CAN A PRIME MINISTER PUT THE WHOLE OF THE COUNTRY
UNDER CURFEW WITHOUT DECLARING EMERGENCY?
-Jay Singh Rawat
Jay Singh Rawat Journalist and Author |
What I know the “Police and
Public order” are State subjects under the Seventh
Schedule to the Constitution of India and therefore, it is the primary duty of the State Governments to prevent, detect, register
and investigate crime and prosecute the criminals/offenders. Section
144 of the Criminal Procedure Code (Cr.PC) of 1973 authorizes the
Executive Magistrate (and not a Prime Minister) of any state or
territory to issue an order to prohibit the assembly of four or more people in
an area. According to the law, every member of such 'unlawful assembly' can be
booked under section 188 of the Indian Penal Code. Social distancing and
self-containment within the house is a need of the hour and Prime Minister Mr.
Modi’s call for JANATA CURFEW is also timely and appreciable but I could not
understand how a Prime Minister can declare curfew over all the states of India
without declaring an emergency. In the name or on behalf of the President of
India the government of India can only take reign of law and order
of the whole of the country in its hand under the provisions of
article 352, 356 and 360. I hope enlightened and learned facebook friends will
guide me and clear my apprehensions.
In exercise of the powers under section 6 (2)(1) and section 10 (2)(1)
of the Disaster Management Act 2005 the National Disaster Management Authority
(NDMA) under the aforesaid provisions has issued a guideline to all ministries and
departments as well State authorities to mitigate the crisis of COVID-19 . I
wonder, where is the provision of curfew under aforesaid sections of the Act as
declared by the Hobble. Prime Minister Mr. Narendra Modi on 24 March 2020. Both
the sections as quoted or referred to by the NDMA are as follow:-
THE
DISASTER MANAGEMENT ACT, 2005
ACT
NO. 53 OF 2005
[23rd December, 2005.]
10.
Powers and functions of National Executive Committee.—(1)
The National Executive Committee shall assist the National Authority in the
discharge of its functions and have the responsibility for implementing the
policies and plans of the National Authority and ensure the compliance of
directions issued by the Central Government for the purpose of disaster
management in the country. (2) Without prejudice to the generality of the
provisions contained in sub-section (1),
the National Executive Committee may— (a) act as the coordinating and
monitoring body for disaster management; (b) prepare the National Plan to
be approved by the National Authority; (c) coordinate and monitor the
implementation of the National Policy; (d) lay down guidelines for preparing a disaster
management plans by different Ministries or Departments of the Government of
India and the State Authorities;
Section 6 in the
Disaster Management Act, 2005
6 Powers and functions of National Authority. —
(1) Subject
to the provisions of this Act, the National Authority shall have the
responsibility for laying down the policies, plans and guidelines for disaster
management for ensuring a timely and effective response to the disaster.
(2) Without
prejudice to the generality of the provisions contained in sub-section (1), the
National Authority may—
(a) lay
down policies on disaster management;
(b) approve
the National Plan;
(c) approve
plans prepared by the Ministries or Departments of the Government of India in
accordance with the National Plan;
(d) lay
down guidelines to be followed by the State Authorities in drawing up the State
Plan;
(e) lay
down guidelines to be followed by the different Ministries or Departments of
the Government of India for the purpose of integrating the measures for
prevention of disaster or the mitigation of its effects in their development
plans and projects
क्या है महामारी अधिनियम 1897
कोरोना से निपटने के लिए दवा तो उपलब्ध नहीं है मगर अंग्रेजों द्वारा बनाया गया एपिडेमिक डिजीज एक्ट या महामारी रोग अधिनियम 1897 ही उपलब्ध है, जिसका प्रयोग केन्द्र सरकार की एडवाइजरी पर राज्य सरकारों ने शुरू कर दिया है। इसलिए इस कानून को भी जानना जरूरी ही है। इस एक्ट की धारा-2 में कहा गया है कि,-
