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Friday, March 17, 2017

MIRACLE OF OF MODI'S DOUBLE ENGINE IN UTTARAKHAND



मोदी का डबल इंजन भा गया उत्तराखण्ड को
-जयसिंह रावत
विधानसभा चुनाव में मोदी नाम की सुनामी में उठी लहरें जहां सुदूर उत्तर पूर्व के सीमान्त प्रदेश मणिपुर तक जा पहुंची वहीं इन लहरों ने दूसरे सीमान्त हिमालयी राज्य उत्तराखण्ड में प्रतिद्वन्दी कांग्रेस के तंबुओं के धुर्रे उड़ाने के साथ ही उतुंग श्रंृगों के वासी और महाबली के रूप में प्रचारित हरीश रावत को तक कुचल कर रख दिया। एक सर्वे ऐजेंसी ने इस बार उत्तराखण्ड में भारी बहुमत की भविष्यवाणी अवश्य की थी मगर इस तरह चुनावी सुनामी की कल्पना स्वयं भाजपा ने तक नहीं की थी। बाकी ज्यादातर ऐजेंसियां उत्तराखण्ड में कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर बता रहीं थीं। विडम्बना देखिये कि जो हरीश रावत सन् 2002 में कांग्रेस को 12 साल के वनवास के बाद वापस सत्ता में लाये थे वही हरीश रावत इस बार कांग्रेस के एक और वनवास का कारण बन गये।
नरेन्द्र मोदी नाम के महानायक के नेतृत्व वाली भारत सरकार और दुनियां की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी होने का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी से पिछले मार्च में हुयी भिड़ंत में राजनीतिक आंधी तूफानों में भी अपनी सरकार बचाने और प्रतिद्वन्दियों के मंसूबों पर पानी फेरने वाले हरीश रावत को इस बार के विधानसभा चुनाव में महाबली के तौर पर प्रचारित किया जा रहा था। कांग्रेस पार्टी ने कभी सोचा भी होगा कि उसका महाबली केवल पार्टी को हरवा देगा बल्कि अपनी दोनों सीटें भी गंवा कर विधानसभा में पहुंचने लायक नहीं रहेगा। कांग्रेस पार्टी को हरीश रावत की क्षमताओं पर यकीन करने के एक नहीं बल्कि कई कारण थे। पहला कारण तो गत वर्ष 18 मार्च को कांग्रेस में फूट के बाद आये जलजले का बखूबी सामना करने और सरकार को बचा लेने की क्षमता का था। दूसरा कारण 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में लगभग सूपड़ा साफ करा चुकी मायूस कांग्रेस को उप चुनावों में विधानसभा की तीन सीटों पर जीत की पहली खुशी दिलाने  का था। उसके बाद भी उत्तराखण्ड में पंचायत और नगर निकायों के चुनाव हुये जिनमें कांग्रेस को जीत मिली। कांग्रेस का हरीश रावत के राजनीतिक कौशल पर भरोसा करने का सबसे बड़ा कारण 2002 के चुनाव में कांग्रेस को सत्ता में लाने का था। हरीश रावत उस समय प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष थे और उससे पहले लगभग 12 सालों से उत्तराखण्ड में कांग्रेस केवल नाम मात्र की रह थी। लेकिन इस बार हरीश रावत के सारे दांव उल्टे पड़ गये। जिस हरीश रावत को उनके चुनाव प्रचार प्रबंधकों ने सोशल मीडिया पर महाबली और दबंग के रूप में प्रचारित कर मोदी समेत तमाम प्रतिद्वन्दियों को पटकते दिखाया था वह महाबली स्वयं उधमसिंहनगर की किच्छा सीट और हरद्विार जिले की हरिद्वार ग्रामीण सीट से हार गया। इस बार उत्तराखण्ड में बसपा और उत्तराखण्ड क्रांति दल जैसे दल अपना खाता तक नहीं खोल पाये।
इस चुनाव में कांग्रेस की दुर्दशा का आलम देखिये कि वह गढ़वाल में चमोली, पौड़ी और टिहरी जिलों में खाता तक नहीं खोल पायी। रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी जिलों में कांग्रेस केवल एक-एक सीट हासिल कर नाक बचा पायी। चुनावों के दौरान चर्चा रही कि बड़े-बड़े नेताओं के भाजपा में जाने के कारण भले ही कांग्रेस को गढ़वाल में कम सीटें मिलेंगी मगर कुमाऊं हिल्स में कांग्रेस का पलड़ा भारी रहेगा। लेकिन वहां भी चम्पावत और बागेश्वर जिलों में हरीश कांग्रेस खाता नहीं खोल पायी। उसे नैनीताल में केवल हल्द्वानी और पिथौरागढ़ में धारचुला सीट मिल पायी। हरीश के गृह जनपद अल्मोड़ा में भले ही वह नेता पतिपक्ष अजय भट्ट को हराने में कामयाब रहे हों मगर वहां भी वह रानीखेत और जागेश्वर सीट ही बचा पाये। चुनाव के दौरान यह भी चर्चा रही कि हरीश रावत मैदानी जिले देहरादून, हरिद्वार और उधमसिंह नगर में आगे रहेंगे। इसीलिये उनकी भाजपा से कांटे की टक्कर की बात हो रही थी। लेकिन देहरादून जिले की 10 सीटों में से केवल चकराता से प्रीतमसिंह ही कांग्रेस की लाज बचाने में सफल