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Friday, March 10, 2017

बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से खाय?

इन चुनावों से हमें बहुत ज्यादा आशावादी होने की जरूरत इसलिये भी नहीं है क्योंकि जिन लोगों को हम अवसरवादी, पद लोलुप, भ्रष्टाचारी, दुराचारी और जाने क्या-क्या कहते रहे हैं वे स्वयं विधानसभा और सरकार में नहीं रहे बल्कि हम उन्हें विधायकी और सत्ता का सुख थाली में परोस कर दे रहे हैं। हम कर्मचारी को भ्रष्ट कहते हैं। अफसर को चोर कहते हैं। नेता को लम्पट कहते हैं। लेकिन ये चोर, भ्रष्ट और लम्पट कौन हैं? वे भी हम में से ही तो हैं और हम ही उनको आगे करते हैं। कई प्रत्याशियों पर हत्या, हत्या का प्रयास, लूट, डकैती और जालसाजी के आरोप हैं और हम जातीय, क्षेत्रीय और मजहबी अफीम के नशे में होश खो कर ऐसे ही लोगों को वोट दे बैठते हैं। जो लोग शराब बांट रहे थे और कुछ नोट भी बांट रहे थे। अगर वे चुने जाते हैं तो उनसे आप क्या अपेक्षा करेंगे? जिन पर बलात्कार के आरोप लगे उनसे आप सदाचार की उम्मीद कैसे करेंगे?

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