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Tuesday, February 7, 2017

LIFE IS NOT SAFE IN THE VALLEY OF LORD KEDARNATH

जीवन बेहद असुरक्षित हो गया भगवान केदार की घाटी में

आपदाओं की पर्याय बन चुकी केदारघाटी में भूकंप के झटकों ने केदारनाथ की महाआपदा के साढे तीन वर्षों बाद फिर से खौफ पैदा कर दिया है। भूस्खलन के बाद केदारघाटी में भूकम्प का आना कोई नया रिकार्ड नहीं हैं। सन् 1991 में उत्तरकाशी का भूकंप आता है तो उसकी विनाशलीला इस घाटी तक पहुंचती है और अगर 1999 को चमोली का भूचाल धरती को हिलाता है तो भी भगवान केदार की यह भूमि थर्रा उठती है। भूस्खलनों और त्वरित वाढ़ों का सिलसिला हजारों लोगों की लील जाता है।
पिछले आंकडों पर गौर करें तो भूस्खलन और भूकम्प का केदारघाटी से पुराना नाता रहा है। मात्र ढाई दशक की अवधि में केदारघाटी में चार बाढ़ वे भूस्खलन की आपदाएं व तीन भूकम्प के झटकों ने यहां के जनमानस को झकझोर कर रख दिया है। चार दैवीय आपदाओं में केदारनाथ की वह महाआपदा भी शामिल है जिसमें कि उत्तराखण्ड सहित देश विदेश के हजारों लोग मारे गये थे और कई परिवारों की खुशियां हमेशा के लिए दफन हो गयी थी। गौर करने वाली बात यह है कि 16 अक्टूबर 1991 के उत्तरकाशी भूकंप से केदारघाटी में जनहानि तो नहीं हुई, मगर भवनों व मवेशियों को काफी नुकसान पहुंचा था। भूकम्प के झटकों से सोनप्रयाग में गढ़वाल मण्डल विकास निगम के यात्री विश्रामगृह का नामोनिशान मिट गया था। 18 अगस्त 1998 को बुरुवा-भेटी में भूस्खलन होने के कारण 105 लोग जिन्दा दफन हो गये थे, जबकि डेढ़ दर्जन से अधिक गांवों में भूस्खलन होने के कारण 1500 से अधिक मवेशी काल के ग्रास में समा गये। बुरुवा-भेटी में मधु गंगा पर चार किमी की परिधि वाली झील बनने के कारण श्रीनगर तक हाइअलर्ट किया गया। 28 मार्च 1999 को चमोली के भूकंप में भी केदारघाटी अछूती नहीं रही। केदारघाटी में उस विनाशकारी भूकम्प से दर्जनों मकानों में दरारें पड़ने से ग्रामीण खुले आसमान के नीचे रात्रि गुजारने को मजबूर हो गये। भूकम्प के झटकों के कारण कई गावों के ऊपरी हिस्सो में दरार पड़ने से गंाव खतरे की जद में आ गये थे।
15 व 16 जुलाई 2001 को फाटा मुख्य बाजार में भूस्खलन होने के कारण 27 लोग काल के ग्रास बनने के साथ ही कई ग्रामीण बेघर हो गये। इसके बाद 13 सितम्बर 2012 को चुन्नी, मंगोली, किमाणा, ब्राह्मणखोली, प्रेमनगर, व गिरिया में बादल फटने से 62 लोग दुनिया से अलविदा कह गये, जबकि 12 दर्जन से अधिक मकानों को पूर्णतया, गंभीर, व आंशिक क्षति पहुंची थी। साथ ही तीन दर्जन से अधिक मवेशियों की भी मौत हो चुकी थी। आपदा का सिलसिला यहीं नहीं थमा। 16 व 17 जून 2013 को केदारनाथ में हुए जलप्रलय के कारण ऊखीमठ तहसील के 595 लोग जिन्दा दफन हो गये, जिनमें 246 विभिन्न स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र थे। जलप्रलय होने के कारण हजारों व्यवसायिक प्रतिष्ठान व आवासीय भवनों को नुकसान पहुंचने से आज तक केदारघाटी का जन जीवन पटरी पर नहीं लौट पाया है। आपदा के इतने सितम कम थे कि सोमवार रात्रि और मंगलवार दोपहर एक बजकर 22 मिनट पर फिर से आये भूकम्प के झटकों ने एक बार फिर केदारघाटी के आपदा पीड़ित लोगों के दिलो दिमाग में खौफ पैदा कर दिया है। जनजीवन के लिये असुरक्षित इस घाटी से बड़े पैमाने पर पलायन होना तय है।


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