रहे। हरिद्वार में कांग्रेस को तीन सीटें अवश्य मिलीं मगर स्वयं हरीश रावत वहां ग्रामीण सीट से हार गये। उधमसिंहनगर की 9 सीटों में से कांग्रेस को केवल एक सीट जसपुर की मिली। वहां भी हरीश रावत अपनी किच्छा की सीट नहीं बचा पाये। कांग्रेस की शर्मनाक हार के कारणों पर चर्चा तो शुरू हो ही गयी मगर इस स्थिति के लिये एक कारण हरीश रावत का ओवर कान्फीडेंस तो माना ही जा रहा है, लेकिन जिस तरह उन्होंने पार्टी पर एकछत्र राज करने के लिये एक-एक कर अपने प्रतिद्वन्दियों को बाहर का रास्ता दिखा कर कांग्रेस पार्टी को दमदार नेताओं से विहीन कर दिया, उसे भी पार्टी की हार का बड़ा कारण माना जा रहा है। वही सारे बागी नेता भाजपा में जा कर चुनाव जीत गये हैं।
इधर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लोकसभा चुनाव के ढाइ साल बाद अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति वाले साहसी महानायक की छवि को बरकरार रखने की कोशिश में कामयाब रहे। इस सैन्य बाहुल्य क्षेत्र, जहां लाखों की संख्या में सेवारत् और सेवानिवृत्त सैनिक हैं, में वन रैंक वन पेशन का तोहफा तो लोगों को प्रभावित कर ही रहा था, लेकिन सर्जिकल स्ट्राइक के मामले ने मोदी की महानायक की छवि को और मजबूत कर दिया। ऊपर से नोटबंदी के फैसले ने लोगों को यह सोचने को मजबूर कर दिया कि इंदिरा गांधी के बाद प्रधानमंत्री की कुर्सी पर ऐसा साहसी या दुस्साहसी व्यक्ति बैठा है जो कि किसी भी हद तक जा सकता है। यही नहीं पौड़ी गढ़वाल के मूल निवासी जनरल विपिन रावत को थलसेना अध्यक्ष बनाना और उससे पहले अजित डोभाल को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की जैसी संवेदनशील और मंत्रियों से महत्वपूर्ण कुर्सी सौंपना जैसे ऐसे कदम थे जो कि पहाड़वासियों पर करिश्मा कर गये। हालांकि मोदी के बातचीत और भाषण के तरीके को कई बुद्धिजीवी शालीनता की श्रेणी में और अन्य पूर्व प्रधानमंत्रियों की तरह भद्रता की श्रेणी में नहीं रखते। लेकिन उनका किसी मजमें के संचालक की तरह ताली बजाना और बार-बार गला फाड़ कर चिल्लाना भी आम लोगों को भा गया। उत्तर प्रदेश में मोदी ने जहां स्वयं को उस प्रदेश का दत्तक पुत्र बता कर वहां के लोगों का अपनत्व जीता वहीं उन्होंने नये प्रदेश उत्तराखण्ड की परवरिश की जिम्मेदारी लेकर भी लोगों का विश्वास जीता। अपने भाषणों में वह लोगों को यह विश्वास दिलाने में कामयाब रहे कि उत्तराखण्ड को विकास के लिये वास्तव में ’’डबल इंजन’’ की जरूरत है। डबल इंजन का मतलब केन्द्र में भाजपा की सरकार की तरह उत्तराखण्ड में भी टकराने वाली कांग्रेस के बजाय भाजपा की सरकार से था।
बहरहाल भाजपा को जो अप्रत्याशित प्रचण्ड बहुमत उत्तराखण्ड से मिला है उसके साथ ही उसे भारी भरकम आशाओं और आकांक्षाओं का बोझ भी मिला है। भाजपा के चुनावी घोषणापत्र/दृष्टिपत्र में कुल 148 वायदे किये गये थे जिनमें गैरसैण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का भी एक वायदा है। सबसे बड़ी चुनौती राज्य की दयनीय माली हालत की है। राज्य पर लगभग 47 हजार करोड़ का कर्ज चढ़ चुका है जिसका ब्याज ही लगभग 6 करोड़ तक देना होता है। अक्सर राज्य सरकार को कर्मचारियों का वेतन देने के लिये आरबीआइ या बाजार से कर्ज उठाना पड़ता है और अब तो सातवें वेतन आयोग का अतिरिक्त बोझ भी ढोना होगा। पार्टी नेताओं की उम्मीदों पर भी पंख लगे हुये हैं और ऐसी स्थिति में वित्तीय अनुशासन बनाये रखना आसान नहीं होगा। आपदाओं की दृष्टि से अति संवेदनशील इस राज्य के लोगों की जानोमाल की रक्षा भी करनी है। प्रधानमंत्री मोदी स्वयं ‘‘पहाड़ की जवानी और पानी’’ को बहने से रोकने का वायदा कर गये थे। ये दानों कैसे बहने से बचेंगे, यह देखना अभी बाकी है। पार्टी के लिये इतने प्रचण्ड बहुमत और कांग्रेसी दिग्गजों को धूल चटाने के पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के अहंकार पर काबू पाना तथा अपनी आदतों के कारण कुख्यात रहे कई विधायकों को नियंत्रित करने की चुनौती का भी सामना करना होगा।


-जयसिंह रावत
-11, फ्रेंड्स एन्कलेव, शाहनगर,
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून।
उत्तराखण्ड।

jaysinghrawat@gmail.com

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