जीवनदायिनी गंगा को जीवनदान
-जयसिंह रावत
करोड़ों सनातन धर्मावलम्बियों की
आस्था की प्रतीक
गंगा के बारे
में कहा जाता
था कि ‘‘मानों
तो मैं गंगा
मां हूं, ना
मानो तो बहता
पानी’’ लेकिन अब आप
माने या माने
मगर उत्तराखण्ड हाइकोर्ट
ने गंगा को
‘‘लिविंग पर्सन’’ या एक
जीवित वास्तविकता घोषित
कर गंगा को
हम सब की
माता मान लिया
है। नैनीताल हाइकोर्ट
ने गंगा के
साथ ही उसकी
बहन यमुना को
भी मानवाधिकार दे
कर दुनियां में
एक मिसाल पेश
कर दी है।
अब तक न्यूजीलैंड
की संसद ने
माओरी समुदाय की
आस्था की प्रतीक
ह्वागानुई नदी को
living entity का
दर्जा दिया था।
JAY SINGH RAWAT JOURNALIST AND AUTHOR |
कभी गंगा एक्शन
प्लान तो कभी
नमामि गंगे जैसी
योजनाओं पर हजारों
करोड़ खर्च करने
के बाद भी
केन्द्र और राज्य
सरकारें पतित पावनी
गंगा का पवित्र
निर्मल अतीत नहीं
लौटा पायी थीं।
लेकिन अब अदालत
के ऐतिहासिक आदेश
के बाद आशा
की जानी चाहिये
कि ऋशिकेश से
लेकर बनारस तक
कहीं भी गंगा
अमृत तुल्य जल
पिया भी जा
सकेगा। यूपीए सरकार द्वारा
4 नवम्बर 2008 को गंगा
को राष्ट्रीय नदी
का दर्जा दिये
जाने के बाद
अब उत्तराखण्ड हाइकोर्ट
की न्यायमूर्ति राजीव
शर्मा बौर न्यामूर्ति
आलोक सिंह की
खण्डपीठ ने एक
कदम आगे बढ़ते
हुये गंगा ही
नहीं बल्कि यमुना
को भी ’लिविंग
पर्सन’ की तरह
मानवाधिकार देने का
फैसला दे दिया।
अब गंगा-यमुना
के प्राकृत स्वरूप
को विकृत करना
या उसे गंदा
करना तो कानूनी
जुर्म माना ही
जायेगा लेकिन अगर गंगा
प्रचण्ड आवेश में
आकर किसी का
नुकशान करती है
तो उस पर
भी दण्ड लगेगा
जिसे सरकार भुगतेगी।
अदालत के इस
फैसले से गंगा-यमुना ही नहीं
बल्कि देशवासियों के
तन-मन के
मैल को ढोते-ढोते मैली
हो चुकी तमाम
नदियों की दुर्दशा
के प्रति न्यायपालिका
की वेदना को
समझा जा सकता
है। गंगे! च
यमुने! चैव गोदावरी!
सरस्वति! नर्मदे! सिंधु! कावेरि!
जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु। ये
सभी नदियां गंगा-यमुना के समान
ही पवित्र हैं।
अदालत का यह
संदेश देश की
तमाम प्रदूषित होती
जा रही इन
सभी पवित्र नदियों
के लिये भी
है।
प्रचलित धारणा के अनुसार
अगर किसी वस्तु
में भोजन करना,
आकार में वृद्धि
करना, स्वचलन की
क्षमता, स्वशन करना और
प्रजनन करने के
जैसे गुण हैं
तो वह सजीव
वस्तु या वास्तविकता
है। एक नदी
में ये सभी
गुणधर्म तो नहीं
होते मगर इनमें
से कुछ अवश्य
ही पाये जाते
हैं। नदी जब
उद्गम से चलती
है तो मुहाने
तक उसके आकार
में भारी वृद्धि
होती है। उसमें
स्वचलन का गुण
होता है तभी
तो वह हिमालय
से हिन्द महासागर
तक पहुंच जाती
है। उसमें गति
के साथ ही
शक्ति होती है।
उसी की शक्ति
से पावर हाउस
चलते हैं और
बिजली बनती है।
वह कई भौगोलिक
संरचना के हिसाब
से कई तरह
की आवाजें निकालती
है।
वैसे भी जब
नदी स्वयं जीवनदायिनी
हो तो उसे
