उत्तराखण्ड में जितना प्रचण्ड बहुमत उतनी ही बड़ी चुनौतियां
-जयसिंह रावत
विधानसभा चुनाव में प्रचण्ड
बहुमत मिलने के
बाद त्रिवेन्द्र सिंह
रावत के नेतृत्व
में भाजपा ने
उत्तराखण्ड में सरकार
तो बना ली
मगर उनके लिये
जनता के इतने
भारी भरकम विश्वास
पर खरा उतरना
भी एक चुनौती
बन गया है।
एक तो पहाड़
की पहाड़ जैसी
समस्याएं और ऊपर
से चुनावी वायदे
इतने कि उन्हें
पूरा करते-करते
किसी मुख्यमंत्री की
उम्र ही गुजर
जाये। चुनावी वायदों
और प्रदेश के
विकास की जरूरतें
पूरी करने के
लिये धन की
आवश्यकता होती है
और सरकारी तिजोरी
खाली पड़ी हुयी
है।

मंत्रिमण्डल
के गठन के
तत्काल बाद मुख्यमंत्री
ने पलायन रोकने
के लिये प्रभावी
कदम उठाने की
बात कही है।
लेकिन यह भगीरथ
प्रयास कैसे सफल
होगा, उसकी रूपरेखा
नहीं बतायी। दरअसल
पहाड़ों से पलायन
रोकने के लिये
वहां की ग्रामीण
आर्थिकी मजबूत करने के
साथ ही वहां
शिक्षा और चिकित्सा
जैसी मूलभूत सुविधाएं
मजबूत करनी होंगी।
पहाड़ों के स्कूलों
में पहले भी
शिक्षक पूरे नहीं
थे तो अब
भी नहीं है।
इसी तरह अधिकांश
अस्पताल डाक्टरों की कमी
झेल रहे हैं।
कर्मचारी वहां रहना
ही नहीं चाहते।
पहाड़ों की 80 प्रतिशत शिक्षा
व्यवस्था सरकार के भरोसे
है और शिक्षा
का स्तर इतना
खराब है कि
सरकारी स्कूलों में तैनात
शिक्षक भी अपने
ही स्कूलों में
अपने बच्चे नहीं
रखते। सरकार ने
अस्पतालों की संख्या
तो बढ़ा दी
मगर डाक्टर वहां
नहीं जाते। प्रदेश
की स्थाई राजधानी
का मामला इतना
पेचीदा है कि
हरीश रावत सरकार
ने गैरसैण के
निकट भराड़ीसैण में
विधानसभा भवन जैसा
राजधानी का ढांचा
तो खड़ा कर
दिया मगर उसे
उसका स्थाई या
ग्रीष्मकालीन राजधानी का जैसा
नामकरण करने से
वह कतरा गये।
स्थिति की जटिलता
को देखते हुये
भाजपा ने अपने
दृष्टिपत्र में राजधानी
के मसले को
जलेबी की तरह
घुमा रखा था।
लेकिन बाद में
कर्णप्रयाग सीट के
लिये अलग से
चुनाव हुये तो
सीट जीतने के
लिये उसे ग्रीष्मकालीन
राजधानी बनाने का वायदा
करना पड़ा। पार्टी
ने यह वायदा
तो कर दिया,
मगर पहाड़ के
लोग वहां स्थाई
राजधानी से कम
पर मानने को
तैयार नहीं हैं।
उत्तराखण्ड
दैवी आपदाओं की
दृष्टि से बेहद
संवेदनशील हो गया
है। देश के
तटवर्ती क्षेत्रों में समुद्र
से सुनामी आती
है मगर यहां
आसमान से सुनामी
आने लगी है।
हिमालय के उच्च
क्षेत्रों में वर्षा
नहीं होती थी।
लेकिन अब केदारनाथ
से कहीं ऊपर
चोराबारी ग्लेशियर पर ही
बादल फटने लगे
हैं। सन् 1990 के
दशक में यहां
दो विनाशकारी भूकम्प
आ चुके हैं
और भूगर्ववेत्ता आगे
ऐसे भूकम्प की
चेतावनी दे रहे
हैं जिसकी कल्पना
से भी रूह
कांप जाती है।
बरसात आने वाली
है और लोग
अभी से सहमने
लगे हैं। हर
साल यहां हजारों
लोगों को मारने
वाली केदारनाथ
की जैसी कोई
बड़ी आपदा न
होने पर भी
सौ से अधिक
लोग बादल फटने,
भूस्खलन और त्वरित
बाढ़ जैसी घटनाओं
में मारे जाते
हैं और सेकड़ों
अन्य घायल होने
के साथ ही
बेघर हो जाते
हैं। पिछली बार
तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत
ने आपदा की
दृष्टि से संवेदनशील
लगभग 370 गावों को अन्यत्र
बसाने के लिये प्रधानमंत्री
से 10 हजार करोड़़
की मदद मांगी
थी, जो कि
नहीं मिली। राज्य
में भ्रष्टाचार चरम
पर है। यहां
तक कि बिना
भ्रष्टाचार मुक्त शासन की
बात कपोल कल्पना
लग रही है।
जिन लोगों पर
भ्रष्टाचार के आरोप
स्वयं भाजपा लगाती
रही उन्हीं की
सत्ता में ताजपोशी
करनी पड़ी है।
ऐसे में कैसे
भ्रष्टाचार दूर होगा,
यह भी विचारणीय
प्रश्न है। जब
मंत्रियों और विधायकों
पर ही हत्या
जैसे गंभीर आरोपों
के मुकदमें चल
रहे हों तो
कानून व्यवस्था की
कल्पना की जा
सकती है।
त्रिवेन्द्र
रावत सरकार के
सामने गत विधानसभा
चुनावों में किये
गये लम्बे-चौड़े
वायदों से निपटना
भी एक गंभीर
चुनौती होगी। भाजपा के
उस दृष्टिपत्र में
कुल मिला कर
148 वायदे किये गये
थे। विपक्षी कांग्रेस
सरकार को बार-बार उन
वायदों की यादें
दिला कर सताती
रहेगी, क्योंकि इतने सारे
वायदे पूरे करना
किसी भी सरकार
के बस की
बात नहीं है।
वित्तीय तंगी और
‘‘पैंडोराज बॉक्स’’ के खुलने
के डर से
पूर्व में घोषित
किये गये चार
जिलों का गठन
तो अभी तक
संभव नहीं हो
पाया और उस
पर भाजपा ने
चार अन्य जिलों
के गठन का
वायदा कर दिया।
भाजपा के दृष्टि
पत्र में शिक्षा
नीति की समीक्षा
कर उसे वैश्विक
परिदृष्य के हिसाब
से ढालने के
लिए मेधावी छात्रों
के लिए मुफ्त
में लैपटॉप व
स्मार्ट फोन, निशुल्क
शिक्षा, हजारों अस्थाई कर्मियों
के समायोजन, रिक्त
पदों पर तैनाती,
छात्राओं के लिए
आवासीय विद्यालय, चिकित्सा सेवाओं
के विस्तार के
लिये सचल चिकित्सा
सेवा, टेली मेडिसिन,
नए मेडिकल कॉलेजों
की स्थापना, बीपीएल
के लिए स्वास्थ्य
कल्याण कार्ड, ट्रॉमा सेंटर
स्थापित करने, सस्ती दवाओं
के केंद्र और
एयर एंबुलेंस शुरू
करने के वायदे
भी किये गये
थे। हालांकि पहाड़
के लोगों को
अभी जमीन पर
चलने वाली एम्बुलेंस
भी नहीं मिल
पाती है। उस
दृष्टिपत्र में पर्यटन
और तीर्थाटन के
तहत भाजपा ने
वीर चंद्रसिंह गढ़वाली
स्वरोजगार योजना का दायरा
बढ़ाने, मेडिकल टूरिज्म, लोक
कलाकारों के प्रोत्साहन,
पर्यटन गाइड प्रशिक्षण
केंद्रों की स्थापना,
विपणन केंद्रों और
कोल्ड स्टोरेज, ब्याजमुक्त
फसली ऋण, उपभेक्ताओं
को 24 घंटे बिजली,
रियायती दर पर
बिजली, नियमित हवाई सेवा,
सड़कों का विकास
आदि का वायदा
किया गया था।
राज्य की माली
हालत इतनी पतली
हो चुकी है
कि इतने अधिक
वायदों का एक
छोटा सा हिस्सा
भी पूरा करना
आसान नहीं है।
अगर वायदा खिलाफी
हो गयी तो
2019 के लोकसभा चुनाव में
जवाब देना मुश्किल
हो जायेगा। उससे
पहले इस सरकार
को त्रिस्तरीय पंचायत
और नगर निकाय
चुनावों का सामना
भी करना है।
वोट बटोरने के
लिये भाजपा वायदों
की झड़ी तो
लगा गयी मगर
अब उनको पूरा
करना उसे भारी
पड़ रहा है।
- जयसिंह
रावत
ई-11 फ्रेण्ड्स एन्कलेव, शाहनगर,
डिफेंस कालोनी रोड,
देहरादून।
मोबाइल-09412324999
No comments:
Post a Comment