‘‘जब राज्य सरकार को किसी समय ऐसा लगे कि उसके किसी भाग में किसी खतरनाक महामारी का प्रकोप हो गया है या होने की आशंका है, तब अगर वो (राज्य सरकार) ये समझती है कि उस समय मौजूद कानून इस महामारी को रोकने के लिए काफी नहीं हैं, तो कुछ उपाय कर सकती है। ऐसे उपाय, जिससे लोगों को सार्वजनिक सूचना के जरिए रोग के प्रकोप या प्रसार की रोकथाम हो सके।’’
इस एक्ट की धारा-2 की उपधारा- 2 में कहा गया है कि ‘‘जब केंद्रीय सरकार को ऐसा लगे कि भारत या उसके अधीन किसी भाग में महामारी फैल चुकी है या फैलने का खतरा है, तो रेल या बंदरगाह या अन्य तरीके से यात्रा करने वालों को, जिनके बारे में ये शंका हो कि वो महामारी से ग्रस्त हैं, उन्हें किसी अस्पताल या अस्थायी आवास में रखने का अधिकार होगा।’’
महामारी अधिनियम 1897 की धारा-3 में जुर्माने के बारे में कहा गया है कि ‘‘महामारी के संबंध में सरकारी आदेश न मानना अपराध होगा। इस अपराध के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत सजा मिल सकती है। इस ऐक्ट की धरा-4 कानूनी सुरक्षा के बारे में है, जो अधिकारी इस ऐक्ट को लागू कराते हैं, उनकी कानूनी सुरक्षा भी यही ऐक्ट सुनिश्चित करता है। यह धारा सरकारी अधिकारी को लीगल सिक्योरिटी दिलाती है कि अगर ऐक्ट लागू करने में अगर कुछ अप्रिय हो गया तो उसके लिये अधिकारी जिम्मेदार नहीं होगा।
कोरोना से निपटने के लिए दवा तो उपलब्ध नहीं है मगर अंग्रेजों द्वारा बनाया गया एपिडेमिक डिजीज एक्ट या महामारी रोग अधिनियम 1897 ही उपलब्ध है, जिसका प्रयोग केन्द्र सरकार की एडवाइजरी पर राज्य सरकारों ने शुरू कर दिया है। इसलिए इस कानून को भी जानना जरूरी ही है। इस एक्ट की धारा-2 में कहा गया है कि,-
‘‘जब राज्य सरकार को किसी समय ऐसा लगे कि उसके किसी भाग में किसी खतरनाक महामारी का प्रकोप हो गया है या होने की आशंका है, तब अगर वो (राज्य सरकार) ये समझती है कि उस समय मौजूद कानून इस महामारी को रोकने के लिए काफी नहीं हैं, तो कुछ उपाय कर सकती है। ऐसे उपाय, जिससे लोगों को सार्वजनिक सूचना के जरिए रोग के प्रकोप या प्रसार की रोकथाम हो सके।’’
इस एक्ट की धारा-2 की उपधारा- 2 में कहा गया है कि ‘‘जब केंद्रीय सरकार को ऐसा लगे कि भारत या उसके अधीन किसी भाग में महामारी फैल चुकी है या फैलने का खतरा है, तो रेल या बंदरगाह या अन्य तरीके से यात्रा करने वालों को, जिनके बारे में ये शंका हो कि वो महामारी से ग्रस्त हैं, उन्हें किसी अस्पताल या अस्थायी आवास में रखने का अधिकार होगा।’’
महामारी अधिनियम 1897 की धारा-3 में जुर्माने के बारे में कहा गया है कि ‘‘महामारी के संबंध में सरकारी आदेश न मानना अपराध होगा। इस अपराध के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत सजा मिल सकती है। इस ऐक्ट की धरा-4 कानूनी सुरक्षा के बारे में है, जो अधिकारी इस ऐक्ट को लागू कराते हैं, उनकी कानूनी सुरक्षा भी यही ऐक्ट सुनिश्चित करता है। यह धारा सरकारी अधिकारी को लीगल सिक्योरिटी दिलाती है कि अगर ऐक्ट लागू करने में अगर कुछ अप्रिय हो गया तो उसके लिये अधिकारी जिम्मेदार नहीं होगा।
भारतीय दंड संहिता की धारा 188
ReplyDelete1897 के महामारी कानून (Mahamari Act) के सेक्शन 3 में इस बात का जिक्र किया गया है कि अगर कोई प्रावधानों का उल्लंघन करता है, सरकार / कानून के निर्देशों / नियमों को तोड़ता है, तो उसे आईपीसी की धारा 188 के तहत दंडित किया जा सकता है। इस संबंध में किसी सरकारी कर्मचारी द्वारा दिए निर्देशों का उल्लंघन करने पर भी आपके खिलाफ ये धारा लगाई जा सकती है।यहां तक कि किसी के ऊपर ये धारा लगाने व कानूनी कार्रवाई करने के लिए ये भी जरूरी नहीं कि उसके द्वारा नियम तोड़े जाने से किसी का नुकसान हुआ हो या नुकसान हो सकता हो। अगर आपको सरकार द्वारा जारी उन निर्देशों की जानकारी है, फिर भी आप उनका उल्लंघन कर रहे हैं, तो भी आपके ऊपर धारा 188 के तहत कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।
धारा 188 में सजा का प्रावधान
IPC की धारा 188 के तहत दो प्रावधान हैं-
पहला - अगर आप सरकार या किसी सरकारी अधिकारी द्वारा कानूनी रूप से दिए गए आदेशों का उल्लंघन करते हैं, या आपकी किसी हरकत से कानून व्यवस्था में लगे शख्स को नुकसान पहुंचता है, तो आपको कम से कम एक महीने की जेल या 200 रुपये जुर्माना या दोनों की सजा दी जा सकती है।
दूसरा - अगर आपके द्वारा सरकार के आदेश का उल्लंघन किए जाने से मानव जीवन, स्वास्थ्य या सुरक्षा, आदि को खतरा होता है, तो आपको कम से कम 6 महीने की जेल या 1000 रुपये जुर्माना या दोनों की सजा दी जा सकती है। क्रिमिनल प्रोसीजर कोड (CrPC 1973) के पहले शेड्यूल के अनुसार, दोनों ही स्थिति में जमानत मिल सकती है और कार्रवाई किसी भी मैजिस्ट्रेट द्वारा की जा सकती है।