कोई चमत्कार नहीं होने जा रहा उत्तराखण्ड में 11 मार्च को
-जयसिंह रावत

इन चुनावों में उम्मीद
थी कि सत्ता
के दावेदार उत्तराखण्ड
के बेहतरीन भविष्य
के लिये और
यहां की हर
समस्या के समाधान
के लिये अपनी
सोच रखेंगे। चुनाव
अभियान में विचारों
का मन्थन होगा
मगर सारा अभियान
भष्टाचार के कीचड़
में डूब कर
रह गया। कांग्रेस
का अभियान तो
कहीं नजर भी
नहीं आया। सम्भवतः
नोटबंदी ने कांग्रेस
अभियान का गला
दबा दिया। भ्रष्टाचार
भी मुख्य मुद्दा
इसलिये कि हमारे
नेताओं की सोच
उससे आगे बढ़
नहीं पाती। देखा
जाय तो लोग
इसी के लिये
राजनीति में आते
हैं। तराई से
लेकर भारत-तिब्बत
सीमा तक फैले
इस नये राज्य
में मुद्दों की
कमी नहीं है।
यहां जितनी भौगोलिक
और सांस्कृतिक विविविधताएं
हैं उतनी ही
अधिक समस्याएं और
विकास की अपेक्षाएं
भी हैं। पलायन
की बात सभी
करते हैं मगर
समाधान का व्यवहारिक
मार्ग उनके पास
नहीं। स्कूलों में
मास्टर और अस्पतालों
में डाक्टर पहले
भी नहीं थे
और अब भी
नहीं हैं। सारा
पहाड़ आपदा के
ऊपर बैठा हुआ
है। बचने के
उपास किसी के
पास नहीं हैं।
राज्य पर कर्ज
का बोझ बढ़ता
जा रहा है।
अब तक 46 हजार
करोड़़ से अधिक
का कर्ज इस
नये राज्य के
सिर पर चढ़
गया, जिसका ब्याज
ही 4-5 करोड़ देना
होता है। ऊपर
से राज्य आन्दोलनकारी
से लेकर कर्मचारी
तक कहता है
कि चाहे जो
मजबूरी हो मगर
मांग हमारी पूरी
हो। 40 हजार करोड़
के बजट में
विकास पर 10 हजार
करोउ़ भी खर्च
नहीं हो रहा
है। जब बोया
पेड़ बबूल का
तो आम कहां
से खाय? इन
चुनावों से हमें
बहुत ज्यादा आशावादी
होने की जरूरत
इसलिये भी नहीं
है क्योंकि जिन
लोगों को हम
अवसरवादी, पद लोलुप,
भ्रष्टाचारी, दुराचारी और न
जाने क्या-क्या
कहते रहे हैं
वे स्वयं विधानसभा
और सरकार में
नहीं आ रहे
बल्कि हम उन्हें
विधायकी और सत्ता
का सुख थाली
में परोस कर
दे रहे हैं।
हम कर्मचारी को
भ्रष्ट कहते हैं।
अफसर को चोर
कहते हैं। नेता
को लम्पट कहते
हैं। लेकिन ये
चोर, भ्रष्ट और
लम्पट कौन हैं?
वे भी हम
में से ही
तो हैं और
हम ही उनको
आगे करते हैं।
कई प्रत्याशियों पर
हत्या, हत्या का प्रयास,
लूट, डकैती और
जालसाजी के आरोप
हैं और हम
जातीय, क्षेत्रीय और मजहबी
अफीम के नशे
में होश खो
कर ऐसे ही
लोगों को वोट
दे बैठते हैं।
जो लोग शराब
बांट रहे थे
और कुछ नोट
भी बांट रहे
थे। अगर वे
चुने जाते हैं
तो उनसे आप
क्या अपेक्षा करेंगे?
जिन पर बलात्कार
के आरोप लगे
उनसे आप सदाचार
की उम्मीद कैसे
करेंगे? बहरहाल अब 11 मार्च
का इंतजार है।
उम्मीद की जानी
चाहिये कि इस
बार कुछ नही
ंतो कम से
कम स्पष्ट बहुमत
वाली सरकार तो
मिले ताकि राजनीतिक
अस्थिरता से मुक्ति
मिल सके।
(दिव्य
हिमगिरी पत्रिका के 26 फरबरी 2017 के अंक में अतिथि संपादक के तौर पर लिखा गया जयसिंह
रावत का संपादकीय)
-जयसिंह
रावत
ई-11, फ्रेण्ड्स एन्क्लेव
शाहनगर,
डिफेंस कालोनी रोड
देहरादून।
मोबाइल
9412324999
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