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Wednesday, January 18, 2017

एनडी तिवारी- जो अनहोनी को होनी कर दे

एनडी तिवारी- जो अनहोनी को होनी कर दे
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-जयसिंह रावत
देहरादून। पूरे 89 वर्ष की उम्र में दूसरा ब्याह रचाने वाले भारतीय राजनीति के सलाखा पुरुष नारायण दत्त तिवारी ने 92 साल की उम्र में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो कर एक और इतिहास रच डाला। वह उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री रहते हुये 2007 में सक्रिय राजनीति से सन्यास लेने की घोषणा कर चुके थे। अपने शरीर पर अपना नियंत्रण खो देने के बावजूद उन्हें बहुत विलम्ब से मिले अपने पुत्र के राजनीतिक भविष्य के लिये पुनः  दलीय राजनीति में आने की घोषणा करनी पड़ी।
होनी को अनहोनी करने और अनहोनी को होनी, कर दिखाने वाले नारायण दत्त तिवारी ने बुधवार को दिल्ली में भाजपा मुख्यालय में नये दल में शामिल हो कर अनहोनी को होनी में बदल कर दिखा दिया। चूकि वह उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पद से हटने से पहले ही अब कभी सक्रिय राजनीति में लौटने की घोषणा कर चुके थे, इसलिये उनकी राजनीति में यह एक नयी पारी ही मानी जायेगी। अब तक वह दो राज्यों के मुख्यमंत्री रहने वाले अकेले नेता थे लेकिन अब वह 92 साल में किसी राजनीतिक दल में शामिल होने वाले पहले राजनेता भी बन गये। तिवारी 1951 में उत्तर प्रदेश विधानसभा के पहले चुनाव में जीतने वाले एकमात्र जीवित सदस्य थे। उस चुनाव में वह नैनीताल नॉर्थ निर्वाचन क्षेत्र से प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से चुने गये थे।
भारतीय राजनीतिक में सबसे अनुभवी नेता नारायण दत्त तिवारी का अधिकांश राजनीतिक जीवन कांग्रेस में ही बीता फिर भी भाजपा उनके जीवन की चौथी पार्टी है। वह सन् 1951 और 1957 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिये चुने गये थे। वह 1963 में कांग्रेस में शामिल हुये और सन् 1995 तक कांग्रेस में बने रहे। राजीव गांधी की असामयिक मृत्य के बाद वह नब्बे के दशक में प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार माने जाते थे, लेकिन नैनीताल संसदीय क्षेत्र से मात्र लगभ 800 मतों से चुनाव हार जाने के बाद वह देश हुकूमत करने के मौके से चूक गये और नरसिम्हाराव के हाथ बाजी लग गयी। उन्होंने 1995 में अर्जुन सिंह के साथ मिल कर कांग्रेस (तिवारी) का गठन किया और 1996 में इसी दल से नैनीताल सीट से लोकसभा के लिये चुने गये। लेकिन जल्दी ही वह कांग्रेस में लौट गये। उसके बाद वह 2007 तक कांग्रेस की सक्रिय राजनीति में रहे। सन् 2002 में उत्तराखण्ड विधानसभा के पहले चुनाव में कांग्रेस सत्ता में आयी तो हरीश रावत को किनारे कर कांग्रेस ने नारायण दत्त तिवारी को मुख्यमंत्री बना दिया। सन् 2007 के विधानसभा चुनाव से पहले ही वह सक्रिय राजनीति से दूर रह कर तथा फिर कभी चुनाव लड़ने की घोषणा कर एक तरह से राजनीति से सन्यास की घोषणा कर चुके थे। