजन के प्रयोग
से भी किया
जा रहा है।
यही नहीं जो
लाग धूम्रपान नहीं
करते उन्हें भी
धूम्रपान करने वालों
ने पैसिव स्मोकर
बना दिया है।
सर्वेक्षण के अनुसार
दूसरों के द्वारा
उड़ाये गये तम्बाकू
के धुंएं की
चपेट में आने
वाले लागों में
85 प्रतिशत लोगों की सांस
में घर के
अन्दर परिजनों द्वारा
उड़ाया गया धुंआं
चला जाता है।
जबकि 24.20 प्रतिशत को कार्यस्थल
पर और 49.20 प्रतिशत
लोगों को सर्वाजनिक
स्थलों पर तम्बाकू
का धुआं अपनी
चपेट में लेता
है। पैसिव स्मोकर
या सेकेण्ड हैंड
स्मोक से घरों
में 13 से लेकर
15 साल तक के
22 प्रतिशत बच्चे प्रभावित हो
रहे हैं। इस
उम्र के 37 प्रतिशत
बच्चे सार्वजनिक स्थलों
पर किये जाने
वाले तम्बाकू के
धुएं से प्रभावित
होते हैं।
तम्बाकू का सेवन
करने वालों में
भी बीड़ी प्रेमी
सबसे आगे हैं।
सर्वेक्षण के अनुसार
राज्य के 19.2 प्रतिशत
लोग बीड़ी के
शौकीन है। जबकि
7.1 प्र.श. खैनी,
4.1 प्र.श. गुटखा,
4.1 प्र.श. सिगरेट
और 2.2 प्र.श
धूम्रपान प्रेमी हुक्केबाज हैं।
धूम्रपान का सेवन
बीड़ी, सिगरेट, हुक्का,
सिगार और चिलम
के माध्यम से
किया जाता है।
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल
रिसर्च द्वारा कराये गये
एक अन्य सर्वेक्षण
के अनुसार उत्तराखण्ड
में लगभग 35 प्रतिशत
लोग धूम्रपान करते
हैं तथा 12 प्रतिशत
लोग धुआंरहित तम्बाकू
का सेवन करते
हैं। इनमें भी
39 प्रतिशत धूम्रपान प्रेमी ग्रामीण
क्षेत्र में हैं।
इस सरकारी सर्वेक्षण के
अनुसार उत्तरभारत में कुल
7.2 लोग धूम्ररहित तम्बाकू का
सेवन करते हैं।
जबकि उत्तराखण्ड में
तम्बाकू के इस
रूप में उपयोग
करने वालों की
संख्या सर्वाधिक 11.6 प्रतिशत है। उत्तर
भारत में धुआं
रहित तम्बाकू के
सेवन प्रचलन में
दिल्ली का दूसरा
स्थान है जहां
10.5 प्र.श. लोग
खैनी और गुटखा
आदि आदि का
सेवन करते हैं।
जम्मू-कश्मीर में
धूम्ररहित तम्बाकू का सेवन
करने वाले 7.6 प्र.श., हरियाणा
में 6.4 प्र.श.
और पंजाब में
6.5 प्र.श. है।
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य
विभाग की ओर
से कराये गये
इस सर्वेक्षण में
कहा गया है।
तम्बाकूयुक्त धूम्रपान में हाइड्रोजन
साइनाइड, अमोनिया, टाल्यून, ब्यूटेन
और कार्बन मोनोक्साइड
जैसेी गैसों के
अलावा आर्सेनिक, कैडमियम,
क्रोमियम और शीशा
जैसे टॉक्सिक धातुएं
और पोलोमियम 210, फार्मलडीहाइड
बेंजीन और विनाइल
क्लोराइड जैसे कैंसर
पैदा करने वाले
रसायन होते हैं।
तम्बाकू के सेवन
से दीर्घकालिक दुष्प्रभावों
में श्लेष्मल झिल्ली
में दाग, मुंह
का, खाने की
नली, ध्वनि के
बक्से का, सांस
की नली का
तथा अग्नाशय का
कैंसर, पेट में
फोड़ा, दिमागी लकवा,
उच्च रक्तचाप हृदय
रोग, खांसी, क्षय
रोग, अस्थमा, मोतियाबिन्द
और नपुंशकताप आदि
बीमारियों का खतरा
होता है।
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