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Sunday, February 26, 2017

Gather thistles expect pickles.बोए पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय

कोई चमत्कार नहीं होने जा रहा  उत्तराखण्ड में 11 मार्च को
-जयसिंह रावत
उत्तराखण्ड की चौथी विधानसभा के चुनाव में नवीं सरकार का फैसला ईवीएम मशीनों में बंद हो चुका है और 11 मार्च का बेसब्री से सभी को इंतजार है। बाबा रामदेव जैसे कुछ राजनीतिक ज्योतिषी इस बार चौंकाने वाले परिणामों की उम्मीद कर रहे हैं। जिस प्रत्याशी को सौ-दो सौ वोट भी नहीं मिलने हैं, वह भी चमत्कार की उम्मीद से इन दिनों मन के लड्डू खा रहा है। लेकिन हमें नहीं लगता कि इस बार भी कोई चमत्कार होने जा रहा है। ज्यादा से ज्यादा कुछ बड़े नेता चुनाव हार जायेंगे और कुछ नये लोग जीत जायेंगे। लेकिन इससे उत्तराखण्ड की राजनीतिक व्यवस्था बदलने नहीं जा रही है। जनता के पास इस बार भी बहुत सीमित विकल्प थे। उसे कांग्रेस और भाजपा में से ही चुनाव करना है। इसमें चमत्कार या चौंकाने वाली बात क्या है? पिछले दो चुनावों में जनता इन दोनों दलों को स्पष्ट बहुमत देकर दोनों को ही हरा चुकी है और इस बार जिस तरह का भ्रमित मतदान हुआ है उससे भी ज्यादा स्पष्ट जनादेश की आशा कम ही है। अगर दोनों में से किसी एक को स्पष्ट जनादेश मिल भी जाता है तो भी क्या नया होने जा रहा है? दोनों के लेबल अलग जरूर हैं मगर अन्दर माल तो एक ही है। अवसरवादियों ने दोनों दलों को समरस बना दिया है। प्रख्यात लोक गायक नरेन्द्र सिंह नेगी ने सही कहा है कि ‘‘कांग्रेस बल नौं की रैगे, भाजपा काग्रेस ह्वेगे’’ ऐसे घालमेल में आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि उत्तराखण्ड के भविष्य के बारे में कुछ नया होगा। जिन लोगों पर भाजपा घोटालों का आरोप लगा कर आसमान सिर पर उठाती थी वे आज उनके लिये मर्यादा पुरुषोत्तम बने हुये हैं। कांग्रेस के लिये वे घोटालेबाज पहले आदर्श पुरुष थे और आज भ्रष्टाचारी हो गये हैं। इसमें दो राय नहीं कि हरीश रावत के पास विजन और अनुभव तो है। खास कर पहली बार कोदा-झंगोरा को आगे कर ग्रामीण आर्थिकी की मजबूती के लिये उन्होंने जो पहल की है वह कारगर हो सकती है। मगर जिस तरह के बदनाम गिरोह से वह घिरे रहे हैं उस गिरोह का लौटना प्रदेश के लिये हितकर नहीं हो सकता।
इन चुनावों में उम्मीद थी कि सत्ता के दावेदार उत्तराखण्ड के बेहतरीन भविष्य के लिये और यहां की हर समस्या के समाधान के लिये अपनी सोच रखेंगे। चुनाव अभियान में विचारों का मन्थन होगा मगर सारा अभियान भष्टाचार के कीचड़ में डूब कर रह गया। कांग्रेस का अभियान तो कहीं नजर भी नहीं आया। सम्भवतः नोटबंदी ने कांग्रेस अभियान का गला दबा दिया। भ्रष्टाचार भी मुख्य मुद्दा इसलिये कि हमारे नेताओं की सोच उससे आगे बढ़ नहीं पाती। देखा जाय तो लोग इसी के लिये राजनीति में आते हैं। तराई से लेकर भारत-तिब्बत सीमा तक फैले इस नये राज्य में मुद्दों की कमी नहीं है। यहां जितनी भौगोलिक और सांस्कृतिक विविविधताएं हैं उतनी ही अधिक समस्याएं और विकास की अपेक्षाएं भी हैं। पलायन की बात सभी करते हैं मगर समाधान का व्यवहारिक मार्ग उनके पास नहीं। स्कूलों में मास्टर और अस्पतालों में डाक्टर पहले भी नहीं थे और अब भी नहीं हैं। सारा पहाड़ आपदा के ऊपर बैठा हुआ है। बचने के उपास किसी के पास नहीं हैं। राज्य पर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है। अब तक 46 हजार करोड़़ से अधिक का कर्ज इस नये राज्य के सिर पर चढ़ गया, जिसका ब्याज ही 4-5 करोड़ देना होता है। ऊपर से राज्य आन्दोलनकारी से लेकर कर्मचारी तक कहता है कि चाहे जो मजबूरी हो मगर मांग हमारी पूरी हो। 40 हजार करोड़ के बजट में विकास पर 10 हजार करोउ़ भी खर्च नहीं हो रहा है। जब बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से खाय? इन चुनावों से हमें बहुत ज्यादा आशावादी होने की जरूरत इसलिये भी नहीं है क्योंकि जिन लोगों को हम अवसरवादी, पद लोलुप, भ्रष्टाचारी, दुराचारी और जाने क्या-क्या कहते रहे हैं वे स्वयं विधानसभा और सरकार में नहीं रहे बल्कि हम उन्हें विधायकी और सत्ता का सुख थाली में परोस कर दे रहे हैं। हम कर्मचारी को भ्रष्ट कहते हैं। अफसर को चोर कहते हैं। नेता को लम्पट कहते हैं। लेकिन ये चोर, भ्रष्ट और लम्पट कौन हैं? वे भी हम में से ही तो हैं और हम ही उनको आगे करते हैं। कई प्रत्याशियों पर हत्या, हत्या का प्रयास, लूट, डकैती और जालसाजी के आरोप हैं और हम जातीय, क्षेत्रीय और मजहबी अफीम के नशे में होश खो कर ऐसे ही लोगों को वोट दे बैठते हैं। जो लोग शराब बांट रहे थे और कुछ नोट भी बांट रहे थे। अगर वे चुने जाते हैं तो उनसे आप क्या अपेक्षा करेंगे? जिन पर बलात्कार के आरोप लगे उनसे आप सदाचार की उम्मीद कैसे करेंगे? बहरहाल अब 11 मार्च का इंतजार है। उम्मीद की जानी चाहिये कि इस बार कुछ नही ंतो कम से कम स्पष्ट बहुमत वाली सरकार तो मिले ताकि राजनीतिक अस्थिरता से मुक्ति मिल सके।
(दिव्य हिमगिरी पत्रिका के 26 फरबरी 2017 के अंक में अतिथि संपादक के तौर पर लिखा गया जयसिंह रावत का संपादकीय)

-जयसिंह रावत
-11, फ्रेण्ड्स एन्क्लेव
शाहनगर, डिफेंस कालोनी रोड
देहरादून।
मोबाइल 9412324999


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