उत्तराखण्ड की राजनीति में महिलाएं निर्णायक नहीं रहीं
-जयसिंह रावत
उत्तराखण्ड राज्य निर्माण
में महत्वपूर्ण
योगदान देने
वाली राज्य
की महिला
शक्ति सत्ता
में भागीदारी
को लेकर
हाशिये पर
तो जा
ही रही
थी लेकिन
लिंगानुपात में बढ़ते अन्तर के
चलते महिलाओं
की राजनीतिक
शक्ति का
भी निरंतर
ह्रास होता
जा रहा
है। चुनावों
में कभी
प्रदेश के
13 में से
8 पहाडी जिलों
में महिलाओं
की भूमिका
निर्णायक होती
थी लेकिन
अब 2017 में
होने जा
रहे विधानसभा
चुनावों में
महिला मतदाताओं
का वर्चस्व
सिमट कर
केवल दो
जिलों में
रह गया
है।
विधानसभा और संसद
में महिलाओं
के लिये
आरक्षण की
बात तो
यूपीए सरकार
के साथ
ही हवाहवाई
हो गयी।
इसलिये राजनीतिक
दलों द्वारा
महिलाओं को
कम से
कम एक
तिहाई टिकट
दिये जाने
की बात
भी अब
ठंडे बस्ते
में ही
पहुंच गयी
है। लेकिन
उत्तराखण्ड जैसा राज्य जहां चिपको
और उत्तराखण्ड
आन्दोलन जैसे
जनान्दोलनों में महिलाओं की निर्णायक
भूमिका रही
है और
अधिकांश जिलों
में महिलाओं
का लिंगानुपात
पुरुषों से
अधिक रहा
है, वहां
महिला मतदाताओं
की संख्या
निरन्तर घटती
जा रही
है। अगर
यह ह्रास
जारी रहा
तो इस
पहाड़ी राज्य
की राजनीति
में महिलाओं
की भागीदारी
और अधिक
घट सकती
है।
राज्य गठन के
बाद सन्
2002 में हुये
पहले विधानसभा
चुनाव में
प्रदेश के
13 जिलों में
से देहरादून,
हरिद्वार, ऊधमसिंहनगर और नैनीताल को
छोड़ कर
बाकी पहाड़ी
जिलों में
महिला मतदाताओं
की संख्या
पुरुषों से
अधिक थी।
सन् 2007 में
हुये दूसरे
विधानसभा चुनाव
में महिलाओं
का वर्चस्व
टिहरी, पौड़ी,
रुद्रप्रयाग, चमोली, अल्मोड़ा, बागेश्वर और
पिथौरागढ़ जिलों
तक सीमित
रह गया।
उस चुनाव
में प्रदेश
की 70 विधानसभा
सीटों में
36 सीटों पर
अपनी मनपसन्द
की सरकार
चुनने के
लिये पुरुषों
की तुलना
में महिलाओं
ने अधिक
मतदान किया
था। उस
चुनाव में
धारचुला जैसे
भी बाकी
कुछ विधानसभा
क्षेत्र थे
जहां वोट
देने वाली
महिलाओं की
संख्या पुरुषों
के मुकाबले
थोड़ी सी
ही कम
थी। सन्
2008 में गढ़वाल
संसदीय क्षेत्र
में हुये
उप चुनाव
के लिये
तैयार वोटर
लिस्ट पर
गौर करें
तो उस
समय संसदीय
क्षेत्र की
19विधानसभा सीटों में से 10 पर
महिला मतदाता
अधिक थीं।
अब महिला
मतदाताओं का
वर्चस्व सिमट
कर केवल
दो जिलों
तक सीमित
रह गया
है।
निर्वाचन विभाग द्वारा 2017 के
विधानसभा चुनाव
के लिये
हाल ही
में जारी
की गयी
अंतिम मतदाता
सूची के
अनुसार महिला
मतदाताओं का
वर्चस्व अब
केवल रुद्रप्रयाग
और पिथौरागढ़
जिलों तक
ही सिमट
कर रह
गया है।
इन जिलों
में भी
महिला और
पुरुष मतदाताओं
की संख्या
में बहुत
ज्यादा अन्तर
नहीं रह
गया है।
रुद्रप्रयाग जिले में पुरुष मतदाताओं
की संख्या