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि तिवारी ने हरीश रावत खेमे के उत्पीड़न से इतना व्यथित थे कि उन्होंने जानबूझ कर राजनीति से सन्यास की घोषणा की थी ताकि कांग्रेस हार जाय। वह चुनाव कांग्रेस ने बिना सेनापति के लड़ा था। उस समय भाजपा द्वारा भी प्रचारित किया जाता था कि जिस जाहज का कैप्टन ही भाग गया हो तो उसका डूबना तय ही है। सिक्के  दूसरे पहलु पर गौर करें तो तिवारी को विकास पुरुष न कहना नाइंसाफी ही होगी। उत्तराखंड में जो विकास नज़र आ रहे  हैं  उसमे तिवारी  योगदान सर्वोच्च है. उत्तराखंड  की तराई की समृद्धि  श्रेय तिवारी  है. उत्तराखंड  क्षेत्र में लगे तमाम कल कारखाने तिवारी की देन  हैं।  उत्तरप्रदेश को नोएडा तिवारी  कल्पना फल  है।  तिवारी की उपलब्धियों के आगे उनके विवाद हमेशा गौण होते रहे हैं।  यही कारण है की उन पर ५६ घोटालों के आरोप तथा लाल बत्तियों का दुरुपयोग करने का आरोप लगाने वाली भाजपा ने उन्हें गले दिया।  भाजपा  लिए अब तिवारी नौछमी नारायण नहीं रहे।  
नारायण दत्त तिवारी और विवादों का चोली दामन का साथ रहा। वह देश के पहले राज्यपाल थे जिन पर राजभवन के अन्दर सैक्स स्कैंडल में लिप्त होने का आरोप लगा। इस आरोप के बाद 26 दिसम्बर 2009 को उन्होंने आन्ध्र प्रदेश के राज्यपाल पद से इस्तीफा दे दिया। इस कांड के बाद कांग्रेस आलाकमान ने भी उनसे दूरी बना ली। वह 22 अगस्त 2007 को आन्ध्र के राज्यपाल बने थे। रोहित शेखर को वह अपना पुत्र होने से निरन्तर इंकार करते रहे। राज्यपाल पद के दौरान उन्हें अदालत में नहीं घसीटा जा सकता था। लेकिन पद से हटते ही रोहित शेखर ने पितृत्व के लिये अदालती लड़ाई लड़ी और वह जीत भी गये। किसी राजनेता का इस तरह का यह पहला विवादित मामला था। तिवारी का विवाह सन् 1954 में डा0 सुशीला तिवारी से हुआ था। श्रीमती तिवारी का 1993 में निधन हो चुका था। तिवारी जब पितृत्व के मामले में अदालत से कानूनी लड़ाई हार गये तो उन्होंने केवल रोहित को बल्कि उनकी माता श्रीमती उज्ज्वला को भी अपना लिये और बाकायदा कुमाऊंनी परम्परागत विधि विधान से 22 मई 2014 को 89 साल की उम्र में श्रीमती उज्ज्वला से विवाह कर लिया।
हैदराबाद राजभवन के सैक्स स्कैंडल के कारण पद से इस्तीफा देने के बाद वह देहरादून में रहने लगे थे। लेकिन कुछ समय बाद वह अपने पुराने ठिकाने लखनऊ चले गये, जहां उन्हें मुलायम सिंह यादव का पूरा आतिथ्य मिला। दूसरा विवाह भी उन्होंने वहीं किया। इस दौरान उनके सहायक बदलते रहे। शरीर पर नियंत्रण रह पाने के कारण उनसे उल्टे सीधे बयान भी दिलवाये जाते रहे। लेकिन जब उनका दूसरा विवाह हो गया और उन्हें पुत्र और पत्नी का संरक्षण मिला तो पुत्र रोहित को राजनीति में जमाने की जिम्मेदारी उन पर गयी। चूंकि समाजवादी पार्टी का उत्तराखण्ड में जनाधार नहीं था। इसलिये कांग्रेस या भाजपा में ही रोहित को राजनीतिक ठिकाना मिल सकता था। कांग्रेस से उन्हें सन्तोषजनक रिस्पांस मिलने पर अन्ततः उन्हें भाजपा का दामन थामना पड़ा।

जयसिंह रावत
ई- 11 फ्रेंड्स एन्क्लेव, षाहनगर, डिफेंस कालोनी रोड,
देहरादून
09412324999
jaysinghrawat@gmail.com

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