भागीरथी इको सेंसिटिव
जोन भी बनेगा
चुनावी मुद्दा
जयसिंह रावत
विधनसभा चुनाव करीब आते
जाने के साथ
ही पर्यावरण संवेदी
(इको सेंसिटिव) जोन
को लेकर उत्तराखण्ड
की राजनीति भी
गरमाने लगी है।
मुख्यमंत्री
हरीश रावत इस
पर्यावरण कानून के तहत
राज्य सरकार द्वारा
भेजे गये भागीरथी
घाटी के जोनल
प्लान को केन्द्र
सरकार द्वारा रिजेक्ट
किये जाने को
कांग्रेस शासित उत्तराखण्ड की
घोर उपेक्षा के
साथ ही राष्ट्रीय
सुरक्षा के साथ
खिलवाड़ बता कर
दिल्ली में 5 जनवरी को
उपवास करने जा
रहे हैं। जबकि
भाजपा का कहना
है कि राज्य
सरकार की अदूरदर्शिता
और नाकामी के
कारण प्लान अस्वीकार
हुआ है। लेकिन
उन शेष एक
दर्जन प्रस्तावित पर्यावरण
संवेदी क्षेत्रों के बारे
में कोई भी
fफक्रमंद नजर नहीं
आ रहा जिन
पर नयी व्यवस्था
लागू होते ही
टौंस से लेकर
काली नदी तक
के बहुत बड़े
हिस्से के लोग
पर्यावरण कानून की बेड़ियों
में जकड़ जायेंगे
और वहां विकास
गतिविध्यिों पर विराम
लग जायेगा।
केन्द्रीय पर्यावरण, वन और
जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा
गोमुख से लेकर
उत्तरकाशी तक के
क्षेत्र को इको
सेंसिटिव जोन घोषित
किये जाने के
बाद राज्य सरकार
द्वारा क्षेत्रीय
विकास के लिये
तैयार जोनल मास्टर
प्लान को अस्वीकार
किये जाने से
राज्य सरकार इतनी
तिलमिला गयी कि
मुख्यमंत्री हरीश रावत
को इसके खिलाफ
दिल्ली में 5 जनवरी को
उपवास की घोषणा
करनी पड़ी। राज्य
सरकार की पहली
आपत्ति तो इको
सेंसिटिव जोन पर
ही थी। लेकिन
जब सुप्रीम कोर्ट
के हस्तक्षेप के
बाद यह व्यवस्था
बाध्यकारी हो गयी
तो राज्य सरकार
ने इको सेंसिटिव
जोन के प्रारंभिक
प्रस्ताव और 18 दिसम्बर 2012 को
जारी अंतिम अधिसूचना पर भी
आपत्ति दर्ज कर
दी। इस पर
भी राज्य सरकार
की नहीं सुनी
गयी तो और
अब केन्द्र ने
राज्य सरकार द्वारा
पेश किये गये
जोनल प्लान को
ही खारिज कर
दिया। केन्द्र सरकार
द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार
राज्य सरकार को
दो वर्ष के
भीतर एक जोनल
मास्टर प्लान बनाना था
जिसके तहत क्षेत्र
में किसी भी
निर्माण कार्य अथवा अन्य
विकास कार्यो के
लिये भारत सरकार
की अनुमति लेनी
अनिवार्य है। इको
सेंसिटिव जोन की
व्यवस्थाओं के तहत
उस क्षेत्र में
तीर्थ यात्रियों और
पर्यटकों और उनके
वाहनों की संख्या
भी नियंत्रित की
जानी है।
राज्य सरकार को केन्द्र
सरकार द्वारा जुलाइ
2011 में जारी ड्राफ्ट नोटिफिकेशन और 18 दिसम्बर 2012 को
जारी अंतिम नोटिफिकेशन में काफी
अन्तर किये जाने
पर भी ऐतराज
है। यही नहीं,
अप्रैल ,
2013 में वेबसाइट पर प्रथम
बार प्रकाशित अंतिम
अधिसूचना
को 18 दिसम्बर, 2012 से
प्रभावी माना गया।
प्रस्तावित
नोटिफिकेशन में भागीरथी
के दोनो किनारों
पर 100 मीटर की
दूरी तक अर्थात्
कुल लगभग 40 वर्ग
किलोमीटर का क्षेत्र
ईको-सेंसिटिव जोन
बताया गया था
और अंतिम नोटिफिकेशन में बिना
राज्य सरकार को
बताये इसे 100 गुणा
बढ़ाकर 4179.59 वर्ग कि.मी. कर
दिया गया। पूर्व
ड्राफ्ट
नोटिफिकेशन
में 25 मेगावाट के ऊपर
की जल विद्युत
परियोजनाओं पर रोक
लगाने का प्राविधन
था वहीं अंतिम
नोटिफिकेशन में हर
प्रकार की जल
विद्युत परियोजनाएं रोक दी
गई हैं। इससे
उत्तरकाशी में 1743 मेगावाट की
विभिन्न परियोजनाएं रुक जायेंगी । इन
परियोजनाओं पर काफी
काम हो चुका
है और लगभग
1061 करोड़ रूपये भी खर्च
हो चुके है।
राज्य सरकार का मानना
है कि सामरिक
महत्व के हिमालयी
क्षेत्र में ऐसा
पहला नोटिफिकेशन किया गया
है। ईको- सेंसिटिव
जोन नोटिफिकेशन
का बार्डर रोड़
आर्गनाइजेशन पर भी
प्रतिकूल प्रभाव पडे़गा और
चीन की सीमा
से लगे इस
संवेदनशील क्षेत्रामे सड़कों का
कार्य बुरी तरह
से प्रभावित होगा।
यही नहीं इससे
राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु आवश्यक
अवस्थापना विकास भी प्रभावित
होगा।
केन्द्रीय पर्यावरण, वन और
जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा
अभी तक केवल
गंगोत्री क्षेत्र में इको
सेंसिटिव जोन घोषित
किया गया है
जबकि भविष्य में
शीघ्र ही प्रदेश
के कम से
कम एक दर्जन
अन्य राष्ट्रीय पार्कों
एवं वन्यजीव विहारों
के चारों ओर
इको सेंसिटिव जोन
घोषित होने हैं।
उसके बाद सेकड़ों
गावों के निवासी
इको सेंसिटिव जोन
की जद में
आने के साथ
ही वहां विकास
गतिविध्यां थम जायेंगी।
लेकिन उन क्षेत्रों
पर प्रदेश के
राजनीतिक नेतृत्व का ध्यान
नहीं जा पा
रहा है।
-जयसिंह
रावत
ई- 11 फेंण्ड्स एन्क्लेव, शाहनगर,
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून।
मोबाइल-
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