जीवित साबित करने
के लिये बायोलॉजी
के प्रजनन और
अनुवांशिकी के जैसे
अतिरिक्त मापदण्ड गौण हो
जाते हैं। हिमालय
से निकल कर
बंगाल की खाड़ी
में विलीन होने
वाली इस महानदी
गंगा का कौन
सा हिस्सा जीवित
है और कौन
सा बीमार हो
कर सड़ गल
रहा है, यह
विषय गम्भीर चिन्तन
का है। विडम्बना
यह है कि
गंगा के मृतप्रायः
हिस्से के प्रति
चिन्ता करने के
बजाय उसके शरीर
के उस प्रचण्ड
वेगवान हिस्से के लिये
क्रुदन की जाती
है।
गंगा की अलकनन्दा
और भागीरथी जैसी
श्रोत जलधाराऐं समुद्रतल
से लगभग 5 हजार
मीटर की ऊंचाई
से उत्तराखण्ड हिमालय
के लगभग 917 में
से 665 (427 अललकनन्दा और 238 भागीरथी
के) ग्लेशियरों की
नाशिकाओं (स्नाउट्स) से अपनी
लम्बी यात्रा पर
निकल पड़़ती हैं।
आप कल्पना कर
सकते हैं कि
5 हजार मीटर की
ऊंचाई से चली
हुयी जलराशियां जब
ऋषिकेश में 300 मीटर की
ऊंचाई पर उतरती
होंगी तो तीब्र
ढाल के कारण
गंगा का वेग
कितना प्रचण्ड होगा।
एक अध्ययन के
अनुसार भागीरथी का ढाल
42 मीटर प्रति किमी और
अलकनन्दा का ढाल
48 मीटर प्रति कि.मी.
है। जिसका ढाल
जितना अधिक होगा
उसका वेग उतना
ही अधिक होगा।
गंगा की यही
उछलकूद उसे स्वच्छ
और निर्मल बनाती
है। जलमल शोधन
संयंत्रों में भी
तो इसी तरह
जल शोधन किया
जाता है। गंगा
जब देवप्रयाग से
समुद्र मिलन के
लिये यात्रा शुरू
करती है तो
उसका रंग मौसम
के अनुसार नीला,
कभी हरा तो
बरसात में मटमैला
होता है। गंगा
को मैदानों के
लिये हिमालय से
उपजाऊ मिट्टी लाने
की जिम्मेदारी भी
निभानी हो़ती है। हरिद्वार
के बाद गंगा
रंग बदलने लगती
है और प्रयागराज
इलाहाबाद में यमुना
से मिलन के
बाद तो वह
काली कलूटी और
महानदी की जगह
महानाला जैसी दिखती
है।
वास्तव में यही
वेग एक नदी
को जीती जागती
बनाता है। गति
के साथ ही
स्वर पर गौर
करें तो पहाड़ों
पर नदियों का
स्वर और ताल
विलक्षण होता है।
उसका कलकल निनाद
भी विलक्षण होता
है। बरसात के
दिनों में गंगा
की गर्जना पहाड़ों
में दूर-दूर
तक गूंजती है।
लेकिन बाराणसी पहुंचते-पहुंचते गंगा न
केवल वेगहीन, गूंगी,
निर्जीव और गन्दगी
के कारण गन्दे
नाले के समान
बदरंग हो जाती
है। गंगा नदी
विश्व भर में
अपनी शुद्धीकरण क्षमता
के कारण विख्यात
है। वैज्ञानिक मानते
हैं कि इस
नदी के जल
में बैक्टीरियोफेज नामक
विषाणु होते हैं,
जो जीवाणुओं और
अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों
को जीवित नहीं
रहने देते हैं।
इस नदी के
जल में प्राणवायु
(ऑक्सीजन) की मात्रा
को बनाए रखने
की असाधारण क्षमता
है। लेकिन गंगा
ज्यों-ज्यों हरिद्वार
से दूर होती
जाती है तो
अत्यधिक प्रदूषण के कारण
उसके ये प्राकृतिक
गुण घटते जाते
हैं। कानपुर के
बाद तो यह
जल सिंचाई के
काबिल भी नहीं
रह जाता है।
गंगा एक्शन प्लान फोज
एक और दो
के बाद नमामि
गंगे योजना भी
चली मगर गंगा
में जा रही
गंदगी उद्गम से