89,030 और महिला मतदाताओं की संख्या
89,748 तथा पिथौरागढ़ जिले में पुरुष
मतदाताओं की
संख्या 1,81,895 तथा महिला मतदाताओं की
संख्या 1,82,580 है। 2002 से लेकर 2017 के
चुनाव तक
महिला मतदाताओं
की कुल
संख्या तो
बढ़ी है
मगर यह
संख्या पुरुषों
की तुलना
में कम
ही रही
है। सन्
2012 के चुनाव
में 2007 के
चुनाव की
तुलना में
जहां पुरुष
मतदाताओं की
संख्या में
8.1 प्रतिशत वृद्धि हुयी, वहीं महिला
मतदाताओं की
संख्या में
महज 1.6 प्रतिशत
वृद्धि ही
दर्ज की
गयी। आने
वाले चुनाव
में पहली
बार 150 थर्ड
जेंडर मतदाता
भाग लेने
जा रहे
हैं।
नारायण दत्त तिवारी
के नेतृत्व
वाली
पहली निर्वाचित
सरकार में
इंदिरा हृदयेश
और अमृता
रावत शामिल
थीं। 2007 में जब भाजपा की
सरकार बनीं
तो मंत्रिमण्डल
में केवल
बीना महराना
राज्यमंत्री के रूप में जगह
पा सकीं।
2012 में फिर
कांग्रेस सरकार
बनी तो
इंदिरा हृदयेश
और अमृता
रावत फिर
मंत्री बनीं
मगर बाद
में अमृता
रावत को
मंत्रिमण्डल से हटा दिया गया।
प्रदेश की
70 सदस्यीय विधान सभा में 2002 के
चुनाव में
कुल 4 महिलाएं
चुनीं गयी
थीं जिनकी
संख्या 2007 में घट कर तीन
रह गयी।
लेकिन 2012 के चुनाव में फिर
महिला सदस्यों
की संख्या
बढ़ कर
5 हो गयी।
बाद में
हुये उप
चुनावों में
रेखा आर्य
और ममता
राकेश ने
यह संख्या
बढ़ा कर
7 कर दी।
सन् 2012 के
चुनाव में
कुल 788 प्रत्याशियों
में से
केवल 62 (7.6 प्र.श.) महिला प्रत्याशी
थीं। उस
समय काग्रेस
ने 70 में
से आठ
(11 प्र.श.),
भाजपा ने
70 में से
छह (9 प्र.श.), उक्रांद
ने 44 में
से 3 (7 प्र.श.) और
बसपा ने
70 में से
3 (4 प्र.श.)
सीटों पर
ही महिला
प्रत्याशी मैदान में उतारे। कांग्रेस
की 8 में
से 4 महिला
प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की,
वहीं भाजपा
में एक
महिला उम्मीदवार
ने जीत
दर्ज की।
जानकारों के अनुसार
पहाड़ों में
भी दहेज
जैसी सामाजिक
बुराई के
प्रवेश के
कारण लिंगानुपात
गड़बड़ाने लगा
था लेकिन
अब पलायन
की गति
बढ़ने के
कारण भी
महिला मतदाताओं
की संख्या
में निरन्तर
गिरावट आ
रही है।
पहले पुरुष
सेना में
घर से
दूर होते
थे और
अन्य पुरुष
काम की
तलाश में
मैदानों में
आ जाते
थे। इसलिये
गावों में
महिलाओं और बच्चों
के गावों
में रह
जाने से
महिला मतदाताओं
की संख्या
अधिक होती
थी। लेकिन
अब ज्यादातर
सैनिक और
बाकी गैर
सैनिक कर्मकार
अपने परिवारों
को मैदानी
इलाकों में
ले आये
हैं। इसलिये
पहाड़ों में
भी महिला
मतदाताओं की
संख्या घट
गयी है।
जयसिंह रावत
ई-11, फ्रेंड्स एन्क्लेव,
शाहनगर , डिफेंस
कालोनी रोड,
देहरादून।
09412324999
jaysinghrawat@hotmail.com
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