अपने से लंबी पिचकारी उठाने वाले ये हाथ एक दिन मादरे वतन के लिए बंदूक उठाएंगे और कुल की परंपरा का निर्वाह करेंगे
हमारे पुरखे आयुद्धजीवी रहे हैं ----मेरे दादा जी का बड़ा बेटा सामंती गरूर में रहा ---लेकिन दूसरे बड़े बेटे ने गढ़वाल राइफल में बंदूक थामी ---उसके बड़े बेटे नैनसिंह ने भी गढ़वाल राइफल में बन्दुक थामी--- नैनसिंह के बड़े बेटे ताजबर ने भी ४ गढ़वाल राइफल में बंदूक थामी---मेरे पिता जी का बड़ा बेटा शिव सिंह था वह ३ गढ़वाल राइफल में गया ---मेरे बड़े भाई का बड़ा बेटा देवेंद्र सिंह भी तीसरी गढ़वाल राइफल में गया। मैं नालायक था --- फ़ौज में जाना तो चाहता था ---मगर कुछ अलग करना चाहता था ----इसलिए बंदूक के बजाय कलम थाम ली ----लेकिन मेरा बड़ा बेटा अजय सिंह भी फ़ौज में गया --- जून में वह कर्नल बन जायेगा --बचपन से ही युद्ध और फ़ौज उसका जूनून था ---मरे गांव सांकरी -सेम में मेरे खनदान के सारे लोग मेरे अलावा सभी फ़ौज में हैं --- उनको वीरचक्र जैसे बहादुरी के तमगे और शहादत के ख़िताब मिले हैं ---मुझे कम उम्र में ही बामपंथी संस्कार मिले ----हालाँकि मैं किसी भी राजनीतिक दल से दूर हूँ फिर भी मेरे बामपंथी संस्कार मुझे संकीर्णताओं से विचलित कर देते हैं। मैं चाहता हूँ की मेरा यह कुलदीपक भी देश रक्षक बने और अपने कुल की परंपरा का निर्वाह करे। हम अपना फर्ज निभाएंगे लेकिन बदले में वोट नहीं मांगेंगे
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