ही नहीं रुक
पायी। गंगा के
मायके उत्तराखण्ड में
ही गंगा किनारे
के नगरों, कस्बों
से रोजाना 14.90 करोड़
लीटर मलजल प्रति
दिन निकल रहा
है। इसमें 8.20 करोड़
लीटर सीवर बिना
ट्रीटमेंट के ही
गंगा में प्रवाहित
हो रहा है।
गंगा किनारे के
लगभग बीस नगरों
की आबादी 14 लाख
है। चारधाम यात्रा
के दौरान आबादी
का दबाव 16 लाख
तक पहुंच जाता
है। केन्द्रीय प्रदूषण
नियंत्रण बोर्ड ने देश
में नदियों को
प्रदूषित करने वाले
1360 उद्योग चिन्हित किये हैं।
इस सूची में
उत्तराखण्ड के 33, उत्तरप्रदेश के
432, बिहार के 22 और पश्चिम
बंगाल के 56 कारखाने
शामिल हैं जो
कि गंगा में
सीधे खतरनाक रसायन
और संयंत्रों से
निकला दूषित जल
तथा कचरा प्रवाहित
कर रहे हैं।
इनमें कानुपर के
76 चमड़ा कारखाने भी शामिल
हैं। प्रो0 जी.डी अग्रवाल
उर्फ स्वामी ज्ञान
स्वरूप सानन्द के जीवन
का अधिकांश हिस्सा
कानपुर में ही
बीता है।
कई स्वनामधन्य साधू सन्तों
और स्वयंभू पर्यावरण
प्रहरियों के निशाने
पर उत्तराखण्ड के
पावर प्रोजेक्ट तो
हैं मगर गंगा
में बह रही
गंदगी उन्हें नजर
नहीं आती। गंगा
को दूषित करने
में हरिद्वार के
कई आश्रम भी
पीछे नहीं हैं।
उत्तराखण्ड के भूगोल
से अनविज्ञ कई
गंगा भक्तों और
साधू सन्तों को
केवल भागीरथी में
ही गंगा का
रूप नजर आता
है जबकि गंगा
का सफर देवप्रयाग
से शुरू होता
है और उससे
ऊपर उसकी हर
एक श्रोत धारा
गंगा समान है।
अलकनन्दा और भागीरथी
में मिलने वाले
सेकड़ों गाड गधेरों
और छोटी नदियों
में से कम
से कम 17 धाराऐं
ऐसी हैं जिन्हें
गंगा के नाम
से पुकारा जाता
है।
हरिद्वार से लगभग
800 कि.मी. लम्बी
मैदानी यात्रा करते हुए
गढ़मुक्तेश्वर, सोरों, फर्रुखाबाद, कन्नौज,
बिठूर, कानपुर होते हुए
गंगा इलाहाबाद (प्रयाग)
पहुँचती है जहां
उसका मिलन यमुना
से होता है।
काशी (वाराणसी) में
गंगा एक वक्र
लेती है, और
वहां से उत्तरवाहिनी
कहलाती है। यहाँ
से मिर्जापुर, पटना,
भागलपुर होते हुए
पाकुर पहुँचती है।
इस बीच इसमें
सोन, गंडक, घाघरा,कोसी आदि
नदियां मिल जाती
हैं। भागलपुर में
राजमहल की पहाड़ियों
से यह दक्षिणवर्ती
होती है। पश्चिम
बंगाल के मुर्शिदाबाद
जिले के गिरिया
स्थान के पास
गंगा नदी दो
शाखाओं में विभाजित
हो जाती है-भागीरथी और पद्मा।
भागीरथी नदी गिरिया
से दक्षिण की
ओर बहने लगती
है जबकि पद्मा
नदी दक्षिण-पूर्व
की ओर बहती
फरक्का बैराज से छनते
हुई बंाग्ला देश
में प्रवेश करती
है। मुर्शिदाबाद शहर
से हुगली शहर
तक गंगा का
नाम भागीरथी नदी
तथा हुगली शहर
से मुहाने तक
गंगा का नाम
हुगली नदी हो
जाता है। देखा
जाय तो मुर्शिदाबाद
से लेकर कानपुर
तक गंगा के
स्वास्थ्य के तत्काल
इलाज की जरूरत
है।
- जयसिंह
रावत
ई-11 फ्रेण्ड्स एन्कलेव, शाहनगर,
डिफेंस कालोनी, रोड,
देहरादून।
मोबाइल-09412324999
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